Wednesday, August 31, 2011

टीम अन्ना का कोई आया?


मौत से पहले दिनेश ने पूछा था, ”टीम अन्ना का कोई क्यों नहीं आया?”

दिनेश यादव का शव जब बिहार में उसके पैतृक गांव पहुंचा तो हजारों की भीड़ ने उसका स्वागत किया और उसकी मौत को ‘बेकार नहीं जाने देने’ का प्रण किया। लेकिन टीम अन्ना की बेरुखी कइयों के मन में सवालिया निशान छोड़ गई। सवाल था कि क्या उसकी जान यूं ही चली गई या उसके ‘बलिदान’ को किसी ने कोई महत्व भी दिया?

गौरतलब है कि सशक्त लोकपाल पर अन्ना हजारे के समर्थन में पिछले सप्ताह आत्मदाह करने वाले दिनेश यादव की सोमवार को मौत हो गई थी। पुलिस के मुताबिक यादव ने सुबह लोक नायक अस्पताल में दम तोड़ दिया। यादव के परिवारजनों को उसका शव सौंप दिया गया था जो बिहार से दिल्ली पहुंचे थे।

पुलिस के मुताबिक यादव के परिवार वाले उसके अंतिम क्रिया के लिए पटना रवाना हो चुके हैं । उधर, कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो 32 वर्षीय यादव की मौत पिछले सप्ताह ही हो चुकी थी। हालांकि पुलिस ने इन रिपोर्ट से इनकार किया है। गौरतलब है कि 23 अगस्त को दिनेश ने राजघाट के पास अन्ना के समर्थन में नारे लगाते हुए खुद पर पेट्रोल छिड़क आग लगा ली थी। 70-80 प्रतिशत जल चुके दिनेश को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बताया जाता है कि कुछ डॉक्टरों और प्रत्यक्षदर्शी अस्पताल कर्मियों से दिनेश ने आखिरी दिन तक पूछा था कि क्या उससे मिलने अन्ना की टीम से कोई आया था?

दिनेश यादव का शव जब पटना के निकट दुल्हन बाजार स्थित उनके गांव सर्फुदीनपुर पहुंचा तो पूरा गांव उमड़ पड़ा था। सब ने शपथ ली है.. इस मौत को जाया नहीं जाने देंगे। एक पत्रकार ने फेसबुक पर लिखा है, ”मुझे लगता है टीम अन्ना को इस नौजवान के परिवार की पूरी मदद करनी चाहिए। उनके घर जाकर उनके परिवारवालों से दुख-दर्द को बांटना चाहिए।”

दिनेश के परिवार के लोग बेहद गरीब और बीपीएल कार्ड धारक हैं। कई पत्रकारों का भी कहना है कि सहयोग के लिए अगर कोई फोरम बनेगा तो वे भी शामिल होने को तैयार हैं। दिनेश के तीन बच्चे हैं। उसकी पत्नी का रो रो कर बुरा हाल है और वह कई बार बेहोश हो चुकी है। उसके बाद परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है।

उधर अन्ना हज़ारे अनशन टूटने के तीसरे दिन भी गुड़गांव के फाइव स्टार अस्पताल मेदांता सिटी में स्वास्थ लाभ लेते रहे।

Sunday, August 28, 2011

राईट टू रिकाल-लोकपाल..


`राईट टू रिकाल-लोकपाल` - लोकपाल / जनलोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है

अध्याय 32 - `जनता द्वारा राईट टू रिकाल-लोकपाल` - लोकपाल / जनलोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है `भ्रष्ट लोकपाल / जनलोकपाल को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार`



स्वामी दयानद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक `सत्यार्थप्रकाश` के अध्याय 6 के पहले पन्ने में कहा है कि “राजा प्रजा-अधीन होना चाहिय और यदि राजवर्ग प्रजा-अधीन नहीं होगा , तो जैसे माँसाहारी पशु दूसरे छोटे पशुओं को खा जाते हैं, उसी तरह राजवर्ग नागरिकों को लूट लेगा और देश को बरबाद कर देगा “ |



यहाँ `राजवर्ग` का अर्थ प्रशासन करने वाले , यानी मंत्री,जज और अफसर हैं | और `अधीन` का अर्थ मंत्रियों, जजों और अफसरों को बदलना/सज़ा देना है |



ये लोकपाल के लिए भी लागू होता है | यदि लोकपाल प्रजाधीन नहीं है, तब लोकपाल धन-लोकपाल हो जायेगा, यानी रिश्वत लेकर भ्रष्ट हो जायेगा | विदेशी कंपनियों से रिश्वत लेकर विदेशी बैंक में पैसा रखेगा, और उसे कभी भी सज़ा नहीं होगी क्योंकि विदेशी बैंक, बैंक खाते के रिकोर्ड नहीं देते और कोई सबूत नहीं होगा लोकपाल के खिलाफ | इसके बावजूद, अन्ना और `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन ` के सबसे बड़े नेताओं का अभी तक कोई आशावादी जवाब नहीं आया है `प्रजा अधीन-लोकपाल` और पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम) के खंड/धाराओं पर |



(32.1) माननीय अन्ना जी, कृपया पारदर्शी शिकायत/सुझाव प्रणाली के खंड/धारा और राइट टू रिकॉल लोकपाल खंड/धारा को जनलोकपाल बिल में जोड़े





वंदे मातरम |

मैं अन्ना जी से निवेदन करता हूँ की वे इन खंडों को सम्मिलित करें क्योंकी वे सरकार के द्वारा नियुक्त लोकपाल ड्राफ्ट समिति के सदस्य थे और सरकार से बातचीत कर रहे हैं (अगस्त 24,2011 की तारीख को) I मेरे विचार से, इन खण्डों से पारदर्शिता बढ़ेगी और लोकपाल के भ्रष्ट और तानाशाही होने की सम्भावना को कम करेगी Iअधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) इन प्रस्तावित ड्राफ्ट पर www.righttorecall.info/004.h.pdf में दिए गए हैं | इस लेख्य पत्र को लोकपाल परामर्श वेबसाइट पर प्रस्तुत किया गया है जिसका सिरिअल नम्बर है- #A247LB I यदि आपको सुझाव अच्छे लगे जो यहाँ दिए गए हैं, अच्छे लगें , तो कृपया इसे (#A247LB) अन्नाजी को भेजिए |





1) मैं सबसे निवेदन करता हूँ की निम्नलिखित सन्देश को लोकपाल परामर्श साईट पर पोस्ट करे या अन्नाजी को पोस्टकार्ड लिखें-

माननीय अन्नाजी,

मेरी 3 विनती है आपसे –



1. कृपया नागरिकों को देखने दीजिए जो सुझाव दिए जा रहा हैं, ड्राफ्ट कमिटी के वेबसाइट पर और उन सुझावों पर अन्य लोगों अपने कमेन्ट डाल सकें , ऐसी व्यवस्था करें |

2. कृपया वे खंड/धारा जोड़े लोकपाल बिल में ,जिससे यह सुनिश्चित हो कि नागरिक एक एफिडेविट लोकपाल के वेबसाइट पर रख सकें और अन्य नागरिक अपना नाम उसके साथ जोड़ सकें, उस एफिडेविट का समर्थन करने के लिए I

3. कृपया राइट टू रिकॉल खंड/धारा को आज ही जोड़े ,अगले जन्म में नहीं I बिना राइट टू रिकॉल जन लोकपाल संभव है कि वो धन लोकपाल बन जाएगा I नागरिकों कों 10 लोकपाल सदस्य और एक लोकपाल अध्यक्ष में से एक को के द्वारा बदलने का अधिकार हो I

नमस्कार, _________________________(अपना नाम)



(32.2) तीन पारदर्शी शिकायत/सुझाव प्रणाली के खंड/धारा



निम्नलिखित खंड/धारा जोड़े जाने के लिए प्रस्तावित हैं लोकपाल बिल में, शिकायत/सुझाव प्रणाली में पारदर्शिता देने के लिए |



धारा–NN : पारदर्शी शिकायत/सुझाव प्रणाली के खंड/धारा

खंड/धारा # -(अधिकारी जिसके लिए निर्देश है)

प्रक्रिया/पद्धति



खंड/धारा 1- (कलेक्टर(या उसके द्वारा नियुक्त कार्यकारी मेजिस्ट्रेट) को निर्देश)

राष्ट्रपति के द्वारा यह आदेश दिया जाता है कि : यदि कोई दलित वोटर या वरिष्ठ वोटर या गरीब वोटर या किसान वोटर या अन्य नागरिक वोटर उनके जिला में यदि कोई शिकायत देना चाहता है लोकपाल को ,तो वह कलेक्टर (या उसके द्वारा नियुक्त कार्यकारी मेजिस्ट्रेट) को शिकायत वेबसाइट पर रखने की विनती करेगा| कलेक्टर या उसका द्वारा नियुक्त कार्यकारी मेजिस्ट्रेट एक सीरियल नंबर/क्रमांक संख्या देकर वह एफिडेविट लोकपाल के वेबसाइट पर रखेगा रु. 20 प्रति पन्ना लेकर I एफिडेविट को कार्यकारी मेजिस्ट्रेट के मुहर लगाने से पहले ही तैयार कर लेना पड़ेगा जो की रु. 20 में लिया जाएगा और दो साक्षी द्वारा हस्ताक्षर किये गए हों I शिकायत करने वाला और दोनों साक्षीयो के पास मतदाता पहचान पत्र होना अनिवार्य है I



खंड/धारा 2- (तलाटी/पटवारी/गांव के अधिकारी/लेखपाल (या उसका क्लर्क) को निर्देश)

राष्ट्रपति पटवारी को यह आदेश देता है की :





(2.1) यदि कोई दलित वोटर या वरिष्ठ वोटर या गरीब वोटर या किसान वोटर या अन्य नागरिक वोटर अपने मतदाता पहचान पत्र के साथ आता है और स्पष्ट रूप से किसी शिकायत ,जो लोकपाल के वेबसाइट पर दर्ज है ,पर अपना हाँ/ना करवाना चाहता है, तो पटवारी उसका हाँ/ना दर्ज करेगा लोकपाल के वेबसाइट पर ,उस नागरिक के मतदान पहचान पत्र/वोटर ID के साथ और उससे 3 रुपये की फी/शुल्क लेकर रसीद देगा I

(2.2) नागरिक अपने हाँ/ना को बदल भी सकता है पटवारी को रु. 3 की फी देकर I

(2.3) `गरीबी के नीचे रेखा`(बी.पी.एल) कार्ड धारक के लिए यह फी/शुल्क रु 1. होगी I



खंड/धारा 3-( प्रत्येक नागरिक, लोकपाल)



यह खंड/धारा केवल पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए ही है Iयह मत-संग्रह/रेफेरेंडम नहीं है I हाँ/ना लोकपाल इत्यादि पर बंधनकारी/बाध्य नहीं है I यदि “एक निश्चित संख्या” से ज्यादा महिला वोटर, दलित वोटर ,वरिष्ठ नागरिक वोटर, गरीब वोटर, किसान वोटर या अन्य नागरिक वोटर `हाँ` दर्ज करवाते हैं किसी दी गयी एफिडेविट पर ,तो लोकपाल कार्यवाही कर सकता है दो महीने में या उसको ऐसा करने की जरुरत नहीं है I या तो लोकपाल इस्तीफा दे सकता है I “निश्चित संख्या” का निर्णय लोकपाल करेगा I इसमें लोकपाल का निर्णय अंतिम होगा Iऔर प्रत्येक नागरिक से यह ध्यान देने की विनती है कि यह प्रक्रिया/पद्धति लोकपाल चयन समिति को सुझाव देने के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं I



ये पारदर्शी शिकायत प्रणाली/सिस्टम ये सुनिश्चित करेगा कि नागरिकों की शिकायत दृश्य हो और जाँची जा सके कभी भी , कहीं भी और किसी के भी द्वारा ताकि कोई नेता, कोई बाबू (लोकपाल आदि), कोई जज या मीडिया उस शिकायत को दबा नहीं सके |

ये सैक्शन सुनिश्चित करेगा कि यदि लोकपाल करोड़ों लोगों की शिकायत को नजरंदाज कर रहा है तो उसकी पोल खुल जायेगी और उसकी पोल खुल सकती है इसलिए वो करोडो की शिकायतें को नजरंदाज नहीं करेगा |

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प्रश्न : क्या कोई व्यक्ति मतदाताओं को खरीद सकता है ऊपर दिए हुए प्रक्रिया/पद्धति में ?

उत्तर : नहीं | कृपया (2.2) देखिये Iयदि ऐसा मान लें कि कोई धनी/पैसे वाला व्यक्ती 100 रुपया देता है एक करोड नागरिकों को `हाँ` दर्ज करवाने के लिए तो खंड/धारा 2.2 के अनुसार वोटर अपने `हाँ` दर्ज किये हुए को अगले दिन बदल सकता है I अब यदि 1000 धनी व्यक्ती मिलकर अपना सारा पैसा भी खर्च करें, फिर भी वे हर नागरिक को प्रतिदिन 100 रुपया नहीं दे सकते I इसी लिए `हाँ` दर्ज करवाने के लिए किसी को खरीदना, ऊपर दिए हुए पारदर्शी शिकायत प्रणाली में संभव नहीं है I

प्रश्न : खंड/धारा-2 का महत्व क्या है ?

उत्तर : लोकपाल बिल पर ध्यान दीजिए जिसमें लिखा है : लोकपाल के कर्मचारी के विरुद्ध शिकायत वेबसाइट पर रखी जाएगी I अब यदि 1,00,000 नागरिकों की एक ही शिकायत है तो ? तो क्या हर कोई शिकायत की कॉपी भेजेंगे लोकपाल को ? इससे पूरी तरह लोकपाल का कार्यलय शिकायतों से भर जाएगा I और क्या होगा यदि एक करोड नागरिकों की शिकायत एक ही है लोकपाल के विरुद्ध ? तो क्या हर एक को लोकपाल के कार्यलय में व्यक्तिगत रूप से बुलाना पड़ेगा ? या कलेक्टर के कार्यलय में बुलाएं , शिकायत जमा करने के लिए ? यह क़ानून-व्यवस्था के समस्या को बढ़ावा देगा I खंड/धारा-2 समस्याओं को सरल करेगा – कुछ व्यक्ती अपने शिकायत को जमा करेंगे और बाकि सभी तलाटी के कार्यलय जाकर अपना नाम शांतिपूर्वक जोड़ देंगे I

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उत्तर के लिए कृपया www.righttorecall.info/004.h.pdf देखें |



(32.3) राइट टू रिकॉल खंड/धारा - दस में से एक लोकपाल को बदलने का अधिकार नागरिकों को होना चाहिए



मान लीजिए कि आपकी एक फैक्ट्री/कंपनी है जिसमें 100 कर्मचारी हैं और सरकार एक कानून बनाती है की आप किसी भी कर्मचरी को ना ही निकाल सकते और ना नहीं निलंबित कर सकता हैं अगले 5 से 25 वर्षों तक उच्च न्यायलय/सुप्रीम-कोर्ट के बिना सहमति लिए हुए I तब अनुशासनहीनता बढ़ेगी या कम होगी ? हम नागरिक 10 लोकपाल को नियुक्त कर रहे हैं और जनलोकपाल ड्राफ्ट यह कहता है की हम नागरिक उन 10 में से 1 लोकपाल को भी नहींनिकाल सकते हैं बिना उच्चतम न्यायलय के न्यायाधीश की अनुमति के बिना !!



तो मेरा यह सुझाव है की कम से कम 10 में से 1 लोकपाल नागरिकों द्वारा हटाने/बदलने का अधिकार होना चाहिए यदि सभी 10 को न बुलाया जा सके I `सिविल सोसाइटी` में से अधिकतर यह विश्वास करते हैं कि हम आम नागरिक किसी बेईमान को ही नियुक्त करेंगे I पहले तो ऐसा है नहीं,लेकिन यदि उनकी बात मानें तो भी 10 में से 1 ही बेईमान होगा I बाकि बचे हुए लोकपाल नियुक्त किये जाएँगे `खोज और चयन समिति` के द्वारा और इसी लिए वो सभी ईमानदार होंगे I तो केवल एक बेईमान लोकपाल अधिक हानि नहीं पहुंचा सकता I तो 10 में से 1 के ऊपर राइट टू रिकॉल/`भ्रष्ट कों बदलने का आम नागरिकों का अधिकार` का विरोध क्यों है ?



धारा-NN : नागरिक का लोकपाल को बदलने/निकालने/ख़ारिज करने/रखने का अधिकार (नागरिक का राईट टू रिकाल/रिजेक्ट/रिटेन लोकपाल सदस्य)

खंड/धारा #-(अफसर जिसके लिए निर्देश)

प्रक्रिया/पद्धति



खंड/धारा 1-

नागरिक शब्द का अर्थ होगा रजिस्ट्रीकृत मतदाता/रजिस्टर्ड वोटर I यह पद्धति लागू होगी लोकपाल के केवल एक सदस्य के ऊपर जिसे `नागरिक द्वारा नियुक्त/रखा गया लोकपाल सदस्य` भी कहा जाता है I शुरुवात में वह नियुक्त किया जएगा लोकपाल चयन समिति द्वारा I इस धारा में “कर सकता है” का मतलब “ कर सकता है या करने की जरुरत नहीं है “ है और इसका मतलब किसी प्रकार से बाध्य/बंधनकारी नहीं है |



खंड/धारा 2-( कलेक्टर को निर्देश)

राष्ट्रपति कलेक्टर को यह निर्देश देता है की यदि कोई भरतीय नागरिक जिसकी आयु 40 वर्ष से अधिक हो और वह लोकपाल समिति/कमिटी में `नागरिकों द्वारा नियुक्त/रखा गया लोकपाल सदस्य` बन्ने की इच्छा रखता है और वह जिला कलेक्टर के कार्यालय में स्वयं/खुद आता है, जिला कलेक्टर उस उम्मीदवार को स्वीकार करेगा लोकपाल का सदस्य के लिए, सांसद चुनाव के जमा राशि जितनी राशि जमा करने के बाद I कलेक्टर उसके नाम और क्रमांक संख्या/सीरियल नंबर लोकपाल के वेबसाइट पर रखेगा | कोई भी चिन्ह नहीं दिया जायेगा |

खंड/धारा 3-(तलाटी या पटवारी या लेखपालको निर्देश)

यदि किसी जिले का कोई नागरिक , अपने नजदीक के तलाटी के कार्यालय जाकर 3 रुपये का शुल्क/फी देकर और किसी भी 5 व्यक्ति को `नागरिक द्वारा रखे गए/नियुक्त लोकपाल सदस्य` के लिए पसंद/अनुमोदन दे सकता है, तलाटी उसके अनुमोदन को कम्पुटर पर रखेगा और उसे एक रसीद देगा जिसमें समय/दिनांक और व्यक्ती की भी पसंद/अनुमोदन लिखी होगी I` गरीबी रेखा से नीचे` (बी पी एल) राशन कार्ड वाले के लिए शुल्क/फी रु. 1 होगा I



खंड/धारा 4-(पटवारी को निर्देश)

पटवारी या तलाटी लोकपाल के वेबसाइट में नागरिको की पसंद/अनुमोदन को रखेगा नागरिको के मतदान-पत्र संख्या के साथ I



खंड/धारा 5-(पटवारी को निर्देश)

चुनाव कमिटी/समिति 10 लोकपाल नियुक्त करेंगे और ऊपर दिए हुए प्रस्ताव को जोड़कर 10 में से किसी 1 लोकपाल को नागरिकों द्वारा बदला जा सकता है I और ऐसी ही एक प्रक्रिया/पद्धति है जिसमे नागरिक `ना` रजिस्टर दर्ज करके `राइट टू रिजेक्ट` लोकपाल की तरह भी उसे प्रयोग कर सकते हैं|



खंड/धारा 6-(लोकपाल को निर्देश)

प्रत्येक महीने की 5 वीं तारीख को लोकपाल अध्यक्ष पिछले महीने के आखरी दिन तक के अनुमोदन/पसंद को वेबसाइट पर रखेगा I



खंड/धारा 7-( लोकपाल चयन समिति को निर्देश)

यदि कोई उम्मीदवार को 24 करोड से अधिक अनुमोदन/पसंद मिले और वो वर्त्तमान `नागरिकों द्वारा रखा गया/नियुक्त लोकपाल सदस्य` के अनुमोदन से एक करोड़ भी ज्यादा है ,तब लोकपाल चयन समिति वर्तमान `नागरिकों द्वारा रखे गए/नियुक्त लोकपाल सदस्य` को इस्तिफा देने के लिए कह सकता है और सबसे द्वारा अनुमोदन प्राप्त उम्मीदवार को लोकपाल का `नागरिकों द्वारा रखे गए/नियुक्त लोकपाल सदस्य` बनाएगा I लोकपाल चयन समिति 24 करोड की सीमा रेखा को कम या बढ़ा सकता है 12 करोड और 36 करोड के बीच |



खंड/धारा 8-(`नागरिक द्वारा रखे गए लोकपाल सदस्य` को बनाये रखने का अधिकार)

नागरिक यह प्रक्रिया/पद्धति का प्रयोग किसी `नागरिक द्वारा रखे गए लोकपाल सदस्य` को बनाये रखने के लिए या वापस लाने के लिए, यदि कोई `नागरिक द्वारा रखे गए लोकपाल सदस्य` को निकाल दिया गया था परन्तु नागरिक उसे पद पर बनाये रखना चाहते हैं I अतः यह खंड/धारा `लोकपाल को बनाये रखने का अधिकार`(राईट टू रिटेन) के लिए भी निर्दिष्ट किया जाता है/जाना जायेगा I



खंड/धारा 9-( लोकपाल को ख़ारिज करने का अधिकार(राईट टू रिजेक्ट))

यदि कोई नागरिक पटवारी के दफ्तर जाकर और किसी लोकपाल के कमिटी/समिति के सदस्य जो नागरिकों द्वारा रखा गया है ,का नाम लेकर उसके विरोध में `ना` दर्ज करवाना चाहे तो पटवारी उसका नाम दर्ज करेगा, मतदाता संख्या/नंबर और उम्मीदवार की संख्या/नंबर और 3 रुपया का शुल्क/ फी लेकर उसे रसीद देगा I और यदि 24 करोड नागरिक उस `नागरिकों द्वारा रखा गया लोकपाल सदस्य` के ऊपर `ना` दर्ज करवाते हैं, तो लोकपाल चयन समिति उसे लोकपाल सदस्य समिति से इस्तीफा देने के लिए विनती कर सकती है I



खंड/धारा 10-( कलेक्टर को निर्देश)

यदि कोई नागरिक इस कानून में बदलाव करना चाहे, तो वे अपना एफिडेविट जिला कलेक्टर के दफ्तर पर जमा करेगा और जिला कलेक्टर या उसके क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रुपये प्रति पन्ना का शुल्क/ फी लेकर लोकपाल के वेबसाइट पर रखेगा |



खंड/धारा 11-( तलाटी या पटवारी को निर्देश)

यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी खंड/धारा के विरोध दर्ज करवाना चाहे या किसी ऊपर दिए हुए खंड/धारा के द्वारा गए किसी जमा किये हुए एफिडेविट पर अपना हाँ/ना दर्ज करवाना चाहे तो वह तलाटी के दफ्तर जाकर ,अपने मतदान पत्र लेकर, तलाटी को 3 रुपये का शुल्क/ फी देना पड़ेगा | तलाटी हाँ/ना को लोकपाल के वेबसाइट पर दर्ज करेगा और उसे रसीद देगा |

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प्रश्न : क्या कोई व्यक्ती मतदाताओं को खरीद सकता है ऊपर दिए हुए प्रक्रिया/पद्धति में ?

उत्तर : नहीं | क्यों? Iयदि ऐसा मान लें कि कोई धनी/पैसे वाला व्यक्ती 100 रुपया देता है एक करोड नागरिकों को `हाँ` दर्ज करवाने के लिए तो खंड/धारा 5 के अनुसार वोटर अपने `हाँ` दर्ज किये हुए को अगले दिन बदल सकता है I अब यदि 1000 धनी व्यक्ती मिलकर अपना सारा पैसा भी खर्च करें, फिर भी वे हर नागरिक को प्रतिदिन 100 रुपया नहीं दे सकते I इसी लिए `हाँ` दर्ज करवाने के लिए किसी को खरीदना, ऊपर दिए हुए राईट टू रिकाल/`भ्रष्ट कों नागरिकों द्वारा बदले जाने का अधिकार`में संभव नहीं है I



प्रश्न : क्या करोडो नागरिक एक लोकपल उम्मीदवार कों पसंद करेंगे/अनुमोदन देंगे ?

उत्तर : निर्भर करता है कि लोकपाल कितने बुरे हैं और अच्छे विकल्प कितने हैं Iकुछ 60% से 75% नागरिक लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोट देते हैं बावजूद इसके कि उनके सामने जो विकल्प होते हैं, उनसे कोई नागरिकों कों कोई आशा नहीं होती Iइससे यह पता चलता है कि नागरिक बदलाव करने के लिए पहल जरूर करते हैं Iयदि विकल्प में उम्मीदवार होनहार/आशाजनक हैं, और यदि लोकपाल भ्रष्ट है तो नागरिक बदलाव करने के लिए पहल करेंगे I



प्रश्न : राइट टू रिकॉल जैसे कानून को अमरीका जैसे शिक्षित देश में ही सिमित रखना चाहिए न की भारत जैसे अनपढ़ देश में

उत्तर : अमरीका के पास अच्छी शिक्षा है क्योंकि वहाँ के नागरिकों के पास उनके जिला शिक्षा अधिकारी पर राइट टू रिकॉल है !! पर हमारे पास जिला शिक्षा अधिकारी पर राइट टू रिकॉल नहीं है और इसी कारण भ्रष्ट शिक्षा, शिक्षा के ऊपर खर्च होने वाले राशि को गायब कर देता है इसिलए अधिकतर नागरिक अशिक्षित रह जाते हैं I जब अमेरिका में राईट तो रिकाल आया था, वहाँ शिक्षित लोग बहुत कम थे |



राईट टू रिकाल और पारदर्शी शिकायत प्रणाली पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिए www.righttorecall.info/004.h.pdf देखें |



(32.4) पारदर्शी शिकायत/सुझाव प्रणाली के खंड/धारा पर अधिक जानकारी





वर्ष 2004 में मैंने अनेक कार्यकर्ताओं को सुझाव दिया कि हमें पारदर्शी शिकायत प्रणाली को भी उस समय के प्रस्तावित `सूचना के अधिकार अधिनियम(आर.टी.आई)` में जोड़ना चाहिए I अन्य शब्दों में, `सूचना के अधिकार` में एक खंड/धारा जोड़ीं जाये कि यदि कोई व्यक्ति/आवेदनकर्ता चाहता है कि उसकी शिकायत कोई सार्वजनिक वेबसाइट(जैसे प्रधान-मंत्री/लोकपाल की वेबसाइट) पर आये और जागरूक नागरिक अपना नाम तलाटी/पटवारी/लेखपाल के दफ्तर जाकर जोड़े Iमुझे यह उत्तर मिला की अभी के लिए `सूचना के अधिकार अधिनियम(आर.टी.आई)` बिना पारदर्शी शिकायत प्रणाली के रखेंगे और इसे हम बाद में जोड़ देंगे I 6 वर्ष बीत चुके है लेकिन वो `बाद` हमें अभी तक देखने को नहीं मिला I तो इस समय मैं सभी नागरिकों से विनती करता हूँ कि सुनिश्चित करें कि यह खंड/धारा 15 अगस्त के पहले तक जोड़ दिया जाए ना की बाद में | मैं पुनः विनती करता हूँ की आप सभी मेरे खंड/धारा का समर्थन न करे लेकिन 15 अगस्त के निश्चित समय के पहले कोई बेहतर खंड/धारा अवश्य लायें I मै विरोध करता हूँ ये तर्क का कि `प्रक्रियात्मक विवरण/जानकारी को अगले जन्म में आना चाहिए I मेरे विचार से सभी प्रक्रियात्मक विवरण/जानकारी 15 अगस्त के निर्धारित समय से पहले निश्चित कर लिए जाए I



लोकपाल बिल कहता है नागरिक अपने सुझावों को `खोज और चयन समितियों` में भेज सकते हैं I लेकिन इसके लिए कोई भी प्रक्रिया/पद्धति नहीं दी गयी है I मान लीजिए 1 लाख या 50 लाख या 20 करोड नागरिक अपने सुझाव भेजना चाहते हैं I सुझाव ई-मेल के द्वारा भेजना सही विकल्प नहीं होगा क्योंकी अनेक व्यक्ती हजारों जाली ई-मेल भेज सकते है I चिट्ठियाँ भेजना भी सही विकल्प नहीं होगा क्यूंकि `खोज और चयन समितियों` के पास इतना समय नहीं है की वह 1 लाख चिट्ठियों को खोले और पढ़े |और चिट्ठियों को नष्ट भी किया जा सकता है, `खोज और चयन समितियों` में पहुँचने के पहले | यदि `खोज और चयन समितियां` भ्रष्ट हों ,तो वे यह कह सकते हैं कि उन्हें किसी भी तरह के सुझाव नहीं मिली हैं | तो ये हमारा प्रस्ताव है की नागरिक एक एफिडेविट (अपनी सुझाव के साथ) जमा कर सकता है कलेक्टर के दफ्तर में और कलेक्टर उसे स्कैन करके लोकपाल की वेबसाइट पर रखेगा | यह सबसे अच्छा रास्ता है जो मैं सोच सकता हूँ , हालाँकि यदि कोई इससे अच्छी प्रक्रिया/पद्धति जनता है तो मैं उससे विनती करता हूँ की वह 15 अगस्त निर्धारित समय से पहले सबके सामने रखे, न कि अगले जन्म की प्रतीक्षा करे I



इस प्रस्ताव की दूसरी खंड/धारा यह है की नागरिक को यह अनुमति दी जाए कि कलेक्टर के दफ्तर में जमा कोई भी शिकायत पर अपने हाँ/ना को दर्ज कर सके ,तलाटी के दफ्तर जाकर | यह तब उपयोगी है जब हजारों, लाखों या करोड़ों नागरिकों की एक ही शिकायत है I वह सभी को एक सी शिकायत भेजने की जरुरत नहीं पड़ेगी I खंड/धारा 2 के हटने से केवल सिस्टम और देश को नुकसान हो जाएगा I



(32.5) राइट टू रिकॉल लोकपाल, राइट टू रिकॉल प्रधानमंत्री, राइट टू रिकॉल न्यायधीश इत्यादि पर अधिक जानकारी



राइट टू रिकॉल/प्रजा अधीन राजा/`भ्रष्ट को निकालने का अधिकार` कोई विदेशी विचार नहीं है I सत्यार्थ प्रकाश कहता है की राजा को प्रजा के अधीन होना ही चाहिए अन्यथा वह नागरिकों को लूट लेगा और और इस तरह देश का नाश हो जाएगा | दयानंद सरस्वती जी ने यह श्लोक अथर्ववेद से लिए हैं | तो राइट टू रिकॉल/प्रजा अधीन राजा कोई अमरीकी या विदेशी विचार नहीं है ,यह सम्पूर्ण भारतिय है I

अमरीका में नागरिकों के पास पुलसी कमिश्नर को निकलने का अधिकार है और यही एक मात्र कारण है की अमरीका के पोलिस में भ्रष्टाचार कम है इसी तरह अमरीका के नागरिकों के पास उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश और जिला न्यायधीशों को भी निकलने का अधिकार है |यही कारण है की कार्यवाही बहुत तेज होती है और अमेरिका के निचली अदालतों में भ्रष्टाचार बहुत कम है I अमरीका के नागरिकों के पास राज्यपाल, विधायक, जिला शिक्षा अधिकारी , मेयेर/महापौर, जिला/राज्य सरकारी दंडाधिकारी इत्यादि पर राइट टू रिकॉल है I यह ध्यान दें कि अमरीका में कोई भी लोकपाल (ओम्बुड्समेन/ प्रशासनिक शिकायत जाँच अधिकारी) नहीं है इसके बावजूद अमरीका के राज्य/जिलों में अधिकतर विभागों में भ्रष्टाचार कम है क्योकि अधिकतर राज्य/जिलो में राइट टू रिकॉल/`भ्रष्ट कों बदलने का अधिकार` है I वही अमरीका में केंद्र के मंत्रियों(सीनेटरों) और केन्द्र के अधिकारियो में भ्रष्टाचार अधिक मात्रा में है क्योंकि केंद्र के मंत्रियों और केन्द्र के अधिकारियो पर राइट टू रिकॉल नहीं है I





वर्ष 2004 में मैंने सुझाव दिया था कि हमें `राइट टू रिकॉल-सूचना अधिकार कमिश्नर(भ्रष्ट सूचना अधिकार कमिश्नर कों बदलने का नागरिकों का अधिकार)` के खंड/धारा `सूचना अधिकार अधिनियम(आर.टी.आई)` में लाया जाए अन्यथा ज्यादातर सूचना अधिकार कमिश्नर भ्रष्ट और बेकार/अयोग्य हो जाएँगे और सूचना अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई) के आवेदकों(उपयोग करने वाले) कों यहाँ-वहाँ भटकते ही रहना पड़ेगा जानकारी प्राप्त करने के लिए I लेकिन पुनः मुझे यह उत्तर मिला की हम एकता पर ही अधिक ध्यान देना चाहिए हम सूचना अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई) को बिना राइट टू रिकॉल के समर्थन करते हैं और अभी हम सूचना अधिकार कमिश्नर पर राइट टू रिकॉल का विरोध करते हैं हम सूचना-अधिकार कमिश्नर पर राइट टू रिकॉल बाद में लायेंगे Iयह बाद क्या है ? अगले जन्म में ? मेरे विचार से इस बार हमें यह मांग करनी होगी कि लोकपाल में राइट टू रिकॉल की खंड/धारा का ड्राफ्ट 15 अगस्त के पहले जुड जाना चाहिए I मै यह नहीं निवेदन/प्रार्थना करता हूँ कि मेरे राईट टू रिकाल-लोकपाल का ही समर्थन करें, मै यह विनती करता हूँ की आप इससे भी अच्छा प्रस्ताव प्रस्तुत करने की कोशिश करें I



कुछ व्यक्तियों ने जोर दिया है की वे राइट टू रिकॉल का समर्थन करते हैं पर वे लोकपाल में राइट टू रिकॉल लाने की चर्चा का भी विरोध करते हैं इस जन्म में Iवे यह बात पर जोर डालते हैं कि राइट टू रिकॉल ,सरपंच से शुरू होकर ऊपर की ओर जाना चाहिए | मुझे आश्चर्य है कि क्यों वे राइट टू रिकॉल लोकपाल पर नहीं लाना चाहते हैं वे कहते है कि यह पहले गांव और फिर तहसील और फिर जिला और फिर राज्य ,तब राष्ट्र स्तर पर लागू होना चाहिए I क्यों सर्वप्रथम केंद्र के लोकपाल पर नहीं मांग करते ?



उनका कहना कि राइट टू रिकॉल, सरपंच के स्तर पर ही होना चाहिए ना की केन्द्र/राज्य स्तर पर, यह तो ऐसा कहना हुआ की “एक रुपये का सिक्का लो और 100 रुपये , 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट को भूल जाओ ” और यह भी कहना है कि राइट टू रिकॉल आज से ही सरपंच पर ही होना चाहिए और राइट टू रिकॉल लोकपाल, राइट टू रिकॉल प्रधानमंत्री, राइट टू रिकॉल न्यायधीश पर बाद में लागू होना चाहिए | बाद में का अर्थ अगले जन्म भी हो सकता है |



राइट टू रिकॉल की अनुपस्थिति/गैर-हाजिरी में एक व्यक्ती जो पद में है , भ्रष्ट होकर सारी सीमाएं पार कर जाता है I उदाहरण के लिए , हाल ही में माननीय उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश (सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज) खरे ने एक स्विट्ज़रलैंड के अरबपति व्यक्ती को जिसने 38 वर्षीय बच्चियो का बलात्कार किया था और इसे वीडियो टेप किया था ,उसी निर्दयी व्यक्ती को जमानत दे दी थी I माननीय जज खरे ने वीडियो टेप होने के बावजूद उस अरबपति को जमानत दे दी जब कि निचली अदालत ने उसे अपराधी घोषित किया था I इस तरह के दुर्भाग्यपूर्ण फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज के ऊपर राइट टू रिकॉल न होने के कारण का फल है I इसी तरह यदि नागरिकों के पास लोकपाल को निकलने/बदलने का अधिकार ना हो तो वह भी माननीय सुप्रीम-कोर्ट के प्रधान जज की तरह भ्रष्ट/भाई-भतीजावाद वाला हो जाएगा I



अभी, `सिविल सोसाइटी` के कमिटी के सदस्य अभी पद में हैं और यह स्थिति में हैं कि वे पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम) और राइट टू रिकॉल-लोकपाल खंड/धारा को लोकपाल ड्राफ्ट में जोड़ सकते हैं I वह 5 मंत्री इस बात को स्वीकार कर या नहीं भी कर सकते है – यह एक अलग बात है I लेकिन यदि `सिविल सोसाइटी` के सदस्य खुद पारदर्शी शिकायत प्रणाली/ राइट टू रिकॉल-लोकपाल को 15 अगस्त के पहले जोड़ने का विरोध करेंगे, यह पूरी तरह दर्शाता है की राइट टू रिकॉल लाने की इनकी कोई मंशा नहीं है | मैं यह आशा करता हूँ की ऐसी बात न हो I



जय हिंद |



(32.6) लोकपाल बोल सकता है : तुमने शिकायत कभी नहीं भेजी |



हमने से कई लोगों ने ये देखा है कि सूचना अधिकार के लिए हम को एक जगह से दूसरी जगह भागना पड़ता है और सुचना अधिकार का कमिश्नर तारीख पर तारीख देता रहता है | अभी जनलोकपाल ड्राफ्ट कहता है कि परिणाम एक साल में आ जाएँगे | लेकिन ड्राफ्ट में, लोकपाल के खिलाफ कोई भी सज़ा नहीं बताई गयी , यदि लोकपाल मामले को सुलझाने के लिए 10 साल भी लगाता है | तो फिर, यदि हमारे लोकपाल ,हमारे प्रिय सूचना अधिकार के कमिश्नर जैसे ही हों , तो वे तारीख पर तारीख दे सकते हैं और सालों बिता सकते हैं | इसको रोकने के लिए कोई खंड हैं क्या ?



पहले , हम शिकायत करने के जनलोकपाल में दिए गए तरीके से शुरू करते हैं | उसमें लोकपाल को लिखित भेजनी होगी| मान लें कि आपने पचास पन्नों का पत्र रेजिस्ट्री से भेजा है , जिसमें शिकायत की अधिक जानकारी है | यदि लोकपाल शरद पवार जितना ईमानदार है ,तो फिर वो पहले 10 पन्ने निकाल देगा और तीन महीनों बाद, एक पत्र लिखेगा आपको कि “आपने पूरी शिकायत नहीं भेजी” |



इस तरह से ये एक चल/तरीका है जिसके द्वारा लोकपाल या लोकपाल का कोई भ्रष्ट कर्मचारी आप के साथ खेल सकता है , वो है कि “ ये आप की गलती है- आपने पूरी शिकायत नहीं भेजी” और फिर वो आप पर जुर्माना भी डाल सकता है , उसी तरह जैसे जज , जन-हित याचिका दायर करने वालों पर जुर्माना डालते हैं |



(32.7) प्रस्तावित प्रजा- अधीन लोकपाल के खंड को और अच्छे से समझाना चाहूँगा



प्रस्तावित प्रजा अधीन-लोकपाल के खंड जनलोकपाल के किसी भी खण्डों को समाप्त नहीं करेगा , यानी कि ये खंड सिर्फ जनलोकपाल या सरकारी लोकपाल के साथ जोड़े जाएँगे और जनलोकपाल या सरकारी ड्राफ्ट में से कुछ भी घटाया नहीं जायेगा | अब 24 करोड़ नागरिक कैसे निर्णय करेंगे कि कोई लोकपाल अच्छा है या नहीं इस पर निर्णय करता है कि आज का (वर्त्तमान) लोकपाल कितना अच्छा या बुरा है |



यदि आज का लोकपाल अच्छा है (या बुरा है ,लेकिन बुरा एक सीमा में है) , तो नागरिक कोई ध्यान नहीं देंगे | लेकिन यदि वर्त्तमान लोकपाल बहुत बुरा है, तो वो दूसरे लोकपाल के लिए देखेंगे/ढूंढेंगे | और इस प्रक्रिया/तरीके में पांच लोगों को स्वीकृति/समर्थन दे सकते हैं, इसीलिए एक अच्छे उम्मीदवार को समर्थन देने से दूसरे अच्छे उम्मीदवार को भी समर्थन दिया जा सकता है, ये कृपया ध्यान दीजिए |



और असल में , मुद्दा क्या है ? यदि नागरिकों के पास कोई व्यक्ति के लिए आम सहमति नहीं है, तो दूसरा व्यक्ति नहीं आएगा और बदलाव नहीं होगा | ये तो प्राकृतिक है | मुद्दा ये है कि क्या यदि नागरिकों कि कोई आम सहमति हो तो ? उदाहरण के लिए हम लोग अलग-अलग हैं लेकिन बहुत लोग `नरेंद्र मोदी ` को पसंद करते हैं | तो मेरे अनुसार आम सहमति हमेशा गायब नहीं रहेगी | और यदि आम सहमति है , तो क्या कोई दूसरे व्यक्ति को नहीं आने देना चाहिए ?



और कृपया अपना मन बनाएँ | एक तरफ कहते हैं --- अमीर आम सहमति बना कर मतदाताओं को खरीद लेंगे और अगले पल, हम सुनते हैं कि कोई आम सहमति नहीं होगी | जहाँ तक मैं सोचता हूँ , अमीर आदमी मतों को खरीद नहीं पाएंगे प्रस्तावित प्रजा अधीन-लोकपाल/राईट टू-लोकपाल की प्रक्रिया में, क्योंकि मतदातों को अपने मत/स्वीकृति रद्द करने की छूट है | इसलिए अमीर व्यक्ति को रोज 100 रुपये देना होगा करोड़ों लोगों को , जो संभव नहीं है ,यदि भारत के सारे अमीर भी एक साथ अपना पैसा लगाएं तो | तो पैसे से मतदातों को खरीदना प्रश्न से बाहर है |



इसी तरह , गुंडों और मीडिया द्वारा भी मतदाताओं को खरीदना संभव नहीं है क्योंकि गुंडे पालने के लिए भी पैसे लगते हैं और कोई महीनों के लिए इतने गुंडे नहीं रख सकता कि करोड़ों मतदातों को प्रभावित कर सके | और ये प्रक्रियाएँ आने पर मीडिया का `पैसे लेकर समाचार देना` बंद हो जायेगा क्योंकि पारदर्शी शिकायत प्रणाली (सिस्टम) खुद एक मीडिया होगा क्योंकि ये एक ऐसी जानकारी देगा जो कोई भी जांच सकता है , जो मीडिया नहीं देता |



प्रश्न- नागरिक लोकपाल के उम्मीदवार के बारे में कैसे जानेंगे ?

ये प्रक्रियाएँ/तरीके पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम) के साथ या द्वारा आएँगी | जिससे उसको ऐसी जानकारी मिलेगी जो वो स्वयं जांच सकता है क्योंकि हर शिकायत करता को अपना समर्थन देने के लिए अपना वोटर आई.डी और अंगुली की छाप देना होगा और वो सब वेबसाइट पर आ जायेगा |

इसीलिए फर्जी समर्थक ना के बराबर होंगे और मतदाता ये निर्णय कर सकता , इस के सहारे कि कौन सबसे अच्छा उम्मीदवार है, किसके खिलाफ सबसे कम शिकायतें आई हैं, किसको सबसे ज्यादा समर्थन मिले हैं , आदि |





(32.8) कैसे जनलोकपाल भारत को कमजोर बना सकता है और भारत विदेशी कंपनियों का गुलाम बनने में मदद कर सकती हैं



बहुत कम भारत के नागरिकों को ये सच्चाई समझ आई है – कि भ्रष्टाचार से दस गुना भारत में हो रहा है| क्या ? हमारी खेती, हथियार बनाने का सामर्थ्य/क्षमता और गणित/विज्ञानं की शिक्षा दिन बार दिन कमजोर हो रही है | ये इसीलिए क्योंकि विदेशी कम्पनियाँ, केंद्र और राज्य में हमारे मंत्रियों, बाबूओं को रिश्वत दे रही हैं , हमारी खेती, हथियार बनाने की ताकत और गणित/विज्ञान की शिक्षा को कमजोर बनाने के लिए | और जनलोकपाल इस स्थिति को और खराब बना सकती है | कैसे ?



लोकपाल चुनाव समिति में कोई 10-12 लोग हैं, जो बहू-राष्ट्रीय/विदेशी कम्पनियाँ आसानी से खरीद सकती हैं या धमकी दे सकती हैं , राडिया जैसे दलाल/बिचौलियों द्वारा | और इस तरह विदेशी कम्पनिय ये पक्का कर सकते हैं की विदेशी कंपनियों के एजेंट , साफ़-सुथरी छवि/नाम के साथ, लोकपाल बनें | इन लोकपाल के एजेंटों के साथ , विदेशी कंपनियां निचले स्तर के भ्रष्टाचार (कलेक्टर के स्तर के नीचे) को दबाएंगे, क्योंकि निचले स्तर के भ्रष्टाचार विदेशी कंपनियों को अधिक नुकसान करती हैं छोटे-माध्यम स्तर के व्यापारियों के मुकाबले | औरसाथ ही, लोकपाल खेती, हथियार बनाने की ताकत और गणित/विज्ञान शिक्षा को कमजोर बनने वाली नीतियां/तरीके को बढ़ावा देंगे , ताकि भारत और ज्यादा विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहें | विदेशी कम्पनियाँ ऐसी नीतियां को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं ? लोकपाल द्वारा बाबू, जज, मंत्रियों को परेशान करके(उनके खिलाफ झूठे मामले बनाकर) जो इन नीतियों/तरीकों का विरोध करते हैं और उन मंत्रियों, जज, बाबूओं का पक्ष/तरफदारी लेकर, जो ऐसी नितियों का समर्थन/मदद करते हैं |



(अलग से : मुझे समझाने दीजिए क्यों निचले स्तर का भ्रष्टाचार छोटे-माध्यम स्तर के व्यापारियों को फायदा करते हैं विदेशी कंपनियों के मुकाबले | मान लीजिए एक व्यक्ति दिल्ली, अहमदाबाद जैसे शहर में 5-10 होटलों का मालिक है | और एक और होटल खोलना चाहता है और स्थानीय अफसर उससे रिश्वत मांगते हैं, कहें 5 लाख की | तो वो रिश्वत दे देता है |



अब दूसरी और, एक विदेशी व्यापारी/मालिक अमेरिका में बैठा है और उसको भी एक और होटल खोलना है | मान लीजिए स्थानीय अफसरों को 5 लाख की रिश्वत चाहिए इस के लिए | अब विदेशी व्यापारी सीधे तो स्थानीय अफसर से सौदा नहीं कर सकता , इस के लिए उसे दलाल चाहिए | अब दलाल कहेंगे कि अफसर 50 लाख रिश्वत मांग रहे हैं !! विदेशी व्यापारी जो अमेरिका में बैठा है,को कोई साधन नहीं है , ये जानने का और वो 10 गुना रिश्वत देता है , उस के मुकाबले जो स्थानीय/देशी व्यापारी को देना होता है |



इसी तरह, छोटे-मध्यम व्यापारी बिक्री-कर/उत्पादन शुल्क आदि टैक्स/कर की चोरी करने में सफल हो जाता है, उस जगह भ्रष्टाचार होने के कारण, लेकिन विदेशी कम्पनियाँ 5-10 गुना ज्याद खर्चा करते हैं , क्योंकि उन्हें दलालों को बहुत हिस्सा देना पड़ता है | इसी लिए निचले स्तर की भ्रष्टाचार भारत के लिए लाभ/फायदा करेग , केवल तभी , यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रियों,सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जजों, सचिवों का भ्रष्टाचार कम हो तो | यदि मंत्रियों, जजों, आदि का भ्रष्टाचार वैसा ही रहता है और निचले स्तर का भ्रष्टाचार कम हो जाता है, तो इससे भारत देश को कोई फायदा नहीं होगा )



(32.9) क्या अन्ना राईट टू रिकाल (जनलोकपाल) के बारे में गंभीर है , और क्या जनलोकपाल/लोकपाल केवल टाइम-पास है ?



मान लीजिए मेरा समय बुरा है और मैंने आपसे एक लाख रुपये उधार लिए हैं | फिर मान लीजिए के मेरा समय बदल कर अच्छा हो जाता है , और आप मेरे से पैसे वापस देने के लिए कहते हैं| मैं आप को तुरंत एक लाख का एक चेक देता हूँ , लेकिन उसपर हस्ताक्षर करना भूल जाता हूँ| आप मेरे पास पचासों बार आते हैं और याद दिलाते हैं , लेकिन हर बार मैं चेक पर हस्ताक्षर करने से मना कर देता हूँ और कहता हूँ कि मैंने चेक तो आपको दे दिया है और आप का सारा पैसा दे दिया है |



हर बार ,जब मैं आप को चेक पर हस्ताक्षर करने के लिए कहता हूँ, तो आप कहते हैं “ क्या मैंने तुम्हें चेक नहीं दिया ?अब मुझे तरीका सम्बन्धी विवरण(जानकारी) और तकनिकी जानकारियां बता कर परेशान मत करो , आदि आदि | तो ऐसे में आप के पास , मेरे द्वारा दिया गया एक लाख का चेक है ,और उस चेक पर कोई हस्ताक्षर नहीं है !



आप उस चेक के बारे में क्या कहोगे ? आप मेरी पैसा लौटाने की नियत के बारे में क्या कहेंगे ? क्या आप मुझे ढोंगी/पाखंडी कहेंगे ?



उसी तरह अन्ना हजारे राईट टू रिकाल के ढोल इतनी जोरों से पीटता है कि बदल का गरजना भी कम पढ़ जाये | लेकिन अन्ना जी जनलोकपाल/लोकपाल ड्राफ्ट में राईट टू रिकाल-लोकपाल/प्रजा अधीन-लोकपाल के खंड डालने से मना करते हैं | बिकी हुई मीडिया (अखबार, टी.वी आदि) उनकी ये पोल नहीं खोलती है , और इसीलिए बहुत से लोगों को ये नहीं पता कि अन्ना ने राईट टू रिकाल-लोकपाल के खण्डों का विरोध किया है | क्या वो अगले जन्म में ये खंड डालेंगे ? ये मुझे नहीं पता | लेकिन अभी , अन्ना ने कोई भी रूचि नहीं दिखाई है प्रजा अधीन-लोकपाल/राईट टू रिकाल-लोकपाल के खंड डालने के लिए जनलोकपाल ड्राफ्ट में | तो आप अन्ना हजारे के नियत के बारे में क्या कहते हैं ? कृपया आप ये लेख सब को बांटें |और मैं `इंडिया अगेंस्ट कर्र्रप्शन` के कार्यकर्ताओं से विनती करूँगा कि अन्ना इस इमानदारी से पूछें कि प्रजा अधीन-लोकपाल/राईट टू रिकाल-लोकपाल पर अपना रुख स्पष्ट/साफ़ करें मीडिया के सामने | अन्ना क्यों मीडिया को नहीं कहते कि वे राईट टू रिकाल-लोकपाल/प्रजा अधीन-लोकपाल का विरोध करते हैं , जब वो असल में राईट टू रिकाल-लोकपाल की कलमों का विरोध कर रहे हैं ?



इसी तरह अन्ना ने जनलोकपाल बिल में `पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम)` के खंड डालने से मना कर दिया है , जो एक नागरिक को कोई मौजूदा शिकायत के साथ अपना नाम जोड़ने देता है , ताकि उसकी शिकायत ना दबे कोई नेता,बाबू, जज या मीडिया द्वारा और उसे नयी शिकायत डालने के लिए उसका धन बचे | ये ही है अन्ना की गरीब व्यक्तियों के लिए हमदर्दी !!



टाइम-पास जन लोकपाल बिल पर और जानकारी



1.) दिसम्बर-2010 में, अन्ना ने जनलोकपाल क़ानून के लिए मांग की | फरवरी-2010 तक , उन्होंने कानों की मांग की| मार्च-2010 के मध्य में, उन्होंने पलती मारी और समिति/कमीटी की मांग की !!! दूसरे शब्दों में टाइम-पास जून-जुलाई अन तक |

2.) उसके बाद सांसदों ने और सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने महीनो तक चर्चा की| अब , अन्ना कहते हैं कि वे दोबारा अनशन करेंगे यदि उनकी मांगें पूरी नैन हुई अगस्त-15 तक |

आशा करते हैं कि उनकी मांगें पूरी हो जायें |

3.) फिर बिल में लिखा है कि वो 4 महीनों बाद लागू होगा पारित होने के बाद !! तो ये एक और 4 महीनों का टाइम-पास |

4.) फिर बिल में लिखा है कि उप-राष्ट्रपति चुनाव समिति बनायेंगे और उप-राष्ट्रपति पर कोई समय-सीमा नहीं है | उसे महीनों लग सकते हैं चुनाव समिति बनने के लिए |

5.) क्या चुनाव समिति 11 लोकपाल की नियुक्ति तुरंत कर देगी? नहीं | जनलोकपाल बिल में लिखा है कि चुनाव समिति एक खोज-समिति बनाएगी !! फिर, चुनाव्व समिति को महीनों-महीनों लग सकते हैं खोज समिति चुनने के लिए |

6.) खोज समिति कई 100 की सूचि/लिस्ट को छांट कर 33 उम्मीदवार चुनेगी | फिर से , अन्ना का जनलोकपाल इसके लिए कोई समय सीमा नहीं देता | इस तरह खोज समिति को महीनों-महीनों लग सकते हैं |

7.)खोज समित इन 33 में से 11 चुनेगी | फिरसे कोई समय सीमा नहीं दी गयी है और ये भी एक टाइम-पास है | यदि 3-4 सदस्यों ने एक मिली-भगत बना ली और 33 नामों का विरोध किया , तो सभी चुने हुए नाम रद्द कर दिए जाएँगे !!

8.) इसके बाद लोकपाल आयेंगे और उनको छह महीने लग जाएँगे दफ्तर जमाने में और स्टाफ /कर्मचारियों की भर्ती करने में |

तो कुल मिलकर, हमारे पास कुछ नहीं , एक 2 सालों से लेकर दर्जों साल तक टाइम-पास ही है |

कोई हैरानी नहीं की सोनिया गाँधी ने अन्ना हजारे की मांगों को मान लिया क्योंकि ये टाइम-पास था | और कोई हैरानी नहीं कि सोनिया ने 5000 पुलिसवालों को रामदेवजी के समर्थकों को आधी रात को पीटने के लिए कहा और मंडप को जला देने के लिए कहा | क्योंकि रामदेव जी ने कहा “ मुझे काम चाहिए , समिति नहीं” जबकि अन्ना ने कहा कि मुझे (टाइम-पास) समितियां ही चाहिए |



(32.10) मुझ सताया गया है , इसीलिए मेरा प्रस्तावित क़ानून सही है !!



इतिहास को समझने के लिए सबसे अच्छा तरीका वर्त्तमान(आज) को समझना है |



बहुत लोगों ने मुझसे ये प्रश्न पूछा “ 1947 में, लाला लाजपत राइ, भगत सिंह जी, सुभाष चन्द्र बोस जी, आदि ने सही कहा था कि केवल बंदूकें ही हमें आजादी दे सकती हैं और फिर मोहनभाई(गाँधी) आये जिसने कहा कि हमको बंदूकें नहीं चाहिए, लेकिन चरखा-चलाने और भजन गाने से हमें आजादी मिलेगी | ऐसे फ़ालतू विचार पर लोगों ने विश्वास कैसे कर लिया | क्या सभी लोग उस समय मूर्ख थे ?”



असलियत ये है : 1930 और 1940 के दशक में भारतियों ने कभी भी ये फ़ालतू विचार को स्वीकार/माना नहीं | इसका सबूत ये है ---- सुभाष जी ने 1939 कांग्रेस के चुनाव जीते और मोहनभाई का चमचा पट्टाभाई हार गया , क्योंकि कांग्रेस कार्यकर्ता को कोई विश्वास नहीं था मोहनभाई के चरखा-चलाने और भजन-गाने में | लेकिन अंग्रेजों ने मीडिया को पैसे दिए मोहनभाई का गुण-गान करने के लिए और मोहनभाई के लिए एक भावनात्मक/भावुक समर्थन बनाया , और मोहनभाई ने इस भावात्मक समर्थन को ,चालाकी से प्रयोग/इस्तेमाल किया अपने खतरनाक “अहिंसा” सिद्धांत/असूल को आगे बढाने के लिए |



मैं क्यों `अहिंसा` को एक खतरनाक सिद्धांत/असूल कहता हूँ ?



इस अहिंसा के सिद्धांत/असूल के कारण , हिंदुओं ने फैसला किया कोई भी हथियार नहीं रखने के लिए | और केवल हथियार कि कमी के कारण, कुछ 10 लाख हिंदू मारे गए, कुछ एक करोड़ इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर हो गए और 4 करोड़ हिंदुओं ने अपनी सारी संपत्ति खो दी और 1947 के बंटवारे में , भागने के लिए मजबूर हो गए | और इसकी कोई गिनती नहीं कि कितने लाख महिलाएं/औरतों का बलात्कार हुआ, अफारण हुआ, जबरदस्ती/जबरन धर्म-परिवर्तन हुआ, और जबरदस्ती/जबरन शादी कराई गयी | ये मार-पीट और अव्यवस्था मोहनभाई के प्रस्तावित `अहिंसा` के बकवास के कारण ही था |



सब मिलाकर, अहिंसा सबसे ज्यादा खतरनाक असूल साबित हुआ जो भारत ने कभी देखा था |



क्या 1930 और 1940 के दशक में भारतीय इतने मूर्ख/बेवकूफ थे कि उन्होंने ये बकवास को देखा नहीं ? फिर क्यों उन्होंने इस बकवास के खिलाफ बोला नहीं ? ऐसा है, वे बेवकूफ थे | उन्होंने देखा था कि अहिंसा बकवास है, उन्होंने देखा था कि भजन-गाना, चरखा-चलाना बेकार है ,केवल टाइम-पास हैताकि कार्यकर्तओं के पास कम समय हो राजनीति और अन्य जरूरी विषय/मुद्दों पर बात करने के लिए | लेकिन समाचार-पत्रों ने इतना भावात्मक माहौल बना दिया मोहनभाई के लिए और मोहनभाई ने ये भावात्मक/भावुक माहौल का उपयोग/इस्तेमाल किया अपनी बात पर जोर डालने के लिए कि “ देखो, मैं अंग्रेजों द्वारा गिरिफ्तार किया जा रहा हूँ, मुझे सताया जा रहा है, इसीलिए मैं सही हूँ “ |



आज, हम वो ही घटना दोहराते हुए देख रहे हैं | कांग्रेस ने अन्ना हजारे को गिरफ्तार/कैद किया 6 बजे सुबह,आधी रात को नहीं, ताकि सारा देश टी.वी पर लाइव देख सके | उन्हें तिहार जेल में भेजा गया बजाय कि सरकारी गेस्ट-हाउस/अतिथि-गृह के , ताकि अन्ना हजारे जी को ज्यादा हमदर्दी/सहानुभूति मिले | हम सब को मालूम है कि कांग्रेस के बड़े नेता विदेशी कंपनियों के एजेंट है | ये सब ने अन्ना हजारे यानी मोहनभाई-2 के लिए हमदर्दी/सहानुभूति बड़ा दी| और अब अन्ना के साथी , चालाकी से ये हमदर्दी का दुरुपयोग कर रहे हैं “बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के जनलोकपाल” के लिए समर्थन दिखाने के लिए |

लगबग सभी लोगों ने , बहुत वफादार `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन` के कार्यकर्ताओं सहित, इस बात पर सहमत हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज पुलिस-कर्मियों जितने ही भ्रष्ट हैं | जिन लोगों से मैंने बात की , वो इस बात से सहमत हैं कि लोकपाल भ्रष्ट हो सकता है, वैसे ही जैसे मंत्री, सांसद, सुप्रीम-कोर्ट के जज ,सभी भ्रष्ट हो गए हैं | और इसीलिए वे “राईट टू रिकाल भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल(भ्रष्ट लोकपाल को आम नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार) के साथ जनलोकपाल “ की कीमत समझते हैं |



लेकिन अभी भावुक अपील/विनती का उपयोग करके , `बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल के जनलोकपाल`के प्रायोजक इस बात को आगे बढ़ावा दे रही है कि “ देखो , अन्ना जी को सताया जा रहा है और इसीलिए `बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल के जनलोकपाल` सही है “ | ये तो ऐसा हुआ जैसे कहना कि “ देखो , राजीव गाँधी ने अपनी माँ खोयी है, इसीलीये हम सब को उसके लिए वोट करना चाहिए “ | विदेशी कंपनियों द्वारा प्रायोजित टी.वी चैनलों और समाचार-पत्रों ने एक बहुत बड़ा भावुक माहौल खड़ा कर दिया है अन्ना जी के पक्ष में , और “ बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल /प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के जनलोकपाल “ के प्रायोजक इस का उपयोग/इस्तेमाल कर रहे हैं कहने के लिए “ देखो अन्ना जी को सताया गया , इसीलिए हमें बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल का समर्थन करना चाहिए “|



समाधान :



1.) हम `प्रजा अधीन-राजा` के कार्यकर्ताओं को खुले आम मांग करनी चाहिए चिदंबरम की पब्लिक में (सार्वजनिक) नारको-जांच के लिए , ताकि हमें उसके इरादे पता चलें अन्ना जी को गिरफ्तार करने में,और हमें सुप्रीम-कोर्ट के जजों को कहना चाहिए प्रभारी को गिरफ्तार/कैद करने के लिए जिसने अन्ना के गिरफ्तारी का गलत आदेश दिया था |

2.) फिर हमें सभी को ये समझाना चाहिये कि अन्ना जी को सताया गया है , इसका ये मतलब नहीं कि “ बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल के जनलोकपाल “ सही है | यदि नागरिकों के पास राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल नहीं होगा ,तो भ्रष्ट लोकपाल विदेशी कंपनियों के एजेंट बन जाएँगे और दूसरे विदेशी एजेंट के गिरोह जैसे सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ मिल जाएँगे और भारत को बरबाद कर देंगे |

3.) इसीलिए हमें “राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के साथ जनलोकपाल” का समर्थन करना चाहिए |



(32.11) कुछ महत्वपूर्ण सूत्र



1) `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन` का सबसे बड़े नेता ये कहते हैं कि यदि लोकपाल अध्यक्ष और सदस्य भ्रष्ट हो जाएँगे , तो सुप्रीम-कोर्ट के जज उन्हें निकाल देंगे |

हमारे पास पहले से ही क़ानून है कि यदि सांसद भ्रष्ट हो जाए, तो हाई-कोर्ट के जज/सुप्रीम-कोर्ट के जज उसे निकाल सकते हैं और इसके लिए *उन्हें किसी की भी इजाजत नहीं लेनी पड़ती | लेकिन हम ये देखते हैं कि हाई-कोर्ट के जज कभी भी सांसदों को जायज सज़ा नहीं देते या सज़ा देते ही नहीं |

इसीलिए ये “ सुप्रीम कोर्ट लोकपाल को सज़ा देंगे “ उतना ही बेकार है जितना कि “हाई-कोर्ट भ्रष्ट सांसदों को सज़ा देंगे” का प्रावधान/क़ानून है |

इसीलिए हमें `राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के साथ जनलोकपाल की धाराएं/खंड की मांग करनी चाहिए |

*(“सुप्रीम-कोर्ट के द्वारा प्रयोग/इस्तेमाल की जाने वाले अधिकारों की सीमा ,जब वो अन्याय का पीछा करता है , आसमान जितनी ऊंची है,सुप्रीम-कोर्ट की एक बेंच/खंडपीठ ने कहा है “

http://www.thehindu.com/news/national/article2288114.ece )



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2) क्यों जनलोकपाल बिना दांत का (बेकार ) होगा ,बिना नागिकों के द्वारा भ्रष्ट लोकपाल को निकालने/बदलने के अधिकार के ?

दोस्तों, भ्रष्टाचार और रिश्वत देना का पता चल जाता है , और स्पष्ट/साफ़ होता है लेकिन उसका कोई सबूत नहीं होता 99% मामलों में |

इसीलिए यदि,लोकपाल सदस्य भ्रष्ट हो जायें, और कोई शिकायत है , तब सुप्रीम-कोर्ट के जज जांच का आदेश देंगे |

लेकिन कौन ऐसा मूर्ख होगा जो करोड़ों की रिश्वत लेकर , अपने बैंक के खाते में रखेगा? सुप्रीम-कोर्ट कभी भी अपराध साबित नहीं कर पायेगी | क्यों ? कोई सबूत नहीं होगा |

लेकिन यदि नागरिकों के पास भ्रष्ट लोकपाल सदस्य को बदलने का अधिकार हो , `प्रजा अधीन-लोकपाल/राईट टू रिकाल-लोकपाल` के आने से, नागरिकों को भ्रष्टाचार का पता लग जाये लेकिन कोई साबुत नहीं हो तो भी | कोई भी जांच नहीं, कोई कमिटी नहीं, कोई देरी नहीं---जब करोड़ों लोग बोलेंगे तो सामूहिक दबाव बनेगा और लोकपाल को बदलना पड़ेगा |

आम नागरिकों को सत्ता |

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3) 65 सालों से , आप ( नेता , उच्च वर्ग और उनके एजेंट बुद्धिजीवी) बोल रहे हैं ` अभी नहीं , बाद में ` जब भी लोग `आम नागरिकों द्वारा भ्रष्ट को बदलने/सज़ा देने के अधिकारों` की मांग करते हैं |



65 साल पहले , एम.एन.रॉय ने ऐसी प्रक्रियाएँ/तरीकों की मांग की थी |

लेकिन एक नेता जिसका नाम नेहरु है,ने भ्रष्ट जजों और जमीन-मालिकों के साथ, बड़ी बेशर्मी से एक लोक-तांत्रिक प्रक्रिया/तरीका हटा दिया जिसका नाम `उरी सिस्टम` था बजाय कि उसको मजबूत करने के |तब नेताओं ने बोला `अभी नहीं` |

फिर, 1970 के दशक में, ज.पी.नारायणन ने भी ये मांग की थी, लेकिन आप ने बोला`अभी नहीं` |फिर , 2004 में राजीव दिक्सित और दूसरों लोगों ने सूचना अधिकार कमिश्नर के लिए ` भ्रष्ट सुचना अधिकार-कमिश्नर को नागरिकों द्वारा बदलने के अधिकार ` की मांग की, लेकिन जवाब आया `अभी नहीं` |

आप अब सच बोल क्यों नहीं देते `देश को बाढ़ में जाने दो , हम ऐसी प्रक्रियाओं/तरीकों का विरोध करते हैं जिससे आम नागरिकों को भ्रष्ट को बदलने/सज़ा देने का अधिकार मिले |`

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4) हम पुलिस कमिश्नर,कलक्टर,मंत्रियों, सांसदों,जजों आदि के भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं |

यदि “लोकपाल बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल/प्रजा अधीन-लोकपाल “ पास होता है, तो हम एक और संस्था के भ्रष्टाचार से लड़ना पड़ेगा ---- लोकपाल सदस्यों के भ्रष्टाचार से !!

इसीलिए यदि आपको केवल लड़ने के लड़ना अच्छा लगता है, तो `बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल के जनलोकपाल` को समर्थन करें |

लेकिन यदि आपका उदेस्श्य भ्रष्टाचार कम करना है, और सार्थक रूप से ये लड़ाइयां कम करना चाहते हैं ताकि हम कुछ ऐसा काम कर सकें जो आम जनता के फायदे का हो , तो कृपया `राईट टू रिकाल-लोकपाल के खंड/धाराओं के साथ लोकपाल/जनलोकपाल बिल ` को समर्थन करें |



(32.12) कुछ सुझाव `प्रजा अधीन-राजा`कार्यकर्ताओं के लिए `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी लोगों के समय-बर्बादी योजना से निबटने/पेश आने के लिए



जैसे कि `प्रजा अधीन-राजा` के प्रक्रियाएँ/तरीके/ड्राफ्ट को ज्यादा स्वीकृति मिलती है, `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी लोग कोशिश करेंगे कि `प्रजा अधीन-राजा` कार्यकर्ताओं का समय बरबाद करने के लिए बेकार के बहस में , ताकि `प्रजा अधीन-राजा` के ड्राफ्ट-तरीके/प्रक्रियाएँ ज्यादा फैलें नहीं |

इसीलिए कुछ सुझाव दे रहा हूँ , कि किस तरह बहस करना चाहिए `प्रजा अधीन-राजा ` के प्रक्रियाओं/तरीकों पर –

1) आज के प्रक्रियाओं/तरीकों को प्रस्तावित प्रक्रियाओं/तरीकों से तुलना करनी चाहिए और देखना चाहिए कि कैसे वे देश को फायदा या नुकसान करती हैं, कोई परिस्थिति में –

`प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी ये कोशिश करेंगे `प्रजा अधीन-राजा` कि कमियाँ बताने के लिए | वे बहस को एक-तरफा करने कि कोशिश करेंगे , यानी कि `प्रजा अधीन-राजा` के ड्राफ्ट के कमियां ही कि बात हो ,बिना वर्त्तमान(आज के ) सिस्टम से या उनके पसंद के कानूनों से तुलना करने के |



2) कृपया सभी को अपना रूख साफ़ करने के लिए कहें किसी मुद्दे या ड्राफ्ट-क़ानून पर (अभी, अगले जन्म में नहीं) |

बिना `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी के अपना रुख साफ़ किये , बहस करना समय की बर्बादी है |

उदाहरण – `क्या आप/वे समर्थन करते हैं या विरोध करते हैं `जनलोकपाल बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल /प्रजा अधिना-भ्रष्ट लोकपाल के खंड/धाराएं का ?



यदि वे कहते है-कि वे उसका विरोध करते हैं, तो पूछें कि वे क्या कर रहे हैं , उसका समर्थन करने के लिए ?

यदि वे कहते हैं कि वे उसका समर्थन कर रहे हैं, तो उनको कहें उन खंड/धाराओं को कॉपी पेस्ट करने के लिए , जो जनलोकपाल बिल/क़ानून में हैं, जिसके द्वारा लोकपाल रिश्वत लेने और विदेशी बैंकों में जमा करने से रोक सकती हैं और देश को विदेशी कम्पनियाँ आदि, सबसे ज्यादा रिश्वत देने वाले को बेच देंगे | कृपया खंड/धाराएं डालने पर जोर दें क्योंकि धाराओं के बिना , `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी जानबूझ कर या अनजाने में, गलत तथ्य/बातें बता सकते हैं , जो क़ानून के धाराओं/खंड में नहीं लिखी गयी हैं , उदाहरण., वे कहते हैं कि जनलोकपाल बिल/क़ानून के अनुसार `आम नागरिक लोकपाल को निकाल सकते हैं |` लेकिन सच्चाई ये है, कि कोई भी , सुप्रीम कोर्ट के जज के आदमी सहित /समेत, एक याचिका डाल सकता है , जिसके बाद सुप्रीम-कोर्ट जज फैसला करेंगे कि लोकपाल को निकालना है कि नहीं |



यदि वे खंड/धाराएं दिखाते हैं जो कहती हैं कि सुप्रीम-कोर्ट के जज भ्रष्ट लोकपाल को निकालेंगे , तो पूछें कि सभी शक्तियों/अधिकारों वाले सुप्रीम-कोर्ट के जज क्यों भ्रष्ट सांसद ,मंत्रियों को उचित सज़ा नहीं दे रहे और सुप्रीम-कोर्ट के जज, यदि ईमानदार भी हुए तो भी लोकपाल को बिना सबूतों के सज़ा नहीं दे पाएंगे | क्योंकि विदेशी/स्विस बैंक, स्विस-बैंक खातों और लेन-देन की जानकारी नहीं देंगे |



यदि वे कहते हैं, कि सुप्रीम-कोर्ट के जज, मंत्रियों, सासदों को सज़ा तो देते हैं, को फिर पूछें कि क्यों उनको लोकपाल बिल को लाने की जरुरत है और क्यों वे सुप्रीम-कोर्ट के जज को नहीं लिखते हैं, जिनपर उनको इतना विश्वास है बजाय कि करोड़ों रुपये लोकपाल पर खर्च करने के ?





यदि वे कहते हैं कि सुप्रीम-कोर्ट के जजों के पास अधिकार नहीं हैं सांसद, मंत्रियों को सज़ा देने या उनपर कार्यवाई करने के लिए तो उन्हें `हिंदू` समाचार पत्र में ये लेख दिखाएँ , जहाँ सुप्रीम-कोर्ट के जज कह रहे हैं कि `उनके अधिकारों की सीमा आसमान जितनी ऊंची है ` |



(“The limits of power exercised by the Supreme Court when it chases injustice, are the sky itself, a Bench of the apex court has said.

http://www.thehindu.com/news/national/article2288114.ece )



3) नाम जरूरी नहीं है, प्रक्रिया/तरीका/विधि जरूरी है |

तीन राज्यों में –राजस्थान, बिहार और छत्तीसगढ़ में, एक क़ानून है, जिसका नाम है `राईट टू रिकाल-कार्पोरेटर` लेकिन इन तीनों राज्यों में इस के प्रक्रियाएँ/तरीके अलग-अलग हैं और हमारा प्रस्तिवित क़ानून भ्रष्ट कर्पोराटर(पार्षद) को बदलने/निकालने के लिए अलग है | इसीलिए कृपया प्रक्रिया पर ध्यान दें और `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी को बोलें कि ड्राफ्ट/क़ानून के धाराएं को प्रस्तुत करे/बताये , जिसके बारे में बात कर रहा है |



4) कृपया केवल प्रक्रिया और धाराओं/खंड पर ध्यान दीजिए , कैसे वे हमारे देश को फायदा या नुकसान करेंगी कोई परिस्थिति में |

`प्रजा अधीन-रजा` के विरोधी अपनी पूरी कोशिश करेंगे असली मुद्दे से हटाने के लिए , व्यक्तियों के बारे में बात कर के और व्यक्तियों को एक दूसरे से तुलना कर के | केवल प्रक्रियाएँ/तरीके सिस्टम में बदलाव ला सकती हैं, अच्छी या बुरी | इसीलिए , कृपया प्रक्रियाएँ/तरीकों पर ध्यान दीजिए |

और, प्रक्रिया/तरीका बताता है कि क़ानून अच्छा है या बेकार | ऊपर लिखित `प्रजा अधीन-कोर्पोरेटर` क़ानून तीनों राज्यों में एक दम बेकार हैं क्योंकि वे आम नागरिकों को भ्रष् कोर्पोरेटर को हटाने/बदलने का अधिकार नहीं देते | उदाहरण- बिहार का `राईट टू रिकाल-कोर्पोरेटर`क़ानून कहता है कि उस क्षेत्र के 66% नागरिक, यदि अपने हस्ताक्षर इकठ्ठा करके कलेक्टर को दें, तो कलेक्टर हस्ताक्षरों की जांच करेगा , और यदि हस्ताक्षर सही पाए गए , तो वो कोर्पोरेटर हटा दिया जायेगा | लेकिन ,हमारे देश में हस्ताक्षरों की जांच नहीं हो सकती क्योंकि सरकार के पास नागरिकों के हस्ताक्षरों का कोई रिकोर्ड नहीं है | इसीलिए हमें, प्रक्रियाएँ/तरीकों और ड्राफ्ट और उनके धाराओं पर ध्यान देना चाहिए, केवल प्रस्ताव पर नहीं |



5) दो देशों या दो क्षेत्रों के भ्रष्टाचार की तुलना करना -

दो देशों या दो क्षेत्रों के भ्रष्टाचार की तुलना करते समय, भ्रष्टाचार को एक देश/क्षेत्र के विभाग से दूसरे देश/क्षेत्र के विभाग से तुलना करें , जिला,राज्य और राष्ट्र स्तर पर | जो प्रक्रियाएँ/तरीके अभी (वर्त्तमान) हैं, उनकी तुलना प्रस्तावित प्रक्रियाएँ/तरीकों से करें और सटीक/सही परिस्थिति दें कि कैसे प्रस्तावित प्रक्रियाएँ/तरीके देश को नुकसान या फायदा पहुंचा सकते हैं वर्त्तमान/मौजूदा प्रक्रियाएँ/तरीकों कि तुलना में , प्रक्रियाओं-ड्राफ्ट के खंड/धाराओं को बताते हुए |



(32.13) कुछ और चालें जो `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी जो इस्तेमाल करते हैं असल मुद्दे से हटाने के लिए



बहुत जल्दी , सभी नेता `प्रजा अधीन-राजा` की बात करने पर मजबूर हो जाएँगे और असल मुद्दे से ध्यान हटाने से कोशिश करंगे , यानी भ्रष्ट लोकपाल , प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जज, आदि आम नागरिकों द्वारा से ध्यान हटाने कि कोशिश करेंगे |

हमें कार्यकर्ताओं को बताना है वे चालें जो `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी इस्तेमाल करते हैं असली मुद्दे से हटाने के लिए | कौन सी चालें ?



1. `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी बेकार और प्रबंध न किया सकने वाला हस्ताक्षर-आधारित प्रक्रिया पर जोर देंगे और हाजिरी-आधारित भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने की प्रक्रियाएँ/तरीकों का विरोध करेंगे |

और इसीलिए हम कार्यकर्ताओं को बताएँगे कि सच्चे `प्रजा अधीन-राजा` के कार्यकर्ता हमेशा `हाजिरी वाले भ्रष्ट को बदलने के तरीकों ` को समर्थन करेंगे | हजारी वाले तरीकों में ,व्यक्ति को खुद पटवारी/टालती के दफ्तर जाना होता है और अधिकारी के विकल्प को समर्थन देना होता है | जबकि हस्ताक्षर वाले तरीके में, कार्यकर्तओं को हस्ताक्षर इकठ्ठा करना होता है और सरकारी अफसर को हस्ताक्षर जांच करना होता है, जो कि संभव नहीं है क्योंकि हमारे देश में सरकार के रिकोर्ड में नागरिकों का हस्ताक्षर नहीं है |



2. `प्रजा अधीन-राजा ` के विरोधी `प्रजा अधीन-सरपंच`,`प्रजा अधीन-कोर्पोरेटर (पार्षद) आदि का समर्थन करेंगे और `प्रजा अधीन-लोकपाल , `प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री` का विरोध करेंगे |

हमें सभी कार्यकर्ताओं को बताना है कि ऐसा व्यक्ति जो `प्रजा अधीन-सरपंच` जैसे भीख और चिल्लर की बात करता है , वो नकली `प्रजा अधीन-राजा` का समर्थक है | क्योंकि ये सब पद-सरपंच , कोर्पोरेटर आदि के पास `प्रधानमंत्री ,मुख्यमंत्री आदि के मुकाबले कुछ खास अधिकार नहीं होते और इसीलिए ऐसे पदों पर `प्रजा अधीन-राजा`भीख समान है |



3. `प्रजा अधीन-राजा` का विरोधी ड्राफ्ट/मसौदे पर चर्चा से बचना कहेगा |

हमें उसका सामना करना चाहिए और उसकी बेइज्जती भी करनी चाहिए कि “ क्या तुम ड्राफ्ट अगले जन्म में दोगे? “

और भी चलें हैं | मैं बाद में सभी चालों की लिस्ट/सूची बनंगा जो ,`प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी इस्तेमाल करते हैं | और हमें कार्यकर्ताओं को जवाबी चलें भी पहले से बतानी हैं |



(32.14) बिना `राईट टू रिकाल-लोकपाल (प्रजा अधीन-लोकपाल) जनता द्वारा` के जनलोकपाल का खेल और कैसे विदेशी कम्पनियाँ लोगों का गुस्सा का इस्तेमाल कर रही हैं भारत को फिर से गुलाम बनने के लिए



क्या होगा यदि जनलोकपाल विदेशी कंपनियों से रिश्वत लेते हैं और विदेशी बैंकों में पैसा जामा कर देते हैं और इस तरह विदेशी कंपनियां या ईसाई धर्म-प्रचारकों के या सौदी अरब के इस्लाम के धर्म-प्रचारकों के एभ्रष्ट एजेंट बन जाते हैं ?

मैं एक सवाल पूछता हूँ-क्या होगा यदि जनलोकपाल भ्रष्ट हो जाते हैं ? उससे भी बुरा कि वे विदेशी कंपनियों से रिश्वत लेते हैं, और विदेशी बैंकों में पैसा जमा करके , विदेशी कंपनियों ,ईसाई धर्म-प्रचारकों, इस्लामी कट्टरपंथियों के एजेंट बन जाते हैं ?

क्या यदि 2012 की चुनाव समिति, खुद इन एजेंटों से भर जाती है, जो ऐसे व्यक्तियों को लोकपाल बनाये जिनकी साफ़-सुथरी छवि/नाम है , लेकिन अंदर से विदेशी कंपनियों के एजेंट हैं ? इसका जवाब ये समझायेगा कि क्यों टी.वी चैनल `बिना `नागरिकों द्वारा भ्रष्ट लोकपाल को निकालने के अधिकार (राईट टू रिकाल-लोकपाल) के धाराओं के साथ जनलोकपाल का घंटो-घंटों प्रचार कर रहे हैं |

विदेशी कंपनियों को जनलोकपाल चाहिए ताकि उनको केवल 11 जनलोकपाल को रिश्वत या प्रभावित करने होगा और उनको हज़ारों आई.ऐ.एस(बाबू), पुलिसकर्मी,जज को रिश्वत नहीं देनी पड़ेगी | हर जिले के आई.ऐ.एस(बाबू),पोलिस-कर्मी,जजों,पार्टियों के 10-15 प्रधान/मुखिया/प्रमुख/अध्यक्ष होते हैं और कुछ 50-75 प्रधान ,हर राज्य में होते हैं | कुल मिलाकर कुछ 10,000 जिले स्तर के प्रधान और कुछ 2000 राज्य स्तर के प्रधान हैं| इनको संभालने के लिए , विदेशी कंपनियों और ईसाई धर्म-प्रचारकों को `राडिया` के तरह के बिचौलिए चाहिए, जो 200-500 % अपना हिस्सा/मुनाफा रखते हैं | लेकिन एक बार 11 जनलोकपाल आ जाते हैं, विदेशी कंपनियों और मिशनईसाई धर्म-प्रचारकों) को केवल 11 जनलोकपाल को ही रिश्वत देनी पड़ेगी और सारे 10,000 जिले स्तर के नेता/आई,ऐ.एस(बाबू)/पोलिस-कर्मी/जज और 2000 राज्य या राष्ट्रिय स्तर के नेता/आई.ऐ.एस/पोलिस-कर्मी/जज ,इन 11 जनलोकपाल के नीचे आ जाएँगे और भारतीय प्रशासन पर पूरा नियंत्रण/शाशन कर पाएंगे अपने एजेंटों द्वारा |

कई सालों से ,मैं सभी भारत-समर्थक/शुभ-चिन्तक लोगों को बोल रहा हूँ कि ऐसे कानून-ड्राफ्टों की चर्चा करें और पढ़ें जिनके द्वारा वे भारतीय प्रशासन को ठीक कर सकते हैं और सभी साथी नागरिकों को ऐसे कानों-ड्राफ्ट के बारे में बताएं | लेकिन , दुःख कि बात है, कि बहुत कम लोगों ने मुझे सुना | ज्यादातर भारत-समर्थक/शुभ-चिन्तक नागरिकों ने अपने नेता की बात को सुना, जिन्होंने जोर दिया कि क़ानून-ड्राफ्टों को छोड़ देना चाहिए और इसके बदले हम को ये चीजों पर ध्यान देना चाहिए –



1. राष्ट्रिय चरित्र/व्यवहार बनाना –इसका जो भी मतलब है ( आर.एस.एस का विषय/मुद्दा)

2. नागरिकों को योग, प्राणायाम, आयुर्वेद के बारे में बताना ( भारत स्वाभिमान न्यास का विषय/मुद्दा)

3. केवल कांग्रेस के खिलाफ नफरत फैलाना (भा.जा.पा. का विषय/मुद्दा)

4. सदस्य बनाना और दान लेना (आर.एस.एस ,भा.जा.प् , भारत स्वाभिमान का विषय/मुद्दा)

5. आध्यात्मिक उन्नति (आर्ट ऑफ लिविंग और अन्य अआध्यत्मिक संस्थाएं)

6. शिक्षा, पर्वावरण (अलग-अलग स्वयं सेवी संस्थाएं)

7.चुनाव जित्त्ने पर ध्यान (आर. एस.एस, भा.जा.पा.,आदि पार्टियां)



आदि ,आदि | कुल मिलाकर, 24 घंटे हर दिन, 7 दिन हर हफता , सभी चीजें करें , लेकिन ,एक मिनट भी नहीं लगाएं ड्राफ्ट को पड़ने में , या अन्य नागरिकों को ड्राफ्ट के बारे में | और सालों से ,मैं ये सुझाव दे रहा हूँ कार्यकर्ताओं को नागरिकों को बोलें कि प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री को मजबूर करें कि अच्छे(और कम बुरे) कानूनों को लागू करने के लिए जो भारत की समस्याएं को कम करता है | कौन सांसद, विधायक ,प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री, आदि बनता है , वो इतना जरूरी/महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए |



इस तरह कानूनों में सुधार नहीं आया , नागरिकों का गुस्सा बढ़ता गया और इससे विदेशी कम्पनियाँ/ईसाई मिशनों(प्रचारक) को ये “ जनलोकपाल बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल जनता द्वारा` को लाने के लिए प्रयोजन करने के लिए | हमें क्यों मुश्किल हो रही है “ जनलोकपाल राईट टू रिकाल-लोकपाल नागरिकों द्वारा के साथ “ का प्रचार करने के लिए ? इसीलिए नहीं कि `राईट टू रिकाल` मुश्किल है समझाने के लिए या समझने के लिए | इसलिए कि कार्यकर्त्ता-नेता बोल रहे हैं कार्यर्ताओं को कि क़ानून-ड्राफ्ट पर ध्यान नहीं दो |



दशकों से , भारत में माध्यम वर्ग/दर्जे के लोग ,को कष्ट झेलना पड़ रहा है , केवल भ्रष्टाचार से ही नहीं, बल्कि देरी, समय की बर्बादी, और एक सामान्य अनिश्चितता महसूस होती है जब भी सरकारी दफ्तर और कोर्ट जाते हैं | निचले वर्ग/दर्जे के लोगों को भी ये हर समय सामना करना पड़ता है और इसके अलावा, अत्याचार भी सहना पड़ता है | कार्यकर्ता हर समय उन कानूनों के लिए प्रचार करने के लिए तैयार रहते हैं जो ,इस समस्या को कम कर दे | लेकिन कार्यकर्त्ता-नेता कार्यकर्ताओं को “ठहरो और देखो” के लिए कर पाए और इसीलिए कार्यकर्ताओं ने केवल ठहरा और देखा ,और क़ानून-ड्राफ्ट के लिए प्रचार नहीं किय , जो भ्रष्टाचार, कष्ट, अनिश्चितता, अत्याचार आदि को कम कर सकते थे | इसीलिए गुस्सा बढ़ता गया |



विदेशी कम्पनियाँ और ईसाई मिशन/धर्म-प्रचारकों ने अपने टी.वी. चैनलों को तैनात किया , इस गुस्से को सांसदों केतारफ मोड़ने के लिए और उन पर दबाव डालने के लिए , एक ऐसे क़ानून पास करने के लिए जो विदेशी कंपनियों और ईसाई धर्म-प्रचारकों का भारत पर नियंत्रण को और बढ़ाएगा | कोई देख सकता है कि घंटों-घंटों टी.वी चैनलों ने दिए हैं , जनलोकपाल को बढ़ावा करने में और उन लोगों का प्रचार करने के लिए जो जनलोकपाल का समर्थन करते हैं | भारत के कितने लोग अन्न को मार्च-2011 में जानते थे ? कुछ 20% लोग महाराष्ट्र में जानते थे और बाकी भारत में केवल 0.1% ही लोग जानते थे | लेकिन अन्ना ने जनलोकपाल का समर्थन किया और विदेशी कंपनियों ने उसे मोहनभाई-2 बना दिया | और अन्ना जी असल में मोहनभाई-2 ही है, क्योंकि मोहनभाई (गांधी) का प्रचार अभियान के लिए पैसे भी अंग्रेजों(उस समय के विदेशी कम्पनियाँ) द्वारा ही किया गया था |



और इस तरह जनलोकपाल का खेल है कि लोगों के गुस्से का प्रयोग/इस्तेमाल करना , सांसदों को मजबूर करना एक ऐसे क़ानून को लागू करने के लिए, जो विदेशी कंपनियों और ईसाई धर्म-प्रचारकों को ज्यादा आसानी से भारत पर नियंत्रण/शाशन करने दे |



इन सब के लिए मीडिया और `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन के नेताओं` द्वारा बहुत सारे झूठ बोले जा रहे हैं|

उनमें से कुछ ये हैं , सच्चाई के साथ –



1) शिकायत निवारण प्रणाली आने से आप का राशन कार्ड सही बनेगा , रोड सही बनेगी आदि आदि |

सच्चाई – ये सब अधिकार मंत्रियों के पास भी है , लेकिन भ्रष्ट मंत्रियों के पास इन सब के लिए समय नहीं है ,वे विदेशी कंपनियों से रिश्वत लेकर विदेशी गुप्त खाते में रखने में व्यस्त हैं | ऐसे ही लोकपाल भी भ्रष्ट हो कर करेगा |



2) हांगकांग जैसा स्वतंत्र लोकपाल सिस्टम हमारे देश में लाया जा रहा है , जिससे भ्रष्टाचार कम होगा |

सच्चाई- हांगकांग में लोकपाल स्वतंत्र नहीं है, विधान सभा द्वारा चुनी जाती है और निकाले जाते हैं |

और हांगकांग में भ्रष्टाचार का कम होने का असली कारण लोकपाल जैसा क़ानून नहीं, मजबूत किया गया जूरी सिस्टम है | 1997 के बाद वहाँ जूरी सिस्टम को मजबूत किया गया और भ्रष्टाचार कम हुआ है | वहाँ का लोकपाल फेल है क्योंकि वहाँ लोकपाल के अध्यक्ष को ही जूरी ने भ्रष्ट पाया |और जिन देशों में जूरी सिस्टम नहीं है और केवल लोकपाल है, वहाँ पर भ्रष्टाचार बढ़ा जैसे फिलिपिन |



3) लोकपाल स्वतंत्र होगा, नेताओं से कोई प्रभावित नहीं होगा, सारा सिस्टम पारदर्शी होगा –

सच्चाई- लोकपाल हमेशा जजों , जो लोकपाल को निकाल सकते हैं , के धमकियों के प्रभाव में रहेगा| नेताओं और विदेशी कंपनियों का जजों पर नियंत्रण होता है और उनके द्वारा ,लोकपाल ,उनके प्रभाव में रहेगा |



4) जनलोकपाल की शिकायत प्रणाली(सिस्टम)- जैसे की पहले लिखा गया है, जनलोकपाल में शिकायत डालने के लिए किसी को एफ.आई.आर लिखवाना होगा और फिर उस इफ.आई.आर को लोकपाल को भेजना होगा , शिकायत के साथ लोकपाल अपनी वेबसाइट पर हर महीने , सारी शिकायतों का सारांश वेबसाइट पर रखेगा |

सच्चाई- लोकपाल शिकायतों के साथ छेड-छाड कर सकता है बड़ी आसानी से और ऐसी शिकायोतों को दबा सकता है जो लाखों लोगों की है |लोकपाल केवल शिकायतों का केवल सारंश और संक्षिप्त रूप ही दे सकता है और लोकपाल कह सकता है कि उसने मामले की जांच की है, भले उसने जांच की हो या नहीं की हो | ऐसा इसीलिए क्योंकि लोकपाल के पास सर्वाधिकार रहेगा | ऐसा हो सकता है कि किसी बढ़ी शिकायत की सुनवाई ना करे जो करोड़ों लोगों की हो और जिनके पास महेंगे/बड़े वकील न हों| लोकपाल ऐसी शिकायत परदेरी भी कर सकता है ,उसे महत्वहीन /गैर-जरूरी बताते हुए |



और भी अन्य झूठ बोले जा रहे हैं | इसलिए कृपया पूरा बिल पढ़ें , क्योंकि पूरा बिल पास होना है |

कुल मिलाकर, विदेशी कम्पनियाँ सफल हुई हैं, लोगों को गलत रास्ते पर ले जाने के लिए | ये मुख्य रूप से इसीलिए हुआ क्योंकि नेताओं और कार्यकर्ता-नेताओं ने कार्यकर्ताओं को सही रास्तों की तरफ देखने से रोका | जब ऐसे नेता आस-पास हों , तो विदेशी कंपनियों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी है , भारत पर नियंत्रण/शाशन करने , उसको गुलाम बनने के लिए और देश के 99% लोगों को लूटने के लिए |

Sunday, August 21, 2011

क्या है ये ''सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम एवं लक्षित हिंसा (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक, 2011 ''



सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम एवं लक्षित हिंसा (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक, 2011 नामक प्रस्तावित विधान का मसौदा सार्वजनिक कर दिया गया है। प्रकट रूप से विधेयक का प्रारूप देश में साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने और इस संबंध में दंड दिये जाने के प्रयास के तौर पर नजर आता है। यद्यपि स्पष्ट रूप से प्रस्तावित कानून का यह मतंव्य है, तथापि इसका अमल मतंव्य इसके विपरीत है। यह एक ऐसा विधेयक है कि यदि यह कभी पारित हो जाता है तो यह भारत के संघीय ढांचे को नष्ट कर देगा और भारत में अंतर-सामुदायिक संबंधों में असंतुलन पैदा कर देगा।

विधेयक की विषय-वस्तु : विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है 'समूह की परिभाषा। समूह से तात्पर्य पंथिक या भाषायी अल्पसंख्यकों से है, जिसमें आज की स्थितियों के अनुरूप अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को भी शामिल किया जा सकता है। विधेयक में दूसरे चैप्टर में नये अपराधों का एक पूरा सेट दिया गया है। खंड 6 में यह स्पष्ट किया गया है कि इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध उन अपराधों के अलावा है जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अधीन आते हैं। क्या किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित किया जा सकता है? खंड 7 में निर्धारित किया गया है कि किसी व्यक्ति को उन हालात में यौन संबंधी अपराध के लिए दोषी माना जायेगा यदि वह किसी 'समूहÓ से संबंध रखने वाले व्यक्ति के, जो उस समूह का सदस्य है, विरूद्ध कोई यौन अपराध करता है। खंड 8 में यह निर्धारित किया गया है कि 'घृणा संबंधी प्रचार उन हालात में अपराध माना जायेगा जब कोई व्यक्ति मौखिक तौर पर या लिखित तौर पर या स्पष्टतया अम्यावेदन करके किसी 'समूह आव किसी 'समूह से संबंध रखने वाले व्यक्ति के विरूद्ध घृणा फैलाता है। खंड 9 में साम्प्रदायिक तथा लक्षित हिंसा संबंधी अपराधों का वर्णन है। कोई भी व्यक्ति अकेले या मिलकर या किसी संगठन के कहने पर किसी 'समूह के विरूद्ध कोई गैर-कानूनी कार्य करता है तो वह उसे संगठित साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा के लिए दोषी माना जाएगा। खंड 10 में उस व्यक्ति को दंड दिए जाने का प्रावधान है, जो किसी 'समूह के खिलाफ किसी अपराध को करने अथवा उसका समर्थन करने हेतु पैसा खर्च करता है या पैसा उपलब्ध कराता है। यातना दिये जाने संबंधी अपराध का वर्णन खंड 12 में किया गया है, जिसमें कोई सरकारी कर्मचारी किसी 'समूह से संबंध रखने वाले व्यक्ति को पीड़ा पहुंचाता है या मानसिक अथवा शारीरिक चोट पहुचाता है। खंड 13 में किसी सरकारी व्यक्ति को इस विधेयक में उल्लिखित अपराधों के संबंध में अपनी ड्यूटी निभाने में ढिलाई बरतने के लिये दंडित किये जाने का प्रावधान है। खंड 14 में इन सरकारी व्यक्तियों को दंड देने का प्रावधान है जो सशस्त्र सेनाओं अथवा सुरक्षा बलों पर नियंत्रण रखते हैं और अपनी कमान के लोगों पर कारगर ढंग से अपनी ड्यूटी निभाने हेतु नियंत्रण रखने में असफल रहते हैं। खंड 15 में प्रत्यायोजित दायित्व का सिद्धांत दिया गया है। किसी संगठन का कोई वरिष्ठ व्यक्ति अथवा पदाधिकारी अपने अधीन अधीनस्थ कर्मचारियों पर नियंत्रण रखने में नाकामयाब रहता है, तो यह उस द्वारा किया गया एक अपराध माना जाऐगा। वह उस अपराध के लिए प्रत्यायोजित रूप से उत्तरदायी होगा जो कुछ अन्य लोगों द्वारा किया गया है। खंड 16 के मुताबिक वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को इस धारा के अंतर्गत किये गए किसी अपराध के बचाव के रूप में नहीं माना जायेगा।

साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान किए गए अपराध कानून और व्यवस्था की समस्या होती है। कानून और व्यवस्था की स्थिति से निपटना स्पष्ट रूप से राज्य सरकारों के क्षेत्राधिकारों में आता है। केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन में केन्द्र सरकार को कानून और व्यवस्था संबंधी मुद्दों से निपटने का कोई प्रत्यक्ष प्राधिकार प्राप्त नहीं है, न तो उनसे निपटने के लिए उसके पास प्रत्यक्ष शक्ति प्राप्त है और न ही वह इस विषय पर कानून बना सकती है। केन्द्र सरकार का क्षेत्राधिकार इसे सलाह, निर्देश देने और धारा 356 के तहत यह राय प्रकट करने तक सीमित करता है कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम कर रही है या नहीं। यदि प्रस्तावित विधेयक ही केन्द्र सरकार राज्यों के अधिकारों को हड़प लेगी और वह राज्यों के क्षेत्राधिकार में आने वाले विषयों पर कानून बना सकेगी।

भारत धीरे-धीरे और अधिक सौहार्दपूर्ण अन्तर-समुदाय संबंधों की ओर बढ़ रहा है। जब कभी भी छोटी सा साम्प्रदायिक अथवा जातीय दंगा होता हे, तो उसकी निंदा हेतु एक राष्ट्रीय विचारधारा तैयार हो जाती है। सरकारें, मीडिया, अन्य संस्थाओं सहित न्यायालय अपना-अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार हो जाते हैं। नि:संदेह साम्प्रदायिक तनाव या हिंसा फैलाने वालों को दंडित किया जाना चाहिए। तथापि इस प्रारूप विधेयक में यह मान लिया गया है कि साम्प्रदायिक समस्या केवल बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा ही पैदा की जाती है और अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य कभी ऐसा नहीं करते। अत: बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ किए गए साम्प्रदायिक अपराध तो दंडनीय हैं। अल्पसंख्यक समूहों द्वारा बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ किए गए ऐसे अपराध कतई दंडनीय नहीं माने गए हैं। अत: इस विधेयक के तहत यौन संबंधी अपराध इस हालात में दंडनीय है यदि वह किसी अल्पसंख्यक 'समूह के किसी व्यक्ति के विरूद्ध किया गया हो।

किसी राज्य में बहुसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति को 'समूह में शामिल नहीं किया गया है। अल्पसंख्यक समुदाय विरूद्ध 'घृणा संबंधी प्रचार को अपराध माना गया है जबकि बहुसंख्यक समुदाय के मामले में ऐसा नहीं है। संगठित और लक्षित हिंसा, 'घृणा संबंधी प्रचार, ऐसे व्यक्तियों को विश्रीय सहायता, जो अपराध करते हैं, यातना देना या सरकारी कर्मचारियों द्वारा अपनी ड्यूटी में लापरवाही, ये सभी उस हालात में अपराध माने जायेंगे यदि वे अल्पसंख्यक समुदाय के किसी सदस्य के विरूद्ध किये गये हों अन्यथा नहीं। बहुसंख्यक समुदाय का कोई भी सदस्य कभी भी पीडि़त नहीं हो सकता। विधयेक का यह प्रारूप अपराधों को मनमाने ढंग से पुनर्परिभाषित करता है। अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी सदस्य इस कानून के तहत बहुसंख्यक समुदाय के विरूद्ध किए गए किसी अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता। केवल बहुसंख्यक समुदाय का सदस्य ही ऐसे अपराध कर सकता है और इसलिए इस कानून का विधायी मंतव्य यह है कि चूंकि केवल बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य ही ऐसे अपराध कर सकते है, अत: उन्हें ही दोषी मानकर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। यदि इसे ऐसे स्वरूप में लागू किया जाता है, जैसा कि इस विधेयक में प्रावधान है, तो इसका भारी दुरूपयोग हो सकता है। इससे कुछ समुदायों के सदस्यों को ऐसे अपराध करने की प्रेरणा मिलेगी और इस तथ्य से वे और उत्साहित होंगे कि उनके विरूद्ध कानून के तहत कोई आरोप तो कभी लगेगा ही नहीं। आतंकी ग्रुप अब आतंकी हिंसा नहीं फैलाएंगे। उन्हें साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने में प्रोत्साहन मिलेगा क्योंकि वे यह मानकर चलेंगे कि जेहादी ग्रुप के सदस्यों को इस कानून के अन्तर्गत दंडित नहीं किया जाएगा। कानून में केवल बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों को दोषी मानने का प्रावधान है। कानून में धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव क्यों किया गया है? अपराध तो अपराध है चाहे वह किसी समुदाय के व्यक्ति ने किया हो। 21वीं शताब्दी में एक ऐसा कानून बनाया जा रहा है, जिसमें किसी अपराधी की जाति और धर्म उसको अपराध से मुक्त ठहराता है।

विधेयक में साम्प्रदायिक सौहार्द, न्याय और क्षतिपूर्ति के लिए एक सात सदस्यीय राष्ट्रीय प्राधिकरण होगा। इन 7 सदस्यों में से कम से कम चार सदस्य (जिसमें अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी शामिल हैं) समूह अर्थात् अल्पसंख्यक समुदाय से होंगे। इसी तरह का एक प्राधिकरण राज्यों के स्तर पर भी गठित होगा। अत: इस निकाय की सदस्यता धार्मिक और जातीय आधार के अनुसार होगी। इस कानून के तहत अभियुक्त केवल बहुसंख्यक समुदाय के ही होंगे। अधिनियम का अनुपालन एक ऐसी संस्था द्वारा किया जाएगा, जिसमें निश्चित ही बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य अल्पमत में होंगे। सरकारों को इस प्राधिकरण को पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां उपलब्ध करानी होगी। इस प्राधिकरण को किसी शिकायत पर जांच करने, किसी इमारत में घुसने, छापा मारने और खोजबीन करने का अधिकार होगा और वह कार्यवाही करने, अभियोजन के लिए कार्यवाही रिकार्ड करने के साथ-साथ सरकारों से सिफारिशें करने में भी सक्षम होगा। उसके पास सशस्त्र बलों से निपटने की शक्ति होगी। वह केन्द्र और राज्य सरकारों के परामर्श जारी कर सकेगा। इस प्राधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति केन्द्रीय स्तर पर एक कोलेजियम द्वारा होगी, जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रत्येक मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी का एक नेता शामिल होगा। राज्यों में स्तर पर भी ऐसी ही व्यवस्था होगी। अत: केन्द्र और राज्यों में इस प्राधिकरण के गठन में विपक्ष की बात को तरजीह दी जायेगी।

अपनाई जाने वाली प्रक्रियाएं : इस अधिनियम के तहत जांच के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जायेंगी वह असाधारण है। भारतीय दंड संहिता की धारा 161 के तहत कोई बयान दर्ज नहीं किया जायेगा। पीडि़त के बयान केवल धारा 164 के तहत होंगे अर्थात् अदालतों के सामने। सरकार को इस कानून के तहत संदेशों और टेली-कम्युनिकेशन को बाधित करने और रोकने का अधिकार होगा। अधिनियम के खंड 74 के तहत यदि किसी व्यक्ति के ऊपर घृणा संबंधी प्रचार का आरोप लगता है तो उसे तब तक पूर्वधारणा के अनुसार दोषी माना जायेगा जब तक वह निर्दोष सिद्ध नहीं हो जाता। साफ है कि आरोप सबूत के समान होगा। इस विधेयक के खंड 67 के तहत लोकसेवकों के खिलाफ मामला चलाने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। मुकदमें की कार्यवाही चलानेवाले विशेष सरकारी अभियोजन सत्य की सहायता के लिए नहीं, अपतिु, पीडि़त के हित में काम करेंगे। शिकायतकर्ता पीडि़त का नाम और उसकी पहचान गुप्त रखी जाएगी। मामले की प्रगती रपट पुलिस शिकायतकर्ता को बताएगी। संगठित साम्प्रदायिक और किसी समुदाय को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली हिंसा इस कानून के तहत राज्य के भीतर आन्तरिक उपद्रव के रूप में देखी जायेगी। इसका यह अर्थ है कि केन्द्र सरकार ऐसी दशा में अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल कर संबंधित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने में सक्षम होगी।

इस विधेयक के मसौदे को जिस तरीके से तैयार किया गया है उससे साफ हे कि यह कुछ उन कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं का काम है जिन्होंने गुजरात के अनुभव से यह सीखा है कि वरिष्ठ नेताओं को किसी ऐसे अपराध के लिए कैसे घेरा जाये, जो उन्होंने किया ही नहीं। इस विधेयक के तहत जिन अपराधों की परिभाषा की गई है उन्हें जानबूझकर अस्पष्ट छोड़ दिया गया है। साम्प्रदायिक और किसी वर्ग को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली हिंसा का तात्पर्य है राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करना है। धर्मनिरपेक्षता के मामले में कुछ उचित मतभेद हो सकते हैं। धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा जुमला है जिसका अर्थ अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग बताया जाता है। आखिर किस परिभाषा के आधार पर अपराध का निर्धारण किया जायेगा? इसी तरह सवाल यह भी है कि शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने से कोई ठोस निर्णय लेने के लए काफी गुंजाइश है कि शत्रुतापूर्ण माहौल का आशय क्या है।

इस प्रकार के कानून के अनिवार्य परिणाम ये होंगे कि किसी भी तरह के साम्प्रदायिक संघर्ष में बहुसंख्यक समुदाय को ही दोषी के रूप में देखा जाएगा। दोष की सम्भावना तब तक बनी रहेगी जब तक अन्यथा सिद्ध नहीं हो जाता। इस कानून के तहत बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य को ही दोषी ठहराया जायेगा। अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी सदस्य घृणा संबंधी प्रचार या साम्प्रदायिक हिंसा का अपराध कभी नहीं कर सकता। वास्तव में इस कानून के तहत उसे निर्दोष बताने की वैधानिक उपबंध है। केन्द्र और राज्य स्तर पर निर्धारित संवैधानिक व्यवस्था को संस्थागत पूर्वाग्रह से निश्चय ही नुकसान होगा। इसकी सदस्यता संबंधी ढांचा जाति और समुदाय पर आधारित है।

मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो कानून तैयार किया गया है उसको लागू करते ही भारत में समुदायों के बीच आपसी रिश्तों में कटुता-वैमनस्यता फैल जायेगी। यह एक ऐसा कानून है जिसके खतरनाक दुष्परिणाम होंगे। यह तय है कि इसका दुरूपयोग किया जायेगा। शायद इस कानून का ऐसा मसौदा तैयार करने के पीछे यही उद्देश्य भी है। इससे अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन मिलेगा। कानून में समानता और निष्पक्षता के मूल सिद्धांतो का उल्लंघन किया गया है। राष्ट्रीय परामर्शदात्री परिषद् में सामाजिक कार्यकर्ताओं से यह आशा की जा सकती है कि वे ऐसा खतरनाक और भेदभावपूर्ण कानून का मसौदा तैयार करें। यह आश्चर्य की बात है कि उस निकाय के राजनीतिक प्रमुख ने इस मसौदे को स्वीकृति कैसे प्रदान की। जब कुछ व्यक्तियों ने टाडा-आतंकवादी विरोधी कानून के खिलाफ एक अभियान को चलाया था, तो संप्रग के सदस्यों ने यह तर्क दिया था कि आतंकवादियों पर भी साधारण कानूनों के तहत मुकद्दमा चलाया जा सकता है। इससे अधिक कठोर कानून अब बनाया जा रहा है।

राज्य निराश होकर इस बात को देख रहे है कि जब केन्द्र सरकार इस प्रकार का गलत कदम उठाने जा रही है। उनकी शक्तियों को हड़पा जा रहा है। साम्प्रदायिक सौहार्द निष्पक्षता से प्राप्त किया जा सकता है न कि इसके विपरीत भेदभाव पैदा करके ऐसा किया जा सकता है।

Saturday, August 13, 2011

आखिर मै भी हु हिन्दुस्तानी


अन्ना हजारे साब ने देश को एक नया काम दे दिया है...अनशन करने का ! जब से वो अनशन पर बैठने लगे है देश के लोगो को एक नया काम मिल गया है! अनशन, प्रदर्शन, भूख हड़ताल , पहले भी होता था यह सब लेकिन जब से अन्ना साब बैठे अनशन पर बच्चा बच्चा जानने लगा है इस बारे में !
मै जिधर भी जाता हु सब मेरे से पूछते है की १६ अगस्त से जा रहे हो ना अनशन पर, मै तो परेसान हो गया इन सवालों से , यही हाल रहा तो मुझे ऐसा लगता है की कुछ दिन में सब लोग मुझे ही अन्ना बना देंगे !
वैसे देश की जनता भी अजीब है , उन्हें भी आजकल इन्तजार रहता है की अन्ना कब से अनशन कर रहे है ? बाबा कब से अनशन कर रहे है ? वैसे इन्तजार रहे भी क्यों ना देश का सवाल है .....काला धन का सवाल है .....लोकपाल ..ठोकपाल का सवाल है .....जरुरी भी है अनशन करना !
भाई देखो , कला धन आये या ना आये लेकिन अन्ना साब, अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी की राजनीती तो चमक हो गयी ...काला धन वापस लाना है देश की गरीबी दूर भागना है ...गरीबी दूर भागे या ना भागे लेकिन कुछ व्यक्ति अनशन करके ही आमिर बन जायेंगे ....अन्ना बाबा मत घबडाना तुम्हारे साथ है सारा जमाना लेकिन मै नहीं हु ....भारत की जनता भेड़ चाल की भाषा समझती है अपने दिमाग से नहीं सोच सकती इसलिए तो कहते है आखिर दिल है हिन्दुस्तानी ......!!
और यह भी देखो क्या सेट्टिंग है ....पुलिस ने बोला की तीन दिन से अधिक नहीं चलेगा अनशन ..यानी भैया तीन दिन में ही सब कुछ खत्म कर देंगे ! खैर , मिडिया में तो लाइव कमेंट्री आएगा ही इस अनशन वाले मैच का देश की जनता को भी मजा आएगा क्योकि उन्होंने भी प्रचार किया है " देश के नाम सात दिन " ..हा भाई, जब २ महीने आई. पि. एल. देख सकते हो तो सात दिन यह तो देखना फर्ज बनता है सबका !
बस गेम चालु होने वाला है...मैदान सज चूका है ..लाइट , एक्शन , कैमरा आ रहा है जेपी मैदान में ...उन सात दिन में छुट्टिया भी बहुत है..मनोरंजन का पूरा प्रबंध हो चूका है !
भाई, मै भी जाऊंगा जेपी मैदान में , आखिर काला धन लाना है वापस ..उसे साबुन से धोकर उजला धन बनाना है ! फिर गाँव के एक एक घर में बाटना है ! कितना अच्छा लगता है ना सुन कर की देश से गरीबी हम मिटा देंगे ! मजा आएगा !
मै आपके लिए कुछ फोटो लाऊंगा खीच कर जेपी मैदान से ...आखिर मै भी हु हिन्दुस्तानी , मेरा भी फर्ज बनता है !
जय श्री राम
जय भारत !!.

Thursday, August 4, 2011

सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा (न्याय और reparations प्रवेश) विधेयक, 2011


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू) सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा विधेयक की रोकथाम के बारे में 2011
Q1. सांप्रदायिक हिंसा को रोकने वाले बिल का पूरा नाम क्या है?

उत्तर: सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा (न्याय और reparations प्रवेश) विधेयक, 2011 की ...रोकथाम.

Q1a क्या यह पूरे भारत में लागू बिल है?
उत्तर: हाँ, लेकिन यह जम्मू और कश्मीर के राज्य मे लागू नहीं है.

Q2. कौन इस बिल के मसौदा को तैयार करवा रहा है?
उत्तर: राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) इसकी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व किया जा रहा है।

Q.3 राष्ट्रीय सलाहकार परिषद क्या है?
उत्तर: राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) केन्द्रीय सरकार के एक आदेश द्वारा गठित किया गया है. यह एक संविधानेतर एक सुपर संसद के रूप में है. इसमे 22 सदस्यों को चुना गया है। जो लोग इसमे मूल रूप से कर रहे है वह श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा चुने गये.वे सभी कांग्रेस समर्थक ,हिंदू विरोधी लोग विभिन्न सरकारी संगठनों वे (गैर सरकारी संगठनों) से संबंधित इन लोग को जैसे हर्ष Mander, तीस्ता Setalvad (जो प्रारूपण समिति के सदस्य है वह भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा तय किया गये है। झूठी कथाएँ, झूठे गवाहों और मामलों में माननीय न्यायालय के समक्ष गुजरात में झूठे शपथ - पत्र प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार ठहराया हे।)

प्रश्न 4 इस बिल को कहां प्रस्तुत किया जाएगा?
उत्तर: 2011 में संसद के मानसून सत्र में इसे कानून बनाने के लिए इस बिल को प्रस्तुत किया जाऐगा।

Q.5 इस बिल के बारे में क्या आप को पता है?
उत्तर: जैसा कि नाम से पता चलता है, इस विधेयक को देश में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के उद्देश्य से लाया जा रहा है. यह उन लोगों को जो साम्प्रदायिक हिंसा किसी 'समूह' यानी अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ सज़ा करना है.

Q5a. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार की रोकथाम के लिए कोई अन्य अधिनियम है?
उत्तर: हाँ, (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

Q.6 इस विधेयक के अनुसार, जो हमेशा अपराधी है?
उत्तर: बहुसंख्यक समुदाय (पढ़ें हिंदुओं).

Q.7 इस विधेयक के अनुसार, जो एक शिकार है?
उत्तर: अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुसलमानों, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति.

Q.8 गवाह कौन है?
उत्तर: कोई भी व्यक्ति जो अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बंधित ( मुस्लिम, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों) और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ सांप्रदायिक अशांति जैसे मामले में इस अधिनियम के बारे में जानकारी रखता हे।

Q.9 जो दंगा करने वालो के खिलाफ़ पुलिस मे शिकायत दर्ज कर सकते हैं?
उत्तर: केवल अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों) और अनुसूचित जाति के सदस्यों, अनुसूचित जनजाति पुलिस के साथ एक शिकायत दर्ज कर सकते हैं.

बहुसंख्यक समुदाय (हिंदुओं पढ़ें) के सदस्य एक शिकायत नहीं दर्ज कर सकते हैं.

Q.10 एक बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य की गिरफ्तारी (हिंदू पढ़ें) के लिए आवश्यक सबूत है?

उत्तर: कोई भी सबूत जो कि बहुसंख्यक समुदाय (पढ़ें हिंदू) के सदस्य की गिरफ्तारी के लिए आवश्यक है. यदि हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति के खिलाफ शिकायत करता है. इस प्रकार यह आपराधिक कानून के बुनियादी सिद्धांत है जो कहता है हर कोई निर्दोष है जब तक दोषी साबित के खिलाफ है. यहाँ बहुसंख्यक समुदाय (हिंदू पढ़ा) के सदस्य दोषी है जब तक वह अपनी बेगुनाही को साबित नही कर देता है.

Q.11 क्या सांप्रदायिक दंगो का शिकायतकर्ता अल्पसख्यक ही होगा?
उत्तर: निश्चित रूप से हाँ. पुलिस मे केवल अल्पसंख्यकों जो बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों के खिलाफ दर्ज कराई (हिंदुओं पढ़ें) की शिकायत ले जाएगा.

Q.12 कौन इस बिल के तहत गिरफ्तार किया जा सकता है ?
उत्तर: यदि एक संघ (जो हिंदू है) के सदस्य अल्पसंख्यको के खिलाफ किसी को भी अपराध मे नाम लेने पर (पढ़ें हिंदू) उनका सदस्य माना जाएगा और उसको गिरफ्तार किया जा सकता है.

जैसे व्यवहार में यह मतलब होगा कि अगर एक लोक सेवक किसी भी अपराध के साथ चार्ज किया जाता है, राज्य के मुख्यमंत्री को भी गिरफ्तार किया जा सकता है.

जैसे व्यवहार में यह भी मतलब होगा कि अगर किसी भी अखबार में एक अल्पसंख्यक नेता की ओर से शिकायत है कि उसे इस भाषण मे नफ़रत की रिपोर्ट प्रकाशित करने से उसे मानसिक रूप से चोट लगी है तो इस प्रकार भी संपादक, मालिक, प्रकाशक, अखबार के संवाददाता को भी गिरफ्तार किया जा सकता है।

Q.13 प्रस्तावित अधिनियम के तहत अपराध क्या हैं?
उत्तर: कोई अल्पसंख्यक समुदाय ( मुस्लिम, ईसाई, अन्य अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति) के सदस्यों के खिलाफ बहुसंख्यक समुदाय (पढ़ें हिंदुओं) के सदस्यों द्वारा किये गये कार्य से नफरत प्रचार, यातना, चोट, हत्या, यौन उत्पीड़न,सांप्रदायिक हिंसा आदि दंगों की एक घटना में एक अपराध है.
Q.14 अगर बहुसंख्यक समुदाय का एक सदस्य (पढ़ें हिंदू) घायल हो जाता है या हत्या या उसके घर को आग या उसकी पत्नी के साथ बलात्कार, यह इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत एक अपराध है?
उत्तर: नहीं, बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य किसी भी क्रूरता का शिकार हो तो भी (हिंदुओं पढ़ें) एक अपराध नहीं है. बहुसंख्यक समुदाय (हिंदू पढ़ा) के सदस्य इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत शिकायत नहीं दर्ज कर सकते हैं.

Q.15 यदि एक मुस्लिम किसी दुसरे घायल या उसपर अत्याचार या उस मुस्लिम को मारता है, यह इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत एक अपराध है?
उत्तर: नहीं, यह इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत एक अपराध नहीं है.यदिशत्रुतापूर्ण वातावरण ना हो।

Q.16 अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति से नफरत,या उसके खिलाफ दुष्प्रचार इस अधिनियम के तहत एक अपराध है?
उत्तर: ये सवाल कुछ अस्पष्ट बात की ओर संदर्भ कर रहे हैं ।ओर इसका मोटे तौर पर दुरुपयोग किया जा सकता है है. निम्नलिखित स्थितियों शामिल हो सकते हैं:
i. यदि बहुसंख्यक समुदाय (पढ़ें हिंदू) के सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय के एक मुस्लिम अर्थात सदस्य के लिए किराए पर एक कमरा दे्ने के लिए मना कर दिया, मुस्लिम बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य के खिलाफ शिकायत (हिंदू पढ़ा)दर्ज कर सकते हैं क्योंकि वह एक मुसलमान था इस लिये उसे कमरा देने से इनकार कर दिया था . बहुसंख्यक समुदाय (हिंदू पढ़ा) के सदस्य इस प्रकार गिरफ्तार किया जा सकता है. अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम पढ़ा) के सदस्य के कोई सबूत देने की जरूरत नहीं है. हिंदू साबित होता है कि वह निर्दोष है और कोई गलत प्रतिबद्ध है.

द्वितीय. इसी प्रकार यदि बहुसंख्यक समुदाय के एक सदस्य (पढ़ें हिंदू) व्यापारी के अल्पसंख्यक समुदाय के एक सदस्य (मुसलमान पढ़ें) आपूर्तिकर्ता से एक मुसलमान ने एक शिकायत पर कच्चे माल खरीदने के लिए मना कर दिया है, हिंदू बिना सबूत गिरफ्तार किया जा सकता है.

iii. या धर्मों पर एक चर्चा संगोष्ठी के मामले में, कट्टरवाद, आतंकवाद आदि अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम पढ़ने के) के एक सदस्य उन आयोजकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकते हैं और उन्हें उनके खिलाफ शत्रुतापूर्ण वातावरण के निर्माण के लिए गिरफ्तार कर लिया. यह स्वतंत्रता भाषण और अभिव्यक्ति संविधान के खिलाफ की गारंटी के मौलिक अधिकार के खिलाफ है.

iv. यदि एक समाचार पत्र के किसी भी राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित, अल्पसंख्यक के किसी भी सदस्य उनके खिलाफ शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने के लिए समाचार पत्र के खिलाफ शिकायत और उनकी गिरफ्तारी के लिए नेतृत्व कर सकते हैं।

Q.17 कौन प्रस्तावित अधिनियम के प्रावधानों को लागू करेंगे?

उत्तर: संक्षेप में राष्ट्रीय साम्प्रदायिक सद्भाव, न्याय और हर्जाने के लिए राष्ट्रीय प्राधिकर्ण.

Q.18 कौन राष्ट्रीय प्राधिकरण के सदस्य हैं?
उत्तर: इस मे 7 सदस्यों होते हैं. अध्यक्ष और वाइस अध्यक्ष सहित सात सदस्यों मे 4 हमेशा अल्पसंख्यक समुदाय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से होते हे.
इसका मतलब यह है कि बिल मानता है कि केवल अल्पसंख्यकों अल्पसंख्यकों के साथ न्याय कर सकते हैं. यह एक खतरनाक आधार के रूप में इसका मतलब है कि एक न्यायाधीश या राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या किसी अन्य लोक सेवक हमेशा अपने धर्म के अनुसार कार्य करता है.

Q.20 राष्ट्रीय प्राधिकरण के अध्यक्ष या वाइस अध्यक्ष बहुसंख्यक समुदाय से चुना जा सकता है?
उत्तर: नहीं अध्यक्ष और वाइस अध्यक्ष कभी हिंदुओं मे से नही चुने जाते.

Q.21 राष्ट्रीय प्राधिकरण की शक्तियां क्या हैं?
उत्तर: राष्ट्रीय प्राधिकरण सांप्रदायिक हिंसा या यहां तक कि भारत के किसी भी भाग में सांप्रदायिक हिंसा की प्रत्याशा के मामले में लगभग असीमित अधिकार है.
राष्ट्रीय प्राधिकरण पोस्टिंग की निगरानी, सरकारी सेवकों के पुलिस सहित स्थानान्तरण, सुरक्षा बलों आदि भी सांप्रदायिक हिंसा की आशंका के अल्पसंख्यकों के खिलाफ मामले में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति.वे भी पुलिस, सुरक्षा, और सशस्त्र बलों के लिए निर्देश दे सकता है.

इसका मतलब यह भी है कि एक छोटी, तुच्छ जानकारी के आधार पर, राष्ट्रीय प्राधिकरण राज्य सरकार की सभी शक्तियों ले सकते हैं और राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं.

इसके अलावा राष्ट्रीय प्राधिकरण को अधिकार है ओर शक्ति है कि यह एक सिविल कोर्ट मे किसी को बुलाना उपस्थिति, सबूत प्राप्त कर सकते हैं, गवाह या दस्तावेजों की जांच है, और अन्य सभी एक मामले की सुनवाई के दौरान करने की शक्ति इसके पास है.

प्रत्येक राज्यों सरकार ने राज्य स्तर पर ऐसे अधिकारियों को भी माना जाएगा.

Q.22 प्राधिकरण के एक सदस्य बनने की योग्यता क्या है?
उत्तर: नेशनल अथॉरिटी के एक सदस्य बनने के लिए, एक व्यक्ति को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की जरूरत नहीं है. उस व्यक्ति का सद्भाव को बढ़ावा देने का एक रिकॉर्ड, मानवाधिकार, न्याय, आदि होना चाहिए

Q.23 इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत अपराध की प्रकृति क्या है?
उत्तर: (गिरफ्तारी वारंट के बिना) अपराध संज्ञेय और गैर जमानती (पुलिस से जमानत नहीं प्राप्त कर सकते हैं) हैं.

Q.24 क्या अनुमान है के इस रूप में इस अधिनियम के तहत अपराध के लिए?
उत्तर: एक हिंदू जो अधिनियम के तहत गिरफ़्तार किया गया है किसी भी अपराध के साथ चार्ज करने के लिए दोषी हो सकता है जब तक वह अपनी बेगुनाही साबित साबित नही करता है। यह कानून के बुनियादी अनुमान के खिलाफ "हर कोई निर्दोष है जब तक दोषी साबित नही होता है.

Q.25 बिल का लोक सेवकों के बारे में क्या कहना है?
उत्तर: लोक सेवकों के लिये किसी से अनुमति / उन्हें राज्य से मुकदमा चलाने की मंजूरी के बिना अधिनियम के तहत उन पर अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है.

Q.26 कौन अधिनियम के तहत राहत और मुआवजे के हकदार है?
उत्तर: सभी व्यक्तियों, चाहे वे अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक समुदाय के हैं इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत राहत और मुआवजे के लिए जिम्मेदार हैं.

Q.27 यौन उत्पीड़न की सज़ा क्या है?
उत्तर: 10 साल या उम्र केद भी हो सकती है.

Q.28 नफरत प्रचार के लिए क्या सजा है?
उत्तर: सजा 3 साल या जुर्माना या दोनों तक कैद है.

Q.29 संगठित हिंसा के लिए लक्षित सज़ा क्या है?
उत्तर: उम्र केद ओर सश्रम कारावास.

Q.30 सरकारी सेवकों के लिए सज़ा क्या है?
उत्तर: कर्तव्य की उपेक्षा के लिए सार्वजनिक कर्मचारियों द्वारा सजा 5 साल है, और कमांड जिम्मेदारी के उल्लंघन के लिए जीवन के लिए और 10 साल के लिए अन्य मामलों में सश्रम कारावास है.

Q.31 वहाँ किसी भी सीमा की अवधि तक आप शिकायत कर सकते हैं?
उत्तर: तुम अतीत में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के लिए भी शिकायत कर सकते हैं ।इसके लिये कोई सीमा अवधि नही है.
यह एक कठोर कानून है जो भारत में हिंदुओं और हिंदुओं की हालत के लिए स्थायी आपात स्थिति लागू होगा। जर्मनी में यहूदियों की जो हालत थी ओर उनपर जो अत्याचार हुए थे और किसी कारण के बिना केवल एक आरोप पर निष्पादित करने के लिए इसी तरह की हो जाएगी

Tuesday, August 2, 2011

ये हैं असली रिश्ते...


पहले इन रिश्तेदारियों पर एक नज़र डालिये, तब आप खुद ही समझ जायेंगे कि कैसे और क्यों “मीडिया का अधिकांश हिस्सा” हिन्दुओं और हिन्दुत्व का विरोधी है, किस प्रकार इन लोगों ने एक “नापाक गठजोड़” तैयार कर लिया है, किस तरह ये सब लोग मिलकर सत्ता संस्थान के शिखरों के करीब रहते हैं, किस तरह से इन प्रभावशाली(?) लोगों का सरकारी नीतियों में दखल होता है… आदि।

पेश हैं रिश्ते ही रिश्ते – (दिल्ली की दीवारों पर लिखा होता है वैसे वाले नहीं, ये हैं असली रिश्ते)

-सुज़ाना अरुंधती रॉय, प्रणव रॉय (नेहरु डायनेस्टी टीवी- NDTV) की भांजी हैं।
-प्रणव रॉय “काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशन्स” के इंटरनेशनल सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं।
-इसी बोर्ड के एक अन्य सदस्य हैं मुकेश अम्बानी।
-प्रणव रॉय की पत्नी हैं राधिका रॉय।
-राधिका रॉय, बृन्दा करात की बहन हैं।
-बृन्दा करात, प्रकाश करात (CPI) की पत्नी हैं।

-प्रकाश करात चेन्नै के “डिबेटिंग क्लब” के सदस्य थे।
-एन राम, पी चिदम्बरम और मैथिली शिवरामन भी इस ग्रुप के सदस्य थे।
-इस ग्रुप ने एक पत्रिका शुरु की थी “रैडिकल रीव्यू”।
-CPI(M) के एक वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी की पत्नी हैं सीमा चिश्ती।
-सीमा चिश्ती इंडियन एक्सप्रेस की “रेजिडेण्ट एडीटर” हैं।
-बरखा दत्त NDTV में काम करती हैं।
-बरखा दत्त की माँ हैं श्रीमती प्रभा दत्त।
-प्रभा दत्त हिन्दुस्तान टाइम्स की मुख्य रिपोर्टर थीं।
-राजदीप सरदेसाई पहले NDTV में थे, अब CNN-IBN के हैं (दोनों ही मुस्लिम चैनल हैं)।
-राजदीप सरदेसाई की पत्नी हैं सागरिका घोष।
-सागरिका घोष के पिता हैं दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक भास्कर घोष-सागरिका घोष की आंटी रूमा पॉल हैं।
-रूमा पॉल उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश हैं।
-सागरिका घोष की दूसरी आंटी अरुंधती घोष हैं।
-अरुंधती घोष संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि हैं।
-CNN-IBN का “ग्लोबल बिजनेस नेटवर्क” (GBN) से व्यावसायिक समझौता है।
-GBN टर्नर इंटरनेशनल और नेटवर्क-18 की एक कम्पनी है।
-NDTV भारत का एकमात्र चैनल है को “अधिकृत रूप से” पाकिस्तान में दिखाया जाता है।
-दिलीप डिसूज़ा PIPFD (Pakistan-India Peoples’ Forum for Peace and Democracy) के सदस्य हैं।
-दिलीप डिसूज़ा के पिता हैं जोसेफ़ बेन डिसूज़ा।
-जोसेफ़ बेन डिसूज़ा महाराष्ट्र सरकार के पूर्व सचिव रह चुके हैं।

-तीस्ता सीतलवाड भी PIPFD की सदस्य हैं।
-तीस्ता सीतलवाड के पति हैं जावेद आनन्द।
-जावेद आनन्द एक कम्पनी सबरंग कम्युनिकेशन और एक संस्था “मुस्लिम फ़ॉर सेकुलर डेमोक्रेसी” चलाते हैं।
-इस संस्था के प्रवक्ता हैं जावेद अख्तर।
-जावेद अख्तर की पत्नी हैं शबाना आज़मी।

-करण थापर ITV के मालिक हैं।
-ITV बीबीसी के लिये कार्यक्रमों का भी निर्माण करती है।
-करण थापर के पिता थे जनरल प्राणनाथ थापर (1962 का चीन युद्ध इन्हीं के नेतृत्व में हारा गया था)।
-करण थापर बेनज़ीर भुट्टो और ज़रदारी के बहुत अच्छे मित्र हैं।
-करण थापर के मामा की शादी नयनतारा सहगल से हुई है।
-नयनतारा सहगल, विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी हैं।
-विजयलक्ष्मी पंडित, जवाहरलाल नेहरू की बहन हैं।

-मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन की मुख्य प्रवक्ता और कार्यकर्ता हैं।
-नबाआं को मदद मिलती है पैट्रिक मेकुल्ली से जो कि “इंटरनेशनल रिवर्स नेटवर्क (IRN)” संगठन में हैं।
-अंगना चटर्जी IRN की बोर्ड सदस्या हैं।
-अंगना चटर्जी PROXSA (Progressive South Asian Exchange Network) की भी सदस्या हैं।
-PROXSA संस्था, FOIL (Friends of Indian Leftist) से पैसा पाती है।
-अंगना चटर्जी के पति हैं रिचर्ड शेपायरो।
-FOIL के सह-संस्थापक हैं अमेरिकी वामपंथी बिजू मैथ्यू।
-राहुल बोस (अभिनेता) खालिद अंसारी के रिश्ते में हैं।
-खालिद अंसारी “मिड-डे” पब्लिकेशन के अध्यक्ष हैं।
-खालिद अंसारी एमसी मीडिया लिमि
टेड के भी अध्यक्ष हैं।
-खालिद अंसारी, अब्दुल हमीद अंसारी के पिता हैं।
-अब्दुल हमीद अंसारी कांग्रेसी हैं।
-एवेंजेलिस्ट ईसाई और हिन्दुओं के खास आलोचक जॉन दयाल मिड-डे के दिल्ली संस्करण के प्रभारी हैं।

-नरसिम्हन राम (यानी एन राम) दक्षिण के प्रसिद्ध अखबार “द हिन्दू” के मुख्य सम्पादक हैं।
-एन राम की पहली पत्नी का नाम है सूसन।
-सूसन एक आयरिश हैं जो भारत में ऑक्सफ़ोर्ड पब्लिकेशन की इंचार्ज हैं।
-विद्या राम, एन राम की पुत्री हैं, वे भी एक पत्रकार हैं।
-एन राम की हालिया पत्नी मरियम हैं।
-त्रिचूर में आयोजित कैथोलिक बिशपों की एक मीटिंग में एन राम, जेनिफ़र अरुल और केएम रॉय ने भाग लिया है।
-जेनिफ़र अरुल, NDTV की दक्षिण भारत की प्रभारी हैं।
-जबकि केएम रॉय “द हिन्दू” के संवाददाता हैं।
-केएम रॉय “मंगलम” पब्लिकेशन के सम्पादक मंडल सदस्य भी हैं।
-मंगलम ग्रुप पब्लिकेशन एमसी वर्गीज़ ने शुरु किया है।
-केएम रॉय को “ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन लाइफ़टाइम अवार्ड” से सम्मानित किया गया है।
-“ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन” के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं जॉन दयाल।
-जॉन दयाल “ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल”(AICC) के सचिव भी हैं।
-AICC के अध्यक्ष हैं डॉ जोसेफ़ डिसूज़ा।
-जोसेफ़ डिसूज़ा ने “दलित फ़्रीडम नेटवर्क” की स्थापना की है।
-दलित फ़्रीडम नेटवर्क की सहयोगी संस्था है “ऑपरेशन मोबिलाइज़ेशन इंडिया” (OM India)।
-OM India के दक्षिण भारत प्रभारी हैं कुमार स्वामी।
-कुमार स्वामी कर्नाटक राज्य के मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी हैं।
-OM India के उत्तर भारत प्रभारी हैं मोजेस परमार।
-OM India का लक्ष्य दुनिया के उन हिस्सों में चर्च को मजबूत करना है, जहाँ वे अब तक नहीं पहुँचे हैं।
-OMCC दलित फ़्रीडम नेटवर्क (DFN) के साथ काम करती है।
-DFN के सलाहकार मण्डल में विलियम आर्मस्ट्रांग शामिल हैं।
-विलियम आर्मस्ट्रांग, कोलोरेडो (अमेरिका) के पूर्व सीनेटर हैं और वर्तमान में कोलोरेडो क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेण्ट हैं। यह यूनिवर्सिटी विश्व भर में ईसा के प्रचार हेतु मुख्य रणनीतिकारों में शुमार की जाती है।
-DFN के सलाहकार मंडल में उदित राज भी शामिल हैं।
-उदित राज के जोसेफ़ पिट्स के अच्छे मित्र भी हैं।
-जोसेफ़ पिट्स ने ही नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न देने के लिये कोंडोलीज़ा राइस से कहा था।
-जोसेफ़ पिट्स “कश्मीर फ़ोरम” के संस्थापक भी हैं।
-उदित राज भारत सरकार के नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल (राष्ट्रीय एकता परिषद) के सदस्य भी हैं।
-उदित राज कश्मीर पर बनी एक अन्तर्राष्ट्रीय समिति के सदस्य भी हैं।
-सुहासिनी हैदर, सुब्रह्मण्यम स्वामी की पुत्री हैं।
-सुहासिनी हैदर, सलमान हैदर की पुत्रवधू हैं।
-सलमान हैदर, भारत के पूर्व विदेश सचिव रह चुके हैं, चीन में राजदूत भी रह चुके हैं।

-रामोजी ग्रुप के मुखिया हैं रामोजी राव।
-रामोजी राव “ईनाडु” (सर्वाधिक खपत वाला तेलुगू अखबार) के संस्थापक हैं।
-रामोजी राव ईटीवी के भी मालिक हैं।
-रामोजी राव चन्द्रबाबू नायडू के परम मित्रों में से हैं।

-डेक्कन क्रॉनिकल के चेयरमैन हैं टी वेंकटरमन रेड्डी।
-रेड्डी साहब कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं।
-एमजे अकबर डेक्कन क्रॉनिकल और एशियन एज के सम्पादक हैं।
-एमजे अकबर कांग्रेस विधायक भी रह चुके हैं।
-एमजे अकबर की पत्नी हैं मल्लिका जोसेफ़।
-मल्लिका जोसेफ़, टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कार्यरत हैं।

-वाय सेमुअल राजशेखर रेड्डी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

-सेमुअल रेड्डी के पिता राजा रेड्डी ने पुलिवेन्दुला में एक डिग्री कालेज व एक पोलीटेक्नीक कालेज की स्थापना की।

-सेमुअल रेड्डी ने कहा है कि आंध्रा लोयोला कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उक्त दोनों कॉलेज लोयोला समूह को दान में दे दिये।

-सेमुअल रेड्डी की बेटी हैं शर्मिला।

-शर्मिला की शादी हुई है “अनिल कुमार” से। अनिल कुमार भी एक धर्म-परिवर्तित ईसाई हैं जिन्होंने “अनिल वर्ल्ड एवेंजेलिज़्म” नामक संस्था शुरु की और वे एक सक्रिय एवेंजेलिस्ट (कट्टर ईसाई धर्म प्रचारक) हैं।
-सेमुअल रेड्डी के पुत्र जगन रेड्डी युवा कांग्रेस नेता हैं।
-जगन रेड्डी “जगति पब्लिकेशन प्रा. लि.” के चेयरमैन हैं।
-भूमना करुणाकरा रेड्डी, सेमुअल रेड्डी की करीबी हैं।
-करुणाकरा रेड्डी, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की चेयरमैन हैं।
-चन्द्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया था कि “लैंको समूह” को जगति पब्लिकेशन्स में निवेश करने हेतु दबाव डाला गया था।
-लैंको कम्पनी समूह, एल श्रीधर का है।
-एल श्रीधर, एल राजगोपाल के भाई हैं।
-एल राजगोपाल, पी उपेन्द्र के दामाद हैं।
-पी उपेन्द्र केन्द्र में कांग्रेस के मंत्री रह चुके हैं।
-सन टीवी चैनल समूह के मालिक हैं कलानिधि मारन
-कलानिधि मारन एक तमिल दैनिक “दिनाकरन” के भी मालिक हैं।
-कलानिधि के भाई हैं दयानिधि मारन।
-दयानिधि मारन केन्द्र में संचार मंत्री थे।

-कलानिधि मारन के पिता थे मुरासोली मारन।

-मुरासोली मारन के चाचा हैं एम करुणानिधि (तमिलनाडु के मुख्यमंत्री)।

-करुणानिधि ने ‘कैलाग्नार टीवी” का उदघाटन किया।

-कैलाग्नार टीवी के मालिक हैं एम के अझागिरी।

-एम के अझागिरी, करुणानिधि के पुत्र हैं।

-करुणानिधि के एक और पुत्र हैं एम के स्टालिन।

-स्टालिन का नामकरण रूस के नेता के नाम पर किया गया।

-कनिमोझि, करुणानिधि की पुत्री हैं, और केन्द्र में राज्यमंत्री हैं।

-कनिमोझी, “द हिन्दू” अखबार में सह-सम्पादक भी हैं।

-कनिमोझी के दूसरे पति जी अरविन्दन सिंगापुर के एक जाने-माने व्यक्ति हैं।

-स्टार विजय एक तमिल चैनल है।

-विजय टीवी को स्टार टीवी ने खरीद लिया है।

-स्टार टीवी के मालिक हैं रूपर्ट मर्डोक।

-Act Now for Harmony and Democracy (अनहद) की संस्थापक और ट्रस्टी हैं शबनम हाशमी।

-शबनम हाशमी, गौहर रज़ा की पत्नी हैं।

-“अनहद” के एक और संस्थापक हैं के एम पणिक्कर।

-के एम पणिक्कर एक मार्क्सवादी इतिहासकार हैं, जो कई साल तक ICHR में काबिज रहे।

-पणिक्कर को पद्मभूषण भी मिला।

-हर्ष मन्दर भी “अनहद” के संस्थापक हैं।

-हर्ष मन्दर एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं।

-हर्ष मन्दर, अजीत जोगी के खास मित्र हैं।

-अजीत जोगी, सोनिया गाँधी के खास हैं क्योंकि वे ईसाई हैं और इन्हीं की अगुआई में छत्तीसगढ़ में जोरशोर से धर्म-परिवर्तन करवाया गया और बाद में दिलीपसिंह जूदेव ने परिवर्तित आदिवासियों की हिन्दू धर्म में वापसी करवाई।

-कमला भसीन भी “अनहद” की संस्थापक सदस्य हैं।

-फ़िल्मकार सईद अख्तर मिर्ज़ा “अनहद” के ट्रस्टी हैं।

-मलयालम दैनिक “मातृभूमि” के मालिक हैं एमपी वीरेन्द्रकुमार

-वीरेन्द्रकुमार जद(से) के सांसद हैं (केरल से)

-केरल में देवेगौड़ा की पार्टी लेफ़्ट फ़्रण्ट की साझीदार है।

-शशि थरूर पूर्व राजनैयिक हैं।

-चन्द्रन थरूर, शशि थरूर के पिता हैं, जो कोलकाता की आनन्दबाज़ार पत्रिका में संवाददाता थे।

-चन्द्रन थरूर ने 1959 में द स्टेट्समैन” की अध्यक्षता की।

-शशि थरूर के दो जुड़वाँ लड़के ईशान और कनिष्क हैं, ईशान हांगकांग में “टाइम्स” पत्रिका के लिये काम करते हैं।

-कनिष्क लन्दन में “ओपन डेमोक्रेसी” नामक संस्था के लिये काम करते हैं।

-शशि थरूर की बहन शोभा थरूर की बेटी रागिनी (अमेरिकी पत्रिका) “इंडिया करंट्स” की सम्पादक हैं।

-परमेश्वर थरूर, शशि थरूर के चाचा हैं और वे “रीडर्स डाइजेस्ट” के भारत संस्करण के संस्थापक सदस्य हैं।

-शोभना भरतिया हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की अध्यक्षा हैं।

-शोभना भरतिया केके बिरला की पुत्री और जीड़ी बिरला की पोती हैं

-शोभना राज्यसभा की सदस्या भी हैं जिन्हें सोनिया ने नामांकित किया था।

-शोभना को 2005 में पद्मश्री भी मिल चुकी है।

-शोभना भरतिया सिंधिया परिवार की भी नज़दीकी मित्र हैं।

-करण थापर भी हिन्दुस्तान टाइम्स में कालम लिखते हैं।

-पत्रकार एन राम की भतीजी की शादी दयानिधि मारन से हुई है

यह बात साबित हो चुकी है कि मीडिया का एक खास वर्ग हिन्दुत्व का विरोधी है, इस वर्ग के लिये भाजपा-संघ के बारे में नकारात्मक प्रचार करना, हिन्दू धर्म, हिन्दू देवताओं, हिन्दू रीति-रिवाजों, हिन्दू साधु-सन्तों सभी की आलोचना करना एक “धर्म” के समान है। इसका कारण हैं, कम्युनिस्ट-चर्चपरस्त-मुस्लिमपर​स्त-तथाकथित सेकुलरिज़्म परस्त लोगों की आपसी रिश्तेदारी, सत्ता और मीडिया पर पकड़ और उनके द्वारा एक “गैंग” बना लिया जाना। यदि कोई समूह या व्यक्ति इस गैंग के सदस्य बन जायें, प्रिय पात्र बन जायें तब उनके और उनकी बिरादरी के खिलाफ़ कोई खबर आसानी से नहीं छपती। जबकि हिन्दुत्व पर ये सब लोग मिलजुलकर हमला बोलते हैं।