Thursday, September 29, 2011

Who is Sonia Gandhi:


Who is Sonia Gandhi:
There is officially no Sonia Gandhi. Her real name in passport is neither Gandhi nor Sonia. Its Edvige Antonia Albina Maino. Sonia is a Russian name and not italian. However, Antonia is an italian name and her passport is italian. Though she has married Rajiv Gandhi* she never accepted change of title officially. ( recall the time of turmoil in indian politics when Sonia Gandh...i was trying to be the prime minister, but ultimately ManMohan Singh became her toy)

*Rajiv Gandhi: Actually Rajiv Khan being the son of Firoz Khan and Indira Priyadarshani. Gandhi is an assumed title to sentimentally lure indians for their political benefit. They are muslims by religion.

Father:
Stefano Eugene Maino is socially the father of Sonia. Her father was a German(hitlers army). When Hitlers army went to russia they were captured and imprisoned. He was captured near St. Petersburgh and was imprisoned for 20 years. But he became a member of KGB and his imprisonment was limited to 4 years. When he came back from prison he gave russian name to his daughters. Social father because when she was born her father was in jail for 4 years. Biological father is unconfirmed.
Mother:
Paula Maino.
Family:
She had 2 sistersin Orbassano, italy
Birthplace
Sonia claims she was born in Besano, near Turin in italy. However, as per her birth certificate, She is actually born is Luciana, in the borders of Switzerland. A resort town for German soldiers during war.
Education:
She initially put forward to Indian Govt. that she studied in Cambridge University which proved to be fake. She submitted an affidavit that she studied english in Bell Education trust at Cambridge. Even this was proven to be fake and was found she never got any education after class five. She was a young girl with no formal education living five years in england. How did she support her livelihood for 5 years? Any wild guesses?
Citizenship:
She has not given off her italian citizenship. Indira Gandhi used her power to issue her an Indian Citizenship so that she can join Indian politics. She is holding an illegal citizenship in India. No action is being taken by Home Minister.
Religion:
Cristianity.
Bank Balance:
Rajiv Gandhi and his family owned 2 billion USD in Swiss Bank as of November,1991. Benefitiary of death of Indira Gandhi and Rajiv Gandhi was Sonia Gandhi.
Family:
Sonia's sister Alexandria(or Anuska) has 2 shops in Italy selling antiques stolen from India. Sonia used her power to smuggle indian artifacts through Air India flights uninspected.
Sonia's son Rahul Gandhi, whose real name is Raul Vinci. He got admitted to Harvard in quota but was thrown off soon because he was incompetant. He has italian citizenship since his mother never gave up her citizenship. He cannot officially become the citizen of india or any politician in india as long as he doesnt give up his italian citizenship. Arrested in Boston airport for carrying 160,000 dollars cash, accompanied by Veronique (spanish). veronique is the daughter of Drug mafia leader. Rahul has also been accused for gang raping Sukanya Devi, whose petition to all courts in India have been rejected due to their political hold and the whereabouts of the family is unknown. However, the information is widely available online.

Vande mataram

Monday, September 26, 2011

सांप्रदायिक एव लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011


अभी हाल ही में यूपीए अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा एक विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है। इसका नाम सांप्रदायिक एव लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 [‘Prevention of Communal and Targeted Violence (Access to Justice and Reparations) Bill,2011’] है। ऐसा लगता है कि इस प्रस्तावित विधेयक को अल्पसंख्यकों का वोट बैंक मजबूत करने का लक्ष्य लेकर, हिन्दू समाज, हिन्दू संगठनों और हिन्दू नेताओं को कुचलने के लिए तैयार किया गया है। साम्प्रदायिक हिंसा रोकने की आड़ में लाए जा रहे इस विधेयक के माध्यम से न सिर्फ़ साम्प्रदायिक हिंसा करने वालों को संरक्षण मिलेगा बल्कि हिंसा
के शिकार रहे हिन्दू समाज तथा इसके विरोध में आवाज उठानेवाले हिन्दू संगठनों का दमन करना आसान होगा। इसके अतिरिक्त यह विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत राज्य सरकारों के कार्यों में हस्तक्षेप कर देश के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त करेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके लागू होने पर भारतीय समाज में परस्पर अविश्वास और विद्वेष की खाई इतनी बड़ी और गहरी हो जायेगी जिसको पाटना किसी के लिए भी सम्भव नहीं होगा।

मजे की बात यह है कि एक समानान्तर व असंवैधानिक सरकार की तरह काम कर रही राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बिना किसी जवाब देही के सलाह की आड़ में केन्द्र सरकार को आदेश देती है और सरकार दासत्व भाव से उनको लागू करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है। जिस ड्राफ्ट कमेटी ने इस विधेयक को बनाया है, उसका चरित्र ही इस विधेयक के इरादे को स्पष्ट कर देता है। जब इसके सदस्यों और सलाहकारों में हर्ष मंडेर, अनु आगा, तीस्ता सीतलवाड़, फराह नकवी जैसे हिन्दू विद्वेषी तथा सैयद शहाबुद्दीन, जॉन दयाल, शबनम हाशमी और नियाज फारुखी जैसे घोर साम्प्रदायिक शक्तियों के हस्तक हों तो विधेयक के इरादे क्या होंगे, आसानी से कल्पना की जा सकती है। आखिर ऐसे लोगों द्वारा बनाया गया दस्तावेज उनके चिन्तन के विपरीत कैसे हो सकता है।
जिस समुदाय की रक्षा के बहाने से इस विधेयक को लाया गया है इसको इस विधेयक में 'समूह' का नाम दिया गया है। इस 'समूह' में कथित धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यकों के अतिरिक्त दलित व वनवासी वर्ग को भी सम्मिलित किया गया है। अलग-अलग भाषा बोलने वालों के बीच सामान्य विवाद भी भाषाई अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक विवाद का रूप धारण कर सकते हैं। इस प्रकार के विवाद
किस प्रकार के सामाजिक वैमनस्य को जन्म देंगे, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। विधेयक अनुसूचित जातियों व जनजातियों को हिन्दू समाज से अलग कर समाज को भी बांटने का कार्य करेगा। कुछ वर्गों में पारस्परिक असंतोष के बावजूद उन सबका यह विश्वास है कि उनकी समस्याओं का समाधान हिन्दू समाज के अंगभूत बने रहने पर ही हो सकता है।
यह विधेयक मानता है कि बहुसंख्यक समाज हिंसा करता है और अल्पसंख्यक समाज उसका शिकार होता है जबकि भारत का इतिहास कुछ और ही बताता है। हिन्दू ने कभी भी गैर हिन्दुओं को सताया नहीं, उनको संरक्षण ही दिया है। उसने कभी हिंसा नहीं की, वह हमेशा हिंसा का शिकार हुआ है। क्या यह सरकार हिन्दू समाज को अपनी रक्षा का अधिकार भी नहीं देना चाहती ? क्या हिन्दू की नियति सेक्युलर बिरादरी के संरक्षण में चलने वाली साम्प्रदायिक हिंसा से कुचले जाने की ही है ? किसी भी महिला के शील पर आक्रमण होना, किसी भी सभ्य समाज में उचित नहीं माना जाता। यह विधेयक एक गैर हिन्दू महिला के साथ किए गए दुर्व्यवहार को तो अपराध मानता है; परन्तु हिन्दू महिला के साथ किए गए बलात्कार को अपराध नहीं मानता जबकि साम्प्रदायिक दंगों में हिन्दू महिला का शील ही विधर्मियों के निशाने पर रहता है।

इस विधेयक में प्रावधान है कि 'समूह' के व्यापार में बाधा डालने पर भी यह कानून लागू होगा। इसका अर्थ है कि अगर कोई अल्पसंख्यक बहुसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति का मकान खरीदना चाहता है और वह मना कर देता है तो इस अधिनियम के अन्तर्गत वह हिन्दू अपराधी घोषित हो जायेगा। इसी प्रकार अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा का प्रचार भी अपराध माना गया है। यदि किसी
बहुसंख्यक की किसी बात से किसी अल्पसंख्यक को मानसिक कष्ट हुआ है तो वह भी अपराध माना जायेगा। अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध माना जायेगा। यानि अब अफजल गुरु को फांसी की मांग करना, बांग्लादेशी घुसपैठियों के निष्कासन की मांग करना, धर्मान्तरण पर रोक लगाने की मांग करना भी अपराध बन जायेगा।
दुनिया के सभी प्रबुध्द नागरिक जानते हैं कि हिन्दू धर्म, हिन्दू, देवी-देवताओं व हिन्दू संगठनों के विरुध्द कौन विषवमन करता है। माननीय न्यायपालिका ने भी साम्प्रदायिक हिंसा की सेक्युलरिस्टों द्वारा चर्चित सभी घटनाओं के मूल में इस प्रकार के हिन्दू विरोधी साहित्यों व भाषणों को ही पाया है। गुजरात की बहुचर्चित घटना गोधरा में 59 रामभक्तों को जिन्दा जलाने की प्रतिक्रिया के कारण हुई, यह तथ्य अब कई आयोगों के द्वारा स्थापित किया जा चुका है। अपराध करने वालों को संरक्षण देना और प्रतिक्रिया करने वाले समाज को दण्डित करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं माना जा सकता। किसी निर्मम तानाशाह के इतिहास में भी अपराधियों को इतना बेशर्म संरक्षण कहीं नहीं दिया गया होगा।

भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार किसी आरोपी को तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक वह दोषी सिद्ध न हो जाये; परन्तु, इस विधेयक में आरोपी तब तक दोषी माना जायेगा जब तक वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। इसका मतलब होगा कि किसी भी गैर हिन्दू के लिए अब किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जाएगा। वह केवल आरोप लगाएगा और पुलिस अधिकारी आरोपी हिन्दू को जेल में डाल देगा। इस विधेयक के प्रावधान पुलिस अधिकारी को इतना कस देते हैं कि वह उसे जेल में रखने का पूरा प्रयास करेगा ही क्योंकि उसे अपनी प्रगति रिपोर्ट शिकायतकर्ता को निरंतर भेजनी होगी। यदि किसी संगठन के कार्यकर्ता पर साम्प्रदायिक घृणा का कोई आरोप है तो उस संगठन के मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है। इसी प्रकार यदि कोई प्रशासनिक अधिकारी हिंसा रोकने में असफल है तो राज्य का मुखिया भी जिम्मेदार माना जायेगा।
यही नहीं किसी सैन्य बल, अर्ध्दसैनिक बल या पुलिस के कर्मचारी को तथाकथित हिंसा रोकने में असफल पाए जाने पर उसके मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है।

भारतीय संविधान के अनुसार कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। केन्द्र सरकार केवल सलाह दे सकती है। इससे भारत का संघीय ढांचा सुरक्षित रहता है; परन्तु इस विधेयक के पारित होने के बाद अब इस विधेयक की परिभाषित 'साम्प्रदायिक हिंसा' राज्य के भीतर आंतरिक उपद्रव के रूप में देखी जायेगी और केन्द्र सरकार को किसी भी विरोधी दल द्वारा शासित राज्य में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का अधिकार मिल जायेगा। इसलिए यह विधेयक भारत के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त कर देगा। विधेयक अगर पास हो जाता है तो हिन्दुओं का भारत में जीना दूभर हो जायेगा। देश द्रोही और हिन्दू द्रोही तत्व खुलकर भारत और हिन्दू समाज को समाप्त करने का षडयन्त्र करते रहेंगे; परन्तु हिन्दू संगठन इनको रोकना तो दूर इनके विरुध्द आवाज भी नहीं उठा पायेंगे। हिन्दू जब अपने आप को कहीं से भी संरक्षित नहीं पायेगा तो धर्मान्तरण का कुचक्र तेजी से प्रारम्भ हो
जायेगा। इससे भी भयंकर स्थिति तब होगी जब सेना, पुलिस व प्रशासन इन अपराधियों को रोकने की जगह इनको संरक्षण देंगे और इनके हाथ की कठपुतली बन देशभक्त हिन्दू संगठनों के विरुध्द कार्यवाही करने के लिए मजबूर हो जायेंगे।

इस विधेयक के कुछ ही तथ्यों का विश्लेषण करने पर ही इसका भयावह चित्र सामने आ जाता है। इसके बाद आपातकाल में लिए गए मनमानीपूर्ण निर्णय भी फीके पड़ जायेंगे। हिन्दू का हिन्दू के रूप में रहना मुश्किल हो जायेगा। देश के प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने पहले ही कहा था कि देश के
संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है। यह विधेयक उनके इस कथन का ही एक नया संस्करण लगता है। किसी राजनीतिक विरोधी को भी इसकी आड़ में कुचलकर असीमित काल के लिए किसी भी जेल में डाला जा सकता है।

इस खतरनाक कानून पर अपनी गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए विश्व हिन्दू परिषद
की केन्द्रीय प्रबन्ध समिति की अभी हाल ही में सम्पन्न प्रयाग बैठक में भी एक प्रस्ताव पारित किया गया है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि विहिप इस विधेयक को रोलट एक्ट से भी अधिक खतरनाक मानती है। और सरकार को चेतावनी देती है कि वह अल्पसंख्यकों के वोट बैंक को मजबूत करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हिन्दू समाज और हिन्दू संगठनों को कुचलने के अपने कुत्सित और अपवित्र इरादे को छोड़ दे। यदि वे इस विधेयक को लेकर आगे बढ़ते हैं तो हिन्दू समाज एक प्रबल देशव्यापी आन्दोलन करेगा। विहिप ने देश के राजनीतिज्ञों, प्रबुध्द वर्ग व हिन्दू समाज तथा पूज्य संतों से अपील भी की है कि वे केन्द्र सरकार के इस पैशाचिक विधेयक को रोकने के लिए सशक्त प्रतिकार करें।

टीम अन्ना

टीम अन्ना को लगता है है की वो भारत के ठेकेदार बन गए है ! हर बात पर बकवास करना चालू हो गए है !
प्रशांत भूषण ने आज कहा के कश्मीर से सेना हटा लेनी चाहिए कश्मीर पाकिस्तान को दे देना चाहिए, कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा था | यह पागल हो गया है क्या , इसको कुछ भी दिमाग नहीं है क्या ?
भारत में रहकर ऐसी बात कर रहा है और पुरे देश का ठेकेदार बनना चाहता है ! इसको तो पकिस्तान में भेज देना चाहिए ! कश्मीर हमारा था और हमारा रहेगा !
इस प्रशांत भूषण को दिमागी अस्पताल में भर्ती करा देना चाहिए ! पागल ! अगर मेरे सामने बोला तो सोच लो , दिमाग होश में आ जायेगा !
इस व्यक्ति को यह सोचना चाहिए की यह देश का प्रवक्ता नहीं है जो शराब पीकर कुछ भी बके जा रहा है ! पुरे देश को इस टीम ने मुर्ख बनाया है ! लेकिन जनता की आँखे कब खुलेगी पता नहीं ! कभी कुछ बोलता है और कभी कुछ!

Tuesday, September 13, 2011

एक गोत्र मे विवाह

“सलक्षमा यद्विषुरुषा भवाति” ऋ10/10/2 (“सलक्ष्मा सहोदर बहन से पीडाप्रद संतान उत्पन्न होने की सम्भावना होती है”)‌

“ पापमाहुर्य: सस्वारं निगच्छात” ऋ10/10/12 ( “जो अपने सगे बहन भाई से संतानोत्पत्ति करते हैं, भद्र जन उन्हें पापी कहते हैं)

इस विषय पर स्पष्ट जानकारी पाणिनी कालीन भारत से भी मिलती है.

अष्टाध्यायी के अनुसार “ अपत्यं पौत्र प्रभृति यद गोत्रम् “, एक पुरखा के पोते,पडपोते आदि जितनी संतान होगी वह एक गोत्र की कही जायेगी. यहां पर सपिण्ड का उद्धरण करना आवश्यक हो जाता है.

“ सपिण्डता तु पुरुषे सप्तमे विनिवर्तते !

समानोदकभावस्तु जन्मनाम्नोरवेदन !! “

मनु: 5/60

“सगापन तो सातवीं पीढी में समाप्त हो जाता है. और घनिष्टपन जन्म और नाम के ज्ञात ना रहने पर छूट जाता है.”

आधुनिक जेनेटिक अनुवांशिक विज्ञान के अनुसार inbreeding multiplier अंत:प्रजनन से उत्पन्न विकारों की सम्भावना का वर्धक गुणांक इकाई से यानी एक से कम सातवीं पीढी मे जा कर ही होता है.

गणित के समीकरण के अनुसार,

अंत:प्रजनन विकार गुणांक= (0.5)raised to the power N x100, ( N पीढी का सूचक है,)

पहली पीढी मे N=1,से यह गुणांक 50 होगा, छटी पीढी मे N=6 से यह गुणांक 1.58 हो कर भी इकाई से बडा रहता है. सातवी पीढी मे जा कर N=7 होने पर ही यह अंत:पजनन गुणांक 0.78 हो कर इकाई यानी एक से कम हो जाता है.

मतलब साफ है कि सातवी पीढी के बाद ही अनुवांशिक रोगों की सम्भावना समाप्त होती है. यह एक अत्यंत विस्मयकारी आधुनिक विज्ञान के अनुरूप सत्य है जिसे हमारे ऋषियो ने सपिण्ड विवाह निषेध कर के बताया था.

सगोत्र विवाह से शारीरिक रोग , अल्पायु , कम बुद्धि, रोग निरोधक क्षमता की कमी, अपंगता, विकलांगता सामान्य विकार होते हैं. भारतीय परम्परा मे सगोत्र विवाह न होने का यह भी एक परिणाम है कि सम्पूर्ण विश्व मे भारतीय सब से अधिक बुद्धिमान माने जाते हैं.

सपिण्ड विवाह निषेध भारतीय वैदिक परम्परा की विश्व भर मे एक अत्यन्त आधुनिक विज्ञान से अनुमोदित व्यवस्था है. पुरानी सभ्यता चीन, कोरिया, इत्यादि मे भी गोत्र /सपिण्ड विवाह अमान्य है. परन्तु मुस्लिम और दूसरे पश्चिमी सभ्यताओं मे यह विषय आधुनिक विज्ञान के द्वारा ही लाया जाने के प्रयास चल रहे हैं.

आधुनिक अनुसंधान और सर्वेक्षणों के अनुसार फिनलेंड मे कई शताब्दियों से चले आ रहे शादियों के रिवाज मे अंत:प्रजनन के कारण ढेर सारी ऐसी बीमारियां सामने आंयी हैं जिन के बारे वैज्ञानिक अभी तक कुछ भी नही जान पाए हैं.

Saturday, September 10, 2011

क्या आप कटती हुई गायों को बचाना चाहते है ?


क्या आप कटती हुई गायों को बचाना चाहते है ?
प्रिय भारतवासियों,
उत्तर प्रदेश के बिजनेसमेन (व्यापारीगण) अब स्वचालित आधुनिक मशीन से युक्त कत्लखाने गायों को काटने के लिए बहुत जल्द बनाने जा रहे है ताकि गायों को तीव्र गति से काटा जा सके, उनके मां...स को विदेशों में भेजा जा सके और उन्हें बहुत बड़ा लाभ प्राप्त हो सके | अगर ये लोग इसमें कामयाब हो जाते है तो फिर इन कत्लखानो की संख्या पूरे भारत में बहुत तेजी से बढ़ेगी | पूरे देश के लोग इन कत्लखानो को खोलने का पुरजोर विरोध कर रहे है और उत्तर प्रदेश की सरकार ने कहा है कि अगर एक करोड़ लोग भी कत्लखाने खोलने का विरोध करें और इस आन्दोलन की हिमायत करें तो स्वचालित आधुनिक मशीन से युक्त कत्लखाने खोलने की इजाजत व्यापारियों को नहीं दी जाएगी|
हम गायों की पूजा करते है | भारतीय होने के नाते और मानवता के नाते हम ऐसा होते हुवे हरगिज नहीं देख सकते ................ कृपया आप अपना समर्थन अवश्य दें |
अगर आपको लगता है कि इस तरह के कत्लखाने नहीं खुलने चाहिए तो आप कृपा करके 0522-3095743 पर एक मिस कोल जरूर करे| एक घंटी बजने के बाद कोल अपने आप डिस-कनेक्ट हो जाएगी |
जिस तरह से आपने अन्ना हजारे के जन लोकपाल बिल के आन्दोलन को सफल बनाया उसी तरह से आप अपना समर्थन दें | इसमें आपका कोई खर्चा नहीं है, बल्कि आपके इस एक मिस कोल से प्रतिदिन कटने वाली हजारों लाखों गायें बच जाएगी |कृपया आप अपने मोबाइल से मिस्कोल जरूर करें और इसे जितने लोगों तक पंहुचा सके पहुचाये |
मैने मिस कोल कर दिया है ........ अब आपकी बारी है क्यो कि क्याा आप अपनी माँओ को कटते देख सकते है ?
अभी मिस कोल करे - नंबर है - 05223095743

Friday, September 2, 2011

मुहम्मद पैगम्बर खुद जन्मजात हिंदु था और काबा एक हिन्दू मन्दिर


मुसलमान कहते हैं कि कुराण ईश्वरीय वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से चली आ रही है,परंतु इनकी एक-एक बात आधारहीन तथा तर्कहीन हैं-सबसे पहले तो ये पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति का जो सिद्धान्त देते हैं वो हिंदु धर्म-सिद्धान्त का ही छाया प्रति है.हमारे ग्रंथ के अनुसार ईश्वर ने मनु तथा सतरूपा को पृथ्वी पर सर्व-प्रथम भेजा था..इसी सिद्धान्त के अनुसार ये भी कहते हैं कि अल्लाह ने सबसे पहले आदम और हौआ को भेजा.ठीक है...पर आदम शब्द संस्कृत शब्द "आदि" से बना है जिसका अर्थ होता है-सबसे पहले.यनि पृथ्वी पर सर्वप्रथम संस्कृत भाषा अस्तित्व में थी..सब भाषाओं की जननी संस्कृत है ये बात तो कट्टर मुस्लिम भी स्वीकार करते हैं..इस प्रकार आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में होनी चाहिए अरबी या फारसी में नहीं.

इनका अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है जिसका अर्थ देवी होता है.एक उपनिषद भी है "अल्लोपनिषद". चण्डी,भवानी,दुर्गा,अम्बा,पार्वती आदि देवी को आल्ला से सम्बोधित किया जाता है.जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में "या" शब्द का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे "या देवी सर्वभूतेषु....", "या वीणा वर ...." वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं "या अल्लाह"..इससे सिद्ध होता है कि ये अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह गया बस अर्थ बदल दिया गया.

चूँकि सर्वप्रथम विश्व में सिर्फ संस्कृत ही बोली जाती थी इसलिए धर्म भी एक ही था-वैदिक धर्म.बाद में लोगों ने अपना अलग मत और पंथ बनाना शुरु कर दिया और अपने धर्म(जो वास्तव में सिर्फ मत हैं) को आदि धर्म सिद्ध करने के लिए अपने सिद्धान्त को वैदिक सिद्धान्तों से बिल्कुल भिन्न कर लिया ताकि लोगों को ये शक ना हो कि ये वैदिक धर्म से ही निकला नया धर्म है और लोग वैदिक धर्म के बजाय उस नए धर्म को ही अदि धर्म मान ले..चूँकि मुस्लिम धर्म के प्रवर्त्तक बहुत ज्यादा गम्भीर थे अपने धर्म को फैलाने के लिए और ज्यादा डरे हुए थे इसलिए उसने हरेक सिद्धान्त को ही हिंदु धर्म से अलग कर लिया ताकि सब यही समझें कि मुसलमान धर्म ही आदि धर्म है,हिंदु धर्म नहीं..पर एक पुत्र कितना भी अपनेआप को अपने पिता से अलग करना चाहे वो अलग नहीं कर सकता..अगर उसका डी.एन.ए. टेस्ट किया जाएगा तो पकड़ा ही जाएगा..इतने ज्यादा दिनों तक अरबियों का वैदिक संस्कृति के प्रभाव में रहने के कारण लाख कोशिशों के बाद भी वे सारे प्रमाण नहीं मिटा पाए और मिटा भी नही सकते....

भाषा की दृष्टि से तो अनगिणत प्रमाण हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अरब इस्लाम से पहले वैदिक संस्कृति के प्रभाव में थे.जैसे कुछ उदाहरण-मक्का-मदीना,मक्का संस्कृत शब्द मखः से बना है जिसका अर्थ अग्नि है तथा मदीना मेदिनी से बना है जिसका अर्थ भूमि है..मक्का मदीना का तात्पर्य यज्य की भूमि है.,ईद संस्कृत शब्द ईड से बना है जिसका अर्थ पूजा होता है.नबी जो नभ से बना है..नभी अर्थात आकाशी व्यक्ति.पैगम्बर "प्र-गत-अम्बर" का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है आकाश से चल पड़ा व्यक्ति..

चलिए अब शब्दों को छोड़कर इनके कुछ रीति-रिवाजों पर ध्यान देते हैं जो वैदिक संस्कृति के हैं--

ये बकरीद(बकर+ईद) मनाते हैं..बकर को अरबी में गाय कहते हैं यनि बकरीद गाय-पूजा का दिन है.भले ही मुसलमान इसे गाय को काटकर और खाकर मनाने लगे..

जिस तरह हिंदु अपने पितरों को श्रद्धा-पूर्वक उन्हें अन्न-जल चढ़ाते हैं वो परम्परा अब तक मुसलमानों में है जिसे वो ईद-उल-फितर कहते हैं..फितर शब्द पितर से बना है.वैदिक समाज एकादशी को शुभ दिन मानते हैं तथा बहुत से लोग उस दिन उपवास भी रखते हैं,ये प्रथा अब भी है इनलोगों में.ये इस दिन को ग्यारहवीं शरीफ(पवित्र ग्यारहवाँ दिन) कहते हैं,शिव-व्रत जो आगे चलकर शेबे-बरात बन गया,रामध्यान जो रमझान बन गया...इस तरह से अनेक प्रमाण मिल जाएँगे..आइए अब कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर नजर डालते हैं...

अरब हमेशा से रेगिस्तानी भूमि नहीं रहा है..कभी वहाँ भी हरे-भरे पेड़-पौधे लहलाते थे,लेकिन इस्लाम की ऐसी आँधी चली कि इसने हरे-भरे रेगिस्तान को मरुस्थल में बदल दिया.इस बात का सबूत ये है कि अरबी घोड़े प्राचीन काल में बहुत प्रसिद्ध थे..भारतीय इसी देश से घोड़े खरीद कर भारत लाया करते थे और भारतीयों का इतना प्रभाव था इस देश पर कि उन्होंने इसका नामकरण भी कर दिया था-अर्ब-स्थान अर्थात घोड़े का देश.अर्ब संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ घोड़ा होता है. {वैसे ज्यादातर देशों का नामकरण भारतीयों ने ही किया है जैसे सिंगापुर,क्वालालामपुर,मलेशिया,ईरान,ईराक,कजाकिस्थान



,तजाकिस्थान,आदि..} घोड़े हरे-भरे स्थानों पर ही पल-बढ़कर हृष्ट-पुष्ट हो सकते हैं बालू वाले जगहों पर नहीं..

इस्लाम की आँधी चलनी शुरु हुई और मुहम्मद के अनुयायियों ने धर्म परिवर्त्तन ना करने वाले हिंदुओं का निर्दयता-पूर्वक काटना शुरु कर दिया..पर उन हिंदुओं की परोपकारिता और अपनों के प्रति प्यार तो देखिए कि मरने के बाद भी पेट्रोलियम पदार्थों में रुपांतरित होकर इनका अबतक भरण-पोषण कर रहे हैं वर्ना ना जाने क्या होता इनका..!अल्लाह जाने..!

चूँकि पूरे अरब में सिर्फ हिंदु संस्कृति ही थी इसलिए पूरा अरब मंदिरों से भरा पड़ा था जिसे बाद में लूट-लूट कर मस्जिद बना लिया गया जिसमें मुख्य मंदिर काबा है.इस बात का ये एक प्रमाण है कि दुनिया में जितने भी मस्जिद हैं उन सबका द्वार काबा की तरफ खुलना चाहिए पर ऐसा नहीं है.ये इस बात का सबूत है कि सारे मंदिर लूटे हुए हैं..इन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर काबा का है क्योंकि ये बहुत बड़ा मंदिर था.ये वही जगह है जहाँ भगवान विष्णु का एक पग पड़ा था तीन पग जमीन नापते समय..चूँकि ये मंदिर बहुत बड़ा आस्था का केंद्र था जहाँ भारत से भी काफी मात्रा में लोग जाया करते थे..इसलिए इसमें मुहम्मद जी का धनार्जन का स्वार्थ था या भगवान शिव का प्रभाव कि अभी भी उस मंदिर में सारे हिंदु-रीति रिवाजों का पालन होता है तथा शिवलिंग अभी तक विराजमान है वहाँ..यहाँ आने वाले मुसलमान हिंदु ब्राह्मण की तरह सिर के बाल मुड़वाकर बिना सिलाई किया हुआ एक कपड़ा को शरीर पर लपेट कर काबा के प्रांगण में प्रवेश करते हैं और इसकी सात परिक्रमा करते हैं.यहाँ थोड़ा सा भिन्नता दिखाने के लिए ये लोग वैदिक संस्कृति के विपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं अर्थात हिंदु अगर घड़ी की दिशा में करते हैं तो ये उसके उल्टी दिशा में..पर वैदिक संस्कृति के अनुसार सात ही क्यों.? और ये सब नियम-कानून सिर्फ इसी मस्जिद में क्यों?ना तो सर का मुण्डन करवाना इनके संस्कार में है और ना ही बिना सिलाई के कपड़े पहनना पर ये दोनो नियम हिंदु के अनिवार्य नियम जरुर हैं.

चूँकि ये मस्जिद हिंदुओं से लूटकर बनाई गई है इसलिए इनके मन में हमेशा ये डर बना रहता है कि कहीं ये सच्चाई प्रकट ना हो जाय और ये मंदिर उनके हाथ से निकल ना जाय इस कारण आवश्यकता से अधिक गुप्तता रखी जाती है इस मस्जिद को लेकर..अगर देखा जाय तो मुसलमान हर जगह हमेशा डर-डर कर ही जीते हैं और ये स्वभाविक भी है क्योंकि इतने ज्यादा गलत काम करने के बाद डर तो मन में आएगा ही...अगर देखा जाय तो मुसलमान धर्म का अधार ही डर पर टिका होता है.हमेशा इन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए भयानक नर्क की यातनाओं से डराया जाता है..अगर कुरान की बातों को ईश्वरीय बातें ना माने तो नरक,अगर तर्क-वितर्क किए तो नर्क अगर श्रद्धा और आदरपूर्वक किसी के सामने सर झुका दिए तो नर्क.पल-पल इन्हें डरा कर रखा जाता है क्योंकि इस धर्म को बनाने वाला खुद डरा हुआ था कि लोग इसे अपनायेंगे या नहीं और अपना भी लेंगे तो टिकेंगे या नहीं इसलिए लोगों को डरा-डरा कर इस धर्म में लाया जाता है और डरा-डरा कर टिकाकर रखा जाता है..जैसे अगर आप मुसलमान नहीं हो तो नर्क जाओगे,अगर मूर्त्ति-पूजा कर लिया तो नर्क चल जाओगे,मुहम्मद को पैगम्बर ना माने तो नर्क;इन सब बातों से डराकर ये लोगों को अपने धर्म में खींचने का प्रयत्न करते हैं.पहली बार मैंने जब कुरान के सिद्धान्तों को और स्वर्ग-नरक की बातों को सुना था तो मेरी आत्मा काँप गई थी..उस समय मैं दसवीं कक्षा में था और अपनी स्वेच्छा से ही अपने एक विज्यान के शिक्षक से कुरान के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी..उस दिन तक मैं इस धर्म को हिंदु धर्म के समान या थोड़ा उपर ही समझता था पर वो सब सुनने के बाद मेरी सारी भ्रांति दूर हुई और भगवान को लाख-लाख धन्यवाद दिया कि मुझे उन्होंने हिंदु परिवार में जन्म दिया है नहीं पता नहीं मेरे जैसे हरेक बात पर तर्क-वितर्क करने वालों की क्या गति होती...!

एक तो इस मंदिर को बाहर से एक गिलाफ से पूरी तरह ढककर रखा जाता है ही(बालू की आँधी से बचाने के लिए) दूसरा अंदर में भी पर्दा लगा दिया गया है.मुसलमान में पर्दा प्रथा किस हद तक हावी है ये देख लिजिए.औरतों को तो पर्दे में रखते ही हैं एकमात्र प्रमुख और विशाल मस्जिद को भी पर्दे में रखते हैं.क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर ये मस्जिद मंदिर के रुप में इस जगह पर होता जहाँ हिंदु पूजा करते तो उसे इस तरह से काले-बुर्के में ढक कर रखा जाता रेत की आँधी से बचाने के लिए..!! अंदर के दीवार तो ढके हैं ही उपर छत भी कीमती वस्त्रों से ढके हुए हैं.स्पष्ट है सारे गलत कार्य पर्दे के आढ़ में ही होते हैं क्योंकि खुले में नहीं हो सकते..अब इनके डरने की सीमा देखिए कि काबा के ३५ मील के घेरे में गैर-मुसलमान को प्रवेश नहीं करने दिया जाता है,हरेक हज यात्री को ये सौगन्ध दिलवाई जाती है कि वो हज यात्रा में देखी गई बातों का किसी से उल्लेख नहीं करेगा.वैसे तो सारे यात्रियों को चारदीवारी के बाहर से ही शिवलिंग को छूना तथा चूमना पड़ता है पर अगर किसी कारणवश कुछ गिने-चुने मुसलमानों को अंदर जाने की अनुमति मिल भी जाती है तो उसे सौगन्ध दिलवाई जाती है कि अंदर वो जो कुछ भी देखेंगे उसकी जानकारी अन्य को नहीं देंगे..

कुछ लोग जो जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी प्रकार अंदर चले गए हैं,उनके अनुसार काबा के प्रवेश-द्वार पर काँच का एक भव्य द्वीपसमूह लगा है जिसके उपर भगवत गीता के श्लोक अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्र बना हुआ है जिसे वे ईसा और उसकी माता समझते हैं.अंदर गाय के घी का एक पवित्र दीप सदा जलता रहता है.ये दोनों मुसलमान धर्म के विपरीत कार्य(चित्र और गाय के घी का दिया) यहाँ होते हैं..एक अष्टधातु से बना दिया का चित्र में यहाँ लगा रहा हूँ जो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुई है..ये दीप अरब से प्राप्त हुआ है जो इस्लाम-पूर्व है.इसी तरह का दीप काबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमान रहता है .

ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल जाती तो ज्यादा स्पष्ट हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे...

ये तो सिर्फ मस्जिद की बात है पर मुहम्मद साहब खुद एक जन्मजात हिंदु थे ये किसी भी तरह मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा है कि अगर वो पैगम्बर अर्थात अल्लाह के भेजे हुए दूत थे तो किसी मुसलमान परिवार में जन्म लेते एक काफिर हिंदु परिवार में क्यों जन्मे वो..?जो अल्लाह मूर्त्ति-पूजक हिंदुओं को अपना दुश्मन समझकर खुले आम कत्ल करने की धमकी देता है वो अपने सबसे प्यारे पुत्र को किसी मुसलमान घर में जन्म देने के बजाय एक बड़े शिवभक्त के परिवार में कैसे भेज दिए..? इस काबा मंदिर के पुजारी के घर में ही मुहम्मद का जन्म हुआ था..इसी थोड़े से जन्मजात अधिकार और शक्ति का प्रयोग कर इन्होंने इतना बड़ा काम कर दिया.मुहम्मद के माता-पिता तो इसे जन्म देते ही चल बसे थे(इतना बड़ा पाप कर लेने के बाद वो जीवित भी कैसे रहते)..मुहम्मद के चाचा ने उसे पाल-पोषकर बड़ा किया परंतु उस चाचा को मार दिया इन्होंने अपना धर्म-परिवर्त्तन ना करने के कारण..अगर इनके माता-पिता जिंदा होते तो उनका भी यही हश्र हुआ होता..मुहम्मद के चाचा का नाम उमर-बिन-ए-ह्ज्जाम था.ये एक विद्वान कवि तो थे ही साथ ही साथ बहुत बड़े शिवभक्त भी थे.इनकी कविता सैर-उल-ओकुल ग्रंथ में है.इस ग्रंथ में इस्लाम पूर्व कवियों की महत्त्वपूर्ण तथा पुरस्कृत रचनाएँ संकलित हैं.ये कविता दिल्ली में दिल्ली मार्ग पर बने विशाल लक्ष्मी-नारायण मंदिर की पिछली उद्यानवाटिका में यज्यशाला की दीवारों पर उत्त्कीर्ण हैं.ये कविता मूलतः अरबी में है.इस कविता से कवि का भारत के प्रति श्रद्धा तथा शिव के प्रति भक्ति का पता चलता है.इस कविता में वे कहते हैं कोई व्यक्ति कितना भी पापी हो अगर वो अपना प्रायश्चित कर ले और शिवभक्ति में तल्लीन हो जाय तो उसका उद्धार हो जाएगा और भगवान शिव से वो अपने सारे जीवन के बदले सिर्फ एक दिन भारत में निवास करने का अवसर माँग रहे हैं जिससे उन्हें मुक्ति प्राप्त हो सके क्योंकि भारत ही एकमात्र जगह है जहाँ की यात्रा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा संतों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है..

देखिए प्राचीन काल में कितनी श्रद्धा थी विदेशियों के मन में भारत के प्रति और आज भारत के मुसलमान भारत से नफरत करते हैं.उन्हें तो ये बात सुनकर भी चिढ़ हो जाएगी कि आदम स्वर्ग से भारत में ही उतरा था और यहीं पर उसे परमात्मा का दिव्य संदेश मिला था तथा आदम का ज्येष्ठ पुत्र "शिथ" भी भारत में अयोध्या में दफनाया हुआ है.ये सब बातें मुसलमानों के द्वारा ही कही गई है,मैं नहीं कह रहा हूँ..

और ये "लबी बिन-ए-अख्तब-बिन-ए-तुर्फा" इस तरह का लम्बा-लम्बा नाम भी वैदिक संस्कृति ही है जो दक्षिणी भारत में अभी भी प्रचलित है जिसमें अपने पिता और पितामह का नाम जोड़ा जाता है..

कुछ और प्राचीन-कालीन वैदिक अवशेष देखिए... ये हंसवाहिनी सरस्वती माँ की मूर्त्ति है जो अभी लंदन संग्रहालय में है.यह सऊदी अर्बस्थान से ही प्राप्त हुआ था..

प्रमाण तो और भी हैं बस लेख को बड़ा होने से बचाने के लिए और सब का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ..पर क्या इतने सारे प्रमाण पर्याप्त नहीं हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अभी जो भी मुसलमान हैं वो सब हिंदु ही थे जो जबरन या स्वार्थवश मुसलमान बन गए..कुरान में इस बात का वर्णन होना कि "मूर्त्तिपूजक काफिर हैं उनका कत्ल करो" ये ही सिद्ध करता है कि हिंदु धर्म मुसलमान से पहले अस्तित्व में थे..हिंदु धर्म में आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा का कोई महत्त्व नहीं है,ईश्वर के सामने झुकना तो बहुत छोटी सी बात है..प्रभु-भक्ति की शुरुआत भर है ये..पर मुसलमान धर्म में अल्लाह के सामने झुक जाना ही ईश्वर की अराधना का अंत है..यही सबसे बड़ी बात है.इसलिए ये लोग अल्लाह के अलावे किसी और के आगे झुकते ही नहीं,अगर झुक गए तो नरक जाना पड़ेगा..क्या इतनी निम्न स्तर की बातें ईश्वरीय वाणी हो सकती है..!.? इनके मुहम्मद साहब मूर्ख थे जिन्हें लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..अगर अल्लाह ने इन्हें धर्म की स्थापना के लिए भेजा था तो इसे इतनी कम शक्ति के साथ क्यों भेजा जिसे लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था..या अगर भेज भी दिए थे तो समय आने पर रातों-रात ज्यानी बना देते जैसे हमारे काली दास जी रातों-रात विद्वान बन गए थे(यहाँ तो सिद्ध हो गया कि हमारी काली माँ इनके अल्लाह से ज्यादा शक्तिशाली हैं)..एक बात और कि अल्लाह और इनके बीच भी जिब्राइल नाम का फरिश्ता सम्पर्क-सूत्र के रुप में था.इतने शर्मीले हैं इनके अल्लाह या फिर इनकी तरह ही डरे हुए.!.? वो कोई ईश्वर थे या भूत-पिशाच.?? सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि अगर अल्लाह को मानव के हित के लिए कोई पैगाम देना ही था तो सीधे एक ग्रंथ ही भिजवा देते जिब्राइल के हाथों जैसे हमें हमारे वेद प्राप्त हुए थे..!ये रुक-रुक कर सोच-सोच कर एक-एक आयत भेजने का क्या अर्थ है..!.? अल्लाह को पता है कि उनके इस मंदबुद्धि के कारण कितना घोटाला हो गया..! आने वाले कट्टर मुस्लिम शासक अपने स्वार्थ के लिए एक-से-एक कट्टर बात डालते चले गए कुरान में..एक समानता देखिए हमारे चार वेद की तरह ही इनके भी कुरान में चार धर्म-ग्रंथों का वर्णन है जो अल्लाह ने इनके रसूलों को दिए हैं..कभी ये कहते हैं कि धर्म अपरिवर्तनीय है वो बदल ही नहीं सकता तो फिर ये समय-समय पर धर्मग्रंथ भेजने का क्या मतलब है??अगर उन सब में एक जैसी ही बातें लिखी हैं तो वे धर्मग्रंथ हो ही नहीं सकते...जरा विचार करिए कि पहले मनुष्यों की आयु हजारों साल हुआ करती थी वो वर्त्तमान मनुष्य से हर चीज में बढ़कर थे,युग बदलता गया और लोगों के विचार,परिस्थिति,शक्ति-सामर्थ्य सब कुछ बदलता गया तो ऐसे में भक्ति का तरीका भी बदलना स्वभाविक ही है..राम के युग में लोग राम को जपना शुरु कर दिए,द्वापर युग में

कृष्ण जी के आने के बाद कृष्ण-भक्ति भी शुरु हो गई.अब कलयुग में चूँकि लोगों की आयु तथा शक्ति कम है तो ईश्वर भी जो पहले हजारों वर्ष की तपस्या से खुश होते थे अब कुछ वर्षों की तपस्या में ही दर्शन देने लगे..

धर्म में बदलाव संभव है अगर कोई ये कहे कि ये संभव नहीं है तो वो धर्म हो ही नहीं सकता..

यहाँ मैं यही कहूँगा कि अगर हिंदु धर्म सजीव है जो हर परिस्थिति में सामंजस्य स्थापित कर सकता है(पलंग पर पाँव फैलाकर लेट भी सकता है और जमीन पर पाल्थी मारकर बैठ भी सकता है) तो मुस्लिम धर्म उस अकड़े हुए मुर्दे की तरह जिसका शरीर हिल-डुल भी नहीं सकता...हिंदु धर्म संस्कृति में छोटी से छोटी पूजा में भी विश्व-शांति की कमना की जाती है तो दूसरी तरफ मुसलमान ये कामना करते हैं कि पूरी दुनिया में मार-काट मचाकर अशांति फैलानी है और पूरी दुनिया को मुसलमान बनाना है...

हिंदु अगर विष में भी अमृत निकालकर उसका उपयोग कर लेते हैं तो मुसलमान अमृत को भी विष बना देते हैं..

मैं लेख का अंत कर रहा हूँ और इन सब बातों को पढ़ने के बाद बताइए कि क्या कुरान ईश्वरीय वाणी हो सकती है और क्या इस्लाम धर्म आदि धर्म हो सकता है...?? ये अफसोस की बात है कि कट्टर मुसलमान भी इस बात को जानते तथा मानते हैं कि मुहम्मद के चाचा हिंदु थे फिर भी वो बाँकी बातों से इन्कार करते हैं..

इस लेख में मैंने अपना सारा ध्यान अरब पर ही केंद्रित रखा इसलिए सिर्फ अरब में वैदिक संस्कृति के प्रमाण दिए यथार्थतः वैदिक संस्कृति पूरे विश्व में ही फैली हुई थी..इसके प्रमाण के लिए कुछ चित्र जोड़ रहा हूँ...

-ये राम-सीता और लक्षमण के चित्र हैं जो इटली से मिले हैं.इसमें इन्हें वन जाते हुए दिखाया जा रहा है.सीता माँ के हाथ में शायद तुलसी का पौधा है क्योंकि हिंदु इस पौधे को अपने घर में लगाना बहुत ही शुभ मानते हैं.....



यह चित्र ग्रीस देश के कारिंथ नगर के संग्रहालय में प्रदर्शित है.कारिंथ नगर एथेंस से ६० कि.मी. दूर है.प्राचीनकाल से ही कारिंथ कृष्ण-भक्ति का केंद्र रहा है.यह भव्य भित्तिचित्र उसी नगर के एक मंदिर से प्राप्त हुआ है .इस नगर का नाम कारिंथ भी कृष्ण का अपभ्रंश शब्द ही लग रहा है..अफसोस की बात ये कि इस चित्र को एक देहाती दृश्य का नाम दिया है यूरोपिय इतिहासकारों ने..ऐसे अनेक प्रमाण अभी भी बिखरे पड़े हैं संसार में जो यूरोपीय इतिहासकारों की मूर्खता,द्वेशभावपूर्ण नीति और हमारे हुक्मरानों की लापरवाही के कारण नष्ट हो रहे हैं.जरुरत है हमें जगने की और पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति को पुनर्स्थापित करने की..

Thursday, September 1, 2011

Arvind Kejriwal Still A Govt Servant, Says Finance Ministry


Arvind Kejriwal, who is part of the troika advising Jan Lokpal Bill campaigner Anna Hazare, is technically still a government servant if the sources in the Union Finance Ministry are to be believed, reports the Tribune.

The 1992 batch Indian Revenue Service (IRS) officer had resigned in February 2006, six months before he got his Ramon Magsaysay award in August 2006 for his work in bringing the Right to Information Act.

But the government is yet to accept his resignation because he is yet to clear his “dues” to it, claim official sources.

Apparently, Kejriwal had taken a two-year sabbatical in 2000 to study abroad and availed himself of “study leave” — a facility that the government grants to its employees with full pay.

He extended his two years of paid leave from the Income Tax Department by another two years, this time without pay.

The employee, however, has to sign a bond that on return from the study leave he or she would render at least three years of service to the government or refund the pay and allowances.

Although Kejriwal is said to have made such a commitment, he did not keep it when he decided to resign from the job before completing the three-year period.

When he was asked to repay the amount of about Rs 3 lakh, the officer sought a waiver of the amount taking a plea that he did not have the money to pay to the government.

The Department of Personnel, the nodal ministry that handles all training-related issues, demurred.

The stand-off continues and the interest of the outstanding amount has accumulated, putting the dues at several lakhs now.

The Tribune report said it tried to contact Kejriwal for his version but failed.

The consequence of this is that Kejriwal continues to be a “government servant” and the Union Finance Minister Pranab Mukherjee, whom he negotiated with as part of Team Anna, is technically still his “boss”.

An officer of the Central Board of Direct Taxes (CBDT) said, “It was certainly amusing seeing Kejriwal talking tough with government negotiators.”

Ironically, if Kejriwal ever gets tired with his activism, he can even rejoin the revenue service. He will even be eligible for pension when he resigns once again, if he so chooses.

That is because the Seventh Pay Commission has granted pension even in cases of employment of less than 20 years.

“If Kejriwal continues to refuse to pay his dues that he owes to the treasury, the North Block -- in the current scenario -- will have no option but to take disciplinary action against him,” the CBDT official said.

The Hisar-born Kejriwal set up the Public Cause Research Foundation (PCRF) soon after he resigned.

He donated the prize money of his Magsaysay award as corpus fund for the PCRF, which works to collect, research, analyse and disseminate information about various aspects of governance.

Interestingly, Kejriwal’s most visible NGO Parivartan -- policy change agent -- was set up by him in 2000, when he was still in service, says The Tribune report.