Tuesday, December 20, 2011

हिन्‍दू महासभा का राष्‍ट्रपति के नाम खुला पत्र

महामहिम,
श्रीमती प्रतिभा सिंह देवी पाटिल,
भारत सरकार
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली
विषय : पाकिस्तानी हिन्दुओं के मानवाधिकार हनन, उत्पीड़न, यौन शोषण, धर्मान्तरण के सन्दर्भ में
महोदय,
सविनय निवेदन है कि १५ अगस्त १९४७ को हिन्दुस्थान का विभाजन कांग्रेस, मुस्लिम लीग और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कारण हुआl हिन्दू महासभा ने उस समय भी विभाजन का मुखर विरोध किया था, कांग्रेस कार्य समिति में कांग्रेस ने भी स्वीकार किया था कि विभाजन अल्पकाल के लिए हो रहा है और पुनः भारत अखंड होगा l
१९४६ में भी कांग्रेस ने अखंड हिन्दुस्थान के लिए वोट माँगा था, फिर भी राष्ट्र के विभाजन का पाप किया
हिन्दुस्थान के विभाजन का उस समय हिन्दू महासभा द्वारा जो विरोध किया गया और जो अनुमान लगाये गए वो आज पुर्णतः सत्यापित हो रहे हैं, विभाजन के समय जो जघन्यता और क्रूरता इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं के प्रति दिखाई गयी दिखाई गयी थी वो आज भी निरंतर गतिशील है l
डाक्टर बाबा साहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर द्वारा सुझाए गये मार्ग को उस समय कि सरकार ने अपने स्वार्थों को सिद्ध करने और सत्ता-लोलुभता के चलते त्याग दिया था, मैं विस्तृत विवरण में नहीं जानता चाहता क्योंकि आप विदूषी आदरणीय महिला हैं और भारत कि प्रथम नागरिक हैं.... अतः सम्पूर्ण विषय आपके संज्ञान में है l १५ अगस्त १९४७ के पहले ये सभी भारतीय थे l हमारी कूटनीतिक विफलता के कारण आज ये भारतीय नही हैं l कांग्रेस ने अपनी कार्य-समिति में निर्णय लिया था, उस निर्णय के तहत इन हिन्दुओं के मानवाधिकारों का रक्षण करने का दायित्व आपका है l
आसिन्धु-सिन्धु पर्यन्ता यस्य भारत भूमिका। पितृ भू: पुन्यभूशचैव स वै हिन्दुरिति स्मृत:।।
अर्थात सिन्धु के उदगम स्थान से समुद्र पर्यन्त जो भारत भूमि है उसे जो पितृ-भूमि तथा पुण्य-भूमि मानता है, वह हिन्दू कहलाता है।इस प्रकार कि समस्या युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन द्वारा उपस्थित कर दी गयी थी, और हिन्दुओं को राष्ट्र से निष्कासित कर दिया गया था l
उस समय हिन्दुस्थान कि प्रधान मंत्री माननीय श्रीमती इंदिरा गाँधी थीं, हमारे तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य बालाराव सावरकर जी थे, उन्होंने श्रीमती गांधी को तार एवं पत्र के माध्यम से आग्रह किया कि इनकी मात्रभूमि नहीं है किन्तु इनकी पितृभूमि है अतः माननीय दृष्टिकोण के तहत इनको हिन्दुस्थान कि नागरिकता दी जाए, जिसको श्रीमती गांधी ने अपने तत्काल प्रभाव से ५०००० युगांडा के हिन्दुओं को हिन्दुस्थान कि नागरिकता दी, जो भारत के इतिहास में एक एतिहासिक तथ्य है l
श्रीमती गांधी का यह एतिहासिक निर्णय वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत को स्वीकार करता है यही भारतीय सिद्धांत है l जिस प्रकार भेड़िये के द्वारा अपने शिकार को घेर कर मारा जाता है उसी प्रकार से इस्लामिक साम्राज्यवादी जिहादी मुसलमानों के द्वारा हिन्दुओं पर बर्बर अत्याचार हो रहा है जो कि आपके संज्ञान में है l
वसुधैव कुटुम्बकम और अतिथि देवो भव: ये हमारे प्राचीन भारतीय सिद्धांत हैं और इसकी आप मूर्तिमान स्वरूप हैं l ८ सितम्बर २०११ को पकिस्तान से ११९ हिन्दुओं ने तीर्थयात्रा वीजा के बहाने प्राण रक्षा हेतु पुण्यभूमि - पित्रभूमि भारत में आगमन किया l इनमे से अधिकतर हिन्दुओं को धर्मांतरण हेतु भयंकर रूप से प्रताड़ित किया गया है, ये आजीवन उपेक्षा एवं उत्पीड़न के शिकार रहे हैं l पाकिस्तान में सम्पूर्ण हिन्दू समाज को शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा तथा मानवाधिकारों से वंचित रखा गया है l हिन्दू बच्चों को शिक्षा के समय धर्मांतरण के लिए भयंकर प्रताड़ित किया जाता है और अमानवीय शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं l
कुछ बच्चों के मोलवीयों द्वारा हुई पिटाई के कारण कान के पर्दे तक फट चुके हैं l
कुछ स्त्रियों के स्तन आदि कटे हुए हैं l इनमे से कई लोगों को जबरदस्ती हैपेटाईटिस - बी का इंजेक्शन लगा कर आजीवन रोगग्रस्त बना दिया गया है, इसके पीछे का उद्देश्य हिन्दुओं का वंश नाश है l विगत दिनों चार हिन्दू चिकित्सकों कि जघन्य हत्या इस्लामी कट्टरपंथियों ने सिंध प्रांत में की गई l कराची के चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने गत दिनों एक जन समारोह में यह स्वीकार किया है कि कराची महानगर के अन्दर प्रति दिन 100 से अधिक बलात्कार हिन्दू नारियों के किये जाते हैं, और अधिकतर को धर्मान्तरित कर दिया जाता है तथा प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं कि जाती l
माननीय आप एक मातृ शक्ति हैं, पुर्णतः आशा एवं विश्वास के साथ नम्र प्रार्थना एवं अनुरोध है कि पाकिस्तान से आये हुए असहाय, उत्पीड़ित और प्रताड़ित हिन्दू नागरिकों को केवल एकमात्र आपके द्वारा न्याय एवं सहयोग कि आशा में यह प्रार्थना पत्र आपको बहुत पीड़ा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ, कि इनके वीजा कि अवधी को को विस्तार देकर इनको पित्रभूमि भारत में रहने हेतु नागरिकता प्रदान करने कि प्रक्रिया आरम्भ कि जाए l साथ ही आपसे नम्र अनुरोध करता हूँ कि पाकिस्तान में रह रहे 38 लाख हिन्दुओं कि शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा एवं मानवाधिकारों के लिए पकिस्तान सरकार पर दबाव बनाया जाये l
यह सभी विषय विभिन्न समाचार पत्रों एवं इलेक्ट्रोनिक माध्यमो द्वारा ज्ञात हुआ है l
पंडित बाबा नंद किशोर मिश्र
(वरिष्‍ठ नेता, अखिल भारत हिन्‍दू महासभा)

Saturday, December 17, 2011

पाकिस्तानी हिन्दुओं पर टूटा यूपी पुलिस का कहर

गत माह पाकिस्तान से आये हुये कुल 151 हिन्दुओं को दिल्ली पुलिस को सूचना देकर गाजियाबाद के एक मंदिर में ले जाकर पुर्नस्थापित किया जा रहा था। इसके लिये उ0प्र0 के पुलिस को पहले से ही सूचित भी कर दिया गया था। मगर अर्धरात्रि में मायावती के मुगलिया फरमान पर यू0पी0 पुलिस ने उन पिछड़े, दलित हिन्दुओं पर जो अति बर्बर, अति जघन्यतम कार्रवायी की उसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है। इतना ही नही आधी रात को पुलिस उन सब पर निर्दयतापूर्वक टूट पड़ी, उनके सारे मोबाइल फोन आदि छीन लिये और उन्हें एक गाड़ी में भरकर अक्षरधाम नेशनल हाइवे पर कड़कड़ाती सर्दी में छोड़कर चले गये। इन पुलिस अधिकारियों को उनके महिलाओं और छोटे-छोटे बच्चों पर जरा भी दया नही आयी कि ये खुले आसमान में कैसे रात गुजारेंगे।

ज्ञात रहे कि ये वही पाकिस्तानी हिन्दू थे जो पिछले कयी महीने से दिल्ली के मजनूटीले पर शरण लिये हुये थे। ये पाकिस्तान से वीसा पर हिन्दू तीर्थस्थलों पर भ्रमण के लिये आये हुये थे और पाकिस्तान नही जाना चाहते थे। क्योंकि पाकिस्तान में इस्लामी मुस्लिम गुण्डे आये दिन इनसे जजिया कर मांगा करते थे, इनके मां-बहन और बेटियों के अस्मत से भी खिलवाड़ करते थे। इनके कयी रिश्तेदारों को तालिबानी गुण्डों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया था।

अर्ध रात्रि में इन पाकिस्तानी हिन्दुओं के साथ अमानवीय कार्रवायी पर अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता डॉ0 संतोष राय ने उ0प्र0 सरकार के गृहसचिव कुंवर फतेह बहादुर सिंह से बातचीत की तो उन्होंने आधे घंटे का समय मांगा और मदद का आश्वासन दिया। मगर कुछ समय बाद उन्होंने पाकिस्तानी हिन्दुओं के प्रति अपनी संवेदना जताते हुये कहा कि हमें मैडम माया ने डांटा कि विधानसभा का चुनाव है, हम इस वक्त कुछ भी मदद नही कर सकते, हम इनकी चाहकर भी मदद न करने पर मजबूर हैं।
ये पाकिस्तानी हिन्दू पाकिस्तान से लूटपिट कर, वहां के बर्बर अत्याचर से मुक्ति की आस से यहां आये थे कि उनकी मातृभूमि भारत में उन्हें शरण मिलेगी मगर इनके साथ मैडम मायावती ने जो अमानवीय, जघन्यतम व्यवहार कराया वो कभी नही भूलाया जा सकता। ज्ञात रहे कि ये पाकिस्तानी हिन्दू दलित और पिछड़े समुदाय से हैं। हिन्दू महासभा ने इस घटना की तीव्र भत्र्सना करते हुये कहा कि मायावती दलितों और पिछड़ों की घोर विरोधी है। गाजियाबाद के एसपी सिटी ने भी कहा कि इन पाकिस्तानी हिन्दुओं की मदद तो हम भी करना चाहते हैं मगर मुख्यमंत्री मायावती के आदेश के आगे हम कुछ नही कर सकते। यही नही गाजियाबाद पुलिस ने हिन्दू महासभा के नेताओं को धमकाते हुये कहा कि यदि इन हिन्दुओं को यहां से भगाने में आपसब लोगों ने व्यवधान डाला तो आप सबके उपर मुकदमा चलाया जायेगा।

एक उच्चाधिकारी ने अपना नाम छिपाते हुये कहा कि यदि ये मुस्लिम मजहब के होते तो माया हो या मुलायम या मैडम सोनिया सबके आंखों के ये तारे हो जाते। इन्हें यहां बसाया भी जाता और यहां की नागरिकता भी प्रदान की जाती जैसे कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बांग्लादेशी मुसलमानों के साथ किया था।

Monday, December 12, 2011

Attack on parliament.............


काला अध्याय था संसद पर हमला
* तत्कालीन सहायक निदेशक (सुरक्षा) के अनुसार हमले के दौरान कई सांसद व अफसर गए थे सहम

आज से ठीक दस साल पहले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर पर हुआ हमला आजाद भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय है। यह कहना है 13 दिसंबर 2001 को लोकसभा में सहायक निदेशक (सुरक्षा) रण सिंह देसवाल का। आज समाज से खास बातचीत में देसवाल ने बताया कि आतंकी हमले के दौरान संसद भवन में मौजूद अनेक सांसद, मंत्री व उच्चाधिकारी सहमे हुए थे, मगर बावजूद इसके किसी ने हिम्मत नहीं हारी।
यहां बता दें कि देसवाल मूल रूप से बहादुरगढ़ के गांव खेड़ी जसोर के रहने वाले हैं और फिलहाल बहादुरगढ़ के सेक्टर-6 में निवास कर रहे हैं। देसवाल को देशभक्ति का जज्बा विरासत में मिला है। उनके पिता चौ. देवी सिंह व दादा चौ. रिसाल सिंह स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देश की सेवा कर चुके हैं। आसोदा से प्राथमिक शिक्षा लेने के बाद सोनीपत व रोहतक से उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने के बाद देसवाल 12 नवंबर 1978 तक आर्मी मेडिकल कौर में रहे। 27 अगस्त 1979 को उन्होंने लोकसभा में सुरक्षा सहायक के तौर पर नियुक्ति प्राप्त की और 18 अक्तूबर 1998 को उप निदेशक सुरक्षा के पद पर पदोन्नत हुए। 13 नवंबर 2001 को सुबह साढ़े 11 बजे के वाक्या को याद करते हुए देसवाल ने बताया कि उस समय वह सदन के भीतरी क्षेत्र के सुरक्षा प्रभारी थे। उन्हें प्रधानमंत्री को राज्यसभा तक ले जाना था, मगर हो-हल्ला होने के बाद लोकसभा व राज्यसभा की कार्रवाई स्थगित कर दी गई थी। इसी लिए जब हमला हुआ तो उस समय वह केंद्रीय कक्ष में सांसदों के साथ मौजूद थे। जब पहली बार गोली की आवाज आई तो उन्होंने सोचा कि किसी गाड़ी का टायर फटा होगा मगर जब दोबारा गोलीबारी सुनाई दी तो उन्हें आशंका हुई कि मामला गड़बड़ है। उन्होंने गेट पर संपर्क साधा और आतंकी हमले की सूचना मिलते ही संसद के सभी भीतरी दरवाजे बंद करवा दिए। इस बीच उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी व संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन से वाकीटाकी पर संपर्क स्थापित किया और तमाम अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को विशेष सुरक्षा घेरे में सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया। पूरे घटनाक्रम को याद करते हुए देसवाल ने बताया कि आतंकियों का सबसे पहले विरोध तत्कालीन उप राष्टÑपति कृष्णकांत के सुरक्षाकर्मियों ने किया। सुबह 11 बजकर 40 मिनट पर हुए इस हमले से उभरते हुए मात्र बीस मिनट में सुरक्षाकर्मियों ने पांचों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। वारदात के तुरंत बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस व पेट्रोलियम मंत्री रामनाइक ने देसवाल को साथ लेकर शवों का निरीक्षण किया।
नहीं तो होती ज्यादा क्षति
देसवाल ने बताया कि गेट नंबर 8 पर तैनात सीआरपीएफ के सिख जवान के सामने से एक आतंकवादी शरीर पर विस्पोटक पदार्थ बांधे संसद में भीतर घुसने का प्रयास कर रहा था तो उस जवान ने अपनी जान की बाजी लगाते हुए आतंकी पर हमला बोल दिया, जिसमें उसे गोली भी लगी। मगर बुलटप्रूफ जाकेट के चलते जवान बच गया और उसने आत्मघाती आतंकी को वहीं ढेर कर दिया।
हमले में शहीद होने वाले
सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव निवासी नीम का थाना राजस्थान, मतबार नेगी निवासी नई दिल्ली, कमलेश कुमारी सिपाही सीआरपीएफ निवासी कन्नोज यूपी, एएसआई नानकचंद निवासी सोनीपत हरियाणा, रामफल निवासी फरीदाबाद हरियाणा, हवलदार घनश्याम निवासी मथुरा, ओमप्रकाश निवासी नरेला, बिजेंद्र निवासी बदरपुर व माली देसराज निवासी गाजियाबाद इस हमले में शहीद हुए थे।
हमले में घायल होने वाले
इस हमले में एसआई पुरुषोत्तम, एएसआई जीतराम, हवलदार सुमेर सिंह, कमल सिंह, सिपाही रजत वशिष्ट, अस्सिटेंट कमाडेंट आनंद झा, सिपाही राकेश, महिपाल, हंसराज, एआईजी एनएमएस नायर, सीआरपीएफ का हवलदार वाईबी थापा, सिपाही सुखविंदर, एआर चियारी के अलावा आम नागरिक संजीव, पुरुषोत्तम पांडे व विक्रम भी इस हमले में घायल हुए थे।
प्रशस्ति पत्र मिला, पैसा नहीं
लोकसभा में उपनिदेशक (सुरक्षा) रण सिंह देसवाल को 26 अगस्त 2002 को तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। वहीं 12 फरवरी 2002 को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा देसवाल को आतंकी हमले के दौरान बहादुरी के लिए 50 हजार रुपए का आर्थिक सम्मान देने की घोषणा की गई थी, मगर आज तक उन्हें यह राशि नहीं मिली।

Monday, November 14, 2011

अय्याश विजय माल्या


सरकार क्यों इस अय्याश विजय माल्या को २००० करोड़ रुपये देने पर विचार कर रही है ! जिस व्यक्ति का सारा समय अश्लील कैलेण्डर बनाने में बीतता हो....उसे किस बात की मदद दी जा रही है ! इसकी कम्पनी डूब जाए तो डूबने do , गरीबो का पैसा इसी काम के लिए है क्या ?
IPL के टीम खरीदो , नॉएडा में कार रेस कराओ..देर रात तक शराब और सुन्दरी की पार्टियों में सारा पैसा लगाओ तो कम्पनी को तो डूबना ही था , डूबने दो !
इसके कं...पनी किंगफिशर के ऊपर ६५०० करोड़ का कर्ज है ! सारा पैसा इसने और इसके बेटे ने रंगरेलिया माना माना कर डूबा दिया फिर सरकार क्यों अब इसकी सहायता कर रही है !
पिछले एक हफ्ते में किंगफिशर एयरलाइंस ने 200 उड़ानें रद्द की हैं। इसके बाद आशंका जताई जा रही है कि कंपनी दिवालिया हो सकती है। किंगफिशर 500 करोड़ रुपए के वर्किन्ग कैपिटल लोन के लिए बैंकों के पास जाएगी।
13 बैंकों ने किंगफिशर को कर्ज दिया है। इनमें से सबसे ज्यादा पैसा एसबीआई ने दिया है।
इस फोटो में देखिये यह अय्याश क्या कर रहा है , इसके बारे में सारी दुनिया जानती है ....
सरकार अगर इसे पैसे से मदद करेगी तो ham इसका विरोध करेंगे , गरीबो का पैसा ऐसे हम अय्याशी में नहीं जाने देंगे !!

Sunday, November 13, 2011

अन्ना हजारे का कांग्रेस प्रेम


मै कांग्रेस के विरोधी नहीं हैं। अगर कांग्रेस मजबूत लोकपाल बिल लाती है तो मै उसका समर्थन करूँगा : बाबु राव अन्ना हजारे !
अन्ना राजनीती कर रहे है या लोकपाल के बारे में बात कर रहे है ! इनका कहना है की कोर कमिटी में मुस्लिम, दलित, आदिवासी भी रहेंगे ..इसका मतलब क्या है ? आरक्षण की राजनीती !
आज तक इन्होने प्रशांत भूषण, मेधा पाटेकर और संदीप पाण्डेय के बयान के बारे में कुछ भी सफाई नहीं दी ..
केजरीवाल और... किरण बेदी के अहंकार भरे बयान और ओछी हरकते के बारे में भी चुप ही रहते है !
हमेशा सिर्फ धमकी भरे बयान बाजी से देश की जनता को बरगला रहे है !
अब तो ये साफ़ हो गया है की कांग्रेसी अपने चाल में कामयाब हो रहे है और आज अन्ना ने बोल ही दिया है !
कुछ दिन में देश सारी अंधी जनता अन्ना की जयकार करते हुए राहुल विन्ची को नया प्रधान मंत्री बना देगी !
सभी भाइयो से निवेदन है की हमें भी तैयार हो जाना है किसी भी हालत में इस बार कांग्रेस की सरकार नहीं आनी चाहिए !
जय श्री राम !

Saturday, November 12, 2011

सर्व धर्म समान - एक बकवास

सर्व धर्म समान - एक बकवास
by Lovy Bhardwaj on Tuesday, May 31, 2011 at 11:57pm

सर्व धर्म समान - एक बकवास



ब्रिटिश शासन द्वारा गुलाम भारत में सनातन धर्म के प्रति हिन्दुओं की आस्था नष्ट करने के लिए McCauley ने जो शिक्षा प्रणाली प्रारम्भ की थी उसके प्रभाव से आज भी शिक्षित समाज के प्रतिष्ठित लोग सनातन धर्म की महिमा से अनभिज्ञ होने के कारण अपने धर्म का गौरव भूल कर पाश्चात्य काल्पनिक सभ्यता से प्रभावित हो रहे हैं l क्योंकि आज भी भारत के विद्यालयों - विश्विद्यालयों में वही झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है जो अंग्रेज कूटनीतिज्ञों ने लिखा था, भारत की छद्म स्वतंत्रता मिलने के बाद भी राजनितिक पार्टियों ने अपने अपने वोट बैंक बनाने के उद्देश्य से सब धर्म सामान हैं ... ऐसा प्रचार प्रारम्भ किया l उन सबका उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना ही था, उनमे से किसी ने भी सब धर्मो का अध्ययन किया होता तो वो ऐसी बात नहीं कह सकते l



बाजार में मिलने वाले सब उपकरण समान नहीं होते, सब वस्त्र समान नहीं होते,

उनका मूल्य उनके गुण-दोषों के आधार पर भिन्न भिन्न निर्धारति किया जाता है l



सब धातुओं के गहने सामान नहीं होते. सोने की कीमत अलग होती है और अलुमिनियम, चांदी, पीतल लोहे आदि की कीमत अलग होती है l

सब सरकारी नौकर सामान नहीं होते ... चपरासी, क्लर्क, कलेक्टर और मंत्रियों को अलग अलग श्रेणी के नौकर माने जाते हैं l सब राजनितिक पार्टियां सामान हैं ... ऐसा कोई कहे तो .. राजनेता नाराज हो जायेंगे l अपनी पार्टी को श्रेष्ठ और अन्य पार्टियों को कनिष्ठ बताते हैं .... पर धर्म के विषय में सब धर्म सामान कहने में उनको लज्जा नही आती l

वास्तव में जैसे विज्ञान के जगत में किसी एक वैज्ञानिक की बात तब तक सच्ची नहीं मानी जाती जब तक की उसे सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक तर्क-संगत और प्रायोगिक स्टार पर सच्ची नहीं मानते l ऐसे ही धर्म के विषय पर भी किसी एक व्यक्ति के कहने से उसकी बात सच्ची नहीं मान सकते l क्योंकि उसमे अपने धर्म के प्रति राग और अन्य धर्मो के प्रति द्वेष होने की सम्भावना है l सनातन धर्म के सिवा अन्य धर्म अपने धर्म को ही सच्चा मानते हैं, दुसरे धर्मो की निंदा करते हैं l केवल सनातन धर्म ही अन्य धर्मों के प्रति उदारता और सहिष्णुता का भाव सिखाता है l इसका अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता की सब धर्म समान हैं l



गंगा का जल और ये तालाबों, कुएं या नाली का पानी समान कैसे हो सकता है l

यदि समस्त विश्व के सभी धर्मो को मानने वाले सभी धर्मों का अध्ययन करके तटस्थ अभिप्राय बताने वाले विद्वानों ने किसी धर्म को तर्क संगत और श्रेष्ठ घोषित किया हो तो उसकी महानता को सबको स्वीकार करना पड़ेगा l सम्पूर्ण विश्व में यदि किसी धर्म को ऐसी व्यापक प्रशस्ति प्राप्त हुई है तो वह है ... सनातन धर्म l

जितनी व्यापक प्रशस्ति सनातन धर्म को मिली है उतनी ही व्यापक आलोचना ईसाईयत और इस्लाम की अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों और फिलास्फिस्तों ने की है ....



सनातन धर्म की महिमा और सच्चाई को भारत के संत और महापुरुष तो सदियों से सैद्धांतिक और प्रायोगिक प्रमाणों के द्वारा प्रकट करते आये हैं, फिर भी पाश्चात्य विद्वानों से प्रमाणित होने पर ही किसी की बात को स्वीकार करने वाले पाश्चात्य बोद्धिकों के गुलाम ऐसे भारतीय बुद्धिजीवी लोग इस लेख को पढ़कर भी सनातन धर्म की श्रेष्ठता को स्वीअक्र करेंगे तो हमे प्रसन्नता होगी और यदि वो सनातन धर्म के महान ग्रन्थों का अध्ययन करेंगे तो उनको इसकी श्रेष्ठता के अनेक सैद्धांतिक प्रमाण मिलेंगे और किसी अनुभवी पुरुष के मार्गदर्शन में साधना करेंगे तो उनको इसके सत्य के प्रायोगिक प्रमाण भी मिलेंगे l आशा है सनातन धर्मावलम्बी इस लेख को पढने के बाद स्वयम को सनातन धर्मी कहलाने पर गर्व का अनुभव करेंगे l निम्नलिखित विश्व-प्रसिद्ध विद्वानों के वचन सर्व-धर्म सामान कहने वालों के मूंह पर करारे तमाचे मारते हैं और सनातन धर्म की महत्ता प्रतिपादित करते हैं ... जैसे चपरासी, सचिव, कलेक्टर आदि सब अधिकारी समान नहीं होते .. गंगा यमुना गोदावरी कावेरी आदि नदियों का जल .. और कुएं तथा नाली का जल सामान नहीं होता ऐसे ही सब धर्म समान नहीं होते .... सबके प्रति स्नेह सदभाव रखना भारत वर्ष की विशेषता है लेकिन सर्व-धर्म सामान का भाषण करने वाले भोले भले भारत वासियों के दिलो दिमाग में McCauley की कूटनीतिक शिक्षा-निति के और विदेशी गुलामी के संस्कार भरते हैं l सर्वधर्म सामान कह कर अपनी ही संस्कृति का गला घोंटने के अपराध से उन सज्जनों को ये लेख बचाएगा आप स्वयं पढ़ें और औरों तक यह पहुँचाने की पावन सेवा करें l



और बिना पूछे आप इस लेख को SHARE कर सकते हैं ....



1. रोम्या रोलां फ़्रांसिसी विद्वान्

मैंने यूरोप और एशिया के सभी धर्मो का अध्ययन किया है परन्तु मुझे उन सब में सनातन धर्म ही सर्व-श्रेष्ठ दिखाई देता है, मेरा विश्वास है की सनातन धर्म के सामने एक दिन सबको अपना मस्तक झुकाना पड़ेगा l



मानव जाती के अस्तित्व के प्रारम्भ के दिनों से लेकर पृथ्वी पर जहां जिन्दा मनुष्यों के सब स्वप्न साकार हुए हैं तो वह एकमात्र स्थान है ..... भारत l





2 . डाक्टर एनीबेसेंट

मैंने 40 वर्षों तक विश्व के सभी बड़े धर्मो का अध्ययन करके पाया है की सनातन धर्म के समान पूर्ण, महान और वैज्ञानिक धर्म और कोई नहीं है, यदि आप सनातन धर्म छोड़ते हैं तो आप अपनी भारत माता के ह्रदय में छुरा भोंकते हैं l

यदि हिन्दू ही .. सनातन धर्म को न बचा सके तो और कौन बचाएगा ?

यदि भारत की सन्तान अपने धर्म पर दृढ न रही तो कौन सनातन धर्म की रक्षा करेगा ?

यदि हम पक्षपात रहित होकर भली भांति परीक्षा करें तो हमें स्वीकार करना होगा की सारे संसार में साहित्य, धर्म, सभ्य, विज्ञान, आयुर्वेद, चिकित्सा, खगोल, गणित आदि का प्रसार सनातन धर्म ने ही किया



3.विक्टर कोसीण

जब हम पूर्व की और उसमे भी शिरोमणी स्वरूप भारत की साहित्यिक एवं दार्शनिक महान कृतियों का अवलोकन करते हैं तब हमें ऐसे अनेक गंभीर सत्यों का पता चलता है जिनको उन निष्कर्षों से तुलना करने पर की जहां पहुंचकर यूरोपीय प्रतिभा कभी कभी रुक गई है ... हमें पूर्व के आगे घुटने टेक देना पड़ता है l



4. शोपनहार

सम्पूर्ण विश्व में उपनिषदों के समान जीवन को ऊंचा जीवन को ऊंचा उठाने वाला कोई दूसरा अध्ययन का विषय नहीं है l इनसे मेरे जीवन को शांति मिली है इन्हीं से मुझे मृत्यु में भी शांति मिलेगी l

शोपनहार के इन वचनों पर मेक्समूलर ने कहा की "शोपनहार के इन शब्दों के लिए किसी समर्थन की आवश्यकता हो तो अपने जीवनभर के अध्ययन के आधार पर मैं प्रसन्नतापूर्वक उनका समर्थन करूँगा"



यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की ये वही मेक्समूलर है जिसको अंग्रेजों द्वारा प्रतिमाह 1 लाख रूपये वेतन दिया जाता था सनातन धर्म के ग्रन्थों को दूषित करने के लिए .... और उनमे जातिवाद, छुआछूत आदि जैसी मनगढ़ंत बातें योजनाबद्ध रूप से भारी गईं ... आज के समय में ज्यादातर लोग मेक्समूलर के ही दूषित ग्रन्थों को पढ़ कर जातिवाद और छुआछूत के षड्यंत्रों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं l मनु स्मृति को सबसे ज्यादा मेक्समूलर ने ही दूषित किया l



5. फ्रेडरिक स्लेगल

उपनिषदों में वर्णित पूर्वीय आदर्शवाद के प्रचुर प्रकाशपूंज की तुलना में यूरोपवासियों का उच्छ्तम तत्वज्ञान ऐसा ही लगता है, ऐसा लगता है जैसे मध्यांत सूर्य के व्योम प्याली प्रताप की पूर्ण प्रखरता में टिमटिमाती हुई अनलशिखा की कोई चिंगारी जिसकी अस्थिर और निस्तेज ज्योति ऐसी हो रही हो मनो अब बूढी की तब बुझी l



6. पाल डायसन

उपनिषदों की दार्शनिक धाराएं न केवल भारत में अपितु सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है l



7. मोनियर विलियम्स

यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पाइथागोरस दोनों ने दर्शनशास्त्र का ज्ञान भारतीय गुरुओं से प्राप्त किया l



8. प्रसिद्ध इतिहासकार लेयब्रिज

पाश्चात्य दर्शनशास्त्र के आदिगुरू आर्य महर्षि हैं, इसमें संदेश नहीं है l



9. थोरो

प्राचीन युग की सभी स्मरणीय वस्तुओं में भगवदगीता से श्रेष्ठ कोई भी वस्तु नहीं है l गीता के साथ तुलना करने पर जगत का आधुनिक समस्त ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है l मैं नित्य प्रातः काल अपने ह्रदय और बुद्धि को गीतारूपी पवित्र जल में स्नान कराता हूँ l



10. डाक्टर मेकनिकल

भारत वर्ष में गीता बुद्धि की प्रखरता, आचार की उत्कृष्टता एवं धार्मिक उत्साह का एक अपूर्व मिश्रण उपस्थित करती है l



11. के. ब्राउनिंग

गीता का उपदेश इतना अलौकिक पुण्य और ऐसा विलक्षण है की जीवन पथ पर चलते चलते अनेक निराश और श्रांत पथिकों को इसने शांति, आशा और आश्वासन दिया है और उन्हें सदा के लिए चूर चूर होकर मिट जाने से बचा लिया है, जैसे इसने अर्जुन को बचाया l



12. रेवरंड आर्थर

जगदगुरु श्रीकृष्ण ने भगवदगीता के रूप में जगत को एक अति उत्तम दें दी है l ज्ञान, भक्ति, कर्म ये शाश्वत आदर्श एज दुसरे को साथ लिए हुए चलते हैं, इनमे से प्रत्येक अन्य दोनों के लिए आवश्यक है l



13. वीलडुरान्त

भारत हमारी जाती की मातृभूमि है और संस्कृत यूरोप की भाषाओँ की माता (जननी) है और वह हमारी फिलोसोफी की भी माता है l

अरबों के द्वारा (अरब के निवासियों के द्वारा ) भारत से हमारा गणित शास्त्र आयात किया गया है l

इसाई धर्म के मूर्तिमत आदर्श मूलतः बुद्ध के द्वारा मिले हैं इस अर्थ में भी भारत हमारी माता है l

गाँव के लोगों द्वारा स्वराज्य और प्रजातंत्र (लोकतंत्र) की जननी भारत है l

कई प्रकार से भारत हमारी सबकी माता है l











ईसाईयत विषयक



1. इतिहासकार चितरिस सोरोकीं



पिछली कुछ शताब्दियों में सबसे अधिक आक्रामक, लड़ाकू, लालची, सत्ता लोलुप और सत्ता के मद में चूर यदि मानव समाज में कोई अंग हैं तो वो हैं पाश्चात्य ईसाई मिशनरियां l

इन सैकड़ों वर्षों में पाश्चात्य ईसाई देशों ने सब महाद्वीपों और व्यापारियों ने अधिकतर अन्य धर्मोव्ल्म्बी देशों को अपना गुलाम बना कर लूटा l

अमेरिका, आस्ट्रेलिया, एशिया. अफ्रीका आदि के करोड़ों भोले आदिवासियों को इस विचित्र ब्रांड ईसाई मानवप्रेम के अधीन बनाकर उनका अत्यंत निर्दयता से खत्म किया गया, उनकी संस्कृति, चरित्र, जीवनपद्धती, जीवन मूल्यों और संस्थाएं नष्ट भ्रष्ट कर दी गयीं ताकि उन्हें ईसाई बनाया जा सके l





2. फिलोसोफर नित्शे

मैं ईसाई धर्म को एक अभिशाप मानता हूँ, उसमे आंतरिक विकृति की पराकाष्ठ है l

ईसाईयत गुलाम, फरयाद और चंडाल का पंथ है, ईसाईयत द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है l

इस भयंकर विष का कोई मारण है तो वो केवल सनातन धर्म ही हो सकता है l



इसीलिए ईसाईयत ने सनातन धर्म की शिक्षा-पद्धती और जीवनशैली को नष्ट करके ईसाईयत आधारित शिक्षा पद्धति और जीवनशैली को प्रारम्भ किया और जिसके फलस्वरूप गुरुकुलों, गौ-शालाओं, सांस्कृतिक संस्थाओं, सभ्यताओं, मान्यताओं का दूषित करके उन्हें विकृत करके दिखाया गया और नष्ट किया गया l



ईसाई यह भली-भाँती जानते हैं की यदि भारत के लोग अपने अध्यात्म और संस्कृति से दोबारा जुड़ गए तो विश्व में ईसाईयत को कोई नहीं पूछेगा l



3. टोलस्टोय

विश्व के किसी भी धर्म ने इतनी वाहियात अवैज्ञानिक, आपस में विरोधी और अनैतिक बातों का उपदेश नहीं दिया, जितना चर्चों ने दिया है l



4. ज्यार्ज बर्नार्ड शा

बाइबल पुराने और दकियानूसी अंध-विश्वासों का एक बंडल है l



5. एच. जी. वेल्स

दुनिया की सबसे बड़ी बुराई है रोमन कैथोलिक चर्च





6. पंडित श्री राम शर्मा आचार्य

भारत में पादरियों का धर्म प्रचार सनातन धर्म को मिटाने का खुला षड्यंत्र है जो की एक लंबे अरसे से चला आ रहा है l हिन्दुओं का यह धार्मिक कर्तव्य है की वे ईसाईयों के षड्यंत्र से आत्मरक्षा में अपना तन,मन,धन लगा कर और आज के हिन्दुओं को लपेटती हुई ईसाईयत की लापत परोक्ष रूप से उनकी और बढ़ रही है उसे वहीं बुझा दे l

ऐसा करने से ही भारत में धर्म-निरपेक्षता, धार्मिक-बंधुत्व तथा सच्चे लोकतंत्र की रक्षा हो सकेगी अन्यथा पुनः आजादी को खतरे की संभावना हो सकती है l



7. महात्मा गांधी



हमें गौ-मांस भक्षण और शराब पीने वाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए, धर्म परिवर्तन वो जहर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है l

मिशनरियों के प्रभाव से हिन्दू परिवार का विदेशी भाषा, वेशभूषा, रीतिरिवाज के द्वारा विघटन हुआ है l

यदि मुझे कानून बनाने का अधिकार होता तो मैं धर्म परिवर्तन बंद करवा देता इसे तो मिशनरियों ने एक व्यापार बना लिया है l

परधर्म आत्मा की उन्नति का विषय है इसे रोटी, कपड़ा या दवाइयों के बदले में बेचा या बदला नहीं जा सकता l



8. स्वामी विवेकानन्द जी



हिन्दू समाज में से एक व्यक्ति मुस्लियम या ईसाई बने इसका मतलब यह नहीं की एक हिन्दू कम हुआ, किन्तु हिन्दू समाज का एक दुश्मन बढ़ा l

विश्व के महान धर्मो में हिन्दू धर्म के समान और कोई सर्वग्राही और वैविहय्पूर्ण धर्म नहीं है





अन्य इतिहासकार तथा फोलोसोफर



उजल्यु क्रुक

कन्फेशन्स से लेकर अंतिम रचना तक ऐसी एक भी टोलस्टोय की साहित्यिक रचना नहीं है जो हिन्दू विचार से प्रेरणा लेकर न लिखी गई हो l



मार्कोवीच

बीज-गणित, ज्यामितीय और आकाश विज्ञान में उनके उपयोग करने की खोज सनातन धर्म ने ही की है l



सर मैनर विलियम

भारत की आध्यात्मिकता समस्त विश्व में सबसे अधिक बहु-आयामी है इस बात में संदेह नहीं l



ज्यार्ज फ्युरेसटीन

उपनिषदों का संदेश किसी देशातीत और कालातीत स्थान से आता है l मौन से उसकी वाणी प्रकट हुई है उसका उद्देश्य मनुष्य को अपने मूल स्वरूप में जगाना है l



बेनेडिफ़टीन फाघर

समारे सम्पूर्ण शुभ गुणों का आधार ईश्वर ऐसा नहीं है जैसा OLD TESTAMENT में बताया है है की वह हमारा विरोधी और हमसे अलग है लेकिन वह अपनी दिव्य आत्मा है l

यह बात आयर एनी बहुत सी बातें हम उपनिषदों से सीखते हैं l ईसाई चेतना को अंतिम रूप देने के लिए हमे यह पाठ पढ़ना होगा तभी वह सब इस और स सुसंगत और पूर्ण होगी l



पोल ड्यूसन

भारत ने विश्व को एक ऐसा धर्म दिया है जो सबसे प्राचीन है और तर्कसंगत भी है l भारत के विषय में वर्णन करते हुए वोल्टेयर ने लिखा है की विश्व के सभी देशों को भारत का आश्रय लेना पड़ता था l जबकि भारत को किसी भी देश का आश्रय नहीं लेना पड़ा, उसने एशिया के महान सम्राट फ्रोड्रिक को आश्वस्त किया की "हमारा पवित्र ईसाई धर्म केवल ब्रह्म के प्राचीन सनातन धर्म पर आधारित है l"



रामस्वरूप

धर्म के क्षेत्र में सब राष्ट्र दरिद्र हैं, लेकिन भारत इस क्षेत्र में अरबोंपति है l



मार्क ट्वेइन (अमेरिकन विद्वान्)

इस्लाम और ईसाईयत एक ही सिक्के के दो पहलु हैं, सनातन धर्म की शिक्षाओं के बाद किसी और धर्म की आवश्यकता नहीं पड़ती l

मेरी समझ में यह नहीं आता की क्यों ईसाईयत और इस्लाम को प्रारम्भ किया गया जबकि सबसे परिपूर्ण, वैज्ञानिक, प्रायोगिक सनातन धर्म अस्तित्व में तब भी था और आज भी है l



संपत भूपालम

जैसे कोई इजीप्ट या बेबिलोनिया या असीरिया के इतिहास का समापन कर सकता है ऐसे भारत के इतिहास का समापन नहीं कर सकता क्योंकि यह इतिहास अब भी बनाया जा रहा है l

यह संस्कृति अभी भी सृजनशील है l



वील ड्यूश



जब जब भी मैं वेदों के किसी भाग का पठान किया है तब मुझे अलौकिक और दिव्य प्रकाश ने आलोकित किया है l

वेदों के महान उपदेशों में साम्प्रदायिकता की गंध भी नहीं है l

यह महान सनातन धर्म सर्व-युगों के लिए, स्थानों के लिए और राष्ट्रों के लिए महान ज्ञान प्राप्ति का राजमार्ग है l



हेनरी डेविड

सब प्राणियों के श्रीदे में बसने वाले सर्व-व्यापक ईश्वर का उपदेश देने की अद्भुत सूक्ष्मता के कारण ही वास्तव में हिन्दू धर्म से अत्यंत प्रभावित हुआ हूँ l



सर विलियम्स जोन्स

जब हम वेदान्त और उस पर आधारित सुन्दर सत्साहित्य को पढ़ते हैं तब यह माने बिना नहीं रह सकते की पायथागोरस और प्लेटो ने उनके सूक्ष्म सिद्धांत भारतीय ऋषियों के मूल स्रोत से ही प्रान्त किये हैं l







यह है वास्तविकता ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित कान्वेंट स्कूलों की



गुजरात के प्रसिद्ध दैनिक गुजरात समाचार में छपी खबर के अनुसार अहमदाबाद के ओढव विस्तार के ईसाई मिशनरी संचालित होसन्ना मिशनरी स्कूल के संचालकों ने माला पहनने पर, तिलक लगाने पर, कंगन पहनने पर, पायल पहनने पर, एवं राष्ट्रगीत गाने पर प्रतिबन्ध लगाया है l



कुछ ख़ास वस्त्र पहनकर आने का सख्त आदेश दिया है, क्योंकि वे जानते हैं की इन चीजों के रहते हिन्दू बालकों में सनातन धर्म के संस्कार बने रहेंगे और उनको धर्मान्तरण कराने में मुश्किल होगी l इससे ऐसे गैर-कानूनी आदेशों का उल्लंघन करने वाले पर विद्यार्थियों को सख्त सजा देकर उनकी पिटाई की जाती है l



हाल ही में एक छात्र सलवार एवं पायल पहनकर तथा तिलक लगाकर स्कूल में आई तो शिक्षिका ने उसे लकड़ी से मारा l

इस दुष्कृत्य का दूसरी शिक्षिका ने विरोध किया तो उस शिक्षिका को पाठशाला से तुरंत ही निकाल दिया गया l

हालांकि ऐसी अन्यायपूर्ण नीति का विरोध करने के लिए सैकड़ों विद्यार्थी एवं उनके माता-पिता एकत्रित हो गए एवं संचालकों के विरोध में नारे लगाने लगे l इसके बाद पुलिस एवं गुजरात शिक्षाधिकारी के कार्यकाल में भी संचालकों के विरोध में शिकायत दर्ज करवाई l



स्पष्ट देखा जाता है की मिशनरियों द्वारा शिक्षा की आड़ में बालकों में हिन्दू संस्कृति के विरोधी कु-संस्कारों का सींचन करके उनका धर्मान्तरण करवाने का षड्यंत्र हमारे देश में तीव्र गति से बढ़ रहा है l माता पिता सोचते हैं की हमारे बच्चे मिशनरी स्कूलों में पढ़ कर जीवन में ज्यादा आगे बढ़ेंगे लेकिन उनको यह पता नहीं की धर्मान्तरण के अड्डे बन चुकी ये कु-पाठशालाएं बालकों के मस्तिष्क में सनातन संस्कृति, उनके रीति रिवाज़ एवं देवी-देवताओं के विरोध में मनगढ़ंत बातें भर कर उनको गुमराह करके ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रही है l



और इस कु-पष्ठ्शालाओं में पढ़ कर ज्यादातर बच्चे इतना आगे बढ़ जाते हैं की एक दिन नैतिकता में गिर ही जाते हैं अपने माता पिता को भी छोड़ दते हैं l



क्या हम अपने ही देश में पराये होना चाहते हैं ??

क्या हम फिर से गुलामी की जंजीरों में जकड़ना चाहते हैं ?



यदि नहीं तो आइये मिशनरियों के ऐसे षड्यंत्रों का सख्त विरोध करें एवं अपने बच्चों को ऐसे मिशनरी संचालित कु-पाठशालाओं में पढने भेज कर उनके भविष्य को अन्धकार में न डालें, और देश की स्वतंत्रता को खतरे में न देलीं l



धर्म परिवर्तन के ऐसे षड्यंत्रों से स्वयं सावधान रहें और सम्पर्क में आने वालों को भी सावधान करें l



जय श्री राम

जय भारत जय हो

Saturday, November 5, 2011

.**सारे मुसलमान बुरे नही होते**


1- हज़ारो साल से तैमूर, ग़ज़नी, गोरी जैसे दुर्दांत और हिंदू खून के प्यासे इस्लामिक हमलावरो के हज़ार हमले झेले, उस समय का एक भी मुसलमान हिंदू के साथ खड़ा नही दिखा.......फिर भी......**सारे मुसलमान बुरे नही होते**

2- हिंदू इन इस्लामिक हमलो मे अपना धन, veer योद्धा गवाया और अपनी घर की इज़्ज़त को हरम मे भेजने पर मजबूर हुआ,, उस समय का ए...क भी मुसलमान हिंदू के साथ खड़ा नही दिखा, फिर भी......**सारे मुसलमान बुरे नही होते**

3- बाबर, औरंगजेब जैसे क्रूर, निर्दयी नर पिसचो ने हर हिंदू तीर्थ स्थान पर अपनी नापाक मस्जिद खड़ी की अयोध्या, मथुरा, वाराणसी, ताजमहल आज भी गवाह है उस नापाक हरकत के,, उस समय का एक भी मुसलमान हिंदू के साथ नही खड़ा दिखा......फिर भी.....**सारे मुसलमान बुरे नही होते**
आज़ादी के 65 साल तक कम से कम अयोध्या, वाराणसी, मुंबई, देल्ही, गुजरात, जम्मू, आसां, बेंगलूर, भोपाल, कोलकाता छोटे बड़े मिला कर 2000 शुद्ध इस्लामिक आतंकवादी हमले हुए जिस मे कम से कम 200000 हिंदू अपनी जान गँवा चुके. इस संख्या मे कश्मीर मे हर दिन अपना सर कटा रहे भारत की सेना के जबाज़ नही शामिल है वरना ये 20 लाख पर कर जाएगी....फिर भी ...**सारे मुसलमान बुरे नही होते**.

Wednesday, October 26, 2011

16 संस्कार


सनातन धर्म के शास्त्रों के अनुसार 16 प्रकार के संस्कारों का उल्लेख पाया जाता है l

16 संस्कार - क्या आप जानते हैं अपने 16 संस्कारों को ???? ???? ???? ????

और 16 में से कितने संस्कारों को अपने जीवन में उतारते हैं हम सब ??



सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक कुल सोलह संस्कार बताए गये हैं, सभी मनुष्यों के लिए 16 प्रकार के संस्कारों का उल्लेख किया गया है और उन्हें कोई भी धारण कर सकता है l समस्त मनुष्यों को अपना जीवन इन 16 संस्कारो के अनुसार व्यतीत करने की आज्ञा दी गयी है l


संस्कार का अर्थ क्या है ?

हमारे चित, मन पर जो पिछले जन्मो के पाप कर्मो का प्रभाव है उसको हम मिटा दें और अच्छा प्रभाव को बना दे .. उसे संस्कार कहते हैं l



प्रत्येक संस्कार के समय यज्ञ किया जाता है,

भगवान् श्री राम के संस्कार ऋषि वशिष्ठ ने करवाए थे, और भगवन श्री कृष्ण के संस्कार ऋषि संदीपनी ने करवाए थे l



एक अच्छे सभ्य समाज के लिए संस्कार अत्यंत आवश्यक, पुराने समय में जो व्यक्ति के संस्कार न हुए हो उसे अच्छा नहीं माना जाता था



संस्कार हमारे धार्मिक और सामाजिक जीवन की पहचान होते हैं।

यह न केवल हमें समाज और राष्ट्र के अनुरूप चलना सिखाते हैं बल्कि हमारे जीवन की दिशा भी तय करते हैं।

भारतीय संस्कृति में मनुष्य को राष्ट्र, समाज और जनजीवन के प्रति जिम्मेदार और कार्यकुशल बनाने के लिए जो नियम तय किए गए हैं उन्हें संस्कार कहा गया है। इन्हीं संस्कारों से गुणों में वृद्धि होती है। हिंदू संस्कृति में प्रमुख रूप से 16 संस्कार माने गए हैं जो गर्भाधान से शुरू होकर अंत्येष्टी पर खत्म होते हैं। व्यक्ति पर प्रभाव संस्कारों से हमारा जीवन बहुत प्रभावित होता है। संस्कार के लिए किए जाने वाले कार्यक्रमों में जो पूजा, यज्ञ, मंत्रोच्चरण आदि होता है उसका वैज्ञानिक महत्व साबित किया जा चुका है।



कुछ जगह ४८ संस्कार भी बताए गए हैं।

महर्षि अंगिरा ने २५ संस्कारों का उल्लेख किया है।

वर्तमान में महर्षि वेद व्यास स्मृति शास्त्र के अनुसार १६ संस्कार प्रचलित हैं।

ये है भारतीय संस्कृति के 16 संस्कार गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमन्तोन्नयन संस्कार, जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, मुंडन संस्कार, कर्णवेध संस्कार, उपनयन संस्कार, विद्यारंभ संस्कार, केशांत संस्कार, समावर्तन संस्कार, विवाह संस्कार, विवाहाग्नि संस्कार, अंत्येष्टि संस्कार।



आइये अपने 16 संस्कारों के बारे में जानें ....



1.गर्भाधान संस्कार -

ये सबसे पहला संस्कार है l

बच्चे के जन्म से पहले माता -पिता अपने परिवार के साथ गुरुजनों के साथ यज्ञ करते हैं और इश्वर को प्रार्थना करते हैं की उनके घर अच्छे बचे का जन्म हो, पवित्र आत्मा, पुण्यात्मा आये l जीवन की शुरूआत गर्भ से होती है। क्योंकि यहां एक जिन्दग़ी जन्म लेती है। हम सभी चाहते हैं कि हमारे बच्चे, हमारी आने वाली पीढ़ी अच्छी हो उनमें अच्छे गुण हो और उनका जीवन खुशहाल रहे इसके लिए हम अपनी तरफ से पूरी पूरी कोशिश करते हैं।

ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि अगर अंकुर शुभ मुहुर्त में हो तो उसका परिणाम भी उत्तम होता है। माता पिता को ध्यान देना चाहिए कि गर्भ धारण शुभ मुहुर्त में हो।

ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि गर्भधारण के लिए उत्तम तिथि होती है मासिक के पश्चात चतुर्थ व सोलहवीं तिथि (Fourth and Sixteenth Day is very Auspicious for Garbh Dharan)। इसके अलावा षष्टी, अष्टमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवस्या की रात्रि गर्भधारण के लिए अनुकूल मानी जाती है।



गर्भधारण के लिए उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा, अनुराधा, हस्त, स्वाती, श्रवण, घनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र बहुत ही शुभ और उत्तम माने गये हैं l



ज्योतिषशास्त्र में गर्भ धारण के लिए तिथियों पर भी विचार करने हेतु कहा गया है। इस संस्कार हेतु प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथि को बहुत ही अच्छा और शुभ कहा गया है l

गर्भ धारण के लिए वार की बात करें तो सबसे अच्छा वार है बुध, बृहस्पतिवार और शुक्रवार। इन वारों के अलावा गर्भधारण हेतु सोमवार का भी चयन किया जा सकता है, सोमवार को इस कार्य हेतु मध्यम माना गया है।



ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार गर्भ धारण के समय लग्न शुभ होकर बलवान होना चाहिए तथा केन्द्र (1, 4 ,7, 10) एवं त्रिकोण (5,9) में शुभ ग्रह व 3, 6, 11 भावों में पाप ग्रह हो तो उत्तम रहता है। जब लग्न को सूर्य, मंगल और बृहस्पति देखता है और चन्द्रमा विषम नवमांश में होता है तो इसे श्रेष्ठ स्थिति माना जाता है।



ज्योतिषशास्त्र कहता है कि गर्भधारण उन स्थितियों में नहीं करना चाहिए जबकि जन्म के समय चन्द्रमा जिस भाव में था उस भाव से चतुर्थ, अष्टम भाव में चन्द्रमा स्थित हो। इसके अलावा तृतीय, पंचम या सप्तम तारा दोष बन रहा हो और भद्रा दोष लग रहा हो।

ज्योतिषशास्त्र के इन सिद्धान्तों का पालन किया जाता तो कुल की मर्यादा और गौरव को बढ़ाने वाली संतान घर में जन्



2. पुंसवन संस्कार -

पुंसवन संस्कार के दो प्रमुख लाभ- पुत्र प्राप्ति और स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान है।

पुंसवन संस्कार गर्भस्थ बालक के लिए किया जाता है, इस संस्कार में गर्भ की स्थिरता के लिए यज्ञ किया जाता है l



3. सीमन्तोन्नयन संस्कार-

यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्च सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म आएं, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है। भक्त प्रह्लाद और अभिमन्यु इसके उदाहरण हैं। इस संस्कार के अंतर्गत यज्ञ में खिचडी की आहुति भी दी जाती है l



4. जातकर्म संस्कार-

बालक का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से गर्भस्त्रावजन्य दोष दूर होते हैं।

नालछेदन के पूर्व अनामिका अंगूली (तीसरे नंबर की) से शहद, घी और स्वर्ण चटाया जाता है।

जब नवजात शिशु जन्म लेता है तब 1% घी, 4% शहद से शिशु की जीभ पर ॐ लिखते हैं ..



5. नामकरण संस्कार-

जन्म के बाद 11वें या सौवें या 101 वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है।

सपरिवार और गुरुजनों के साथ मिल कर यज्ञ किया जाता है तथा ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष आधार पर बच्चे का नाम तय किया जाता है।

बच्चे को शहद चटाकर सूर्य के दर्शन कराए जाते हैं।

उसके नए नाम से सभी लोग उसके स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

वेद मन्त्रों में जो भगवान् के नाम दिए गए हैं, जैसे नारायण, ब्रह्मा, शिव - शंकर, इंद्र, राम - कृष्ण, लक्ष्मी, देव - देवी आदि ऐसे समस्त पवित्र नाम रखे जाते हैं जिससे बच्चे में इन नामों के गुण आयें तथा बड़े होकर उनको लगे की मुझे मेरे नाम जैसा बनना है l





6. निष्क्रमण संस्कार-

जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा जाता है, से बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं।

निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना ... बच्चे को पहली बार घर से बाहर खुली और शुद्ध हवा में लाया जाता है



7. अन्नप्राशन संस्कार-

गर्भ में रहते हुए बच्चे के पेट में गंदगी चली जाती है, उसके अन्नप्राशन संस्कार बच्चे को शुद्ध भोजन कराने का प्रसंग होता है। बच्चे को सोने-चांदी के चम्मच से खीर चटाई जाती है। यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात ६-७ महीने की उम्र में किया जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है, इससे पहले बच्चा अन्न को पचाने की अवस्था में नहीं रहता l





8. चूडाकर्म या मुंडन संस्कार-

बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है जिसे वपन क्रिया संस्कार, मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। इससे बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है।



9. कर्णभेद या कर्णवेध संस्कार-

कर्णवेध संस्कार इसका अर्थ है- कान छेदना। परंपरा में कान और नाक छेदे जाते थे। यह संस्कार जन्म के छह माह बाद से लेकर पांच वर्ष की आयु के बीच किया जाता था। यह परंपरा आज भी कायम है। इसके दो कारण हैं,

एक- आभूषण पहनने के लिए।

दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है।

इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है।

वर्तमान समय में वैज्ञानिकों ने भी कर्णभेद संस्कार का पूर्णतया समर्थन किया है और यह प्रमाणित भी किया है की इस संस्कार से कान की बिमारियों से भी बचाव होता है l

सभी संस्कारों की भाँती कर्णभेद संस्कार को भी वेद मन्त्रों के अनुसार जाप करते हुए यज्ञ किया जाता है l



10. उपनयन संस्कार -

उप यानी पास और नयन यानी ले जाना।

गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार।

उपनयन संस्कार बच्चे के 6 - 8 वर्ष की आयु में किया जाता है, इसमें यज्ञ करके बच्चे को एक पवित्र धागा पहनाया जाता है, इसे यज्ञोपवीत या जनेऊ भी कहते हैं l बालक को जनेऊ पहनाकर गुरु के पास शिक्षा अध्ययन के लिए ले जाया जाता था। आज भी यह परंपरा है।

जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं।

फिर हर सूत्र के तीन-तीन सूत्र होते हैं। ये सब भी देवताओं के प्रतीक हैं। आशय यह कि शिक्षा प्रारंभ करने के पहले देवताओं को मनाया जाए। जब देवता साथ होंगे तो अच्छी शिक्षा आएगी ही।



अब बच्चा द्विज कहलाता है, द्विज का अर्थ होता है जिसका दूसरा जन्म हुआ हो, अब बच्चे को पढाई करने के लिए गुरुकुल भेजा जाता है l

पहला जन्म तो हमारे माता पिता ने दिया लेकिन दूसरा जन्म हमारे आचार्य, ऋषि, गुरुजन देते हैं, उनके ज्ञान को पाकर हम एक नए मनुष्य बनते हैं इसलिए इसे द्विज या दूसरा जन्म लेना कहते हैं l

यज्ञोपवीत पहनना गुरुकुल जाने, ज्ञानी होने, संस्कारी होने का प्रतीक है l



कुछ लोगों को ग़लतफहमी है की यज्ञोपवीत का धागा केवल ब्राह्मण लोग ही धारण अक्र्ते हैं, वास्तब में आज कल केवल ब्राह्मण ही रह गए हैं जो सनातन परम्पराओं को पूर्णतया निभा रहे हैं, जबकि पुराने समय में सभी लोग गुरुकुल में प्रवेश के समय ये यज्ञोपवीत पवित्र धागा पहनते थे..... यानी की जनेऊ धारण करते थे l



11. वेदाररंभ या विद्यारंभ संस्कार

जीवन को सकारात्मक बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है। शिक्षा का शुरू होना ही विद्यारंभ संस्कार है। गुरु के आश्रम में भेजने के पहले अभिभावक अपने पुत्र को अनुशासन के साथ आश्रम में रहने की सीख देते हुए भेजते थे।

ये संस्कार भी उपनयन संस्कार जैसा ही है, इस संस्कार के बाद बच्चों को वेदों की शिक्षा मिलना आरम्भ किया जाता है गुरुकुल में

वर्तमान समय में हम जैसा अधिकाँश लोगों ने गुरुकुल में शिक्षा नहीं पायी है इसलिए हमे अपने ही धर्म के बारे में बहुत बड़ी ग़लतफ़हमियाँ हैं, और ना ही वर्तमान समय में हमारे माता-पिता को अपनी संस्कृति के बारे में पूर्ण ज्ञान है की वो हमको हमारे धर्म के बारे में बता सकें, इसलिए हमारे प्रश्न मन में ही रह जाते हैं l अधिकाँश अभिभावक तो बस कभी कभी मन्दिर जाने को ही "धर्म" कह देते हैं



ये हमारा 11वां संस्कार है, अब जब गुरुकुल में बच्चे पढने जा रहे हैं और वो वहां पर वेदों को पढ़ना आरम्भ करेंगे तो बहुत ही आश्चर्य की बात है की हम वेदों को सनातन धर्म के धार्मिक ग्रन्थ मानते हैं और गुरुकुल में बच्चों को यदि धार्मिक ग्रन्थ की शिक्षा दी जाएगी तो वो इंजीनियर, डाक्टर, वैज्ञानिक, अध्यापक, सैनिक आदि कैसे बनेंगे ?

वास्तव में हम लोगों को यह नहीं पता की जैसे अंग्रेजी डाक्टर होते हैं वैसे ही हमारे भारत वर्ष में भी वैद्य हैं l जैसे आजकल के डाक्टर रसायनों के अनुसार दवाइयां देते हैं खाने के लिए उसी प्रकार हमारे आचार्य और वैद्य शिरोमणी जड़ी बूटियों की औषधियां बनाते थे, जो की विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है..... आयुर्वेद हमारे वेदों का ही एक अंश है l

ऐसे ही वेद के अनेक अंश हैं जैसे ... "शस्त्र-शास्त्र" ...जो भारत की युद्ध कलाओं पर आधारित हैं l

गन्धर्व-वेद ... संगीत पर आधारित है l



ये सब उपवेद कहलाते हैं l



हम सबको थोड़े अपने सामान्य ज्ञान या व्यवहारिक ज्ञान के अनुसार भी सोचना चाहिए की भारत में पुरानी संस्कृति जो भी थीं....

क्या वो बिना किसी समाज, चिकित्सक, इंजिनियर, वैज्ञानिक, अध्यापक, सैनिक आदि के बिना रह सकती थी क्या ...? बिलुल भी नहीं .... वेदों में समाज के प्रत्येक भाग के लिए ज्ञान दिया गया है l



केशांत संस्कार- केशांत संस्कार का अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना, उन्हें समाप्त करना। विद्या अध्ययन से पूर्व भी केशांत किया जाता है। मान्यता है गर्भ से बाहर आने के बाद बालक के सिर पर माता-पिता के दिए बाल ही रहते हैं। इन्हें काटने से शुद्धि होती है। शिक्षा प्राप्ति के पहले शुद्धि जरूरी है, ताकि मस्तिष्क ठीक दिशा में काम करे।





12. समवर्तन संस्कार -

समवर्तन का अर्थ है फिर से लौटना। आश्रम में शिक्षा प्राप्ति के बाद ब्रह्मचारी को फिर दीन-दुनिया में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था। इसका आशय है ब्रह्मचारी को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षो के लिए तैयार करना।

जब बच्चा (लडका या लड़की ) गुरुकुल में अपनी शिक्षा पूरी कर लेते हैं, अर्थान उनको वेदों के अनुसार विज्ञान, संगीत, तकनीक, युद्धशैली, अनुसन्धान, चिकित्सा और औषधी, अस्त्रों शस्त्रों के निर्माण, अध्यात्म, धर्म, राजनीति, समाज आदि की उचित और सर्वोत्तम शिक्षा मिल जाती है उसके बाद यह संस्कार किया जाता है l

समवर्तन संस्कार में ऋषि, आचार्य, गुरुजन आदि शिक्षा पूर्ण होने के पच्चात अपने शिष्यों से गुरु दक्षिणा भी मांगते हैं l

वर्तमान समय में इस संस्कार का एक विदूषित रूप देखने को मिलता है जिसे Convocation Ceremony कहा जाता है l



13. विवाह संस्कार-

विवास का अर्थ है पुरुष द्वारा स्त्री को विशेष रूप से अपने घर ले जाना। सनातन धर्म में विवाह को समझौता नहीं संस्कार कहा गया है। यह धर्म का साधन है। दोनों साथ रहकर धर्म के पालन के संकल्प के साथ विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है।

ये संस्कार बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार है, ये भी यज्ञ करते हुए और वेदों पर आधारित मन्त्रों को पढ़ते हुए किया जाता है, वेद-मन्त्रों में पति और पत्नी के लिए कर्तव्य दिए गए हैं और इन को ध्यान में रखते हुए अग्नि के 7 फेरे लिए जाते हैं l



जैसे हमारे माता पिता ने हमको जन्म दिया वैसे ही हमारा कर्तव्य है की हम कुल परम्परा को आगे बाधाएं, अपने बच्चों को सनातन संस्कार दें और धर्म की सेवा करें l

विवाह संस्कार बहुत आवश्यक है ... हमारे समस्त ऋषियों की पत्नी हुआ करती थीं, ये महान स्त्रियाँ आध्यात्मिकता में ऋषियों के बराबर थीं l



14. वानप्रस्थ संस्कार



अब 50 वर्ष की आयु में मनुष्य को अपने परिवार की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर जंगल में चले जाना चाहिए और वहां पर वेदों की 6 दर्शन यानी की षट-दर्शन में से किसी 1 के द्वारा मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, ये संस्कार भी यज्ञ करते हुए किया जाता है और संकल्प किया जाता है की अब मैं इश्वर के ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे l



15. सन्यास संस्कार-

वानप्रस्थ संस्कार में जब मनुष्य ज्ञान प्राप्त कर लेता है उसके बाद वो सन्यास लेता है, वास्तव में सन्यास पूरे समाज के लिए लिया जाता है , प्रत्येक सन्यासी का धर्म है की वो सारे संसार के लोगों को भगवान् के पुत्र पुत्री समझे और अपना बचा हुआ समय सबके कल्याण के लिए दे दे l

सन्यासी को कभी 1 स्थान पर नही रहना चाहिए उसे घूम घूम कर साधना करते हुए लोगो के काम आना चाहिए, अब सारा विश्व ही सन्यासी का परिवार है, कोई पराया नही है l



सन्यास संस्कार 75 की वर्ष की आयु में होता है पर अगर इस संसार से वैफाग्य हो जाए तो किसी भी आयु में सन्यास लिया जा सकता है l

सन्यासी का धर्म है की वो धर्म के ज्ञान को लोगों को बांटे, ये उसकी सेवा है, सन्यास संस्कार करते समय भी यज्ञ किया जाता है वेद मन्त्र पढ़ते हुए और सृष्टि के कल्याण हेतु बाकी जीवन व्यतीत करने की प्रतिज्ञा की जाती है l



16. अंत्येष्टि संस्कार-

इसका अर्थ है अंतिम यज्ञ। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है। इसी से चिता जलाई जाती है। आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है। मृत्यु के साथ ही व्यक्ति स्वयं इस अंतिम यज्ञ में होम हो जाता है। हमारे यहां अंत्येष्टि को इसलिए संस्कार कहा गया है कि इसके माध्यम से मृत शरीर नष्ट होता है। इससे पर्यावरण की रक्षा होती है।

अन्त्येष्टी संस्कार के समय भी वेद मन्त्र पढ़े जाते हैं, पुराने समय में "नरमेध यज्ञ" जिसका वास्तविक अर्थ अन्त्येष्टी संस्कार था.. उसका गलत अर्थ निकाल कर बलि मान लिया गया था l

Friday, October 7, 2011

जामा मस्जिद, जिहाद और 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम


गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की,
तख्ते लन्दन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की



गाज़ी उस मुस्लमान को कहते हैं जो इस्लाम की और से जिहाद करता है और काफिरों को मरता है, और जो जिहाद में मारा जाता है .. उसे शहीद कहा जाता है l



शहीदों और गाजियों के लिए जन्नत में 72 हूरों और 27 लोंडों से पुरस्कृत करने का प्रावधान "कुरआन बदमाश" में लिखा गया है l





ये पंक्तियाँ बहादुर शाह जफर ने 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के समय लिखी थीं, या फिर किसके सम्बोधन में कही थीं ये आप स्वयम समझ सकते हैं l मुगल सल्तनत को खत्म हुए काफी समय बीत चुका था, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, बुन्देलखण्ड वीर छत्रसाल और दशम गुरु गोबिंद सिंह जी के संघर्षों ने औरंगजेब का 90 % खजाना खाली करवा दिया था l इसके बाद में रंगीले एय्याशों जैसे बादशाहों ने मुगालियाँ सल्तनत की रही सही कमर भी तोड़ ही दी थी l

बहादुर शाह जफर भी कुछ ऐसे ही मिजाज के थे .... अपनी एय्याशियों के चलते वो करदार हो चुके थे l पुरानी दिल्ली के जाने कितने ही व्यापारियों से कर्ज ले लेकर बहादुर शाह जफ़र अपनी सल्तनत चला रहे थे l



बहादुर शाह जफर के बारे में तो यहाँ तक कहा है इतिहासकारों ने की 75-80 वर्ष कीआयु में भी बहादुर शाह जफर की एय्याशियाँ खत्म नहीं हुई थीं, एक साहूकार से कर्ज लेकर बहदिर शाह जफर ने अपना अंतिम निकाह की रस्म पूरी की वो भी एक 12 वर्ष की लड़की के साथ l



खैर वापिस लौटते हैं स्वतन्त्रता संग्राम की और ... बहादुर शाह जफ़र और अन्य इस्लामी शासकों को यह संदेश बाहरी इस्लामी शासकों से मिलने लगे थे की दारुल-इस्लाम को दारुल हर्ब बने अब बहुत समय बीत चुका है इसे अविलम्ब दारुल इस्लाम बनाने का कार्य प्रारम्भ किया जाये l इसी षड्यंत्र के अंतर्गत 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की बुनियाद रखी गयी थी l हिन्दू राजाओं और राष्ट्रवादी शक्तियों ने अपना भरपूर जोर लगाया इस और परन्तु मुगलों की ही सेनाओं ने अंग्रेजी सेना में व्याप्त मुस्लिम सैनिकों के ऊपर शस्त्र न चलाते हुए हिन्दू सैनिकों पर ही प्रहार करने लगे और धीरे धीरे इस महान स्वतन्त्रता संग्राम का विफल होना इतिहास बन गया l



अनेक इतिहासकारों ने उस समय अपनी पुस्तकों में यह भी लिखा की केवल हिन्दू लोगों ने ही स्वतन्त्रता संग्राम के युद्ध को स्वतन्त्रता संग्राम की भाँती लड़ा .... इस्लामी मानसिकता के लोगों ने.... इस युद्ध का प्रयोग एक जिहाद की भाँती ही किया l





उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ अब शायद आप सबकी समझ में आ गया होगा l



दारुल इस्लाम ... दारुल कब्जा ही रह गया ... दारुल हर्ब भी न बना l

हिंदुत्व के लिए भी यह कुछ कारणों से लाभकारी ही सिद्ध हुआ, क्योंकि उस समय तक अधिकाँश हिन्दू जनता अपने शास्त्रों से कट चुकी थी .. उसके बाद के पतन से आप सब भली भाँती अवगत हैं l



जामा मस्जिद का विक्रय....



अंग्रेजों के लिए 1857 का युद्ध एक बहुत खर्चीला युद्ध साबित हुआ, जिसके कारण अंग्रेजों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गयी थी, जिसकी भरपाई के लिए उन्होंने लाल किले की दीवारों में जड़े रत्नों को भी निकलवाया परन्तु उससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पडा ... अंततः अंग्रेजों ने जामा मस्जिद को बेचने का ही निर्णय लिया l जामा मस्जिद की नीलामी की गयी ... उस समय अंग्रेजों का भी इतना था की किसी मुसलमान का ईमान नहीं जागा की आगे बढ़ कर अपनी मस्जिद को बचा ले ... नीलामी के अंत में एक हिन्दू साहूकार ने ही जामा मस्जिद को खरीद लिया l उस साहूकार से कई हिन्दू लोगों ने एक बड़ा अस्पताल खुलवाने का सुझाव और विनती की परन्तु उस SICKULAR साहूकार ने वो मस्जिद वापिस मुसलमानों को यह कह कर दे दी की .. इबादत के स्थान पर इबादत ही हो तो अच्छा है l

Wednesday, October 5, 2011

राज ठाकरे की राजनीती


राज ठाकरे ने हमेशा से अपनी राजनीती चमकाने के लिए गरीब , मजदूरो और छोटे छोटे लोगो को मारा पीटा है ! उस व्यक्ति को अगर इतना ही नेता बन ने का शौक है और गुंडागर्दी करने का शौक है तो एक बार बिहार और उतरप्रदेश में आकर दिखाए !
अपने घर में तो कुत्ता भी शेर बनता है ! और सबसे बड़ी बात इस राज ठाकरे के मुद्दे पर सब चुप हो जाते है , किसी का कोई बयां नहीं आता ..कोई कुछ नहीं बोलता ...चाहे ..वो अन्ना हजारे हो, शर...द पवार हो, बिलास राव देश मुख हो या राज ठाकरे के चाचा ठाकरे !
जब मुंबई में बम विस्फोट होता है तब ये गली के शेर कहा छिप जाते है ! ताज हमले में जो कमांडो शहीद हो गए क्या वो उतर भारतीय नहीं थे ! क्या उन्होंने भेद भाव किया आज तक ?
राज ठाकरे ये प्रांतवाद की राजनीती बंद करो ! नहीं तो , अगर उतर भारतीय को जोश आ गया तो तुम्हारे होश ठिकाने लगा देंगे तुम्हारे घर में घुस कर !

Tuesday, October 4, 2011

टीम अन्ना के साथ राज ठाकरे !!


अन्ना से मेरा एक सवाल है ....अब वो देश के हर मुद्दे पर बोल रहा है ..कल रात को मुंबई में राज ठाकरे के गुंडों ने फिर उत्तर भारतीयों ऑटो रिक्शा वालो पर कहर ढाया, कितने को मारा पीटा, ऑटो तोड़ दिया गया , कहा गयी टीम अन्ना ? क्यों नहीं आती सडको पर ? क्यों नहीं अनशन करती ? क्यों नहीं राज ठाकरे के गुंडों के विरोध में कुछ बोलती है ?
नरेन्द्र मोदी के उपवास से लेकर हिसार के चुनाव तक का मुद्दे पर उनके सभी साथी और वो खुद बहुत बयान बाजी कर रहे है ! आज राज ठाकरे के मुद्दे पर क्यों इनकी बोलती बंद है !
राज ठाकरे ने एक बार फिर उतर भारतीयों के बारे में जहर उगला है ! टीम अन्ना अगर देश के सारे काम का ठेका ले चुकी है तो इस मामले में भी आगे आना चाहिए ! अन्यथा जनता उनकी राजनीती समझ चुकी है !
संजीव भट के बारे में बोल रहा है लेकिन गोधरा को क्यों भूल गया ये ......जनता को कब तक मुर्ख बनाओगे नए महात्मा , तुम सोचते हो की तुम्हारे कहने से जनता वोट देगी , जनता को खुद समझ है की किसे वोट देना है और किसे नहीं ! तुम अपनी राजनीती चमकाओ ! सारे मीडिया में दिन भर आते रहो , कुछ कर नहीं सकते हो देश के लिए तो कम से कम अपना ही पेट भर लो अब तुम सब मिल कर टीम अन्ना !
अब एक बार फिर से अनशन पर बैठो टीम अन्ना अब तुम्हे आटे -डाल का भाव मालूम पड़ जायेगा !
अगर हिम्मत है तो राज ठाकरे का विरोध कर के दिखाओ ....??

Thursday, September 29, 2011

Who is Sonia Gandhi:


Who is Sonia Gandhi:
There is officially no Sonia Gandhi. Her real name in passport is neither Gandhi nor Sonia. Its Edvige Antonia Albina Maino. Sonia is a Russian name and not italian. However, Antonia is an italian name and her passport is italian. Though she has married Rajiv Gandhi* she never accepted change of title officially. ( recall the time of turmoil in indian politics when Sonia Gandh...i was trying to be the prime minister, but ultimately ManMohan Singh became her toy)

*Rajiv Gandhi: Actually Rajiv Khan being the son of Firoz Khan and Indira Priyadarshani. Gandhi is an assumed title to sentimentally lure indians for their political benefit. They are muslims by religion.

Father:
Stefano Eugene Maino is socially the father of Sonia. Her father was a German(hitlers army). When Hitlers army went to russia they were captured and imprisoned. He was captured near St. Petersburgh and was imprisoned for 20 years. But he became a member of KGB and his imprisonment was limited to 4 years. When he came back from prison he gave russian name to his daughters. Social father because when she was born her father was in jail for 4 years. Biological father is unconfirmed.
Mother:
Paula Maino.
Family:
She had 2 sistersin Orbassano, italy
Birthplace
Sonia claims she was born in Besano, near Turin in italy. However, as per her birth certificate, She is actually born is Luciana, in the borders of Switzerland. A resort town for German soldiers during war.
Education:
She initially put forward to Indian Govt. that she studied in Cambridge University which proved to be fake. She submitted an affidavit that she studied english in Bell Education trust at Cambridge. Even this was proven to be fake and was found she never got any education after class five. She was a young girl with no formal education living five years in england. How did she support her livelihood for 5 years? Any wild guesses?
Citizenship:
She has not given off her italian citizenship. Indira Gandhi used her power to issue her an Indian Citizenship so that she can join Indian politics. She is holding an illegal citizenship in India. No action is being taken by Home Minister.
Religion:
Cristianity.
Bank Balance:
Rajiv Gandhi and his family owned 2 billion USD in Swiss Bank as of November,1991. Benefitiary of death of Indira Gandhi and Rajiv Gandhi was Sonia Gandhi.
Family:
Sonia's sister Alexandria(or Anuska) has 2 shops in Italy selling antiques stolen from India. Sonia used her power to smuggle indian artifacts through Air India flights uninspected.
Sonia's son Rahul Gandhi, whose real name is Raul Vinci. He got admitted to Harvard in quota but was thrown off soon because he was incompetant. He has italian citizenship since his mother never gave up her citizenship. He cannot officially become the citizen of india or any politician in india as long as he doesnt give up his italian citizenship. Arrested in Boston airport for carrying 160,000 dollars cash, accompanied by Veronique (spanish). veronique is the daughter of Drug mafia leader. Rahul has also been accused for gang raping Sukanya Devi, whose petition to all courts in India have been rejected due to their political hold and the whereabouts of the family is unknown. However, the information is widely available online.

Vande mataram

Monday, September 26, 2011

सांप्रदायिक एव लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011


अभी हाल ही में यूपीए अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा एक विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है। इसका नाम सांप्रदायिक एव लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 [‘Prevention of Communal and Targeted Violence (Access to Justice and Reparations) Bill,2011’] है। ऐसा लगता है कि इस प्रस्तावित विधेयक को अल्पसंख्यकों का वोट बैंक मजबूत करने का लक्ष्य लेकर, हिन्दू समाज, हिन्दू संगठनों और हिन्दू नेताओं को कुचलने के लिए तैयार किया गया है। साम्प्रदायिक हिंसा रोकने की आड़ में लाए जा रहे इस विधेयक के माध्यम से न सिर्फ़ साम्प्रदायिक हिंसा करने वालों को संरक्षण मिलेगा बल्कि हिंसा
के शिकार रहे हिन्दू समाज तथा इसके विरोध में आवाज उठानेवाले हिन्दू संगठनों का दमन करना आसान होगा। इसके अतिरिक्त यह विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत राज्य सरकारों के कार्यों में हस्तक्षेप कर देश के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त करेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके लागू होने पर भारतीय समाज में परस्पर अविश्वास और विद्वेष की खाई इतनी बड़ी और गहरी हो जायेगी जिसको पाटना किसी के लिए भी सम्भव नहीं होगा।

मजे की बात यह है कि एक समानान्तर व असंवैधानिक सरकार की तरह काम कर रही राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बिना किसी जवाब देही के सलाह की आड़ में केन्द्र सरकार को आदेश देती है और सरकार दासत्व भाव से उनको लागू करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है। जिस ड्राफ्ट कमेटी ने इस विधेयक को बनाया है, उसका चरित्र ही इस विधेयक के इरादे को स्पष्ट कर देता है। जब इसके सदस्यों और सलाहकारों में हर्ष मंडेर, अनु आगा, तीस्ता सीतलवाड़, फराह नकवी जैसे हिन्दू विद्वेषी तथा सैयद शहाबुद्दीन, जॉन दयाल, शबनम हाशमी और नियाज फारुखी जैसे घोर साम्प्रदायिक शक्तियों के हस्तक हों तो विधेयक के इरादे क्या होंगे, आसानी से कल्पना की जा सकती है। आखिर ऐसे लोगों द्वारा बनाया गया दस्तावेज उनके चिन्तन के विपरीत कैसे हो सकता है।
जिस समुदाय की रक्षा के बहाने से इस विधेयक को लाया गया है इसको इस विधेयक में 'समूह' का नाम दिया गया है। इस 'समूह' में कथित धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यकों के अतिरिक्त दलित व वनवासी वर्ग को भी सम्मिलित किया गया है। अलग-अलग भाषा बोलने वालों के बीच सामान्य विवाद भी भाषाई अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक विवाद का रूप धारण कर सकते हैं। इस प्रकार के विवाद
किस प्रकार के सामाजिक वैमनस्य को जन्म देंगे, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। विधेयक अनुसूचित जातियों व जनजातियों को हिन्दू समाज से अलग कर समाज को भी बांटने का कार्य करेगा। कुछ वर्गों में पारस्परिक असंतोष के बावजूद उन सबका यह विश्वास है कि उनकी समस्याओं का समाधान हिन्दू समाज के अंगभूत बने रहने पर ही हो सकता है।
यह विधेयक मानता है कि बहुसंख्यक समाज हिंसा करता है और अल्पसंख्यक समाज उसका शिकार होता है जबकि भारत का इतिहास कुछ और ही बताता है। हिन्दू ने कभी भी गैर हिन्दुओं को सताया नहीं, उनको संरक्षण ही दिया है। उसने कभी हिंसा नहीं की, वह हमेशा हिंसा का शिकार हुआ है। क्या यह सरकार हिन्दू समाज को अपनी रक्षा का अधिकार भी नहीं देना चाहती ? क्या हिन्दू की नियति सेक्युलर बिरादरी के संरक्षण में चलने वाली साम्प्रदायिक हिंसा से कुचले जाने की ही है ? किसी भी महिला के शील पर आक्रमण होना, किसी भी सभ्य समाज में उचित नहीं माना जाता। यह विधेयक एक गैर हिन्दू महिला के साथ किए गए दुर्व्यवहार को तो अपराध मानता है; परन्तु हिन्दू महिला के साथ किए गए बलात्कार को अपराध नहीं मानता जबकि साम्प्रदायिक दंगों में हिन्दू महिला का शील ही विधर्मियों के निशाने पर रहता है।

इस विधेयक में प्रावधान है कि 'समूह' के व्यापार में बाधा डालने पर भी यह कानून लागू होगा। इसका अर्थ है कि अगर कोई अल्पसंख्यक बहुसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति का मकान खरीदना चाहता है और वह मना कर देता है तो इस अधिनियम के अन्तर्गत वह हिन्दू अपराधी घोषित हो जायेगा। इसी प्रकार अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा का प्रचार भी अपराध माना गया है। यदि किसी
बहुसंख्यक की किसी बात से किसी अल्पसंख्यक को मानसिक कष्ट हुआ है तो वह भी अपराध माना जायेगा। अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध माना जायेगा। यानि अब अफजल गुरु को फांसी की मांग करना, बांग्लादेशी घुसपैठियों के निष्कासन की मांग करना, धर्मान्तरण पर रोक लगाने की मांग करना भी अपराध बन जायेगा।
दुनिया के सभी प्रबुध्द नागरिक जानते हैं कि हिन्दू धर्म, हिन्दू, देवी-देवताओं व हिन्दू संगठनों के विरुध्द कौन विषवमन करता है। माननीय न्यायपालिका ने भी साम्प्रदायिक हिंसा की सेक्युलरिस्टों द्वारा चर्चित सभी घटनाओं के मूल में इस प्रकार के हिन्दू विरोधी साहित्यों व भाषणों को ही पाया है। गुजरात की बहुचर्चित घटना गोधरा में 59 रामभक्तों को जिन्दा जलाने की प्रतिक्रिया के कारण हुई, यह तथ्य अब कई आयोगों के द्वारा स्थापित किया जा चुका है। अपराध करने वालों को संरक्षण देना और प्रतिक्रिया करने वाले समाज को दण्डित करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं माना जा सकता। किसी निर्मम तानाशाह के इतिहास में भी अपराधियों को इतना बेशर्म संरक्षण कहीं नहीं दिया गया होगा।

भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार किसी आरोपी को तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक वह दोषी सिद्ध न हो जाये; परन्तु, इस विधेयक में आरोपी तब तक दोषी माना जायेगा जब तक वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। इसका मतलब होगा कि किसी भी गैर हिन्दू के लिए अब किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जाएगा। वह केवल आरोप लगाएगा और पुलिस अधिकारी आरोपी हिन्दू को जेल में डाल देगा। इस विधेयक के प्रावधान पुलिस अधिकारी को इतना कस देते हैं कि वह उसे जेल में रखने का पूरा प्रयास करेगा ही क्योंकि उसे अपनी प्रगति रिपोर्ट शिकायतकर्ता को निरंतर भेजनी होगी। यदि किसी संगठन के कार्यकर्ता पर साम्प्रदायिक घृणा का कोई आरोप है तो उस संगठन के मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है। इसी प्रकार यदि कोई प्रशासनिक अधिकारी हिंसा रोकने में असफल है तो राज्य का मुखिया भी जिम्मेदार माना जायेगा।
यही नहीं किसी सैन्य बल, अर्ध्दसैनिक बल या पुलिस के कर्मचारी को तथाकथित हिंसा रोकने में असफल पाए जाने पर उसके मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है।

भारतीय संविधान के अनुसार कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। केन्द्र सरकार केवल सलाह दे सकती है। इससे भारत का संघीय ढांचा सुरक्षित रहता है; परन्तु इस विधेयक के पारित होने के बाद अब इस विधेयक की परिभाषित 'साम्प्रदायिक हिंसा' राज्य के भीतर आंतरिक उपद्रव के रूप में देखी जायेगी और केन्द्र सरकार को किसी भी विरोधी दल द्वारा शासित राज्य में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का अधिकार मिल जायेगा। इसलिए यह विधेयक भारत के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त कर देगा। विधेयक अगर पास हो जाता है तो हिन्दुओं का भारत में जीना दूभर हो जायेगा। देश द्रोही और हिन्दू द्रोही तत्व खुलकर भारत और हिन्दू समाज को समाप्त करने का षडयन्त्र करते रहेंगे; परन्तु हिन्दू संगठन इनको रोकना तो दूर इनके विरुध्द आवाज भी नहीं उठा पायेंगे। हिन्दू जब अपने आप को कहीं से भी संरक्षित नहीं पायेगा तो धर्मान्तरण का कुचक्र तेजी से प्रारम्भ हो
जायेगा। इससे भी भयंकर स्थिति तब होगी जब सेना, पुलिस व प्रशासन इन अपराधियों को रोकने की जगह इनको संरक्षण देंगे और इनके हाथ की कठपुतली बन देशभक्त हिन्दू संगठनों के विरुध्द कार्यवाही करने के लिए मजबूर हो जायेंगे।

इस विधेयक के कुछ ही तथ्यों का विश्लेषण करने पर ही इसका भयावह चित्र सामने आ जाता है। इसके बाद आपातकाल में लिए गए मनमानीपूर्ण निर्णय भी फीके पड़ जायेंगे। हिन्दू का हिन्दू के रूप में रहना मुश्किल हो जायेगा। देश के प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने पहले ही कहा था कि देश के
संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है। यह विधेयक उनके इस कथन का ही एक नया संस्करण लगता है। किसी राजनीतिक विरोधी को भी इसकी आड़ में कुचलकर असीमित काल के लिए किसी भी जेल में डाला जा सकता है।

इस खतरनाक कानून पर अपनी गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए विश्व हिन्दू परिषद
की केन्द्रीय प्रबन्ध समिति की अभी हाल ही में सम्पन्न प्रयाग बैठक में भी एक प्रस्ताव पारित किया गया है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि विहिप इस विधेयक को रोलट एक्ट से भी अधिक खतरनाक मानती है। और सरकार को चेतावनी देती है कि वह अल्पसंख्यकों के वोट बैंक को मजबूत करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हिन्दू समाज और हिन्दू संगठनों को कुचलने के अपने कुत्सित और अपवित्र इरादे को छोड़ दे। यदि वे इस विधेयक को लेकर आगे बढ़ते हैं तो हिन्दू समाज एक प्रबल देशव्यापी आन्दोलन करेगा। विहिप ने देश के राजनीतिज्ञों, प्रबुध्द वर्ग व हिन्दू समाज तथा पूज्य संतों से अपील भी की है कि वे केन्द्र सरकार के इस पैशाचिक विधेयक को रोकने के लिए सशक्त प्रतिकार करें।

टीम अन्ना

टीम अन्ना को लगता है है की वो भारत के ठेकेदार बन गए है ! हर बात पर बकवास करना चालू हो गए है !
प्रशांत भूषण ने आज कहा के कश्मीर से सेना हटा लेनी चाहिए कश्मीर पाकिस्तान को दे देना चाहिए, कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा था | यह पागल हो गया है क्या , इसको कुछ भी दिमाग नहीं है क्या ?
भारत में रहकर ऐसी बात कर रहा है और पुरे देश का ठेकेदार बनना चाहता है ! इसको तो पकिस्तान में भेज देना चाहिए ! कश्मीर हमारा था और हमारा रहेगा !
इस प्रशांत भूषण को दिमागी अस्पताल में भर्ती करा देना चाहिए ! पागल ! अगर मेरे सामने बोला तो सोच लो , दिमाग होश में आ जायेगा !
इस व्यक्ति को यह सोचना चाहिए की यह देश का प्रवक्ता नहीं है जो शराब पीकर कुछ भी बके जा रहा है ! पुरे देश को इस टीम ने मुर्ख बनाया है ! लेकिन जनता की आँखे कब खुलेगी पता नहीं ! कभी कुछ बोलता है और कभी कुछ!

Tuesday, September 13, 2011

एक गोत्र मे विवाह

“सलक्षमा यद्विषुरुषा भवाति” ऋ10/10/2 (“सलक्ष्मा सहोदर बहन से पीडाप्रद संतान उत्पन्न होने की सम्भावना होती है”)‌

“ पापमाहुर्य: सस्वारं निगच्छात” ऋ10/10/12 ( “जो अपने सगे बहन भाई से संतानोत्पत्ति करते हैं, भद्र जन उन्हें पापी कहते हैं)

इस विषय पर स्पष्ट जानकारी पाणिनी कालीन भारत से भी मिलती है.

अष्टाध्यायी के अनुसार “ अपत्यं पौत्र प्रभृति यद गोत्रम् “, एक पुरखा के पोते,पडपोते आदि जितनी संतान होगी वह एक गोत्र की कही जायेगी. यहां पर सपिण्ड का उद्धरण करना आवश्यक हो जाता है.

“ सपिण्डता तु पुरुषे सप्तमे विनिवर्तते !

समानोदकभावस्तु जन्मनाम्नोरवेदन !! “

मनु: 5/60

“सगापन तो सातवीं पीढी में समाप्त हो जाता है. और घनिष्टपन जन्म और नाम के ज्ञात ना रहने पर छूट जाता है.”

आधुनिक जेनेटिक अनुवांशिक विज्ञान के अनुसार inbreeding multiplier अंत:प्रजनन से उत्पन्न विकारों की सम्भावना का वर्धक गुणांक इकाई से यानी एक से कम सातवीं पीढी मे जा कर ही होता है.

गणित के समीकरण के अनुसार,

अंत:प्रजनन विकार गुणांक= (0.5)raised to the power N x100, ( N पीढी का सूचक है,)

पहली पीढी मे N=1,से यह गुणांक 50 होगा, छटी पीढी मे N=6 से यह गुणांक 1.58 हो कर भी इकाई से बडा रहता है. सातवी पीढी मे जा कर N=7 होने पर ही यह अंत:पजनन गुणांक 0.78 हो कर इकाई यानी एक से कम हो जाता है.

मतलब साफ है कि सातवी पीढी के बाद ही अनुवांशिक रोगों की सम्भावना समाप्त होती है. यह एक अत्यंत विस्मयकारी आधुनिक विज्ञान के अनुरूप सत्य है जिसे हमारे ऋषियो ने सपिण्ड विवाह निषेध कर के बताया था.

सगोत्र विवाह से शारीरिक रोग , अल्पायु , कम बुद्धि, रोग निरोधक क्षमता की कमी, अपंगता, विकलांगता सामान्य विकार होते हैं. भारतीय परम्परा मे सगोत्र विवाह न होने का यह भी एक परिणाम है कि सम्पूर्ण विश्व मे भारतीय सब से अधिक बुद्धिमान माने जाते हैं.

सपिण्ड विवाह निषेध भारतीय वैदिक परम्परा की विश्व भर मे एक अत्यन्त आधुनिक विज्ञान से अनुमोदित व्यवस्था है. पुरानी सभ्यता चीन, कोरिया, इत्यादि मे भी गोत्र /सपिण्ड विवाह अमान्य है. परन्तु मुस्लिम और दूसरे पश्चिमी सभ्यताओं मे यह विषय आधुनिक विज्ञान के द्वारा ही लाया जाने के प्रयास चल रहे हैं.

आधुनिक अनुसंधान और सर्वेक्षणों के अनुसार फिनलेंड मे कई शताब्दियों से चले आ रहे शादियों के रिवाज मे अंत:प्रजनन के कारण ढेर सारी ऐसी बीमारियां सामने आंयी हैं जिन के बारे वैज्ञानिक अभी तक कुछ भी नही जान पाए हैं.

Saturday, September 10, 2011

क्या आप कटती हुई गायों को बचाना चाहते है ?


क्या आप कटती हुई गायों को बचाना चाहते है ?
प्रिय भारतवासियों,
उत्तर प्रदेश के बिजनेसमेन (व्यापारीगण) अब स्वचालित आधुनिक मशीन से युक्त कत्लखाने गायों को काटने के लिए बहुत जल्द बनाने जा रहे है ताकि गायों को तीव्र गति से काटा जा सके, उनके मां...स को विदेशों में भेजा जा सके और उन्हें बहुत बड़ा लाभ प्राप्त हो सके | अगर ये लोग इसमें कामयाब हो जाते है तो फिर इन कत्लखानो की संख्या पूरे भारत में बहुत तेजी से बढ़ेगी | पूरे देश के लोग इन कत्लखानो को खोलने का पुरजोर विरोध कर रहे है और उत्तर प्रदेश की सरकार ने कहा है कि अगर एक करोड़ लोग भी कत्लखाने खोलने का विरोध करें और इस आन्दोलन की हिमायत करें तो स्वचालित आधुनिक मशीन से युक्त कत्लखाने खोलने की इजाजत व्यापारियों को नहीं दी जाएगी|
हम गायों की पूजा करते है | भारतीय होने के नाते और मानवता के नाते हम ऐसा होते हुवे हरगिज नहीं देख सकते ................ कृपया आप अपना समर्थन अवश्य दें |
अगर आपको लगता है कि इस तरह के कत्लखाने नहीं खुलने चाहिए तो आप कृपा करके 0522-3095743 पर एक मिस कोल जरूर करे| एक घंटी बजने के बाद कोल अपने आप डिस-कनेक्ट हो जाएगी |
जिस तरह से आपने अन्ना हजारे के जन लोकपाल बिल के आन्दोलन को सफल बनाया उसी तरह से आप अपना समर्थन दें | इसमें आपका कोई खर्चा नहीं है, बल्कि आपके इस एक मिस कोल से प्रतिदिन कटने वाली हजारों लाखों गायें बच जाएगी |कृपया आप अपने मोबाइल से मिस्कोल जरूर करें और इसे जितने लोगों तक पंहुचा सके पहुचाये |
मैने मिस कोल कर दिया है ........ अब आपकी बारी है क्यो कि क्याा आप अपनी माँओ को कटते देख सकते है ?
अभी मिस कोल करे - नंबर है - 05223095743

Friday, September 2, 2011

मुहम्मद पैगम्बर खुद जन्मजात हिंदु था और काबा एक हिन्दू मन्दिर


मुसलमान कहते हैं कि कुराण ईश्वरीय वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से चली आ रही है,परंतु इनकी एक-एक बात आधारहीन तथा तर्कहीन हैं-सबसे पहले तो ये पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति का जो सिद्धान्त देते हैं वो हिंदु धर्म-सिद्धान्त का ही छाया प्रति है.हमारे ग्रंथ के अनुसार ईश्वर ने मनु तथा सतरूपा को पृथ्वी पर सर्व-प्रथम भेजा था..इसी सिद्धान्त के अनुसार ये भी कहते हैं कि अल्लाह ने सबसे पहले आदम और हौआ को भेजा.ठीक है...पर आदम शब्द संस्कृत शब्द "आदि" से बना है जिसका अर्थ होता है-सबसे पहले.यनि पृथ्वी पर सर्वप्रथम संस्कृत भाषा अस्तित्व में थी..सब भाषाओं की जननी संस्कृत है ये बात तो कट्टर मुस्लिम भी स्वीकार करते हैं..इस प्रकार आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में होनी चाहिए अरबी या फारसी में नहीं.

इनका अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है जिसका अर्थ देवी होता है.एक उपनिषद भी है "अल्लोपनिषद". चण्डी,भवानी,दुर्गा,अम्बा,पार्वती आदि देवी को आल्ला से सम्बोधित किया जाता है.जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में "या" शब्द का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे "या देवी सर्वभूतेषु....", "या वीणा वर ...." वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं "या अल्लाह"..इससे सिद्ध होता है कि ये अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह गया बस अर्थ बदल दिया गया.

चूँकि सर्वप्रथम विश्व में सिर्फ संस्कृत ही बोली जाती थी इसलिए धर्म भी एक ही था-वैदिक धर्म.बाद में लोगों ने अपना अलग मत और पंथ बनाना शुरु कर दिया और अपने धर्म(जो वास्तव में सिर्फ मत हैं) को आदि धर्म सिद्ध करने के लिए अपने सिद्धान्त को वैदिक सिद्धान्तों से बिल्कुल भिन्न कर लिया ताकि लोगों को ये शक ना हो कि ये वैदिक धर्म से ही निकला नया धर्म है और लोग वैदिक धर्म के बजाय उस नए धर्म को ही अदि धर्म मान ले..चूँकि मुस्लिम धर्म के प्रवर्त्तक बहुत ज्यादा गम्भीर थे अपने धर्म को फैलाने के लिए और ज्यादा डरे हुए थे इसलिए उसने हरेक सिद्धान्त को ही हिंदु धर्म से अलग कर लिया ताकि सब यही समझें कि मुसलमान धर्म ही आदि धर्म है,हिंदु धर्म नहीं..पर एक पुत्र कितना भी अपनेआप को अपने पिता से अलग करना चाहे वो अलग नहीं कर सकता..अगर उसका डी.एन.ए. टेस्ट किया जाएगा तो पकड़ा ही जाएगा..इतने ज्यादा दिनों तक अरबियों का वैदिक संस्कृति के प्रभाव में रहने के कारण लाख कोशिशों के बाद भी वे सारे प्रमाण नहीं मिटा पाए और मिटा भी नही सकते....

भाषा की दृष्टि से तो अनगिणत प्रमाण हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अरब इस्लाम से पहले वैदिक संस्कृति के प्रभाव में थे.जैसे कुछ उदाहरण-मक्का-मदीना,मक्का संस्कृत शब्द मखः से बना है जिसका अर्थ अग्नि है तथा मदीना मेदिनी से बना है जिसका अर्थ भूमि है..मक्का मदीना का तात्पर्य यज्य की भूमि है.,ईद संस्कृत शब्द ईड से बना है जिसका अर्थ पूजा होता है.नबी जो नभ से बना है..नभी अर्थात आकाशी व्यक्ति.पैगम्बर "प्र-गत-अम्बर" का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है आकाश से चल पड़ा व्यक्ति..

चलिए अब शब्दों को छोड़कर इनके कुछ रीति-रिवाजों पर ध्यान देते हैं जो वैदिक संस्कृति के हैं--

ये बकरीद(बकर+ईद) मनाते हैं..बकर को अरबी में गाय कहते हैं यनि बकरीद गाय-पूजा का दिन है.भले ही मुसलमान इसे गाय को काटकर और खाकर मनाने लगे..

जिस तरह हिंदु अपने पितरों को श्रद्धा-पूर्वक उन्हें अन्न-जल चढ़ाते हैं वो परम्परा अब तक मुसलमानों में है जिसे वो ईद-उल-फितर कहते हैं..फितर शब्द पितर से बना है.वैदिक समाज एकादशी को शुभ दिन मानते हैं तथा बहुत से लोग उस दिन उपवास भी रखते हैं,ये प्रथा अब भी है इनलोगों में.ये इस दिन को ग्यारहवीं शरीफ(पवित्र ग्यारहवाँ दिन) कहते हैं,शिव-व्रत जो आगे चलकर शेबे-बरात बन गया,रामध्यान जो रमझान बन गया...इस तरह से अनेक प्रमाण मिल जाएँगे..आइए अब कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर नजर डालते हैं...

अरब हमेशा से रेगिस्तानी भूमि नहीं रहा है..कभी वहाँ भी हरे-भरे पेड़-पौधे लहलाते थे,लेकिन इस्लाम की ऐसी आँधी चली कि इसने हरे-भरे रेगिस्तान को मरुस्थल में बदल दिया.इस बात का सबूत ये है कि अरबी घोड़े प्राचीन काल में बहुत प्रसिद्ध थे..भारतीय इसी देश से घोड़े खरीद कर भारत लाया करते थे और भारतीयों का इतना प्रभाव था इस देश पर कि उन्होंने इसका नामकरण भी कर दिया था-अर्ब-स्थान अर्थात घोड़े का देश.अर्ब संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ घोड़ा होता है. {वैसे ज्यादातर देशों का नामकरण भारतीयों ने ही किया है जैसे सिंगापुर,क्वालालामपुर,मलेशिया,ईरान,ईराक,कजाकिस्थान



,तजाकिस्थान,आदि..} घोड़े हरे-भरे स्थानों पर ही पल-बढ़कर हृष्ट-पुष्ट हो सकते हैं बालू वाले जगहों पर नहीं..

इस्लाम की आँधी चलनी शुरु हुई और मुहम्मद के अनुयायियों ने धर्म परिवर्त्तन ना करने वाले हिंदुओं का निर्दयता-पूर्वक काटना शुरु कर दिया..पर उन हिंदुओं की परोपकारिता और अपनों के प्रति प्यार तो देखिए कि मरने के बाद भी पेट्रोलियम पदार्थों में रुपांतरित होकर इनका अबतक भरण-पोषण कर रहे हैं वर्ना ना जाने क्या होता इनका..!अल्लाह जाने..!

चूँकि पूरे अरब में सिर्फ हिंदु संस्कृति ही थी इसलिए पूरा अरब मंदिरों से भरा पड़ा था जिसे बाद में लूट-लूट कर मस्जिद बना लिया गया जिसमें मुख्य मंदिर काबा है.इस बात का ये एक प्रमाण है कि दुनिया में जितने भी मस्जिद हैं उन सबका द्वार काबा की तरफ खुलना चाहिए पर ऐसा नहीं है.ये इस बात का सबूत है कि सारे मंदिर लूटे हुए हैं..इन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर काबा का है क्योंकि ये बहुत बड़ा मंदिर था.ये वही जगह है जहाँ भगवान विष्णु का एक पग पड़ा था तीन पग जमीन नापते समय..चूँकि ये मंदिर बहुत बड़ा आस्था का केंद्र था जहाँ भारत से भी काफी मात्रा में लोग जाया करते थे..इसलिए इसमें मुहम्मद जी का धनार्जन का स्वार्थ था या भगवान शिव का प्रभाव कि अभी भी उस मंदिर में सारे हिंदु-रीति रिवाजों का पालन होता है तथा शिवलिंग अभी तक विराजमान है वहाँ..यहाँ आने वाले मुसलमान हिंदु ब्राह्मण की तरह सिर के बाल मुड़वाकर बिना सिलाई किया हुआ एक कपड़ा को शरीर पर लपेट कर काबा के प्रांगण में प्रवेश करते हैं और इसकी सात परिक्रमा करते हैं.यहाँ थोड़ा सा भिन्नता दिखाने के लिए ये लोग वैदिक संस्कृति के विपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं अर्थात हिंदु अगर घड़ी की दिशा में करते हैं तो ये उसके उल्टी दिशा में..पर वैदिक संस्कृति के अनुसार सात ही क्यों.? और ये सब नियम-कानून सिर्फ इसी मस्जिद में क्यों?ना तो सर का मुण्डन करवाना इनके संस्कार में है और ना ही बिना सिलाई के कपड़े पहनना पर ये दोनो नियम हिंदु के अनिवार्य नियम जरुर हैं.

चूँकि ये मस्जिद हिंदुओं से लूटकर बनाई गई है इसलिए इनके मन में हमेशा ये डर बना रहता है कि कहीं ये सच्चाई प्रकट ना हो जाय और ये मंदिर उनके हाथ से निकल ना जाय इस कारण आवश्यकता से अधिक गुप्तता रखी जाती है इस मस्जिद को लेकर..अगर देखा जाय तो मुसलमान हर जगह हमेशा डर-डर कर ही जीते हैं और ये स्वभाविक भी है क्योंकि इतने ज्यादा गलत काम करने के बाद डर तो मन में आएगा ही...अगर देखा जाय तो मुसलमान धर्म का अधार ही डर पर टिका होता है.हमेशा इन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए भयानक नर्क की यातनाओं से डराया जाता है..अगर कुरान की बातों को ईश्वरीय बातें ना माने तो नरक,अगर तर्क-वितर्क किए तो नर्क अगर श्रद्धा और आदरपूर्वक किसी के सामने सर झुका दिए तो नर्क.पल-पल इन्हें डरा कर रखा जाता है क्योंकि इस धर्म को बनाने वाला खुद डरा हुआ था कि लोग इसे अपनायेंगे या नहीं और अपना भी लेंगे तो टिकेंगे या नहीं इसलिए लोगों को डरा-डरा कर इस धर्म में लाया जाता है और डरा-डरा कर टिकाकर रखा जाता है..जैसे अगर आप मुसलमान नहीं हो तो नर्क जाओगे,अगर मूर्त्ति-पूजा कर लिया तो नर्क चल जाओगे,मुहम्मद को पैगम्बर ना माने तो नर्क;इन सब बातों से डराकर ये लोगों को अपने धर्म में खींचने का प्रयत्न करते हैं.पहली बार मैंने जब कुरान के सिद्धान्तों को और स्वर्ग-नरक की बातों को सुना था तो मेरी आत्मा काँप गई थी..उस समय मैं दसवीं कक्षा में था और अपनी स्वेच्छा से ही अपने एक विज्यान के शिक्षक से कुरान के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी..उस दिन तक मैं इस धर्म को हिंदु धर्म के समान या थोड़ा उपर ही समझता था पर वो सब सुनने के बाद मेरी सारी भ्रांति दूर हुई और भगवान को लाख-लाख धन्यवाद दिया कि मुझे उन्होंने हिंदु परिवार में जन्म दिया है नहीं पता नहीं मेरे जैसे हरेक बात पर तर्क-वितर्क करने वालों की क्या गति होती...!

एक तो इस मंदिर को बाहर से एक गिलाफ से पूरी तरह ढककर रखा जाता है ही(बालू की आँधी से बचाने के लिए) दूसरा अंदर में भी पर्दा लगा दिया गया है.मुसलमान में पर्दा प्रथा किस हद तक हावी है ये देख लिजिए.औरतों को तो पर्दे में रखते ही हैं एकमात्र प्रमुख और विशाल मस्जिद को भी पर्दे में रखते हैं.क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर ये मस्जिद मंदिर के रुप में इस जगह पर होता जहाँ हिंदु पूजा करते तो उसे इस तरह से काले-बुर्के में ढक कर रखा जाता रेत की आँधी से बचाने के लिए..!! अंदर के दीवार तो ढके हैं ही उपर छत भी कीमती वस्त्रों से ढके हुए हैं.स्पष्ट है सारे गलत कार्य पर्दे के आढ़ में ही होते हैं क्योंकि खुले में नहीं हो सकते..अब इनके डरने की सीमा देखिए कि काबा के ३५ मील के घेरे में गैर-मुसलमान को प्रवेश नहीं करने दिया जाता है,हरेक हज यात्री को ये सौगन्ध दिलवाई जाती है कि वो हज यात्रा में देखी गई बातों का किसी से उल्लेख नहीं करेगा.वैसे तो सारे यात्रियों को चारदीवारी के बाहर से ही शिवलिंग को छूना तथा चूमना पड़ता है पर अगर किसी कारणवश कुछ गिने-चुने मुसलमानों को अंदर जाने की अनुमति मिल भी जाती है तो उसे सौगन्ध दिलवाई जाती है कि अंदर वो जो कुछ भी देखेंगे उसकी जानकारी अन्य को नहीं देंगे..

कुछ लोग जो जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी प्रकार अंदर चले गए हैं,उनके अनुसार काबा के प्रवेश-द्वार पर काँच का एक भव्य द्वीपसमूह लगा है जिसके उपर भगवत गीता के श्लोक अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्र बना हुआ है जिसे वे ईसा और उसकी माता समझते हैं.अंदर गाय के घी का एक पवित्र दीप सदा जलता रहता है.ये दोनों मुसलमान धर्म के विपरीत कार्य(चित्र और गाय के घी का दिया) यहाँ होते हैं..एक अष्टधातु से बना दिया का चित्र में यहाँ लगा रहा हूँ जो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुई है..ये दीप अरब से प्राप्त हुआ है जो इस्लाम-पूर्व है.इसी तरह का दीप काबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमान रहता है .

ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल जाती तो ज्यादा स्पष्ट हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे...

ये तो सिर्फ मस्जिद की बात है पर मुहम्मद साहब खुद एक जन्मजात हिंदु थे ये किसी भी तरह मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा है कि अगर वो पैगम्बर अर्थात अल्लाह के भेजे हुए दूत थे तो किसी मुसलमान परिवार में जन्म लेते एक काफिर हिंदु परिवार में क्यों जन्मे वो..?जो अल्लाह मूर्त्ति-पूजक हिंदुओं को अपना दुश्मन समझकर खुले आम कत्ल करने की धमकी देता है वो अपने सबसे प्यारे पुत्र को किसी मुसलमान घर में जन्म देने के बजाय एक बड़े शिवभक्त के परिवार में कैसे भेज दिए..? इस काबा मंदिर के पुजारी के घर में ही मुहम्मद का जन्म हुआ था..इसी थोड़े से जन्मजात अधिकार और शक्ति का प्रयोग कर इन्होंने इतना बड़ा काम कर दिया.मुहम्मद के माता-पिता तो इसे जन्म देते ही चल बसे थे(इतना बड़ा पाप कर लेने के बाद वो जीवित भी कैसे रहते)..मुहम्मद के चाचा ने उसे पाल-पोषकर बड़ा किया परंतु उस चाचा को मार दिया इन्होंने अपना धर्म-परिवर्त्तन ना करने के कारण..अगर इनके माता-पिता जिंदा होते तो उनका भी यही हश्र हुआ होता..मुहम्मद के चाचा का नाम उमर-बिन-ए-ह्ज्जाम था.ये एक विद्वान कवि तो थे ही साथ ही साथ बहुत बड़े शिवभक्त भी थे.इनकी कविता सैर-उल-ओकुल ग्रंथ में है.इस ग्रंथ में इस्लाम पूर्व कवियों की महत्त्वपूर्ण तथा पुरस्कृत रचनाएँ संकलित हैं.ये कविता दिल्ली में दिल्ली मार्ग पर बने विशाल लक्ष्मी-नारायण मंदिर की पिछली उद्यानवाटिका में यज्यशाला की दीवारों पर उत्त्कीर्ण हैं.ये कविता मूलतः अरबी में है.इस कविता से कवि का भारत के प्रति श्रद्धा तथा शिव के प्रति भक्ति का पता चलता है.इस कविता में वे कहते हैं कोई व्यक्ति कितना भी पापी हो अगर वो अपना प्रायश्चित कर ले और शिवभक्ति में तल्लीन हो जाय तो उसका उद्धार हो जाएगा और भगवान शिव से वो अपने सारे जीवन के बदले सिर्फ एक दिन भारत में निवास करने का अवसर माँग रहे हैं जिससे उन्हें मुक्ति प्राप्त हो सके क्योंकि भारत ही एकमात्र जगह है जहाँ की यात्रा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा संतों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है..

देखिए प्राचीन काल में कितनी श्रद्धा थी विदेशियों के मन में भारत के प्रति और आज भारत के मुसलमान भारत से नफरत करते हैं.उन्हें तो ये बात सुनकर भी चिढ़ हो जाएगी कि आदम स्वर्ग से भारत में ही उतरा था और यहीं पर उसे परमात्मा का दिव्य संदेश मिला था तथा आदम का ज्येष्ठ पुत्र "शिथ" भी भारत में अयोध्या में दफनाया हुआ है.ये सब बातें मुसलमानों के द्वारा ही कही गई है,मैं नहीं कह रहा हूँ..

और ये "लबी बिन-ए-अख्तब-बिन-ए-तुर्फा" इस तरह का लम्बा-लम्बा नाम भी वैदिक संस्कृति ही है जो दक्षिणी भारत में अभी भी प्रचलित है जिसमें अपने पिता और पितामह का नाम जोड़ा जाता है..

कुछ और प्राचीन-कालीन वैदिक अवशेष देखिए... ये हंसवाहिनी सरस्वती माँ की मूर्त्ति है जो अभी लंदन संग्रहालय में है.यह सऊदी अर्बस्थान से ही प्राप्त हुआ था..

प्रमाण तो और भी हैं बस लेख को बड़ा होने से बचाने के लिए और सब का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ..पर क्या इतने सारे प्रमाण पर्याप्त नहीं हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अभी जो भी मुसलमान हैं वो सब हिंदु ही थे जो जबरन या स्वार्थवश मुसलमान बन गए..कुरान में इस बात का वर्णन होना कि "मूर्त्तिपूजक काफिर हैं उनका कत्ल करो" ये ही सिद्ध करता है कि हिंदु धर्म मुसलमान से पहले अस्तित्व में थे..हिंदु धर्म में आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा का कोई महत्त्व नहीं है,ईश्वर के सामने झुकना तो बहुत छोटी सी बात है..प्रभु-भक्ति की शुरुआत भर है ये..पर मुसलमान धर्म में अल्लाह के सामने झुक जाना ही ईश्वर की अराधना का अंत है..यही सबसे बड़ी बात है.इसलिए ये लोग अल्लाह के अलावे किसी और के आगे झुकते ही नहीं,अगर झुक गए तो नरक जाना पड़ेगा..क्या इतनी निम्न स्तर की बातें ईश्वरीय वाणी हो सकती है..!.? इनके मुहम्मद साहब मूर्ख थे जिन्हें लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..अगर अल्लाह ने इन्हें धर्म की स्थापना के लिए भेजा था तो इसे इतनी कम शक्ति के साथ क्यों भेजा जिसे लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..या अगर भेज भी दिए थे तो समय आने पर रातों-रात ज्यानी बना देते जैसे हमारे काली दास जी रातों-रात विद्वान बन गए थे(यहाँ तो सिद्ध हो गया कि हमारी काली माँ इनके अल्लाह से ज्यादा शक्तिशाली हैं)..एक बात और कि अल्लाह और इनके बीच भी जिब्राइल नाम का फरिश्ता सम्पर्क-सूत्र के रुप में था.इतने शर्मीले हैं इनके अल्लाह या फिर इनकी तरह ही डरे हुए.!.? वो कोई ईश्वर थे या भूत-पिशाच.?? सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि अगर अल्लाह को मानव के हित के लिए कोई पैगाम देना ही था तो सीधे एक ग्रंथ ही भिजवा देते जिब्राइल के हाथों जैसे हमें हमारे वेद प्राप्त हुए थे..!ये रुक-रुक कर सोच-सोच कर एक-एक आयत भेजने का क्या अर्थ है..!.? अल्लाह को पता है कि उनके इस मंदबुद्धि के कारण कितना घोटाला हो गया..! आने वाले कट्टर मुस्लिम शासक अपने स्वार्थ के लिए एक-से-एक कट्टर बात डालते चले गए कुरान में..एक समानता देखिए हमारे चार वेद की तरह ही इनके भी कुरान में चार धर्म-ग्रंथों का वर्णन है जो अल्लाह ने इनके रसूलों को दिए हैं..कभी ये कहते हैं कि धर्म अपरिवर्तनीय है वो बदल ही नहीं सकता तो फिर ये समय-समय पर धर्मग्रंथ भेजने का क्या मतलब है??अगर उन सब में एक जैसी ही बातें लिखी हैं तो वे धर्मग्रंथ हो ही नहीं सकते...जरा विचार करिए कि पहले मनुष्यों की आयु हजारों साल हुआ करती थी वो वर्त्तमान मनुष्य से हर चीज में बढ़कर थे,युग बदलता गया और लोगों के विचार,परिस्थिति,शक्ति-सामर्थ्य सब कुछ बदलता गया तो ऐसे में भक्ति का तरीका भी बदलना स्वभाविक ही है..राम के युग में लोग राम को जपना शुरु कर दिए,द्वापर युग में

कृष्ण जी के आने के बाद कृष्ण-भक्ति भी शुरु हो गई.अब कलयुग में चूँकि लोगों की आयु तथा शक्ति कम है तो ईश्वर भी जो पहले हजारों वर्ष की तपस्या से खुश होते थे अब कुछ वर्षों की तपस्या में ही दर्शन देने लगे..

धर्म में बदलाव संभव है अगर कोई ये कहे कि ये संभव नहीं है तो वो धर्म हो ही नहीं सकता..

यहाँ मैं यही कहूँगा कि अगर हिंदु धर्म सजीव है जो हर परिस्थिति में सामंजस्य स्थापित कर सकता है(पलंग पर पाँव फैलाकर लेट भी सकता है और जमीन पर पाल्थी मारकर बैठ भी सकता है) तो मुस्लिम धर्म उस अकड़े हुए मुर्दे की तरह जिसका शरीर हिल-डुल भी नहीं सकता...हिंदु धर्म संस्कृति में छोटी से छोटी पूजा में भी विश्व-शांति की कमना की जाती है तो दूसरी तरफ मुसलमान ये कामना करते हैं कि पूरी दुनिया में मार-काट मचाकर अशांति फैलानी है और पूरी दुनिया को मुसलमान बनाना है...

हिंदु अगर विष में भी अमृत निकालकर उसका उपयोग कर लेते हैं तो मुसलमान अमृत को भी विष बना देते हैं..

मैं लेख का अंत कर रहा हूँ और इन सब बातों को पढ़ने के बाद बताइए कि क्या कुरान ईश्वरीय वाणी हो सकती है और क्या इस्लाम धर्म आदि धर्म हो सकता है...?? ये अफसोस की बात है कि कट्टर मुसलमान भी इस बात को जानते तथा मानते हैं कि मुहम्मद के चाचा हिंदु थे फिर भी वो बाँकी बातों से इन्कार करते हैं..

इस लेख में मैंने अपना सारा ध्यान अरब पर ही केंद्रित रखा इसलिए सिर्फ अरब में वैदिक संस्कृति के प्रमाण दिए यथार्थतः वैदिक संस्कृति पूरे विश्व में ही फैली हुई थी..इसके प्रमाण के लिए कुछ चित्र जोड़ रहा हूँ...

-ये राम-सीता और लक्षमण के चित्र हैं जो इटली से मिले हैं.इसमें इन्हें वन जाते हुए दिखाया जा रहा है.सीता माँ के हाथ में शायद तुलसी का पौधा है क्योंकि हिंदु इस पौधे को अपने घर में लगाना बहुत ही शुभ मानते हैं.....



यह चित्र ग्रीस देश के कारिंथ नगर के संग्रहालय में प्रदर्शित है.कारिंथ नगर एथेंस से ६० कि.मी. दूर है.प्राचीनकाल से ही कारिंथ कृष्ण-भक्ति का केंद्र रहा है.यह भव्य भित्तिचित्र उसी नगर के एक मंदिर से प्राप्त हुआ है .इस नगर का नाम कारिंथ भी कृष्ण का अपभ्रंश शब्द ही लग रहा है..अफसोस की बात ये कि इस चित्र को एक देहाती दृश्य का नाम दिया है यूरोपिय इतिहासकारों ने..ऐसे अनेक प्रमाण अभी भी बिखरे पड़े हैं संसार में जो यूरोपीय इतिहासकारों की मूर्खता,द्वेशभावपूर्ण नीति और हमारे हुक्मरानों की लापरवाही के कारण नष्ट हो रहे हैं.जरुरत है हमें जगने की और पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति को पुनर्स्थापित करने की..

Thursday, September 1, 2011

Arvind Kejriwal Still A Govt Servant, Says Finance Ministry


Arvind Kejriwal, who is part of the troika advising Jan Lokpal Bill campaigner Anna Hazare, is technically still a government servant if the sources in the Union Finance Ministry are to be believed, reports the Tribune.

The 1992 batch Indian Revenue Service (IRS) officer had resigned in February 2006, six months before he got his Ramon Magsaysay award in August 2006 for his work in bringing the Right to Information Act.

But the government is yet to accept his resignation because he is yet to clear his “dues” to it, claim official sources.

Apparently, Kejriwal had taken a two-year sabbatical in 2000 to study abroad and availed himself of “study leave” — a facility that the government grants to its employees with full pay.

He extended his two years of paid leave from the Income Tax Department by another two years, this time without pay.

The employee, however, has to sign a bond that on return from the study leave he or she would render at least three years of service to the government or refund the pay and allowances.

Although Kejriwal is said to have made such a commitment, he did not keep it when he decided to resign from the job before completing the three-year period.

When he was asked to repay the amount of about Rs 3 lakh, the officer sought a waiver of the amount taking a plea that he did not have the money to pay to the government.

The Department of Personnel, the nodal ministry that handles all training-related issues, demurred.

The stand-off continues and the interest of the outstanding amount has accumulated, putting the dues at several lakhs now.

The Tribune report said it tried to contact Kejriwal for his version but failed.

The consequence of this is that Kejriwal continues to be a “government servant” and the Union Finance Minister Pranab Mukherjee, whom he negotiated with as part of Team Anna, is technically still his “boss”.

An officer of the Central Board of Direct Taxes (CBDT) said, “It was certainly amusing seeing Kejriwal talking tough with government negotiators.”

Ironically, if Kejriwal ever gets tired with his activism, he can even rejoin the revenue service. He will even be eligible for pension when he resigns once again, if he so chooses.

That is because the Seventh Pay Commission has granted pension even in cases of employment of less than 20 years.

“If Kejriwal continues to refuse to pay his dues that he owes to the treasury, the North Block -- in the current scenario -- will have no option but to take disciplinary action against him,” the CBDT official said.

The Hisar-born Kejriwal set up the Public Cause Research Foundation (PCRF) soon after he resigned.

He donated the prize money of his Magsaysay award as corpus fund for the PCRF, which works to collect, research, analyse and disseminate information about various aspects of governance.

Interestingly, Kejriwal’s most visible NGO Parivartan -- policy change agent -- was set up by him in 2000, when he was still in service, says The Tribune report.

Wednesday, August 31, 2011

टीम अन्ना का कोई आया?


मौत से पहले दिनेश ने पूछा था, ”टीम अन्ना का कोई क्यों नहीं आया?”

दिनेश यादव का शव जब बिहार में उसके पैतृक गांव पहुंचा तो हजारों की भीड़ ने उसका स्वागत किया और उसकी मौत को ‘बेकार नहीं जाने देने’ का प्रण किया। लेकिन टीम अन्ना की बेरुखी कइयों के मन में सवालिया निशान छोड़ गई। सवाल था कि क्या उसकी जान यूं ही चली गई या उसके ‘बलिदान’ को किसी ने कोई महत्व भी दिया?

गौरतलब है कि सशक्त लोकपाल पर अन्ना हजारे के समर्थन में पिछले सप्ताह आत्मदाह करने वाले दिनेश यादव की सोमवार को मौत हो गई थी। पुलिस के मुताबिक यादव ने सुबह लोक नायक अस्पताल में दम तोड़ दिया। यादव के परिवारजनों को उसका शव सौंप दिया गया था जो बिहार से दिल्ली पहुंचे थे।

पुलिस के मुताबिक यादव के परिवार वाले उसके अंतिम क्रिया के लिए पटना रवाना हो चुके हैं । उधर, कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो 32 वर्षीय यादव की मौत पिछले सप्ताह ही हो चुकी थी। हालांकि पुलिस ने इन रिपोर्ट से इनकार किया है। गौरतलब है कि 23 अगस्त को दिनेश ने राजघाट के पास अन्ना के समर्थन में नारे लगाते हुए खुद पर पेट्रोल छिड़क आग लगा ली थी। 70-80 प्रतिशत जल चुके दिनेश को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बताया जाता है कि कुछ डॉक्टरों और प्रत्यक्षदर्शी अस्पताल कर्मियों से दिनेश ने आखिरी दिन तक पूछा था कि क्या उससे मिलने अन्ना की टीम से कोई आया था?

दिनेश यादव का शव जब पटना के निकट दुल्हन बाजार स्थित उनके गांव सर्फुदीनपुर पहुंचा तो पूरा गांव उमड़ पड़ा था। सब ने शपथ ली है.. इस मौत को जाया नहीं जाने देंगे। एक पत्रकार ने फेसबुक पर लिखा है, ”मुझे लगता है टीम अन्ना को इस नौजवान के परिवार की पूरी मदद करनी चाहिए। उनके घर जाकर उनके परिवारवालों से दुख-दर्द को बांटना चाहिए।”

दिनेश के परिवार के लोग बेहद गरीब और बीपीएल कार्ड धारक हैं। कई पत्रकारों का भी कहना है कि सहयोग के लिए अगर कोई फोरम बनेगा तो वे भी शामिल होने को तैयार हैं। दिनेश के तीन बच्चे हैं। उसकी पत्नी का रो रो कर बुरा हाल है और वह कई बार बेहोश हो चुकी है। उसके बाद परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है।

उधर अन्ना हज़ारे अनशन टूटने के तीसरे दिन भी गुड़गांव के फाइव स्टार अस्पताल मेदांता सिटी में स्वास्थ लाभ लेते रहे।

Sunday, August 28, 2011

राईट टू रिकाल-लोकपाल..


`राईट टू रिकाल-लोकपाल` - लोकपाल / जनलोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है

अध्याय 32 - `जनता द्वारा राईट टू रिकाल-लोकपाल` - लोकपाल / जनलोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है `भ्रष्ट लोकपाल / जनलोकपाल को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार`



स्वामी दयानद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक `सत्यार्थप्रकाश` के अध्याय 6 के पहले पन्ने में कहा है कि “राजा प्रजा-अधीन होना चाहिय और यदि राजवर्ग प्रजा-अधीन नहीं होगा , तो जैसे माँसाहारी पशु दूसरे छोटे पशुओं को खा जाते हैं, उसी तरह राजवर्ग नागरिकों को लूट लेगा और देश को बरबाद कर देगा “ |



यहाँ `राजवर्ग` का अर्थ प्रशासन करने वाले , यानी मंत्री,जज और अफसर हैं | और `अधीन` का अर्थ मंत्रियों, जजों और अफसरों को बदलना/सज़ा देना है |



ये लोकपाल के लिए भी लागू होता है | यदि लोकपाल प्रजाधीन नहीं है, तब लोकपाल धन-लोकपाल हो जायेगा, यानी रिश्वत लेकर भ्रष्ट हो जायेगा | विदेशी कंपनियों से रिश्वत लेकर विदेशी बैंक में पैसा रखेगा, और उसे कभी भी सज़ा नहीं होगी क्योंकि विदेशी बैंक, बैंक खाते के रिकोर्ड नहीं देते और कोई सबूत नहीं होगा लोकपाल के खिलाफ | इसके बावजूद, अन्ना और `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन ` के सबसे बड़े नेताओं का अभी तक कोई आशावादी जवाब नहीं आया है `प्रजा अधीन-लोकपाल` और पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम) के खंड/धाराओं पर |



(32.1) माननीय अन्ना जी, कृपया पारदर्शी शिकायत/सुझाव प्रणाली के खंड/धारा और राइट टू रिकॉल लोकपाल खंड/धारा को जनलोकपाल बिल में जोड़े





वंदे मातरम |

मैं अन्ना जी से निवेदन करता हूँ की वे इन खंडों को सम्मिलित करें क्योंकी वे सरकार के द्वारा नियुक्त लोकपाल ड्राफ्ट समिति के सदस्य थे और सरकार से बातचीत कर रहे हैं (अगस्त 24,2011 की तारीख को) I मेरे विचार से, इन खण्डों से पारदर्शिता बढ़ेगी और लोकपाल के भ्रष्ट और तानाशाही होने की सम्भावना को कम करेगी Iअधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) इन प्रस्तावित ड्राफ्ट पर www.righttorecall.info/004.h.pdf में दिए गए हैं | इस लेख्य पत्र को लोकपाल परामर्श वेबसाइट पर प्रस्तुत किया गया है जिसका सिरिअल नम्बर है- #A247LB I यदि आपको सुझाव अच्छे लगे जो यहाँ दिए गए हैं, अच्छे लगें , तो कृपया इसे (#A247LB) अन्नाजी को भेजिए |





1) मैं सबसे निवेदन करता हूँ की निम्नलिखित सन्देश को लोकपाल परामर्श साईट पर पोस्ट करे या अन्नाजी को पोस्टकार्ड लिखें-

माननीय अन्नाजी,

मेरी 3 विनती है आपसे –



1. कृपया नागरिकों को देखने दीजिए जो सुझाव दिए जा रहा हैं, ड्राफ्ट कमिटी के वेबसाइट पर और उन सुझावों पर अन्य लोगों अपने कमेन्ट डाल सकें , ऐसी व्यवस्था करें |

2. कृपया वे खंड/धारा जोड़े लोकपाल बिल में ,जिससे यह सुनिश्चित हो कि नागरिक एक एफिडेविट लोकपाल के वेबसाइट पर रख सकें और अन्य नागरिक अपना नाम उसके साथ जोड़ सकें, उस एफिडेविट का समर्थन करने के लिए I

3. कृपया राइट टू रिकॉल खंड/धारा को आज ही जोड़े ,अगले जन्म में नहीं I बिना राइट टू रिकॉल जन लोकपाल संभव है कि वो धन लोकपाल बन जाएगा I नागरिकों कों 10 लोकपाल सदस्य और एक लोकपाल अध्यक्ष में से एक को के द्वारा बदलने का अधिकार हो I

नमस्कार, _________________________(अपना नाम)



(32.2) तीन पारदर्शी शिकायत/सुझाव प्रणाली के खंड/धारा



निम्नलिखित खंड/धारा जोड़े जाने के लिए प्रस्तावित हैं लोकपाल बिल में, शिकायत/सुझाव प्रणाली में पारदर्शिता देने के लिए |



धारा–NN : पारदर्शी शिकायत/सुझाव प्रणाली के खंड/धारा

खंड/धारा # -(अधिकारी जिसके लिए निर्देश है)

प्रक्रिया/पद्धति



खंड/धारा 1- (कलेक्टर(या उसके द्वारा नियुक्त कार्यकारी मेजिस्ट्रेट) को निर्देश)

राष्ट्रपति के द्वारा यह आदेश दिया जाता है कि : यदि कोई दलित वोटर या वरिष्ठ वोटर या गरीब वोटर या किसान वोटर या अन्य नागरिक वोटर उनके जिला में यदि कोई शिकायत देना चाहता है लोकपाल को ,तो वह कलेक्टर (या उसके द्वारा नियुक्त कार्यकारी मेजिस्ट्रेट) को शिकायत वेबसाइट पर रखने की विनती करेगा| कलेक्टर या उसका द्वारा नियुक्त कार्यकारी मेजिस्ट्रेट एक सीरियल नंबर/क्रमांक संख्या देकर वह एफिडेविट लोकपाल के वेबसाइट पर रखेगा रु. 20 प्रति पन्ना लेकर I एफिडेविट को कार्यकारी मेजिस्ट्रेट के मुहर लगाने से पहले ही तैयार कर लेना पड़ेगा जो की रु. 20 में लिया जाएगा और दो साक्षी द्वारा हस्ताक्षर किये गए हों I शिकायत करने वाला और दोनों साक्षीयो के पास मतदाता पहचान पत्र होना अनिवार्य है I



खंड/धारा 2- (तलाटी/पटवारी/गांव के अधिकारी/लेखपाल (या उसका क्लर्क) को निर्देश)

राष्ट्रपति पटवारी को यह आदेश देता है की :





(2.1) यदि कोई दलित वोटर या वरिष्ठ वोटर या गरीब वोटर या किसान वोटर या अन्य नागरिक वोटर अपने मतदाता पहचान पत्र के साथ आता है और स्पष्ट रूप से किसी शिकायत ,जो लोकपाल के वेबसाइट पर दर्ज है ,पर अपना हाँ/ना करवाना चाहता है, तो पटवारी उसका हाँ/ना दर्ज करेगा लोकपाल के वेबसाइट पर ,उस नागरिक के मतदान पहचान पत्र/वोटर ID के साथ और उससे 3 रुपये की फी/शुल्क लेकर रसीद देगा I

(2.2) नागरिक अपने हाँ/ना को बदल भी सकता है पटवारी को रु. 3 की फी देकर I

(2.3) `गरीबी के नीचे रेखा`(बी.पी.एल) कार्ड धारक के लिए यह फी/शुल्क रु 1. होगी I



खंड/धारा 3-( प्रत्येक नागरिक, लोकपाल)



यह खंड/धारा केवल पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए ही है Iयह मत-संग्रह/रेफेरेंडम नहीं है I हाँ/ना लोकपाल इत्यादि पर बंधनकारी/बाध्य नहीं है I यदि “एक निश्चित संख्या” से ज्यादा महिला वोटर, दलित वोटर ,वरिष्ठ नागरिक वोटर, गरीब वोटर, किसान वोटर या अन्य नागरिक वोटर `हाँ` दर्ज करवाते हैं किसी दी गयी एफिडेविट पर ,तो लोकपाल कार्यवाही कर सकता है दो महीने में या उसको ऐसा करने की जरुरत नहीं है I या तो लोकपाल इस्तीफा दे सकता है I “निश्चित संख्या” का निर्णय लोकपाल करेगा I इसमें लोकपाल का निर्णय अंतिम होगा Iऔर प्रत्येक नागरिक से यह ध्यान देने की विनती है कि यह प्रक्रिया/पद्धति लोकपाल चयन समिति को सुझाव देने के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं I



ये पारदर्शी शिकायत प्रणाली/सिस्टम ये सुनिश्चित करेगा कि नागरिकों की शिकायत दृश्य हो और जाँची जा सके कभी भी , कहीं भी और किसी के भी द्वारा ताकि कोई नेता, कोई बाबू (लोकपाल आदि), कोई जज या मीडिया उस शिकायत को दबा नहीं सके |

ये सैक्शन सुनिश्चित करेगा कि यदि लोकपाल करोड़ों लोगों की शिकायत को नजरंदाज कर रहा है तो उसकी पोल खुल जायेगी और उसकी पोल खुल सकती है इसलिए वो करोडो की शिकायतें को नजरंदाज नहीं करेगा |

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प्रश्न : क्या कोई व्यक्ति मतदाताओं को खरीद सकता है ऊपर दिए हुए प्रक्रिया/पद्धति में ?

उत्तर : नहीं | कृपया (2.2) देखिये Iयदि ऐसा मान लें कि कोई धनी/पैसे वाला व्यक्ती 100 रुपया देता है एक करोड नागरिकों को `हाँ` दर्ज करवाने के लिए तो खंड/धारा 2.2 के अनुसार वोटर अपने `हाँ` दर्ज किये हुए को अगले दिन बदल सकता है I अब यदि 1000 धनी व्यक्ती मिलकर अपना सारा पैसा भी खर्च करें, फिर भी वे हर नागरिक को प्रतिदिन 100 रुपया नहीं दे सकते I इसी लिए `हाँ` दर्ज करवाने के लिए किसी को खरीदना, ऊपर दिए हुए पारदर्शी शिकायत प्रणाली में संभव नहीं है I

प्रश्न : खंड/धारा-2 का महत्व क्या है ?

उत्तर : लोकपाल बिल पर ध्यान दीजिए जिसमें लिखा है : लोकपाल के कर्मचारी के विरुद्ध शिकायत वेबसाइट पर रखी जाएगी I अब यदि 1,00,000 नागरिकों की एक ही शिकायत है तो ? तो क्या हर कोई शिकायत की कॉपी भेजेंगे लोकपाल को ? इससे पूरी तरह लोकपाल का कार्यलय शिकायतों से भर जाएगा I और क्या होगा यदि एक करोड नागरिकों की शिकायत एक ही है लोकपाल के विरुद्ध ? तो क्या हर एक को लोकपाल के कार्यलय में व्यक्तिगत रूप से बुलाना पड़ेगा ? या कलेक्टर के कार्यलय में बुलाएं , शिकायत जमा करने के लिए ? यह क़ानून-व्यवस्था के समस्या को बढ़ावा देगा I खंड/धारा-2 समस्याओं को सरल करेगा – कुछ व्यक्ती अपने शिकायत को जमा करेंगे और बाकि सभी तलाटी के कार्यलय जाकर अपना नाम शांतिपूर्वक जोड़ देंगे I

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उत्तर के लिए कृपया www.righttorecall.info/004.h.pdf देखें |



(32.3) राइट टू रिकॉल खंड/धारा - दस में से एक लोकपाल को बदलने का अधिकार नागरिकों को होना चाहिए



मान लीजिए कि आपकी एक फैक्ट्री/कंपनी है जिसमें 100 कर्मचारी हैं और सरकार एक कानून बनाती है की आप किसी भी कर्मचरी को ना ही निकाल सकते और ना नहीं निलंबित कर सकता हैं अगले 5 से 25 वर्षों तक उच्च न्यायलय/सुप्रीम-कोर्ट के बिना सहमति लिए हुए I तब अनुशासनहीनता बढ़ेगी या कम होगी ? हम नागरिक 10 लोकपाल को नियुक्त कर रहे हैं और जनलोकपाल ड्राफ्ट यह कहता है की हम नागरिक उन 10 में से 1 लोकपाल को भी नहींनिकाल सकते हैं बिना उच्चतम न्यायलय के न्यायाधीश की अनुमति के बिना !!



तो मेरा यह सुझाव है की कम से कम 10 में से 1 लोकपाल नागरिकों द्वारा हटाने/बदलने का अधिकार होना चाहिए यदि सभी 10 को न बुलाया जा सके I `सिविल सोसाइटी` में से अधिकतर यह विश्वास करते हैं कि हम आम नागरिक किसी बेईमान को ही नियुक्त करेंगे I पहले तो ऐसा है नहीं,लेकिन यदि उनकी बात मानें तो भी 10 में से 1 ही बेईमान होगा I बाकि बचे हुए लोकपाल नियुक्त किये जाएँगे `खोज और चयन समिति` के द्वारा और इसी लिए वो सभी ईमानदार होंगे I तो केवल एक बेईमान लोकपाल अधिक हानि नहीं पहुंचा सकता I तो 10 में से 1 के ऊपर राइट टू रिकॉल/`भ्रष्ट कों बदलने का आम नागरिकों का अधिकार` का विरोध क्यों है ?



धारा-NN : नागरिक का लोकपाल को बदलने/निकालने/ख़ारिज करने/रखने का अधिकार (नागरिक का राईट टू रिकाल/रिजेक्ट/रिटेन लोकपाल सदस्य)

खंड/धारा #-(अफसर जिसके लिए निर्देश)

प्रक्रिया/पद्धति



खंड/धारा 1-

नागरिक शब्द का अर्थ होगा रजिस्ट्रीकृत मतदाता/रजिस्टर्ड वोटर I यह पद्धति लागू होगी लोकपाल के केवल एक सदस्य के ऊपर जिसे `नागरिक द्वारा नियुक्त/रखा गया लोकपाल सदस्य` भी कहा जाता है I शुरुवात में वह नियुक्त किया जएगा लोकपाल चयन समिति द्वारा I इस धारा में “कर सकता है” का मतलब “ कर सकता है या करने की जरुरत नहीं है “ है और इसका मतलब किसी प्रकार से बाध्य/बंधनकारी नहीं है |



खंड/धारा 2-( कलेक्टर को निर्देश)

राष्ट्रपति कलेक्टर को यह निर्देश देता है की यदि कोई भरतीय नागरिक जिसकी आयु 40 वर्ष से अधिक हो और वह लोकपाल समिति/कमिटी में `नागरिकों द्वारा नियुक्त/रखा गया लोकपाल सदस्य` बन्ने की इच्छा रखता है और वह जिला कलेक्टर के कार्यालय में स्वयं/खुद आता है, जिला कलेक्टर उस उम्मीदवार को स्वीकार करेगा लोकपाल का सदस्य के लिए, सांसद चुनाव के जमा राशि जितनी राशि जमा करने के बाद I कलेक्टर उसके नाम और क्रमांक संख्या/सीरियल नंबर लोकपाल के वेबसाइट पर रखेगा | कोई भी चिन्ह नहीं दिया जायेगा |

खंड/धारा 3-(तलाटी या पटवारी या लेखपालको निर्देश)

यदि किसी जिले का कोई नागरिक , अपने नजदीक के तलाटी के कार्यालय जाकर 3 रुपये का शुल्क/फी देकर और किसी भी 5 व्यक्ति को `नागरिक द्वारा रखे गए/नियुक्त लोकपाल सदस्य` के लिए पसंद/अनुमोदन दे सकता है, तलाटी उसके अनुमोदन को कम्पुटर पर रखेगा और उसे एक रसीद देगा जिसमें समय/दिनांक और व्यक्ती की भी पसंद/अनुमोदन लिखी होगी I` गरीबी रेखा से नीचे` (बी पी एल) राशन कार्ड वाले के लिए शुल्क/फी रु. 1 होगा I



खंड/धारा 4-(पटवारी को निर्देश)

पटवारी या तलाटी लोकपाल के वेबसाइट में नागरिको की पसंद/अनुमोदन को रखेगा नागरिको के मतदान-पत्र संख्या के साथ I



खंड/धारा 5-(पटवारी को निर्देश)

चुनाव कमिटी/समिति 10 लोकपाल नियुक्त करेंगे और ऊपर दिए हुए प्रस्ताव को जोड़कर 10 में से किसी 1 लोकपाल को नागरिकों द्वारा बदला जा सकता है I और ऐसी ही एक प्रक्रिया/पद्धति है जिसमे नागरिक `ना` रजिस्टर दर्ज करके `राइट टू रिजेक्ट` लोकपाल की तरह भी उसे प्रयोग कर सकते हैं|



खंड/धारा 6-(लोकपाल को निर्देश)

प्रत्येक महीने की 5 वीं तारीख को लोकपाल अध्यक्ष पिछले महीने के आखरी दिन तक के अनुमोदन/पसंद को वेबसाइट पर रखेगा I



खंड/धारा 7-( लोकपाल चयन समिति को निर्देश)

यदि कोई उम्मीदवार को 24 करोड से अधिक अनुमोदन/पसंद मिले और वो वर्त्तमान `नागरिकों द्वारा रखा गया/नियुक्त लोकपाल सदस्य` के अनुमोदन से एक करोड़ भी ज्यादा है ,तब लोकपाल चयन समिति वर्तमान `नागरिकों द्वारा रखे गए/नियुक्त लोकपाल सदस्य` को इस्तिफा देने के लिए कह सकता है और सबसे द्वारा अनुमोदन प्राप्त उम्मीदवार को लोकपाल का `नागरिकों द्वारा रखे गए/नियुक्त लोकपाल सदस्य` बनाएगा I लोकपाल चयन समिति 24 करोड की सीमा रेखा को कम या बढ़ा सकता है 12 करोड और 36 करोड के बीच |



खंड/धारा 8-(`नागरिक द्वारा रखे गए लोकपाल सदस्य` को बनाये रखने का अधिकार)

नागरिक यह प्रक्रिया/पद्धति का प्रयोग किसी `नागरिक द्वारा रखे गए लोकपाल सदस्य` को बनाये रखने के लिए या वापस लाने के लिए, यदि कोई `नागरिक द्वारा रखे गए लोकपाल सदस्य` को निकाल दिया गया था परन्तु नागरिक उसे पद पर बनाये रखना चाहते हैं I अतः यह खंड/धारा `लोकपाल को बनाये रखने का अधिकार`(राईट टू रिटेन) के लिए भी निर्दिष्ट किया जाता है/जाना जायेगा I



खंड/धारा 9-( लोकपाल को ख़ारिज करने का अधिकार(राईट टू रिजेक्ट))

यदि कोई नागरिक पटवारी के दफ्तर जाकर और किसी लोकपाल के कमिटी/समिति के सदस्य जो नागरिकों द्वारा रखा गया है ,का नाम लेकर उसके विरोध में `ना` दर्ज करवाना चाहे तो पटवारी उसका नाम दर्ज करेगा, मतदाता संख्या/नंबर और उम्मीदवार की संख्या/नंबर और 3 रुपया का शुल्क/ फी लेकर उसे रसीद देगा I और यदि 24 करोड नागरिक उस `नागरिकों द्वारा रखा गया लोकपाल सदस्य` के ऊपर `ना` दर्ज करवाते हैं, तो लोकपाल चयन समिति उसे लोकपाल सदस्य समिति से इस्तीफा देने के लिए विनती कर सकती है I



खंड/धारा 10-( कलेक्टर को निर्देश)

यदि कोई नागरिक इस कानून में बदलाव करना चाहे, तो वे अपना एफिडेविट जिला कलेक्टर के दफ्तर पर जमा करेगा और जिला कलेक्टर या उसके क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रुपये प्रति पन्ना का शुल्क/ फी लेकर लोकपाल के वेबसाइट पर रखेगा |



खंड/धारा 11-( तलाटी या पटवारी को निर्देश)

यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी खंड/धारा के विरोध दर्ज करवाना चाहे या किसी ऊपर दिए हुए खंड/धारा के द्वारा गए किसी जमा किये हुए एफिडेविट पर अपना हाँ/ना दर्ज करवाना चाहे तो वह तलाटी के दफ्तर जाकर ,अपने मतदान पत्र लेकर, तलाटी को 3 रुपये का शुल्क/ फी देना पड़ेगा | तलाटी हाँ/ना को लोकपाल के वेबसाइट पर दर्ज करेगा और उसे रसीद देगा |

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प्रश्न : क्या कोई व्यक्ती मतदाताओं को खरीद सकता है ऊपर दिए हुए प्रक्रिया/पद्धति में ?

उत्तर : नहीं | क्यों? Iयदि ऐसा मान लें कि कोई धनी/पैसे वाला व्यक्ती 100 रुपया देता है एक करोड नागरिकों को `हाँ` दर्ज करवाने के लिए तो खंड/धारा 5 के अनुसार वोटर अपने `हाँ` दर्ज किये हुए को अगले दिन बदल सकता है I अब यदि 1000 धनी व्यक्ती मिलकर अपना सारा पैसा भी खर्च करें, फिर भी वे हर नागरिक को प्रतिदिन 100 रुपया नहीं दे सकते I इसी लिए `हाँ` दर्ज करवाने के लिए किसी को खरीदना, ऊपर दिए हुए राईट टू रिकाल/`भ्रष्ट कों नागरिकों द्वारा बदले जाने का अधिकार`में संभव नहीं है I



प्रश्न : क्या करोडो नागरिक एक लोकपल उम्मीदवार कों पसंद करेंगे/अनुमोदन देंगे ?

उत्तर : निर्भर करता है कि लोकपाल कितने बुरे हैं और अच्छे विकल्प कितने हैं Iकुछ 60% से 75% नागरिक लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोट देते हैं बावजूद इसके कि उनके सामने जो विकल्प होते हैं, उनसे कोई नागरिकों कों कोई आशा नहीं होती Iइससे यह पता चलता है कि नागरिक बदलाव करने के लिए पहल जरूर करते हैं Iयदि विकल्प में उम्मीदवार होनहार/आशाजनक हैं, और यदि लोकपाल भ्रष्ट है तो नागरिक बदलाव करने के लिए पहल करेंगे I



प्रश्न : राइट टू रिकॉल जैसे कानून को अमरीका जैसे शिक्षित देश में ही सिमित रखना चाहिए न की भारत जैसे अनपढ़ देश में

उत्तर : अमरीका के पास अच्छी शिक्षा है क्योंकि वहाँ के नागरिकों के पास उनके जिला शिक्षा अधिकारी पर राइट टू रिकॉल है !! पर हमारे पास जिला शिक्षा अधिकारी पर राइट टू रिकॉल नहीं है और इसी कारण भ्रष्ट शिक्षा, शिक्षा के ऊपर खर्च होने वाले राशि को गायब कर देता है इसिलए अधिकतर नागरिक अशिक्षित रह जाते हैं I जब अमेरिका में राईट तो रिकाल आया था, वहाँ शिक्षित लोग बहुत कम थे |



राईट टू रिकाल और पारदर्शी शिकायत प्रणाली पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिए www.righttorecall.info/004.h.pdf देखें |



(32.4) पारदर्शी शिकायत/सुझाव प्रणाली के खंड/धारा पर अधिक जानकारी





वर्ष 2004 में मैंने अनेक कार्यकर्ताओं को सुझाव दिया कि हमें पारदर्शी शिकायत प्रणाली को भी उस समय के प्रस्तावित `सूचना के अधिकार अधिनियम(आर.टी.आई)` में जोड़ना चाहिए I अन्य शब्दों में, `सूचना के अधिकार` में एक खंड/धारा जोड़ीं जाये कि यदि कोई व्यक्ति/आवेदनकर्ता चाहता है कि उसकी शिकायत कोई सार्वजनिक वेबसाइट(जैसे प्रधान-मंत्री/लोकपाल की वेबसाइट) पर आये और जागरूक नागरिक अपना नाम तलाटी/पटवारी/लेखपाल के दफ्तर जाकर जोड़े Iमुझे यह उत्तर मिला की अभी के लिए `सूचना के अधिकार अधिनियम(आर.टी.आई)` बिना पारदर्शी शिकायत प्रणाली के रखेंगे और इसे हम बाद में जोड़ देंगे I 6 वर्ष बीत चुके है लेकिन वो `बाद` हमें अभी तक देखने को नहीं मिला I तो इस समय मैं सभी नागरिकों से विनती करता हूँ कि सुनिश्चित करें कि यह खंड/धारा 15 अगस्त के पहले तक जोड़ दिया जाए ना की बाद में | मैं पुनः विनती करता हूँ की आप सभी मेरे खंड/धारा का समर्थन न करे लेकिन 15 अगस्त के निश्चित समय के पहले कोई बेहतर खंड/धारा अवश्य लायें I मै विरोध करता हूँ ये तर्क का कि `प्रक्रियात्मक विवरण/जानकारी को अगले जन्म में आना चाहिए I मेरे विचार से सभी प्रक्रियात्मक विवरण/जानकारी 15 अगस्त के निर्धारित समय से पहले निश्चित कर लिए जाए I



लोकपाल बिल कहता है नागरिक अपने सुझावों को `खोज और चयन समितियों` में भेज सकते हैं I लेकिन इसके लिए कोई भी प्रक्रिया/पद्धति नहीं दी गयी है I मान लीजिए 1 लाख या 50 लाख या 20 करोड नागरिक अपने सुझाव भेजना चाहते हैं I सुझाव ई-मेल के द्वारा भेजना सही विकल्प नहीं होगा क्योंकी अनेक व्यक्ती हजारों जाली ई-मेल भेज सकते है I चिट्ठियाँ भेजना भी सही विकल्प नहीं होगा क्यूंकि `खोज और चयन समितियों` के पास इतना समय नहीं है की वह 1 लाख चिट्ठियों को खोले और पढ़े |और चिट्ठियों को नष्ट भी किया जा सकता है, `खोज और चयन समितियों` में पहुँचने के पहले | यदि `खोज और चयन समितियां` भ्रष्ट हों ,तो वे यह कह सकते हैं कि उन्हें किसी भी तरह के सुझाव नहीं मिली हैं | तो ये हमारा प्रस्ताव है की नागरिक एक एफिडेविट (अपनी सुझाव के साथ) जमा कर सकता है कलेक्टर के दफ्तर में और कलेक्टर उसे स्कैन करके लोकपाल की वेबसाइट पर रखेगा | यह सबसे अच्छा रास्ता है जो मैं सोच सकता हूँ , हालाँकि यदि कोई इससे अच्छी प्रक्रिया/पद्धति जनता है तो मैं उससे विनती करता हूँ की वह 15 अगस्त निर्धारित समय से पहले सबके सामने रखे, न कि अगले जन्म की प्रतीक्षा करे I



इस प्रस्ताव की दूसरी खंड/धारा यह है की नागरिक को यह अनुमति दी जाए कि कलेक्टर के दफ्तर में जमा कोई भी शिकायत पर अपने हाँ/ना को दर्ज कर सके ,तलाटी के दफ्तर जाकर | यह तब उपयोगी है जब हजारों, लाखों या करोड़ों नागरिकों की एक ही शिकायत है I वह सभी को एक सी शिकायत भेजने की जरुरत नहीं पड़ेगी I खंड/धारा 2 के हटने से केवल सिस्टम और देश को नुकसान हो जाएगा I



(32.5) राइट टू रिकॉल लोकपाल, राइट टू रिकॉल प्रधानमंत्री, राइट टू रिकॉल न्यायधीश इत्यादि पर अधिक जानकारी



राइट टू रिकॉल/प्रजा अधीन राजा/`भ्रष्ट को निकालने का अधिकार` कोई विदेशी विचार नहीं है I सत्यार्थ प्रकाश कहता है की राजा को प्रजा के अधीन होना ही चाहिए अन्यथा वह नागरिकों को लूट लेगा और और इस तरह देश का नाश हो जाएगा | दयानंद सरस्वती जी ने यह श्लोक अथर्ववेद से लिए हैं | तो राइट टू रिकॉल/प्रजा अधीन राजा कोई अमरीकी या विदेशी विचार नहीं है ,यह सम्पूर्ण भारतिय है I

अमरीका में नागरिकों के पास पुलसी कमिश्नर को निकलने का अधिकार है और यही एक मात्र कारण है की अमरीका के पोलिस में भ्रष्टाचार कम है इसी तरह अमरीका के नागरिकों के पास उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश और जिला न्यायधीशों को भी निकलने का अधिकार है |यही कारण है की कार्यवाही बहुत तेज होती है और अमेरिका के निचली अदालतों में भ्रष्टाचार बहुत कम है I अमरीका के नागरिकों के पास राज्यपाल, विधायक, जिला शिक्षा अधिकारी , मेयेर/महापौर, जिला/राज्य सरकारी दंडाधिकारी इत्यादि पर राइट टू रिकॉल है I यह ध्यान दें कि अमरीका में कोई भी लोकपाल (ओम्बुड्समेन/ प्रशासनिक शिकायत जाँच अधिकारी) नहीं है इसके बावजूद अमरीका के राज्य/जिलों में अधिकतर विभागों में भ्रष्टाचार कम है क्योकि अधिकतर राज्य/जिलो में राइट टू रिकॉल/`भ्रष्ट कों बदलने का अधिकार` है I वही अमरीका में केंद्र के मंत्रियों(सीनेटरों) और केन्द्र के अधिकारियो में भ्रष्टाचार अधिक मात्रा में है क्योंकि केंद्र के मंत्रियों और केन्द्र के अधिकारियो पर राइट टू रिकॉल नहीं है I





वर्ष 2004 में मैंने सुझाव दिया था कि हमें `राइट टू रिकॉल-सूचना अधिकार कमिश्नर(भ्रष्ट सूचना अधिकार कमिश्नर कों बदलने का नागरिकों का अधिकार)` के खंड/धारा `सूचना अधिकार अधिनियम(आर.टी.आई)` में लाया जाए अन्यथा ज्यादातर सूचना अधिकार कमिश्नर भ्रष्ट और बेकार/अयोग्य हो जाएँगे और सूचना अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई) के आवेदकों(उपयोग करने वाले) कों यहाँ-वहाँ भटकते ही रहना पड़ेगा जानकारी प्राप्त करने के लिए I लेकिन पुनः मुझे यह उत्तर मिला की हम एकता पर ही अधिक ध्यान देना चाहिए हम सूचना अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई) को बिना राइट टू रिकॉल के समर्थन करते हैं और अभी हम सूचना अधिकार कमिश्नर पर राइट टू रिकॉल का विरोध करते हैं हम सूचना-अधिकार कमिश्नर पर राइट टू रिकॉल बाद में लायेंगे Iयह बाद क्या है ? अगले जन्म में ? मेरे विचार से इस बार हमें यह मांग करनी होगी कि लोकपाल में राइट टू रिकॉल की खंड/धारा का ड्राफ्ट 15 अगस्त के पहले जुड जाना चाहिए I मै यह नहीं निवेदन/प्रार्थना करता हूँ कि मेरे राईट टू रिकाल-लोकपाल का ही समर्थन करें, मै यह विनती करता हूँ की आप इससे भी अच्छा प्रस्ताव प्रस्तुत करने की कोशिश करें I



कुछ व्यक्तियों ने जोर दिया है की वे राइट टू रिकॉल का समर्थन करते हैं पर वे लोकपाल में राइट टू रिकॉल लाने की चर्चा का भी विरोध करते हैं इस जन्म में Iवे यह बात पर जोर डालते हैं कि राइट टू रिकॉल ,सरपंच से शुरू होकर ऊपर की ओर जाना चाहिए | मुझे आश्चर्य है कि क्यों वे राइट टू रिकॉल लोकपाल पर नहीं लाना चाहते हैं वे कहते है कि यह पहले गांव और फिर तहसील और फिर जिला और फिर राज्य ,तब राष्ट्र स्तर पर लागू होना चाहिए I क्यों सर्वप्रथम केंद्र के लोकपाल पर नहीं मांग करते ?



उनका कहना कि राइट टू रिकॉल, सरपंच के स्तर पर ही होना चाहिए ना की केन्द्र/राज्य स्तर पर, यह तो ऐसा कहना हुआ की “एक रुपये का सिक्का लो और 100 रुपये , 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट को भूल जाओ ” और यह भी कहना है कि राइट टू रिकॉल आज से ही सरपंच पर ही होना चाहिए और राइट टू रिकॉल लोकपाल, राइट टू रिकॉल प्रधानमंत्री, राइट टू रिकॉल न्यायधीश पर बाद में लागू होना चाहिए | बाद में का अर्थ अगले जन्म भी हो सकता है |



राइट टू रिकॉल की अनुपस्थिति/गैर-हाजिरी में एक व्यक्ती जो पद में है , भ्रष्ट होकर सारी सीमाएं पार कर जाता है I उदाहरण के लिए , हाल ही में माननीय उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश (सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज) खरे ने एक स्विट्ज़रलैंड के अरबपति व्यक्ती को जिसने 38 वर्षीय बच्चियो का बलात्कार किया था और इसे वीडियो टेप किया था ,उसी निर्दयी व्यक्ती को जमानत दे दी थी I माननीय जज खरे ने वीडियो टेप होने के बावजूद उस अरबपति को जमानत दे दी जब कि निचली अदालत ने उसे अपराधी घोषित किया था I इस तरह के दुर्भाग्यपूर्ण फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज के ऊपर राइट टू रिकॉल न होने के कारण का फल है I इसी तरह यदि नागरिकों के पास लोकपाल को निकलने/बदलने का अधिकार ना हो तो वह भी माननीय सुप्रीम-कोर्ट के प्रधान जज की तरह भ्रष्ट/भाई-भतीजावाद वाला हो जाएगा I



अभी, `सिविल सोसाइटी` के कमिटी के सदस्य अभी पद में हैं और यह स्थिति में हैं कि वे पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम) और राइट टू रिकॉल-लोकपाल खंड/धारा को लोकपाल ड्राफ्ट में जोड़ सकते हैं I वह 5 मंत्री इस बात को स्वीकार कर या नहीं भी कर सकते है – यह एक अलग बात है I लेकिन यदि `सिविल सोसाइटी` के सदस्य खुद पारदर्शी शिकायत प्रणाली/ राइट टू रिकॉल-लोकपाल को 15 अगस्त के पहले जोड़ने का विरोध करेंगे, यह पूरी तरह दर्शाता है की राइट टू रिकॉल लाने की इनकी कोई मंशा नहीं है | मैं यह आशा करता हूँ की ऐसी बात न हो I



जय हिंद |



(32.6) लोकपाल बोल सकता है : तुमने शिकायत कभी नहीं भेजी |



हमने से कई लोगों ने ये देखा है कि सूचना अधिकार के लिए हम को एक जगह से दूसरी जगह भागना पड़ता है और सुचना अधिकार का कमिश्नर तारीख पर तारीख देता रहता है | अभी जनलोकपाल ड्राफ्ट कहता है कि परिणाम एक साल में आ जाएँगे | लेकिन ड्राफ्ट में, लोकपाल के खिलाफ कोई भी सज़ा नहीं बताई गयी , यदि लोकपाल मामले को सुलझाने के लिए 10 साल भी लगाता है | तो फिर, यदि हमारे लोकपाल ,हमारे प्रिय सूचना अधिकार के कमिश्नर जैसे ही हों , तो वे तारीख पर तारीख दे सकते हैं और सालों बिता सकते हैं | इसको रोकने के लिए कोई खंड हैं क्या ?



पहले , हम शिकायत करने के जनलोकपाल में दिए गए तरीके से शुरू करते हैं | उसमें लोकपाल को लिखित भेजनी होगी| मान लें कि आपने पचास पन्नों का पत्र रेजिस्ट्री से भेजा है , जिसमें शिकायत की अधिक जानकारी है | यदि लोकपाल शरद पवार जितना ईमानदार है ,तो फिर वो पहले 10 पन्ने निकाल देगा और तीन महीनों बाद, एक पत्र लिखेगा आपको कि “आपने पूरी शिकायत नहीं भेजी” |



इस तरह से ये एक चल/तरीका है जिसके द्वारा लोकपाल या लोकपाल का कोई भ्रष्ट कर्मचारी आप के साथ खेल सकता है , वो है कि “ ये आप की गलती है- आपने पूरी शिकायत नहीं भेजी” और फिर वो आप पर जुर्माना भी डाल सकता है , उसी तरह जैसे जज , जन-हित याचिका दायर करने वालों पर जुर्माना डालते हैं |



(32.7) प्रस्तावित प्रजा- अधीन लोकपाल के खंड को और अच्छे से समझाना चाहूँगा



प्रस्तावित प्रजा अधीन-लोकपाल के खंड जनलोकपाल के किसी भी खण्डों को समाप्त नहीं करेगा , यानी कि ये खंड सिर्फ जनलोकपाल या सरकारी लोकपाल के साथ जोड़े जाएँगे और जनलोकपाल या सरकारी ड्राफ्ट में से कुछ भी घटाया नहीं जायेगा | अब 24 करोड़ नागरिक कैसे निर्णय करेंगे कि कोई लोकपाल अच्छा है या नहीं इस पर निर्णय करता है कि आज का (वर्त्तमान) लोकपाल कितना अच्छा या बुरा है |



यदि आज का लोकपाल अच्छा है (या बुरा है ,लेकिन बुरा एक सीमा में है) , तो नागरिक कोई ध्यान नहीं देंगे | लेकिन यदि वर्त्तमान लोकपाल बहुत बुरा है, तो वो दूसरे लोकपाल के लिए देखेंगे/ढूंढेंगे | और इस प्रक्रिया/तरीके में पांच लोगों को स्वीकृति/समर्थन दे सकते हैं, इसीलिए एक अच्छे उम्मीदवार को समर्थन देने से दूसरे अच्छे उम्मीदवार को भी समर्थन दिया जा सकता है, ये कृपया ध्यान दीजिए |



और असल में , मुद्दा क्या है ? यदि नागरिकों के पास कोई व्यक्ति के लिए आम सहमति नहीं है, तो दूसरा व्यक्ति नहीं आएगा और बदलाव नहीं होगा | ये तो प्राकृतिक है | मुद्दा ये है कि क्या यदि नागरिकों कि कोई आम सहमति हो तो ? उदाहरण के लिए हम लोग अलग-अलग हैं लेकिन बहुत लोग `नरेंद्र मोदी ` को पसंद करते हैं | तो मेरे अनुसार आम सहमति हमेशा गायब नहीं रहेगी | और यदि आम सहमति है , तो क्या कोई दूसरे व्यक्ति को नहीं आने देना चाहिए ?



और कृपया अपना मन बनाएँ | एक तरफ कहते हैं --- अमीर आम सहमति बना कर मतदाताओं को खरीद लेंगे और अगले पल, हम सुनते हैं कि कोई आम सहमति नहीं होगी | जहाँ तक मैं सोचता हूँ , अमीर आदमी मतों को खरीद नहीं पाएंगे प्रस्तावित प्रजा अधीन-लोकपाल/राईट टू-लोकपाल की प्रक्रिया में, क्योंकि मतदातों को अपने मत/स्वीकृति रद्द करने की छूट है | इसलिए अमीर व्यक्ति को रोज 100 रुपये देना होगा करोड़ों लोगों को , जो संभव नहीं है ,यदि भारत के सारे अमीर भी एक साथ अपना पैसा लगाएं तो | तो पैसे से मतदातों को खरीदना प्रश्न से बाहर है |



इसी तरह , गुंडों और मीडिया द्वारा भी मतदाताओं को खरीदना संभव नहीं है क्योंकि गुंडे पालने के लिए भी पैसे लगते हैं और कोई महीनों के लिए इतने गुंडे नहीं रख सकता कि करोड़ों मतदातों को प्रभावित कर सके | और ये प्रक्रियाएँ आने पर मीडिया का `पैसे लेकर समाचार देना` बंद हो जायेगा क्योंकि पारदर्शी शिकायत प्रणाली (सिस्टम) खुद एक मीडिया होगा क्योंकि ये एक ऐसी जानकारी देगा जो कोई भी जांच सकता है , जो मीडिया नहीं देता |



प्रश्न- नागरिक लोकपाल के उम्मीदवार के बारे में कैसे जानेंगे ?

ये प्रक्रियाएँ/तरीके पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम) के साथ या द्वारा आएँगी | जिससे उसको ऐसी जानकारी मिलेगी जो वो स्वयं जांच सकता है क्योंकि हर शिकायत करता को अपना समर्थन देने के लिए अपना वोटर आई.डी और अंगुली की छाप देना होगा और वो सब वेबसाइट पर आ जायेगा |

इसीलिए फर्जी समर्थक ना के बराबर होंगे और मतदाता ये निर्णय कर सकता , इस के सहारे कि कौन सबसे अच्छा उम्मीदवार है, किसके खिलाफ सबसे कम शिकायतें आई हैं, किसको सबसे ज्यादा समर्थन मिले हैं , आदि |





(32.8) कैसे जनलोकपाल भारत को कमजोर बना सकता है और भारत विदेशी कंपनियों का गुलाम बनने में मदद कर सकती हैं



बहुत कम भारत के नागरिकों को ये सच्चाई समझ आई है – कि भ्रष्टाचार से दस गुना भारत में हो रहा है| क्या ? हमारी खेती, हथियार बनाने का सामर्थ्य/क्षमता और गणित/विज्ञानं की शिक्षा दिन बार दिन कमजोर हो रही है | ये इसीलिए क्योंकि विदेशी कम्पनियाँ, केंद्र और राज्य में हमारे मंत्रियों, बाबूओं को रिश्वत दे रही हैं , हमारी खेती, हथियार बनाने की ताकत और गणित/विज्ञान की शिक्षा को कमजोर बनाने के लिए | और जनलोकपाल इस स्थिति को और खराब बना सकती है | कैसे ?



लोकपाल चुनाव समिति में कोई 10-12 लोग हैं, जो बहू-राष्ट्रीय/विदेशी कम्पनियाँ आसानी से खरीद सकती हैं या धमकी दे सकती हैं , राडिया जैसे दलाल/बिचौलियों द्वारा | और इस तरह विदेशी कम्पनिय ये पक्का कर सकते हैं की विदेशी कंपनियों के एजेंट , साफ़-सुथरी छवि/नाम के साथ, लोकपाल बनें | इन लोकपाल के एजेंटों के साथ , विदेशी कंपनियां निचले स्तर के भ्रष्टाचार (कलेक्टर के स्तर के नीचे) को दबाएंगे, क्योंकि निचले स्तर के भ्रष्टाचार विदेशी कंपनियों को अधिक नुकसान करती हैं छोटे-माध्यम स्तर के व्यापारियों के मुकाबले | औरसाथ ही, लोकपाल खेती, हथियार बनाने की ताकत और गणित/विज्ञान शिक्षा को कमजोर बनने वाली नीतियां/तरीके को बढ़ावा देंगे , ताकि भारत और ज्यादा विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहें | विदेशी कम्पनियाँ ऐसी नीतियां को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं ? लोकपाल द्वारा बाबू, जज, मंत्रियों को परेशान करके(उनके खिलाफ झूठे मामले बनाकर) जो इन नीतियों/तरीकों का विरोध करते हैं और उन मंत्रियों, जज, बाबूओं का पक्ष/तरफदारी लेकर, जो ऐसी नितियों का समर्थन/मदद करते हैं |



(अलग से : मुझे समझाने दीजिए क्यों निचले स्तर का भ्रष्टाचार छोटे-माध्यम स्तर के व्यापारियों को फायदा करते हैं विदेशी कंपनियों के मुकाबले | मान लीजिए एक व्यक्ति दिल्ली, अहमदाबाद जैसे शहर में 5-10 होटलों का मालिक है | और एक और होटल खोलना चाहता है और स्थानीय अफसर उससे रिश्वत मांगते हैं, कहें 5 लाख की | तो वो रिश्वत दे देता है |



अब दूसरी और, एक विदेशी व्यापारी/मालिक अमेरिका में बैठा है और उसको भी एक और होटल खोलना है | मान लीजिए स्थानीय अफसरों को 5 लाख की रिश्वत चाहिए इस के लिए | अब विदेशी व्यापारी सीधे तो स्थानीय अफसर से सौदा नहीं कर सकता , इस के लिए उसे दलाल चाहिए | अब दलाल कहेंगे कि अफसर 50 लाख रिश्वत मांग रहे हैं !! विदेशी व्यापारी जो अमेरिका में बैठा है,को कोई साधन नहीं है , ये जानने का और वो 10 गुना रिश्वत देता है , उस के मुकाबले जो स्थानीय/देशी व्यापारी को देना होता है |



इसी तरह, छोटे-मध्यम व्यापारी बिक्री-कर/उत्पादन शुल्क आदि टैक्स/कर की चोरी करने में सफल हो जाता है, उस जगह भ्रष्टाचार होने के कारण, लेकिन विदेशी कम्पनियाँ 5-10 गुना ज्याद खर्चा करते हैं , क्योंकि उन्हें दलालों को बहुत हिस्सा देना पड़ता है | इसी लिए निचले स्तर की भ्रष्टाचार भारत के लिए लाभ/फायदा करेग , केवल तभी , यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रियों,सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जजों, सचिवों का भ्रष्टाचार कम हो तो | यदि मंत्रियों, जजों, आदि का भ्रष्टाचार वैसा ही रहता है और निचले स्तर का भ्रष्टाचार कम हो जाता है, तो इससे भारत देश को कोई फायदा नहीं होगा )



(32.9) क्या अन्ना राईट टू रिकाल (जनलोकपाल) के बारे में गंभीर है , और क्या जनलोकपाल/लोकपाल केवल टाइम-पास है ?



मान लीजिए मेरा समय बुरा है और मैंने आपसे एक लाख रुपये उधार लिए हैं | फिर मान लीजिए के मेरा समय बदल कर अच्छा हो जाता है , और आप मेरे से पैसे वापस देने के लिए कहते हैं| मैं आप को तुरंत एक लाख का एक चेक देता हूँ , लेकिन उसपर हस्ताक्षर करना भूल जाता हूँ| आप मेरे पास पचासों बार आते हैं और याद दिलाते हैं , लेकिन हर बार मैं चेक पर हस्ताक्षर करने से मना कर देता हूँ और कहता हूँ कि मैंने चेक तो आपको दे दिया है और आप का सारा पैसा दे दिया है |



हर बार ,जब मैं आप को चेक पर हस्ताक्षर करने के लिए कहता हूँ, तो आप कहते हैं “ क्या मैंने तुम्हें चेक नहीं दिया ?अब मुझे तरीका सम्बन्धी विवरण(जानकारी) और तकनिकी जानकारियां बता कर परेशान मत करो , आदि आदि | तो ऐसे में आप के पास , मेरे द्वारा दिया गया एक लाख का चेक है ,और उस चेक पर कोई हस्ताक्षर नहीं है !



आप उस चेक के बारे में क्या कहोगे ? आप मेरी पैसा लौटाने की नियत के बारे में क्या कहेंगे ? क्या आप मुझे ढोंगी/पाखंडी कहेंगे ?



उसी तरह अन्ना हजारे राईट टू रिकाल के ढोल इतनी जोरों से पीटता है कि बदल का गरजना भी कम पढ़ जाये | लेकिन अन्ना जी जनलोकपाल/लोकपाल ड्राफ्ट में राईट टू रिकाल-लोकपाल/प्रजा अधीन-लोकपाल के खंड डालने से मना करते हैं | बिकी हुई मीडिया (अखबार, टी.वी आदि) उनकी ये पोल नहीं खोलती है , और इसीलिए बहुत से लोगों को ये नहीं पता कि अन्ना ने राईट टू रिकाल-लोकपाल के खण्डों का विरोध किया है | क्या वो अगले जन्म में ये खंड डालेंगे ? ये मुझे नहीं पता | लेकिन अभी , अन्ना ने कोई भी रूचि नहीं दिखाई है प्रजा अधीन-लोकपाल/राईट टू रिकाल-लोकपाल के खंड डालने के लिए जनलोकपाल ड्राफ्ट में | तो आप अन्ना हजारे के नियत के बारे में क्या कहते हैं ? कृपया आप ये लेख सब को बांटें |और मैं `इंडिया अगेंस्ट कर्र्रप्शन` के कार्यकर्ताओं से विनती करूँगा कि अन्ना इस इमानदारी से पूछें कि प्रजा अधीन-लोकपाल/राईट टू रिकाल-लोकपाल पर अपना रुख स्पष्ट/साफ़ करें मीडिया के सामने | अन्ना क्यों मीडिया को नहीं कहते कि वे राईट टू रिकाल-लोकपाल/प्रजा अधीन-लोकपाल का विरोध करते हैं , जब वो असल में राईट टू रिकाल-लोकपाल की कलमों का विरोध कर रहे हैं ?



इसी तरह अन्ना ने जनलोकपाल बिल में `पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम)` के खंड डालने से मना कर दिया है , जो एक नागरिक को कोई मौजूदा शिकायत के साथ अपना नाम जोड़ने देता है , ताकि उसकी शिकायत ना दबे कोई नेता,बाबू, जज या मीडिया द्वारा और उसे नयी शिकायत डालने के लिए उसका धन बचे | ये ही है अन्ना की गरीब व्यक्तियों के लिए हमदर्दी !!



टाइम-पास जन लोकपाल बिल पर और जानकारी



1.) दिसम्बर-2010 में, अन्ना ने जनलोकपाल क़ानून के लिए मांग की | फरवरी-2010 तक , उन्होंने कानों की मांग की| मार्च-2010 के मध्य में, उन्होंने पलती मारी और समिति/कमीटी की मांग की !!! दूसरे शब्दों में टाइम-पास जून-जुलाई अन तक |

2.) उसके बाद सांसदों ने और सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने महीनो तक चर्चा की| अब , अन्ना कहते हैं कि वे दोबारा अनशन करेंगे यदि उनकी मांगें पूरी नैन हुई अगस्त-15 तक |

आशा करते हैं कि उनकी मांगें पूरी हो जायें |

3.) फिर बिल में लिखा है कि वो 4 महीनों बाद लागू होगा पारित होने के बाद !! तो ये एक और 4 महीनों का टाइम-पास |

4.) फिर बिल में लिखा है कि उप-राष्ट्रपति चुनाव समिति बनायेंगे और उप-राष्ट्रपति पर कोई समय-सीमा नहीं है | उसे महीनों लग सकते हैं चुनाव समिति बनने के लिए |

5.) क्या चुनाव समिति 11 लोकपाल की नियुक्ति तुरंत कर देगी? नहीं | जनलोकपाल बिल में लिखा है कि चुनाव समिति एक खोज-समिति बनाएगी !! फिर, चुनाव्व समिति को महीनों-महीनों लग सकते हैं खोज समिति चुनने के लिए |

6.) खोज समिति कई 100 की सूचि/लिस्ट को छांट कर 33 उम्मीदवार चुनेगी | फिर से , अन्ना का जनलोकपाल इसके लिए कोई समय सीमा नहीं देता | इस तरह खोज समिति को महीनों-महीनों लग सकते हैं |

7.)खोज समित इन 33 में से 11 चुनेगी | फिरसे कोई समय सीमा नहीं दी गयी है और ये भी एक टाइम-पास है | यदि 3-4 सदस्यों ने एक मिली-भगत बना ली और 33 नामों का विरोध किया , तो सभी चुने हुए नाम रद्द कर दिए जाएँगे !!

8.) इसके बाद लोकपाल आयेंगे और उनको छह महीने लग जाएँगे दफ्तर जमाने में और स्टाफ /कर्मचारियों की भर्ती करने में |

तो कुल मिलकर, हमारे पास कुछ नहीं , एक 2 सालों से लेकर दर्जों साल तक टाइम-पास ही है |

कोई हैरानी नहीं की सोनिया गाँधी ने अन्ना हजारे की मांगों को मान लिया क्योंकि ये टाइम-पास था | और कोई हैरानी नहीं कि सोनिया ने 5000 पुलिसवालों को रामदेवजी के समर्थकों को आधी रात को पीटने के लिए कहा और मंडप को जला देने के लिए कहा | क्योंकि रामदेव जी ने कहा “ मुझे काम चाहिए , समिति नहीं” जबकि अन्ना ने कहा कि मुझे (टाइम-पास) समितियां ही चाहिए |



(32.10) मुझ सताया गया है , इसीलिए मेरा प्रस्तावित क़ानून सही है !!



इतिहास को समझने के लिए सबसे अच्छा तरीका वर्त्तमान(आज) को समझना है |



बहुत लोगों ने मुझसे ये प्रश्न पूछा “ 1947 में, लाला लाजपत राइ, भगत सिंह जी, सुभाष चन्द्र बोस जी, आदि ने सही कहा था कि केवल बंदूकें ही हमें आजादी दे सकती हैं और फिर मोहनभाई(गाँधी) आये जिसने कहा कि हमको बंदूकें नहीं चाहिए, लेकिन चरखा-चलाने और भजन गाने से हमें आजादी मिलेगी | ऐसे फ़ालतू विचार पर लोगों ने विश्वास कैसे कर लिया | क्या सभी लोग उस समय मूर्ख थे ?”



असलियत ये है : 1930 और 1940 के दशक में भारतियों ने कभी भी ये फ़ालतू विचार को स्वीकार/माना नहीं | इसका सबूत ये है ---- सुभाष जी ने 1939 कांग्रेस के चुनाव जीते और मोहनभाई का चमचा पट्टाभाई हार गया , क्योंकि कांग्रेस कार्यकर्ता को कोई विश्वास नहीं था मोहनभाई के चरखा-चलाने और भजन-गाने में | लेकिन अंग्रेजों ने मीडिया को पैसे दिए मोहनभाई का गुण-गान करने के लिए और मोहनभाई के लिए एक भावनात्मक/भावुक समर्थन बनाया , और मोहनभाई ने इस भावात्मक समर्थन को ,चालाकी से प्रयोग/इस्तेमाल किया अपने खतरनाक “अहिंसा” सिद्धांत/असूल को आगे बढाने के लिए |



मैं क्यों `अहिंसा` को एक खतरनाक सिद्धांत/असूल कहता हूँ ?



इस अहिंसा के सिद्धांत/असूल के कारण , हिंदुओं ने फैसला किया कोई भी हथियार नहीं रखने के लिए | और केवल हथियार कि कमी के कारण, कुछ 10 लाख हिंदू मारे गए, कुछ एक करोड़ इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर हो गए और 4 करोड़ हिंदुओं ने अपनी सारी संपत्ति खो दी और 1947 के बंटवारे में , भागने के लिए मजबूर हो गए | और इसकी कोई गिनती नहीं कि कितने लाख महिलाएं/औरतों का बलात्कार हुआ, अफारण हुआ, जबरदस्ती/जबरन धर्म-परिवर्तन हुआ, और जबरदस्ती/जबरन शादी कराई गयी | ये मार-पीट और अव्यवस्था मोहनभाई के प्रस्तावित `अहिंसा` के बकवास के कारण ही था |



सब मिलाकर, अहिंसा सबसे ज्यादा खतरनाक असूल साबित हुआ जो भारत ने कभी देखा था |



क्या 1930 और 1940 के दशक में भारतीय इतने मूर्ख/बेवकूफ थे कि उन्होंने ये बकवास को देखा नहीं ? फिर क्यों उन्होंने इस बकवास के खिलाफ बोला नहीं ? ऐसा है, वे बेवकूफ थे | उन्होंने देखा था कि अहिंसा बकवास है, उन्होंने देखा था कि भजन-गाना, चरखा-चलाना बेकार है ,केवल टाइम-पास हैताकि कार्यकर्तओं के पास कम समय हो राजनीति और अन्य जरूरी विषय/मुद्दों पर बात करने के लिए | लेकिन समाचार-पत्रों ने इतना भावात्मक माहौल बना दिया मोहनभाई के लिए और मोहनभाई ने ये भावात्मक/भावुक माहौल का उपयोग/इस्तेमाल किया अपनी बात पर जोर डालने के लिए कि “ देखो, मैं अंग्रेजों द्वारा गिरिफ्तार किया जा रहा हूँ, मुझे सताया जा रहा है, इसीलिए मैं सही हूँ “ |



आज, हम वो ही घटना दोहराते हुए देख रहे हैं | कांग्रेस ने अन्ना हजारे को गिरफ्तार/कैद किया 6 बजे सुबह,आधी रात को नहीं, ताकि सारा देश टी.वी पर लाइव देख सके | उन्हें तिहार जेल में भेजा गया बजाय कि सरकारी गेस्ट-हाउस/अतिथि-गृह के , ताकि अन्ना हजारे जी को ज्यादा हमदर्दी/सहानुभूति मिले | हम सब को मालूम है कि कांग्रेस के बड़े नेता विदेशी कंपनियों के एजेंट है | ये सब ने अन्ना हजारे यानी मोहनभाई-2 के लिए हमदर्दी/सहानुभूति बड़ा दी| और अब अन्ना के साथी , चालाकी से ये हमदर्दी का दुरुपयोग कर रहे हैं “बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के जनलोकपाल” के लिए समर्थन दिखाने के लिए |

लगबग सभी लोगों ने , बहुत वफादार `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन` के कार्यकर्ताओं सहित, इस बात पर सहमत हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज पुलिस-कर्मियों जितने ही भ्रष्ट हैं | जिन लोगों से मैंने बात की , वो इस बात से सहमत हैं कि लोकपाल भ्रष्ट हो सकता है, वैसे ही जैसे मंत्री, सांसद, सुप्रीम-कोर्ट के जज ,सभी भ्रष्ट हो गए हैं | और इसीलिए वे “राईट टू रिकाल भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल(भ्रष्ट लोकपाल को आम नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार) के साथ जनलोकपाल “ की कीमत समझते हैं |



लेकिन अभी भावुक अपील/विनती का उपयोग करके , `बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल के जनलोकपाल`के प्रायोजक इस बात को आगे बढ़ावा दे रही है कि “ देखो , अन्ना जी को सताया जा रहा है और इसीलिए `बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल के जनलोकपाल` सही है “ | ये तो ऐसा हुआ जैसे कहना कि “ देखो , राजीव गाँधी ने अपनी माँ खोयी है, इसीलीये हम सब को उसके लिए वोट करना चाहिए “ | विदेशी कंपनियों द्वारा प्रायोजित टी.वी चैनलों और समाचार-पत्रों ने एक बहुत बड़ा भावुक माहौल खड़ा कर दिया है अन्ना जी के पक्ष में , और “ बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल /प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के जनलोकपाल “ के प्रायोजक इस का उपयोग/इस्तेमाल कर रहे हैं कहने के लिए “ देखो अन्ना जी को सताया गया , इसीलिए हमें बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल का समर्थन करना चाहिए “|



समाधान :



1.) हम `प्रजा अधीन-राजा` के कार्यकर्ताओं को खुले आम मांग करनी चाहिए चिदंबरम की पब्लिक में (सार्वजनिक) नारको-जांच के लिए , ताकि हमें उसके इरादे पता चलें अन्ना जी को गिरफ्तार करने में,और हमें सुप्रीम-कोर्ट के जजों को कहना चाहिए प्रभारी को गिरफ्तार/कैद करने के लिए जिसने अन्ना के गिरफ्तारी का गलत आदेश दिया था |

2.) फिर हमें सभी को ये समझाना चाहिये कि अन्ना जी को सताया गया है , इसका ये मतलब नहीं कि “ बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल के जनलोकपाल “ सही है | यदि नागरिकों के पास राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल नहीं होगा ,तो भ्रष्ट लोकपाल विदेशी कंपनियों के एजेंट बन जाएँगे और दूसरे विदेशी एजेंट के गिरोह जैसे सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ मिल जाएँगे और भारत को बरबाद कर देंगे |

3.) इसीलिए हमें “राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के साथ जनलोकपाल” का समर्थन करना चाहिए |



(32.11) कुछ महत्वपूर्ण सूत्र



1) `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन` का सबसे बड़े नेता ये कहते हैं कि यदि लोकपाल अध्यक्ष और सदस्य भ्रष्ट हो जाएँगे , तो सुप्रीम-कोर्ट के जज उन्हें निकाल देंगे |

हमारे पास पहले से ही क़ानून है कि यदि सांसद भ्रष्ट हो जाए, तो हाई-कोर्ट के जज/सुप्रीम-कोर्ट के जज उसे निकाल सकते हैं और इसके लिए *उन्हें किसी की भी इजाजत नहीं लेनी पड़ती | लेकिन हम ये देखते हैं कि हाई-कोर्ट के जज कभी भी सांसदों को जायज सज़ा नहीं देते या सज़ा देते ही नहीं |

इसीलिए ये “ सुप्रीम कोर्ट लोकपाल को सज़ा देंगे “ उतना ही बेकार है जितना कि “हाई-कोर्ट भ्रष्ट सांसदों को सज़ा देंगे” का प्रावधान/क़ानून है |

इसीलिए हमें `राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के साथ जनलोकपाल की धाराएं/खंड की मांग करनी चाहिए |

*(“सुप्रीम-कोर्ट के द्वारा प्रयोग/इस्तेमाल की जाने वाले अधिकारों की सीमा ,जब वो अन्याय का पीछा करता है , आसमान जितनी ऊंची है,सुप्रीम-कोर्ट की एक बेंच/खंडपीठ ने कहा है “

http://www.thehindu.com/news/national/article2288114.ece )



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2) क्यों जनलोकपाल बिना दांत का (बेकार ) होगा ,बिना नागिकों के द्वारा भ्रष्ट लोकपाल को निकालने/बदलने के अधिकार के ?

दोस्तों, भ्रष्टाचार और रिश्वत देना का पता चल जाता है , और स्पष्ट/साफ़ होता है लेकिन उसका कोई सबूत नहीं होता 99% मामलों में |

इसीलिए यदि,लोकपाल सदस्य भ्रष्ट हो जायें, और कोई शिकायत है , तब सुप्रीम-कोर्ट के जज जांच का आदेश देंगे |

लेकिन कौन ऐसा मूर्ख होगा जो करोड़ों की रिश्वत लेकर , अपने बैंक के खाते में रखेगा? सुप्रीम-कोर्ट कभी भी अपराध साबित नहीं कर पायेगी | क्यों ? कोई सबूत नहीं होगा |

लेकिन यदि नागरिकों के पास भ्रष्ट लोकपाल सदस्य को बदलने का अधिकार हो , `प्रजा अधीन-लोकपाल/राईट टू रिकाल-लोकपाल` के आने से, नागरिकों को भ्रष्टाचार का पता लग जाये लेकिन कोई साबुत नहीं हो तो भी | कोई भी जांच नहीं, कोई कमिटी नहीं, कोई देरी नहीं---जब करोड़ों लोग बोलेंगे तो सामूहिक दबाव बनेगा और लोकपाल को बदलना पड़ेगा |

आम नागरिकों को सत्ता |

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3) 65 सालों से , आप ( नेता , उच्च वर्ग और उनके एजेंट बुद्धिजीवी) बोल रहे हैं ` अभी नहीं , बाद में ` जब भी लोग `आम नागरिकों द्वारा भ्रष्ट को बदलने/सज़ा देने के अधिकारों` की मांग करते हैं |



65 साल पहले , एम.एन.रॉय ने ऐसी प्रक्रियाएँ/तरीकों की मांग की थी |

लेकिन एक नेता जिसका नाम नेहरु है,ने भ्रष्ट जजों और जमीन-मालिकों के साथ, बड़ी बेशर्मी से एक लोक-तांत्रिक प्रक्रिया/तरीका हटा दिया जिसका नाम `उरी सिस्टम` था बजाय कि उसको मजबूत करने के |तब नेताओं ने बोला `अभी नहीं` |

फिर, 1970 के दशक में, ज.पी.नारायणन ने भी ये मांग की थी, लेकिन आप ने बोला`अभी नहीं` |फिर , 2004 में राजीव दिक्सित और दूसरों लोगों ने सूचना अधिकार कमिश्नर के लिए ` भ्रष्ट सुचना अधिकार-कमिश्नर को नागरिकों द्वारा बदलने के अधिकार ` की मांग की, लेकिन जवाब आया `अभी नहीं` |

आप अब सच बोल क्यों नहीं देते `देश को बाढ़ में जाने दो , हम ऐसी प्रक्रियाओं/तरीकों का विरोध करते हैं जिससे आम नागरिकों को भ्रष्ट को बदलने/सज़ा देने का अधिकार मिले |`

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4) हम पुलिस कमिश्नर,कलक्टर,मंत्रियों, सांसदों,जजों आदि के भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं |

यदि “लोकपाल बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल/प्रजा अधीन-लोकपाल “ पास होता है, तो हम एक और संस्था के भ्रष्टाचार से लड़ना पड़ेगा ---- लोकपाल सदस्यों के भ्रष्टाचार से !!

इसीलिए यदि आपको केवल लड़ने के लड़ना अच्छा लगता है, तो `बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल के जनलोकपाल` को समर्थन करें |

लेकिन यदि आपका उदेस्श्य भ्रष्टाचार कम करना है, और सार्थक रूप से ये लड़ाइयां कम करना चाहते हैं ताकि हम कुछ ऐसा काम कर सकें जो आम जनता के फायदे का हो , तो कृपया `राईट टू रिकाल-लोकपाल के खंड/धाराओं के साथ लोकपाल/जनलोकपाल बिल ` को समर्थन करें |



(32.12) कुछ सुझाव `प्रजा अधीन-राजा`कार्यकर्ताओं के लिए `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी लोगों के समय-बर्बादी योजना से निबटने/पेश आने के लिए



जैसे कि `प्रजा अधीन-राजा` के प्रक्रियाएँ/तरीके/ड्राफ्ट को ज्यादा स्वीकृति मिलती है, `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी लोग कोशिश करेंगे कि `प्रजा अधीन-राजा` कार्यकर्ताओं का समय बरबाद करने के लिए बेकार के बहस में , ताकि `प्रजा अधीन-राजा` के ड्राफ्ट-तरीके/प्रक्रियाएँ ज्यादा फैलें नहीं |

इसीलिए कुछ सुझाव दे रहा हूँ , कि किस तरह बहस करना चाहिए `प्रजा अधीन-राजा ` के प्रक्रियाओं/तरीकों पर –

1) आज के प्रक्रियाओं/तरीकों को प्रस्तावित प्रक्रियाओं/तरीकों से तुलना करनी चाहिए और देखना चाहिए कि कैसे वे देश को फायदा या नुकसान करती हैं, कोई परिस्थिति में –

`प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी ये कोशिश करेंगे `प्रजा अधीन-राजा` कि कमियाँ बताने के लिए | वे बहस को एक-तरफा करने कि कोशिश करेंगे , यानी कि `प्रजा अधीन-राजा` के ड्राफ्ट के कमियां ही कि बात हो ,बिना वर्त्तमान(आज के ) सिस्टम से या उनके पसंद के कानूनों से तुलना करने के |



2) कृपया सभी को अपना रूख साफ़ करने के लिए कहें किसी मुद्दे या ड्राफ्ट-क़ानून पर (अभी, अगले जन्म में नहीं) |

बिना `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी के अपना रुख साफ़ किये , बहस करना समय की बर्बादी है |

उदाहरण – `क्या आप/वे समर्थन करते हैं या विरोध करते हैं `जनलोकपाल बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल /प्रजा अधिना-भ्रष्ट लोकपाल के खंड/धाराएं का ?



यदि वे कहते है-कि वे उसका विरोध करते हैं, तो पूछें कि वे क्या कर रहे हैं , उसका समर्थन करने के लिए ?

यदि वे कहते हैं कि वे उसका समर्थन कर रहे हैं, तो उनको कहें उन खंड/धाराओं को कॉपी पेस्ट करने के लिए , जो जनलोकपाल बिल/क़ानून में हैं, जिसके द्वारा लोकपाल रिश्वत लेने और विदेशी बैंकों में जमा करने से रोक सकती हैं और देश को विदेशी कम्पनियाँ आदि, सबसे ज्यादा रिश्वत देने वाले को बेच देंगे | कृपया खंड/धाराएं डालने पर जोर दें क्योंकि धाराओं के बिना , `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी जानबूझ कर या अनजाने में, गलत तथ्य/बातें बता सकते हैं , जो क़ानून के धाराओं/खंड में नहीं लिखी गयी हैं , उदाहरण., वे कहते हैं कि जनलोकपाल बिल/क़ानून के अनुसार `आम नागरिक लोकपाल को निकाल सकते हैं |` लेकिन सच्चाई ये है, कि कोई भी , सुप्रीम कोर्ट के जज के आदमी सहित /समेत, एक याचिका डाल सकता है , जिसके बाद सुप्रीम-कोर्ट जज फैसला करेंगे कि लोकपाल को निकालना है कि नहीं |



यदि वे खंड/धाराएं दिखाते हैं जो कहती हैं कि सुप्रीम-कोर्ट के जज भ्रष्ट लोकपाल को निकालेंगे , तो पूछें कि सभी शक्तियों/अधिकारों वाले सुप्रीम-कोर्ट के जज क्यों भ्रष्ट सांसद ,मंत्रियों को उचित सज़ा नहीं दे रहे और सुप्रीम-कोर्ट के जज, यदि ईमानदार भी हुए तो भी लोकपाल को बिना सबूतों के सज़ा नहीं दे पाएंगे | क्योंकि विदेशी/स्विस बैंक, स्विस-बैंक खातों और लेन-देन की जानकारी नहीं देंगे |



यदि वे कहते हैं, कि सुप्रीम-कोर्ट के जज, मंत्रियों, सासदों को सज़ा तो देते हैं, को फिर पूछें कि क्यों उनको लोकपाल बिल को लाने की जरुरत है और क्यों वे सुप्रीम-कोर्ट के जज को नहीं लिखते हैं, जिनपर उनको इतना विश्वास है बजाय कि करोड़ों रुपये लोकपाल पर खर्च करने के ?





यदि वे कहते हैं कि सुप्रीम-कोर्ट के जजों के पास अधिकार नहीं हैं सांसद, मंत्रियों को सज़ा देने या उनपर कार्यवाई करने के लिए तो उन्हें `हिंदू` समाचार पत्र में ये लेख दिखाएँ , जहाँ सुप्रीम-कोर्ट के जज कह रहे हैं कि `उनके अधिकारों की सीमा आसमान जितनी ऊंची है ` |



(“The limits of power exercised by the Supreme Court when it chases injustice, are the sky itself, a Bench of the apex court has said.

http://www.thehindu.com/news/national/article2288114.ece )



3) नाम जरूरी नहीं है, प्रक्रिया/तरीका/विधि जरूरी है |

तीन राज्यों में –राजस्थान, बिहार और छत्तीसगढ़ में, एक क़ानून है, जिसका नाम है `राईट टू रिकाल-कार्पोरेटर` लेकिन इन तीनों राज्यों में इस के प्रक्रियाएँ/तरीके अलग-अलग हैं और हमारा प्रस्तिवित क़ानून भ्रष्ट कर्पोराटर(पार्षद) को बदलने/निकालने के लिए अलग है | इसीलिए कृपया प्रक्रिया पर ध्यान दें और `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी को बोलें कि ड्राफ्ट/क़ानून के धाराएं को प्रस्तुत करे/बताये , जिसके बारे में बात कर रहा है |



4) कृपया केवल प्रक्रिया और धाराओं/खंड पर ध्यान दीजिए , कैसे वे हमारे देश को फायदा या नुकसान करेंगी कोई परिस्थिति में |

`प्रजा अधीन-रजा` के विरोधी अपनी पूरी कोशिश करेंगे असली मुद्दे से हटाने के लिए , व्यक्तियों के बारे में बात कर के और व्यक्तियों को एक दूसरे से तुलना कर के | केवल प्रक्रियाएँ/तरीके सिस्टम में बदलाव ला सकती हैं, अच्छी या बुरी | इसीलिए , कृपया प्रक्रियाएँ/तरीकों पर ध्यान दीजिए |

और, प्रक्रिया/तरीका बताता है कि क़ानून अच्छा है या बेकार | ऊपर लिखित `प्रजा अधीन-कोर्पोरेटर` क़ानून तीनों राज्यों में एक दम बेकार हैं क्योंकि वे आम नागरिकों को भ्रष् कोर्पोरेटर को हटाने/बदलने का अधिकार नहीं देते | उदाहरण- बिहार का `राईट टू रिकाल-कोर्पोरेटर`क़ानून कहता है कि उस क्षेत्र के 66% नागरिक, यदि अपने हस्ताक्षर इकठ्ठा करके कलेक्टर को दें, तो कलेक्टर हस्ताक्षरों की जांच करेगा , और यदि हस्ताक्षर सही पाए गए , तो वो कोर्पोरेटर हटा दिया जायेगा | लेकिन ,हमारे देश में हस्ताक्षरों की जांच नहीं हो सकती क्योंकि सरकार के पास नागरिकों के हस्ताक्षरों का कोई रिकोर्ड नहीं है | इसीलिए हमें, प्रक्रियाएँ/तरीकों और ड्राफ्ट और उनके धाराओं पर ध्यान देना चाहिए, केवल प्रस्ताव पर नहीं |



5) दो देशों या दो क्षेत्रों के भ्रष्टाचार की तुलना करना -

दो देशों या दो क्षेत्रों के भ्रष्टाचार की तुलना करते समय, भ्रष्टाचार को एक देश/क्षेत्र के विभाग से दूसरे देश/क्षेत्र के विभाग से तुलना करें , जिला,राज्य और राष्ट्र स्तर पर | जो प्रक्रियाएँ/तरीके अभी (वर्त्तमान) हैं, उनकी तुलना प्रस्तावित प्रक्रियाएँ/तरीकों से करें और सटीक/सही परिस्थिति दें कि कैसे प्रस्तावित प्रक्रियाएँ/तरीके देश को नुकसान या फायदा पहुंचा सकते हैं वर्त्तमान/मौजूदा प्रक्रियाएँ/तरीकों कि तुलना में , प्रक्रियाओं-ड्राफ्ट के खंड/धाराओं को बताते हुए |



(32.13) कुछ और चालें जो `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी जो इस्तेमाल करते हैं असल मुद्दे से हटाने के लिए



बहुत जल्दी , सभी नेता `प्रजा अधीन-राजा` की बात करने पर मजबूर हो जाएँगे और असल मुद्दे से ध्यान हटाने से कोशिश करंगे , यानी भ्रष्ट लोकपाल , प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जज, आदि आम नागरिकों द्वारा से ध्यान हटाने कि कोशिश करेंगे |

हमें कार्यकर्ताओं को बताना है वे चालें जो `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी इस्तेमाल करते हैं असली मुद्दे से हटाने के लिए | कौन सी चालें ?



1. `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी बेकार और प्रबंध न किया सकने वाला हस्ताक्षर-आधारित प्रक्रिया पर जोर देंगे और हाजिरी-आधारित भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने की प्रक्रियाएँ/तरीकों का विरोध करेंगे |

और इसीलिए हम कार्यकर्ताओं को बताएँगे कि सच्चे `प्रजा अधीन-राजा` के कार्यकर्ता हमेशा `हाजिरी वाले भ्रष्ट को बदलने के तरीकों ` को समर्थन करेंगे | हजारी वाले तरीकों में ,व्यक्ति को खुद पटवारी/टालती के दफ्तर जाना होता है और अधिकारी के विकल्प को समर्थन देना होता है | जबकि हस्ताक्षर वाले तरीके में, कार्यकर्तओं को हस्ताक्षर इकठ्ठा करना होता है और सरकारी अफसर को हस्ताक्षर जांच करना होता है, जो कि संभव नहीं है क्योंकि हमारे देश में सरकार के रिकोर्ड में नागरिकों का हस्ताक्षर नहीं है |



2. `प्रजा अधीन-राजा ` के विरोधी `प्रजा अधीन-सरपंच`,`प्रजा अधीन-कोर्पोरेटर (पार्षद) आदि का समर्थन करेंगे और `प्रजा अधीन-लोकपाल , `प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री` का विरोध करेंगे |

हमें सभी कार्यकर्ताओं को बताना है कि ऐसा व्यक्ति जो `प्रजा अधीन-सरपंच` जैसे भीख और चिल्लर की बात करता है , वो नकली `प्रजा अधीन-राजा` का समर्थक है | क्योंकि ये सब पद-सरपंच , कोर्पोरेटर आदि के पास `प्रधानमंत्री ,मुख्यमंत्री आदि के मुकाबले कुछ खास अधिकार नहीं होते और इसीलिए ऐसे पदों पर `प्रजा अधीन-राजा`भीख समान है |



3. `प्रजा अधीन-राजा` का विरोधी ड्राफ्ट/मसौदे पर चर्चा से बचना कहेगा |

हमें उसका सामना करना चाहिए और उसकी बेइज्जती भी करनी चाहिए कि “ क्या तुम ड्राफ्ट अगले जन्म में दोगे? “

और भी चलें हैं | मैं बाद में सभी चालों की लिस्ट/सूची बनंगा जो ,`प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी इस्तेमाल करते हैं | और हमें कार्यकर्ताओं को जवाबी चलें भी पहले से बतानी हैं |



(32.14) बिना `राईट टू रिकाल-लोकपाल (प्रजा अधीन-लोकपाल) जनता द्वारा` के जनलोकपाल का खेल और कैसे विदेशी कम्पनियाँ लोगों का गुस्सा का इस्तेमाल कर रही हैं भारत को फिर से गुलाम बनने के लिए



क्या होगा यदि जनलोकपाल विदेशी कंपनियों से रिश्वत लेते हैं और विदेशी बैंकों में पैसा जामा कर देते हैं और इस तरह विदेशी कंपनियां या ईसाई धर्म-प्रचारकों के या सौदी अरब के इस्लाम के धर्म-प्रचारकों के एभ्रष्ट एजेंट बन जाते हैं ?

मैं एक सवाल पूछता हूँ-क्या होगा यदि जनलोकपाल भ्रष्ट हो जाते हैं ? उससे भी बुरा कि वे विदेशी कंपनियों से रिश्वत लेते हैं, और विदेशी बैंकों में पैसा जमा करके , विदेशी कंपनियों ,ईसाई धर्म-प्रचारकों, इस्लामी कट्टरपंथियों के एजेंट बन जाते हैं ?

क्या यदि 2012 की चुनाव समिति, खुद इन एजेंटों से भर जाती है, जो ऐसे व्यक्तियों को लोकपाल बनाये जिनकी साफ़-सुथरी छवि/नाम है , लेकिन अंदर से विदेशी कंपनियों के एजेंट हैं ? इसका जवाब ये समझायेगा कि क्यों टी.वी चैनल `बिना `नागरिकों द्वारा भ्रष्ट लोकपाल को निकालने के अधिकार (राईट टू रिकाल-लोकपाल) के धाराओं के साथ जनलोकपाल का घंटो-घंटों प्रचार कर रहे हैं |

विदेशी कंपनियों को जनलोकपाल चाहिए ताकि उनको केवल 11 जनलोकपाल को रिश्वत या प्रभावित करने होगा और उनको हज़ारों आई.ऐ.एस(बाबू), पुलिसकर्मी,जज को रिश्वत नहीं देनी पड़ेगी | हर जिले के आई.ऐ.एस(बाबू),पोलिस-कर्मी,जजों,पार्टियों के 10-15 प्रधान/मुखिया/प्रमुख/अध्यक्ष होते हैं और कुछ 50-75 प्रधान ,हर राज्य में होते हैं | कुल मिलाकर कुछ 10,000 जिले स्तर के प्रधान और कुछ 2000 राज्य स्तर के प्रधान हैं| इनको संभालने के लिए , विदेशी कंपनियों और ईसाई धर्म-प्रचारकों को `राडिया` के तरह के बिचौलिए चाहिए, जो 200-500 % अपना हिस्सा/मुनाफा रखते हैं | लेकिन एक बार 11 जनलोकपाल आ जाते हैं, विदेशी कंपनियों और मिशनईसाई धर्म-प्रचारकों) को केवल 11 जनलोकपाल को ही रिश्वत देनी पड़ेगी और सारे 10,000 जिले स्तर के नेता/आई,ऐ.एस(बाबू)/पोलिस-कर्मी/जज और 2000 राज्य या राष्ट्रिय स्तर के नेता/आई.ऐ.एस/पोलिस-कर्मी/जज ,इन 11 जनलोकपाल के नीचे आ जाएँगे और भारतीय प्रशासन पर पूरा नियंत्रण/शाशन कर पाएंगे अपने एजेंटों द्वारा |

कई सालों से ,मैं सभी भारत-समर्थक/शुभ-चिन्तक लोगों को बोल रहा हूँ कि ऐसे कानून-ड्राफ्टों की चर्चा करें और पढ़ें जिनके द्वारा वे भारतीय प्रशासन को ठीक कर सकते हैं और सभी साथी नागरिकों को ऐसे कानों-ड्राफ्ट के बारे में बताएं | लेकिन , दुःख कि बात है, कि बहुत कम लोगों ने मुझे सुना | ज्यादातर भारत-समर्थक/शुभ-चिन्तक नागरिकों ने अपने नेता की बात को सुना, जिन्होंने जोर दिया कि क़ानून-ड्राफ्टों को छोड़ देना चाहिए और इसके बदले हम को ये चीजों पर ध्यान देना चाहिए –



1. राष्ट्रिय चरित्र/व्यवहार बनाना –इसका जो भी मतलब है ( आर.एस.एस का विषय/मुद्दा)

2. नागरिकों को योग, प्राणायाम, आयुर्वेद के बारे में बताना ( भारत स्वाभिमान न्यास का विषय/मुद्दा)

3. केवल कांग्रेस के खिलाफ नफरत फैलाना (भा.जा.पा. का विषय/मुद्दा)

4. सदस्य बनाना और दान लेना (आर.एस.एस ,भा.जा.प् , भारत स्वाभिमान का विषय/मुद्दा)

5. आध्यात्मिक उन्नति (आर्ट ऑफ लिविंग और अन्य अआध्यत्मिक संस्थाएं)

6. शिक्षा, पर्वावरण (अलग-अलग स्वयं सेवी संस्थाएं)

7.चुनाव जित्त्ने पर ध्यान (आर. एस.एस, भा.जा.पा.,आदि पार्टियां)



आदि ,आदि | कुल मिलाकर, 24 घंटे हर दिन, 7 दिन हर हफता , सभी चीजें करें , लेकिन ,एक मिनट भी नहीं लगाएं ड्राफ्ट को पड़ने में , या अन्य नागरिकों को ड्राफ्ट के बारे में | और सालों से ,मैं ये सुझाव दे रहा हूँ कार्यकर्ताओं को नागरिकों को बोलें कि प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री को मजबूर करें कि अच्छे(और कम बुरे) कानूनों को लागू करने के लिए जो भारत की समस्याएं को कम करता है | कौन सांसद, विधायक ,प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री, आदि बनता है , वो इतना जरूरी/महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए |



इस तरह कानूनों में सुधार नहीं आया , नागरिकों का गुस्सा बढ़ता गया और इससे विदेशी कम्पनियाँ/ईसाई मिशनों(प्रचारक) को ये “ जनलोकपाल बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल जनता द्वारा` को लाने के लिए प्रयोजन करने के लिए | हमें क्यों मुश्किल हो रही है “ जनलोकपाल राईट टू रिकाल-लोकपाल नागरिकों द्वारा के साथ “ का प्रचार करने के लिए ? इसीलिए नहीं कि `राईट टू रिकाल` मुश्किल है समझाने के लिए या समझने के लिए | इसलिए कि कार्यकर्त्ता-नेता बोल रहे हैं कार्यर्ताओं को कि क़ानून-ड्राफ्ट पर ध्यान नहीं दो |



दशकों से , भारत में माध्यम वर्ग/दर्जे के लोग ,को कष्ट झेलना पड़ रहा है , केवल भ्रष्टाचार से ही नहीं, बल्कि देरी, समय की बर्बादी, और एक सामान्य अनिश्चितता महसूस होती है जब भी सरकारी दफ्तर और कोर्ट जाते हैं | निचले वर्ग/दर्जे के लोगों को भी ये हर समय सामना करना पड़ता है और इसके अलावा, अत्याचार भी सहना पड़ता है | कार्यकर्ता हर समय उन कानूनों के लिए प्रचार करने के लिए तैयार रहते हैं जो ,इस समस्या को कम कर दे | लेकिन कार्यकर्त्ता-नेता कार्यकर्ताओं को “ठहरो और देखो” के लिए कर पाए और इसीलिए कार्यकर्ताओं ने केवल ठहरा और देखा ,और क़ानून-ड्राफ्ट के लिए प्रचार नहीं किय , जो भ्रष्टाचार, कष्ट, अनिश्चितता, अत्याचार आदि को कम कर सकते थे | इसीलिए गुस्सा बढ़ता गया |



विदेशी कम्पनियाँ और ईसाई मिशन/धर्म-प्रचारकों ने अपने टी.वी. चैनलों को तैनात किया , इस गुस्से को सांसदों केतारफ मोड़ने के लिए और उन पर दबाव डालने के लिए , एक ऐसे क़ानून पास करने के लिए जो विदेशी कंपनियों और ईसाई धर्म-प्रचारकों का भारत पर नियंत्रण को और बढ़ाएगा | कोई देख सकता है कि घंटों-घंटों टी.वी चैनलों ने दिए हैं , जनलोकपाल को बढ़ावा करने में और उन लोगों का प्रचार करने के लिए जो जनलोकपाल का समर्थन करते हैं | भारत के कितने लोग अन्न को मार्च-2011 में जानते थे ? कुछ 20% लोग महाराष्ट्र में जानते थे और बाकी भारत में केवल 0.1% ही लोग जानते थे | लेकिन अन्ना ने जनलोकपाल का समर्थन किया और विदेशी कंपनियों ने उसे मोहनभाई-2 बना दिया | और अन्ना जी असल में मोहनभाई-2 ही है, क्योंकि मोहनभाई (गांधी) का प्रचार अभियान के लिए पैसे भी अंग्रेजों(उस समय के विदेशी कम्पनियाँ) द्वारा ही किया गया था |



और इस तरह जनलोकपाल का खेल है कि लोगों के गुस्से का प्रयोग/इस्तेमाल करना , सांसदों को मजबूर करना एक ऐसे क़ानून को लागू करने के लिए, जो विदेशी कंपनियों और ईसाई धर्म-प्रचारकों को ज्यादा आसानी से भारत पर नियंत्रण/शाशन करने दे |



इन सब के लिए मीडिया और `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन के नेताओं` द्वारा बहुत सारे झूठ बोले जा रहे हैं|

उनमें से कुछ ये हैं , सच्चाई के साथ –



1) शिकायत निवारण प्रणाली आने से आप का राशन कार्ड सही बनेगा , रोड सही बनेगी आदि आदि |

सच्चाई – ये सब अधिकार मंत्रियों के पास भी है , लेकिन भ्रष्ट मंत्रियों के पास इन सब के लिए समय नहीं है ,वे विदेशी कंपनियों से रिश्वत लेकर विदेशी गुप्त खाते में रखने में व्यस्त हैं | ऐसे ही लोकपाल भी भ्रष्ट हो कर करेगा |



2) हांगकांग जैसा स्वतंत्र लोकपाल सिस्टम हमारे देश में लाया जा रहा है , जिससे भ्रष्टाचार कम होगा |

सच्चाई- हांगकांग में लोकपाल स्वतंत्र नहीं है, विधान सभा द्वारा चुनी जाती है और निकाले जाते हैं |

और हांगकांग में भ्रष्टाचार का कम होने का असली कारण लोकपाल जैसा क़ानून नहीं, मजबूत किया गया जूरी सिस्टम है | 1997 के बाद वहाँ जूरी सिस्टम को मजबूत किया गया और भ्रष्टाचार कम हुआ है | वहाँ का लोकपाल फेल है क्योंकि वहाँ लोकपाल के अध्यक्ष को ही जूरी ने भ्रष्ट पाया |और जिन देशों में जूरी सिस्टम नहीं है और केवल लोकपाल है, वहाँ पर भ्रष्टाचार बढ़ा जैसे फिलिपिन |



3) लोकपाल स्वतंत्र होगा, नेताओं से कोई प्रभावित नहीं होगा, सारा सिस्टम पारदर्शी होगा –

सच्चाई- लोकपाल हमेशा जजों , जो लोकपाल को निकाल सकते हैं , के धमकियों के प्रभाव में रहेगा| नेताओं और विदेशी कंपनियों का जजों पर नियंत्रण होता है और उनके द्वारा ,लोकपाल ,उनके प्रभाव में रहेगा |



4) जनलोकपाल की शिकायत प्रणाली(सिस्टम)- जैसे की पहले लिखा गया है, जनलोकपाल में शिकायत डालने के लिए किसी को एफ.आई.आर लिखवाना होगा और फिर उस इफ.आई.आर को लोकपाल को भेजना होगा , शिकायत के साथ लोकपाल अपनी वेबसाइट पर हर महीने , सारी शिकायतों का सारांश वेबसाइट पर रखेगा |

सच्चाई- लोकपाल शिकायतों के साथ छेड-छाड कर सकता है बड़ी आसानी से और ऐसी शिकायोतों को दबा सकता है जो लाखों लोगों की है |लोकपाल केवल शिकायतों का केवल सारंश और संक्षिप्त रूप ही दे सकता है और लोकपाल कह सकता है कि उसने मामले की जांच की है, भले उसने जांच की हो या नहीं की हो | ऐसा इसीलिए क्योंकि लोकपाल के पास सर्वाधिकार रहेगा | ऐसा हो सकता है कि किसी बढ़ी शिकायत की सुनवाई ना करे जो करोड़ों लोगों की हो और जिनके पास महेंगे/बड़े वकील न हों| लोकपाल ऐसी शिकायत परदेरी भी कर सकता है ,उसे महत्वहीन /गैर-जरूरी बताते हुए |



और भी अन्य झूठ बोले जा रहे हैं | इसलिए कृपया पूरा बिल पढ़ें , क्योंकि पूरा बिल पास होना है |

कुल मिलाकर, विदेशी कम्पनियाँ सफल हुई हैं, लोगों को गलत रास्ते पर ले जाने के लिए | ये मुख्य रूप से इसीलिए हुआ क्योंकि नेताओं और कार्यकर्ता-नेताओं ने कार्यकर्ताओं को सही रास्तों की तरफ देखने से रोका | जब ऐसे नेता आस-पास हों , तो विदेशी कंपनियों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी है , भारत पर नियंत्रण/शाशन करने , उसको गुलाम बनने के लिए और देश के 99% लोगों को लूटने के लिए |