Saturday, December 28, 2013

अरविंद केजरीवाल

 कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनजीओ गिरोह ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी)’ ने घोर सांप्रदायिक ‘सांप्रदायिक और लक्ष्य केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम’ का ड्राफ्ट तैयार किया है। एनएसी की एक प्रमुख सदस्य अरुणा राय के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए एनजीओ की कार्यप्रणाली समझी और फिर ‘परिवर्तन’ नामक एनजीओ से जुड़ गए। अरविंद लंबे अरसे तक राजस्व विभाग से छुटटी लेकर भी सरकारी तनख्वाह ले रहे थे और एनजीओ से भी वेतन उठा रहे थे, जो ‘श्रीमान ईमानदार’ को कानूनन भ्रष्‍टाचारी की श्रेणी में रखता है। वर्ष 2006 में ‘परिवर्तन’ में काम करने के दौरान ही उन्हें अमेरिकी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ ने 'उभरते नेतृत्व' के लिए ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसे उभरते हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके।  इसके बाद अरविंद अपने पुराने सहयोगी मनीष सिसोदिया के एनजीओ ‘कबीर’ से जुड़ गए, जिसका गठन इन दोनों ने मिलकर वर्ष 2005 में किया था।  
अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए!
अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो  ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का  उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई।
ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है।
उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है। 

भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए एनजीओ और मीडिया में विदेशी फंडिंग! 
‘फोर्ड फाउंडेशन’ के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ‘‘कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।’’ यही नहीं, ‘कबीर’ को ‘डच दूतावास’ से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिली। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है।
अंग्रेजी अखबार ‘पॉयनियर’ में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ ‘हिवोस’ के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्‍न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है।  इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। ‘हिवोस’ को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।
डच एनजीओ ‘हिवोस’  दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं।  इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने ‘पनोस’ नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय ‘पनोस’ के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। 'पनोस' में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी ‘पनोस' के जरिए 'फोर्ड फाउंडेशन' की फंडिंग काम कर रही है। ‘सीएनएन-आईबीएन’ व ‘आईबीएन-7’ चैनल के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई ‘पॉपुलेशन काउंसिल’ नामक संस्था के सदस्य हैं, जिसकी फंडिंग अमेरिका की वही ‘रॉकफेलर ब्रदर्स’ करती है जो ‘रेमॉन मेग्सेसाय’  पुरस्कार के लिए ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के साथ मिलकर फंडिंग करती है।
माना जा रहा है कि ‘पनोस’ और ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ की फंडिंग का ही यह कमाल है कि राजदीप सरदेसाई का अंग्रेजी चैनल ‘सीएनएन-आईबीएन’ व हिंदी चैनल ‘आईबीएन-7’ न केवल अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ने’ में सबसे आगे रहे हैं, बल्कि 21 दिसंबर 2013 को ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ का पुरस्कार भी उसे प्रदान किया है। ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ के पुरस्कार की प्रयोजक कंपनी ‘जीएमआर’ भ्रष्‍टाचार में में घिरी है।
‘जीएमआर’ के स्वामित्व वाली ‘डायल’ कंपनी ने देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यूपीए सरकार से महज 100 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन हासिल किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ‘सीएजी’  ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जीएमआर को सस्ते दर पर दी गई जमीन के कारण सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है। इतना ही नहीं, रिश्वत देकर अवैध तरीके से ठेका हासिल करने के कारण ही मालदीव सरकार ने अपने देश में निर्मित हो रहे माले हवाई अड्डा का ठेका जीएमआर से छीन लिया था। सिंगापुर की अदालत ने जीएमआर कंपनी को भ्रष्‍टाचार में शामिल होने का दोषी करार दिया था। तात्पर्य यह है कि अमेरिकी-यूरोपीय फंड, भारतीय मीडिया और यहां यूपीए सरकार के साथ घोटाले में साझीदार कारपोरेट कंपनियों ने मिलकर अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ा’ है, जिसका मकसद आगे पढ़ने पर आपको पता चलेगा।
‘जनलोकपाल आंदोलन’ से ‘आम आदमी पार्टी’ तक का शातिर सफर!
आरोप है कि विदेशी पुरस्कार और फंडिंग हासिल करने के बाद अमेरिकी हित में अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने इस देश को अस्थिर करने के लिए ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ का नारा देते हुए वर्ष 2011 में ‘जनलोकपाल आंदोलन’ की रूप रेखा खिंची।  इसके लिए सबसे पहले बाबा रामदेव का उपयोग किया गया, लेकिन रामदेव इन सभी की मंशाओं को थोड़ा-थोड़ा समझ गए थे। स्वामी रामदेव के मना करने पर उनके मंच का उपयोग करते हुए महाराष्ट्र के सीधे-साधे, लेकिन भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध कई मुहीम में सफलता हासिल करने वाले अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से उत्तर भारत में ‘लॉंच’ कर दिया।  अन्ना हजारे को अरिवंद केजरीवाल की मंशा समझने में काफी वक्त लगा, लेकिन तब तक जनलोकपाल आंदोलन के बहाने अरविंद ‘कांग्रेस पार्टी व विदेशी फंडेड मीडिया’ के जरिए देश में प्रमुख चेहरा बन चुके थे। जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जो मीडिया अन्ना-अन्ना की गाथा गा रही थी, ‘आम आदमी पार्टी’ के गठन के बाद वही मीडिया अन्ना को असफल साबित करने और अरविंद केजरीवाल के महिमा मंडन में जुट गई।
विदेशी फंडिंग तो अंदरूनी जानकारी है, लेकिन उस दौर से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल को प्रमोट करने वाली हर मीडिया संस्थान और पत्रकारों के चेहरे को गौर से देखिए। इनमें से अधिकांश वो हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के द्वारा अंजाम दिए गए 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2जी स्पेक्ट्रम, 1 लाख 86 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन, 70 हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ गेम्स और 'कैश फॉर वोट' घोटाले में समान रूप से भागीदार हैं।  
आगे बढ़ते हैं...! अन्ना जब अरविंद और मनीष सिसोदिया के पीछे की विदेशी फंडिंग और उनकी छुपी हुई मंशा से परिचित हुए तो वह अलग हो गए, लेकिन इसी अन्ना के कंधे पर पैर रखकर अरविंद अपनी ‘आम आदमी पार्टी’ खड़ा करने में सफल  रहे।  जनलोकपाल आंदोलन के पीछे ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड  को लेकर जब सवाल उठने लगा तो अरविंद-मनीष के आग्रह व न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय के आदेश पर फोर्ड फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से ‘कबीर’ व उसकी फंडिंग का पूरा ब्यौरा ही हटा दिया।  लेकिन उससे पहले अन्ना आंदोलन के दौरान 31 अगस्त 2011 में ही फोर्ड के प्रतिनिधि स्टीवेन सॉलनिक ने ‘बिजनस स्टैंडर’ अखबार में एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें यह कबूल किया था कि फोर्ड फाउंडेशन ने ‘कबीर’ को दो बार में 3 लाख 69 हजार डॉलर की फंडिंग की है। स्टीवेन सॉलनिक के इस साक्षात्कार के कारण यह मामला पूरी तरह से दबने से बच गया और अरविंद का चेहरा कम संख्या में ही सही, लेकिन लोगों के सामने आ गया।
सूचना के मुताबिक अमेरिका की एक अन्य संस्था ‘आवाज’ की ओर से भी अरविंद केजरीवाल को जनलोकपाल आंदोलन के लिए फंड उपलब्ध कराया गया था और इसी ‘आवाज’ ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ को फंड उपलब्ध कराया। सीरिया, इजिप्ट, लीबिया आदि देश में सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका की इसी ‘आवाज’ संस्था ने वहां के एनजीओ, ट्रस्ट व बुद्धिजीवियों को जमकर फंडिंग की थी। इससे इस विवाद को बल मिलता है कि अमेरिका के हित में हर देश की पॉलिसी को प्रभावित करने के लिए अमेरिकी संस्था जिस ‘फंडिंग का खेल’ खेल खेलती आई हैं, भारत में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और ‘आम आदमी पार्टी’ उसी की देन हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.एल.शर्मा ने अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के एनजीओ व उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ में चुनावी चंदे के रूप में आए विदेशी फंडिंग की पूरी जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। अदालत ने इसकी जांच का निर्देश दे रखा है, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय इसकी जांच कराने के प्रति उदासीनता बरत रही है, जो केंद्र सरकार को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। वकील एम.एल.शर्मा कहते हैं कि ‘फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010’ के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। यही नहीं, उस राशि को खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना भी जरूरी है। कोई भी विदेशी देश चुनावी चंदे या फंड के जरिए भारत की संप्रभुता व राजनैतिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं कर सके, इसलिए यह कानूनी प्रावधान किया गया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया है। बाबा रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 80 से अधिक मुकदमे दर्ज करने वाली कांग्रेस सरकार की उदासीनता दर्शाती है कि अरविंद केजरीवाल को वह अपने राजनैतिक फायदे के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
अमेरिकी ‘कल्चरल कोल्ड वार’ के हथियार हैं अरविंद केजरीवाल!
फंडिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की अमेरिका व उसकी खुफिया एजेंसी ‘सीआईए’ की नीति को ‘कल्चरल कोल्ड वार’ का नाम दिया गया है। इसमें किसी देश की राजनीति, संस्कृति  व उसके लोकतंत्र को अपने वित्त व पुरस्कार पोषित समूह, एनजीओ, ट्रस्ट, सरकार में बैठे जनप्रतिनिधि, मीडिया और वामपंथी बुद्धिजीवियों के जरिए पूरी तरह से प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। अरविंद केजरीवाल ने ‘सेक्यूलरिज्म’ के नाम पर इसकी पहली झलक अन्ना के मंच से ‘भारत माता’ की तस्वीर को हटाकर दे दिया था। चूंकि इस देश में भारत माता के अपमान को ‘सेक्यूलरिज्म का फैशनेबल बुर्का’ समझा जाता है, इसलिए वामपंथी बुद्धिजीवी व मीडिया बिरादरी इसे अरविंद केजरीवाल की धर्मनिरपेक्षता साबित करने में सफल रही।  
एक बार जो धर्मनिरपेक्षता का गंदा खेल शुरू हुआ तो फिर चल निकला और ‘आम आदमी पार्टी’ के नेता प्रशांत भूषण ने तत्काल कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का सुझाव दे दिया। प्रशांत भूषण यहीं नहीं रुके, उन्होंने संसद हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करते हुए यह तक कह दिया कि इससे भारत का असली चेहरा उजागर हो गया है। जैसे वह खुद भारत नहीं, बल्कि किसी दूसरे देश के नागरिक हों?
प्रशांत भूषण लगातार भारत विरोधी बयान देते चले गए और मीडिया व वामपंथी बुद्धिजीवी उनकी आम आदमी पार्टी को ‘क्रांतिकारी सेक्यूलर दल’ के रूप में प्रचारित करने लगी।  प्रशांत भूषण को हौसला मिला और उन्होंने केंद्र सरकार से कश्मीर में लागू एएफएसपीए कानून को हटाने की मांग करते हुए कह दिया कि सेना ने कश्मीरियों को इस कानून के जरिए दबा रखा है। इसके उलट हमारी सेना यह कह चुकी है कि यदि इस कानून को हटाया जाता है तो अलगाववादी कश्मीर में हावी हो जाएंगे।
अमेरिका का हित इसमें है कि कश्मीर अस्थिर रहे या पूरी तरह से पाकिस्तान के पाले में चला जाए ताकि अमेरिका यहां अपना सैन्य व निगरानी केंद्र स्थापित कर सके।  यहां से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्वी एशिया व चीन पर नजर रखने में उसे आसानी होगी।  आम आदमी पार्टी के नेता  प्रशांत भूषण अपनी झूठी मानवाधिकारवादी छवि व वकालत के जरिए इसकी कोशिश पहले से ही करते रहे हैं और अब जब उनकी ‘अपनी राजनैतिक पार्टी’ हो गई है तो वह इसे राजनैतिक रूप से अंजाम देने में जुटे हैं। यह एक तरह से ‘लिटमस टेस्ट’ था, जिसके जरिए आम आदमी पार्टी ‘ईमानदारी’ और ‘छद्म धर्मनिरपेक्षता’ का ‘कॉकटेल’ तैयार कर रही थी।
8 दिसंबर 2013 को दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद अपनी सरकार बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा आम जनता को अधिकार देने के नाम पर जनमत संग्रह का जो नाटक खेला गया, वह काफी हद तक इस ‘कॉकटेल’ का ही परीक्षण  है। सवाल उठने लगा है कि यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा?
आखिर जनमत संग्रह के नाम पर उनके ‘एसएमएस कैंपेन’ की पारदर्शिता ही कितनी है? अन्ना हजारे भी एसएमएस  कार्ड के नाम पर अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा की गई धोखाधड़ी का मामला उठा चुके हैं। दिल्ली के पटियाला हाउस अदालत में अन्ना व अरविंद को पक्षकार बनाते हुए एसएमएस  कार्ड के नाम पर 100 करोड़ के घोटाले का एक मुकदमा दर्ज है। इस पर अन्ना ने कहा, ‘‘मैं इससे दुखी हूं, क्योंकि मेरे नाम पर अरविंद के द्वारा किए गए इस कार्य का कुछ भी पता नहीं है और मुझे अदालत में घसीट दिया गया है, जो मेरे लिए बेहद शर्म की बात है।’’
प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके ‘पंजीकृत आम आदमी’  ने जब देखा कि ‘भारत माता’ के अपमान व कश्मीर को भारत से अलग करने जैसे वक्तव्य पर ‘मीडिया-बुद्धिजीवी समर्थन का खेल’ शुरू हो चुका है तो उन्होंने अपनी ईमानदारी की चासनी में कांग्रेस के छद्म सेक्यूलरवाद को मिला लिया। उनके बयान देखिए, प्रशांत भूषण ने कहा, ‘इस देश में हिंदू आतंकवाद चरम पर है’, तो प्रशांत के सुर में सुर मिलाते हुए अरविंद ने कहा कि ‘बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी था और उसमें मारे गए मुस्लिम युवा निर्दोष थे।’ इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अरविंद केजरीवाल उत्तरप्रदेश के बरेली में दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके तौकीर रजा और जामा मस्जिद के मौलाना इमाम बुखारी से मिलकर समर्थन देने की मांग की।
याद रखिए, यही इमाम बुखरी हैं, जो खुले आम दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए कह चुके हैं कि ‘हां, मैं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट हूं, यदि हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाओ।’ उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर रखा है लेकिन दिल्ली पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह जामा मस्जिद जाकर उन्हें गिरफ्तार कर सके।  वहीं तौकीर रजा का पुराना सांप्रदायिक इतिहास है। वह समय-समय पर कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के पक्ष में मुसलमानों के लिए फतवा जारी करते रहे हैं। इतना ही नहीं, वह मशहूर बंग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन की हत्या करने वालों को ईनाम देने जैसा घोर अमानवीय फतवा भी जारी कर चुके हैं। 

नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया ‘आखिरी पत्ता’ हैं अरविंद! 
दरअसल विदेश में अमेरिका, सउदी अरब व पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस व क्षेत्रीय पाटियों की पूरी कोशिश नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। मोदी न अमेरिका के हित में हैं, न सउदी अरब व पाकिस्तान के हित में और न ही कांग्रेस पार्टी व धर्मनिरेपक्षता का ढोंग करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के हित में।  मोदी के आते ही अमेरिका की एशिया केंद्रित पूरी विदेश, आर्थिक व रक्षा नीति तो प्रभावित होगी ही, देश के अंदर लूट मचाने में दशकों से जुटी हुई पार्टियों व नेताओं के लिए भी जेल यात्रा का माहौल बन जाएगा। इसलिए उसी भ्रष्‍टाचार को रोकने के नाम पर जनता का भावनात्मक दोहन करते हुए ईमानदारी की स्वनिर्मित धरातल पर ‘आम आदमी पार्टी’ का निर्माण कराया गया है।
दिल्ली में भ्रष्‍टाचार और कुशासन में फंसी कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की 15 वर्षीय सत्ता के विरोध में उत्पन्न लहर को भाजपा के पास सीधे जाने से रोककर और फिर उसी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार बनाने का ड्रामा रचकर अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को रोकने की अपनी क्षमता को दर्शा दिया है। अरविंद केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने की हामी भरते ही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘भाजपा के पास 32 सीटें थी, लेकिन वो बहुमत के लिए 4 सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई। हमारे पास केवल 8 सीटें थीं, लेकिन हमने 28 सीटों का जुगाड़ कर लिया और सरकार भी बना ली।’’
कपिल सिब्बल का यह बयान भाजपा को रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ को खड़ा करने में कांग्रेस की छुपी हुई भूमिका को उजागर कर देता है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित एनजीओ के लिए साथ काम कर चुके हैं। तभी तो दिसंबर-2011 में अन्ना आंदोलन को समाप्त कराने की जिम्मेवारी यूपीए सरकार ने संदीप दीक्षित को सौंपी थी। ‘फोर्ड फाउंडेशन’ ने अरविंद व मनीष सिसोदिया के एनजीओ को 3 लाख 69 हजार डॉलर तो संदीप दीक्षित के एनजीओ को 6 लाख 50 हजार डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। शुरू-शुरू में अरविंद केजरीवाल को कुछ मीडिया हाउस ने शीला-संदीप का ‘ब्रेन चाइल्ड’ बताया भी था, लेकिन यूपीए सरकार का इशारा पाते ही इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली गई।
‘आम आदमी पार्टी’ व  उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पूरी मंशा को इस पार्टी के संस्थापक सदस्य व प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने ‘मेल टुडे’ अखबार में लिखे अपने एक लेख में जाहिर भी कर दिया था, लेकिन बाद में प्रशांत-अरविंद के दबाव के कारण उन्होंने अपने ही लेख से पल्ला झाड़ लिया और ‘मेल टुडे’ अखबार के खिलाफ मुकदमा कर दिया। ‘मेल टुडे’ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यूपीए सरकार के एक मंत्री के फोन पर ‘टुडे ग्रुप’ ने भी इसे झूठ कहने में समय नहीं लगाया, लेकिन तब तक इस लेख के जरिए नरेंद्र मोदी को रोकने लिए ‘कांग्रेस-केजरी’ गठबंधन की समूची साजिश का पर्दाफाश हो गया। यह अलग बात है कि कम प्रसार संख्या और अंग्रेजी में होने के कारण ‘मेल टुडे’ के लेख से बड़ी संख्या में देश की जनता अवगत नहीं हो सकी, इसलिए उस लेख के प्रमुख हिस्से को मैं यहां जस का तस रख रहा हूं, जिसमें नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए गठित ‘आम आदमी पार्टी’ की असलियत का पूरा ब्यौरा है।
शांति भूषण ने इंडिया टुडे समूह के अंग्रेजी अखबार ‘मेल टुडे’ में लिखा था, ‘‘अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर भाजपा को भी निशाने पर ले लिया और उसे कांग्रेस के समान बता डाला।  वहीं खुद वह सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले ताकि उन मुसलमानों को अपने पक्ष में कर सकें जो बीजेपी का विरोध तो करते हैं, लेकिन कांग्रेस से उकता गए हैं।  केजरीवाल और आम आदमी पार्टी उस अन्ना हजारे के आंदोलन की देन हैं जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ कर दिया, जिससे जनता कंफ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई।’’
‘‘आंदोलन के फ्लॉप होने के बाद भी केजरीवाल ने हार नहीं मानी। जिस राजनीति का वह कड़ा विरोध करते रहे थे, उन्होंने उसी राजनीति में आने का फैसला लिया। अन्ना इससे सहमत नहीं हुए । अन्ना की असहमति केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन गई थी। इसलिए केजरीवाल ने अन्ना को दरकिनार करते हुए ‘आम आदमी पार्टी’ के नाम से पार्टी बना ली और इसे दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के खिलाफ खड़ा कर दिया।  केजरीवाल ने जानबूझ कर शरारतपूर्ण ढंग से नितिन गडकरी के भ्रष्‍टाचार की बात उठाई और उन्हें कांग्रेस के भ्रष्‍ट नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया ताकि खुद को ईमानदार व सेक्यूलर दिखा सकें।  एक खास वर्ग को तुष्ट करने के लिए बीजेपी का नाम खराब किया गया। वर्ना बीजेपी तो सत्ता के आसपास भी नहीं थी, ऐसे में उसके भ्रष्‍टाचार का सवाल कहां पैदा होता है?’’
‘‘बीजेपी ‘आम आदमी पार्टी’ को नजरअंदाज करती रही और इसका केजरीवाल ने खूब फायदा उठाया। भले ही बाहर से वह कांग्रेस के खिलाफ थे, लेकिन अंदर से चुपचाप भाजपा के खिलाफ जुटे हुए थे। केजरीवाल ने लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए इसका पूरा फायदा दिल्ली की चुनाव में उठाया और भ्रष्‍टाचार का आरोप बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पर भी मढ़ दिया।  ऐसा उन्होंने अल्पसंख्यक वोट बटोरने के लिए किया।’’
‘‘दिल्ली की कामयाबी के बाद अब अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में आने जा रहे हैं। वह सिर्फ भ्रष्‍टाचार की बात कर रहे हैं, लेकिन गवर्नेंस का मतलब सिर्फ भ्रष्‍टाचार का खात्मा करना ही नहीं होता। कांग्रेस की कारगुजारियों की वजह से भ्रष्‍टाचार के अलावा भी कई सारी समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। खराब अर्थव्यवस्था, बढ़ती कीमतें, पड़ोसी देशों से रिश्ते और अंदरूनी लॉ एंड ऑर्डर समेत कई चुनौतियां हैं। इन सभी चुनौतियों को बिना वक्त गंवाए निबटाना होगा।’’
‘‘मनमोहन सरकार की नाकामी देश के लिए मुश्किल बन गई है। नरेंद्र मोदी इसलिए लोगों की आवाज बन रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इन समस्याओं से जूझने और देश का सम्मान वापस लाने का विश्वास लोगों में जगाया है। मगर केजरीवाल गवर्नेंस के व्यापक अर्थ से अनभिज्ञ हैं। केजरीवाल की प्राथमिकता देश की राजनीति को अस्थिर करना और नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना है।  ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर मोदी एक बार सत्ता में आ गए तो केजरीवाल की दुकान हमेशा के लिए बंद हो जाएगी।’’
Web Title: who is arvind kejriwal in hindi

Wednesday, December 25, 2013

अरविंद केजरीवाल


  • अब अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। पहले ‘परिवर्तन’ नामक संस्था के प्रमुख थे। उनका यह सफर रोचक है। उनकी संस्थाओं के पीछे खड़ी विदेशी शक्तियों को लेकर भी कई सवाल हवा में तैर रहे हैं।
    एक ‘बियॉन्ड हेडलाइन्स’ नामक वेबसाइट ने ‘सूचना के अधिकार कानून’ के जरिए ‘कबीर’ को विदेशी धन मिलने की जानकारी मांगी। इस जानकारी के अनुसार ‘कबीर’ को 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड फाउंडेशन से 86,61,742 रुपए मिले हैं। कबीर को धन देने वालों की सूची में एक ऐसा भी नाम है, जिसे पढ़कर हर कोई चौंक जाएगा। यह नाम डच दूतावास का है।

    पहला सवाल तो यही है कि फोर्ड फाउंडेशन और अरविंद केजरीवाल के बीच क्या संबंध हैं? दूसरा सवाल है कि क्या हिवोस भी उनकी संस्थाओं को मदद देता है? तीसरा सवाल, क्या डच दूतावास के संपर्क में अरविंद केजरीवाल या फिर मनीष सिसोदिया रहते हैं?

    इन सवालों का जवाब केजरीवाल को इसलिए भी देना चाहिए, क्योंकि इन सभी संस्थाओं से एक चर्चित अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसी के संबंध होने की बात अब सामने आ चुकी है। वहीं अरविंद केजरीवाल एक जनप्रतिनिधि हैं।

    पहले बाद करते हैं फोर्ड फाउंडेशन और अरविंद केजरीवाल के संबंधों पर। जनवरी 2000 में अरविंद छुट्टी पर गए। फिर ‘परिवर्तन’ नाम से एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) का गठन किया। केजरीवाल ने साल 2006 के फरवरी महीने से ‘परिवर्तन’ में पूरा समय देने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी। इसी साल उन्हें उभरते नेतृत्व के लिए मैगसेसे का पुरस्कार मिला।

    यह पुरस्कार फोर्ड फाउंडेशन की मदद से ही सन् 2000 में शुरू किया गया था। केजरीवाल के प्रत्येक कदम में फोर्ड फाउंडेशन की भूमिका रही है। पहले उन्हें 38 साल की उम्र में 50,000 डॉलर का यह पुरस्कार मिला, लेकिन उनकी एक भी उपलब्धि का विवरण इस पुरस्कार के साथ नहीं था। हां, इतना जरूर कहा गया कि वे परिवर्तन के बैनर तले केजरीवाल और उनकी टीम ने बिजली बिलों संबंधी 2,500 शिकायतों का निपटारा किया।

    विभिन्न श्रेणियों में मैगसेसे पुरस्कार रोकफेलर ब्रदर्स फाउंडेशन ने स्थापित किया था। इस पुरस्कार के साथ मिलने वाली नगद राशि का बड़ा हिस्सा फोर्ड फाउंडेशन ही देता है। आश्चर्यजनक रूप से केजरीवाल जब सरकारी सेवा में थे, तब भी फोर्ड उनकी संस्था को आर्थिक मदद पहुंचा रहा था। केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर 1999 में ‘कबीर’ नामक एक संस्था का गठन किया था। हैरानी की बात है कि जिस फोर्ड फाउंडेशन ने आर्थिक दान दिया, वही संस्था उसे सम्मानित भी कर रही थी। ऐसा लगता है कि यह सब एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी।

    फोर्ड ने अपने इस कदम से भारत के जनमानस में अपना एक आदमी गढ़ दिया। केजरीवाल फोर्ड फाउंडेशन द्वारा निर्मित एक महत्वपूर्ण आदमी बन गए। हैरानी की बात यह भी है कि ‘कबीर’ पारदर्शी होने का दावा करती है, लेकिन इस संस्था ने साल 2008-9 में मिलने वाले विदेशी धन का व्योरा अपनी वेबसाइट पर नहीं दिया है, जबकि फोर्ड फाउंडेशन से मिली जानकारी बताती है कि उन्होंने ‘कबीर’को 2008 में 1.97 लाख डॉलर दिए। इससे साफ होता है कि फोर्ड फाउंडेशन ने 2005 में अपना एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए अरविंद केजरीवाल को चुना। उसकी सारी गतिविधियों का खर्च वहन किया। इतना ही नहीं, बल्कि मैगससे पुरस्कार दिलवाकर चर्चा में भी लाया।

    एक ‘बियॉन्ड हेडलाइन्स’ नामक वेबसाइट ने ‘सूचना के अधिकार कानून’ के जरिए ‘कबीर’ को विदेशी धन मिलने की जानकारी मांगी। इस जानकारी के अनुसार ‘कबीर’ को 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड फाउंडेशन से 86,61,742 रुपए मिले हैं। कबीर को धन देने वालों की सूची में एक ऐसा भी नाम है, जिसे पढ़कर हर कोई चौंक जाएगा। यह नाम डच दूतावास का है।

    यहां सवाल उठता है कि आखिर डच दूतावास से अरविंद केजरीवाल का क्या संबंध है? क्योंकि डच दूतावास हमेशा ही भारत में संदेह के घेरे में रहा है। 16 अक्टूबर, 2012 को अदालत ने तहलका मामले में आरोप तय किए हैं। इस पूरे मामले में जिस लेख को आधार बनाया गया है, उसमें डच की भारत में गतिविधियों को संदिग्ध बताया गया है।

    इसके अलावा सवाल यह भी उठता है कि किसी देश का दूतावास किसी दूसरे देश की अनाम संस्था को सीधे धन कैसे दे सकता है? आखिर डच दूतावास का अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया से क्या रिश्ता है? यह रहस्य है। न तो स्वयं अरविंद और न ही टीम अरविंद ने इस बाबत कोई जानकारी दी है।

    इतना ही नहीं, बल्कि 1985 में पीएसओ नाम की एक संस्था बनाई गई थी। इस संस्था का काम विकास में सहयोग के नाम पर विशेषज्ञों को दूसरे देशों में तैनात करना था। पीएसओ को डच विदेश मंत्रालय सीधे धन देता है। पीएसओ हिओस समेत 60 डच विकास संगठनों का समूह है। नीदरलैंड सरकार इसे हर साल 27 मिलियन यूरो देती है। पीएसओ ‘प्रिया’ संस्था का आर्थिक सहयोगी है। प्रिया का संबंध फोर्ड फाउंडेशन से है। यही ‘प्रिया’ केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की संस्था ‘कबीर’ की सहयोगी है।

    इन सब बातों से साफ है कि डच एनजीओ, फोर्ड फाउंडेशन,डच सरकार और केजरीवाल के बीच परस्पर संबंध है। इतना ही नहीं, कई देशों से शिकायत मिलने के बाद पीएसओ को बंद किया जा रहा है। ये शिकायतें दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से संबंधित हैं। 2011 में पीएसओ की आम सभा ने इसे 1 जनवरी, 2013 को बंद करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय दूसरे देशों की उन्हीं शिकायतों का असर माना जा रहा है।

    हाल ही में पायनियर नामक अंग्रेजी दैनिक अखबार ने कहा कि हिवोस ने गुजरात के विभिन्न गैर सरकारी संगठन को अप्रैल 2008 और अगस्त 2012 के बीच 13 लाख यूरो यानी सवा नौ करोड़ रुपए दिए। हिवोस पर फोर्ड फाउंडेशन की सबसे ज्यादा कृपा रहती है। डच एनजीओ हिवोस इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस द हेग (एरासमस युनिवर्सिटी रोटरडम) से पिछले पांच सालों से सहयोग ले रही है। हिवोस ने “परिवर्तन” को भी धन मुहैया कराया है।

    इस संस्था की खासियत यह है कि विभिन्न देशों में सत्ता के खिलाफ जनउभार पैदा करने की इसे विशेषज्ञता हासिल है। डच सरकार के इस पूरे कार्यक्रम का समन्वय आईएसएस के डॉ.क्रीस बिकार्ट के हवाले है। इसके साथ-साथ मीडिया को साधने के लिए एक संस्था खड़ी की गई है। इस संस्था के दक्षिणी एशिया में सात कार्यालय हैं। जहां से इनकी गतिविधियां संचालित होती हैं। इस संस्था का नाम ‘पनोस’ है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जो हो रहा है वह प्रायोजित है?

Monday, June 24, 2013

विचित्र किन्तु सत्य

मोबाइल से जुडी कई ऐसी बातें जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं होती लेकिन मुसीबत के बक्त यह मददगार साबित होती है ।

इमरजेंसी नंबर -दुनिया भर में मोबाइल का इमरजेंसी नंबर 112 है । अगर आप मोबाइल की कवरेज एरिया से बाहर हैं तो 112 नंबर द्वारा आप उस क्षेत्र के नेटवर्क को सर्च कर लें . ख़ास बात यह हैकि यह नंबर तब भी काम करता है जब आपका की पैड लौक हो !

जान अभी बाकी है-

मोबाइल जब बैटरी लो दिखाए और उस दौरान जरूरी कॉल करनी हो , ऐसे में
आप *3370# डायल करें , आपका मोबाइल फिर से चालू हो जायेगा और आपका सेलफोन बैटरी में 50 प्रतिशत का इजाफा दिखायेगा ! मोबाइल का यह रिजर्व दोबारा चार्ज हो जायेगा जब आप अगली बार मोबाइल को हमेशा की तरह चार्ज करेंगे !

मोबाइल चोरी होने पर-

मोबाइल फोन चोरी होने की स्थिति में सबसे पहले जरूरत होती है , फोन
को निष्क्रिय करने की ताकि चोर उसका दुरुपयोग न कर सके । अपने फोन के
सीरियल नंबर को चेक करने के लिए *#06# दबाएँ . इसे दबाते हीं आपकी स्क्रीन पर 15 डिजिट का कोड नंबर आयेगा . इसे नोटकर लें और किसी सुरक्षित स्थान पर रखें . जब आपका फोन खो जाए उस दौरान अपने सर्विस
प्रोवाइडर को ये कोड देंगे तो वह आपके हैण्ड सेट को ब्लोक कर देगा !

कार की चाभी खोने पर -

अगर आपकी कार की रिमोट केलेस इंट्री है और गलती से आपकी चाभी कार में बंद रह गयी है और दूसरी चाभी घर पर है तो आपका मोबाइल काम आ सकता है ! घर में किसी व्यक्ति के मोबाइल फोन पर कॉल करें ! घर में बैठे व्यक्ति से कहें कि वह अपने मोबाइल को होल्ड रखकर कार की चाभी के पास ले जाएँ और चाभी केअनलॉक बटन को दबाये साथ ही आप अपने मोबाइल फोन को कार के दरवाजे केपास रखें , दरवाजा खुल जायेगा ! है न विचित्र किन्तु सत्य ?

Sunday, June 23, 2013

भूख-प्यास-ठंड से सांसें छोड़ रही साथ

कुदरत के कहर में पत्नी को खो चुके राजस्थान निवासी कल्याण सिंह केदारनाथ के उस खौफनाक मंजर को याद करके कांप जाते हैं। वह बताते हैं कि केदारनाथ में सब-कुछ तबाह हो गया है। हर जगह मौत का सन्नाटा पसरा हुआ है। भूख-प्यास व ठंड से लोगों की सांसें भी साथ छोड़ रही हैं।
मूल रूप से गांव महौली जिला करौली [राजस्थान] के रहने वाले कल्याण सिंह ने बताया कि 30 यात्रियों के दल में वह पत्नी मालती देवी के साथ केदारनाथ के दर्शन को आए थे। मगर, केदारनाथ में प्रकृति के कहर से उनकी पत्नी उस जल प्रलय में समा गई। वह मेरी जिंदगी थी लेकिन अब सिवाय यादों के कुछ नहीं बचा। उन्होंने बताया कि शनिवार को वह केदारनाथ के समीप भरतपुर हाउस धर्मशाला में पानी से बचने के लिए ऊपरी मंजिल पर चढ़ रहे थे। उनके पीछे पत्नी मालती और दो अन्य लोग भी तेजी से सीढि़यां चढ़ रहे थे। तभी पानी का सैलाब दूसरी मंजिल तक पहुंच गया। उफान ने मालती और दो अन्य लोगों को अपनी चपेट में ले लिया और देखते ही देखते मालती व दो अन्य लोग पानी में समा गए। मदद को आगे बढ़ने का समय भी कुदरत ने नहीं दिया। उन्होंने किसी तरह ऊपरी मंजिल में जाकर जान बचाई।
कल्याण सिंह बुधवार को हेलीकॉप्टर की मदद से जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचे हैं। तबाही को बयां करते कल्याण सिंह ने बताया कि उनके सामने भूख, प्यास व ठंड से एक यात्री ने दम तोड़ दिया, मगर वह असहाय थे। केदारनाथ में हर तरफ मौत का मंजर है। शवों की गिनती करना मुश्किल है।

सेना को पूरे दिन ईधन का इंतजार करना पड़ा।

जब कुदरत के कहर की मार झेल रहे हजारों लोगों की जान आफत में है तब राहत व बचाव के लिए भेजी गई सेना को पूरे दिन ईधन का इंतजार करना पड़ा। इसके चलते शुक्रवार को महज छह अमेरिकी पर्यटकों को मिलम से लाया जा सका। 14 भारतीय पर्यटकों का अब तक कोई पता नहीं लग सका है।
कीड़ा जड़ी दोहन को धारचूला मुनस्यारी गए सैकड़ों लोगों की भी प्रशासन ने अभी तक कोई खोज खबर नहीं ली है। इसके अलावा जंगल में फंसे दस हजार से ज्यादा पीड़ित सरकार की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं।
चार दिन पूर्व आई आपदा ने धारचूला-मुनस्यारी क्षेत्र में भी कहर ढाया है। यहां हजारों की संख्या में भूखे-प्यासे लोग फंसे हैं। बृहस्पतिवार को आसमान में सेना के हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट सुनने के बाद उन्हें राहत की उम्मीद जगी थी, मगर शुक्रवार को नतीजा सिफर ही रहा। ईधन के अभाव में सेना के हेलीकॉप्टर केवल छह अमेरिकी पर्यटकों को निकाल सके। ये लोग गोरी नदी का पुल बह जाने से बुगडियार और मिलम में फंस गए थे।
मुनस्यारी तहसील के मवानी-दवानी क्षेत्र के दो गांवों के लोग आपदा के पांच दिन बाद भी अलग-थलग पड़े हैं। गोरी नदी में लगी गरारी बहने से आवागमन का कोई साधन नहीं बचा है। राशन न होने से यहां 33 परिवार भूखे प्यासे तड़प रहे हैं। डीडीहाट विकास खंड में काली नदी किनारे स्थित अगंलतड़ गांव के लोग भी राहत का इंतजार कर रहे हैं। पिछले छह दिनों से इस गांव का संपर्क भंग है। पहाड़ की तरफ से चट्टान खिसकने और नीचे की तरफ काली नदी द्वारा किए गए कटाव से गांव तक पहुंचना मुश्किल है। मुनस्यारी के रालम ग्लेशियर परिक्षेत्र में 3 हजार मीटर की ऊंचाई पर कई गांवों के 150 ग्रामीण फंसे हुए हैं। इनमें दो दर्जन से अधिक स्कूली बच्चे भी शामिल हैं।
दारमा घाटी के नागलिंग में 65 लोग फंसे हैं। इनमें छह लोग बीमार हैं। बागेश्वर के पिंडर घाटी में फंसे परिवारों को सेना के हेलीकॉप्टर से राहत सामग्री पहुंचाई गई है। जिला प्रशासन ने 121 गांवों के प्रभावित होने, 137 भवन ध्वस्त होने और 45 सड़कें क्षतिग्रस्त होना तो माना है, लेकिन उसके हिसाब से 12 लोगों की मौत हुई है और 19 लापता हैं।

तमाम बुजुर्ग उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं

जान पर खेलकर दूसरों की जान बचाने वाले इंसान कुछ अलग होते है। ऐसे ही हजारों इंसान उत्तराखंड में इन दिनों सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस [आइटीबीपी] की वर्दी पहने मानवता के सिरमौर बने हुए हैं। कंधे पर पीड़ितों को उठाकर, मां-बहनों-बुजुर्गो को गोद में लाकर ये जवान हेलीकॉप्टरों पर चढ़ा रहे हैं और उन्हें सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचा रहे हैं। तमाम बुजुर्ग उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं और तमाम लोग आंसू भरी आंखों से उन्हें शुक्रिया अदा कर रहे हैं। ..शायद यही उनके काम का पारितोषिक है।
जिंदगी में दूसरों के लिए कुछ खास कर पाने का संतोष लेकर ये जवान फिर से अगले मुकाम के लिए रवाना हो जाते हैं और मौसम ठीक रहने व सांझ ढलने तक ज्यादा से ज्यादा आपदाग्रस्त लोगों को बचाने का प्रयास करते हैं। जिन लोगों की ये जान बचाते हैं-कष्ट से निकालते हैं, उनके लिए तो ये देवदूत सरीखे हैं। वे इन देवदूतों को ताजिंदगी नहीं भुला पाएंगे।
 उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदा के बाद राहत एवं बचाव कार्यो के लिए मौसम से मिली मोहलत ज्यादा लंबी नहीं है। मौसम विभाग के मुताबिक अगले सप्ताह की शुरुआत से दोनों ही राज्यों में मानसून की सक्रियता और बढ़ने का अनुमान है। उत्तर भारत के कई सूबों में अगले दो दिनों के भीतर ही मौसम करवट ले सकता है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार 25 जून से उत्तराखंड और हिमाचल में मानसूनी बादलों की सक्रियता में इजाफे के संकेत हैं। हेमकुंड साहब के लिए जारी विशेष पूर्वानुमान में अगले दो दिनों में वर्षा गतिविधि बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। केदारनाथ क्षेत्र में भी 23 जून के बाद से बारिश की सक्रियता बढ़ेगी।
गत दिनों हुई भारी बारिश के बाद उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के अलावा हरियाणा और उत्तर प्रदेश के भी कई इलाकों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है। उत्तराखंड व हिमाचल में इसके कारण जान-माल का काफी नुकसान हुआ है। फौज की मदद से केंद्र व राज्य सरकारें बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत एवं बचाव कार्य चला रही हैं जहां अब भी कई लोग फंसे हैं।
मौसम ने गुरुवार को कुछ राहत दी जिसके कारण राहत अभियान की रफ्तार बढ़ाने में सरकारी एजेंसियों को मदद मिली। लेकिन, यदि मौसम फिर खराब हुआ तो बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित उत्तराखंड में सड़क संपर्क बहाल करने में मुश्किलें आ सकती हैं। उल्लेखनीय है कि इस साल मानूसन में आई अप्रत्याशित तेजी के कारण अचानक उत्तर भारत के कई इलाकों में 15-16 जून को भारी बारिश हुई। वक्त से 15 दिन पहले पहुंचे और जमकर बरसे मानसूनी बादलों ने उत्तराखंड में खूब तबाही मचाई।

ऐसी त्रासदी कभी न देखी

उत्ताराखंड में आई भीषण आपदा ने पूरे उत्तर प्रदेश को हिलाकर रख दिया। बाढ़ में फंसे कई लोग तो पूरे परिवार समेत लापता हैं। जबकि कुछ के रिश्तेदारों का कुछ भी पता नहीं चल पा रहा। किसी को खाना नहीं मिल रहा तो कोई पानी को तरस रहा है। जो सही सलामत घर पहुंच रहे हैं वह अपनी धरती पर पहुंचते ही रो पड़ रहे हैं।
महोबा में तैनात आबकारी इंस्पेक्टर सरोज कुमार त्रिपाठी अपनी पत्नी, तीन लड़कियों व दो लड़कों के साथ इनोवा से केदारनाथ गए थे। कहां हैं कोई पता नहीं चल रहा है। फर्रुखाबाद के लगभग एक दर्जन लोग आपदा के बाद से लापता हैं। नर्सिग होम मालिक प्रयाग नरायन गुप्ता का बृहस्पतिवार को भी पता नहीं चला। फतेहगढ़ के दिनेश कुमार दुबे और उनके पूरे परिवार का अब तक कोई पता नहीं चल सका है। कानपुर देहात के भुगनियापुर गांव के रूपराम मिश्रा, पत्‍‌नी करुणा, बेटी सलोनी और बेटा ओमजी का पता नहीं है।
कानपुर नगर राधाकृष्ण शुक्ल और उनकी पत्नी सरोजनी का भी कोई जानकारी नहीं है। हरदोई की राम चहेती, बहन प्रमोदिनी व मीनाक्षी, भाई रमारमन अपने रामाधार, उमा मिश्रा, रामनवल पांडेय, मालती देवी, रूमा पांडेय और शुभा पांडेय, राम नरायन शर्मा, आशा, अन्नू, संजय, सूरज व उनकी पत्नी और तीन बच्चे लखनऊ चार धाम यात्रा पर आठ जून को गए थे। सभी का कोई पता नहीं चल सका है। हमीरपुर से 20 लोगों का एक जत्था वहां पर आई भीषण बाढ़ में लापता हो गया है। कुरारा के सती प्रसाद मिश्र का भी पता नहीं है। सब तरफ पानी ही पानी। ऊपर आसमान पर काले बादल। देखकर ही डर लगने लगा था। ऐसी त्रासदी कभी न देखी। ये शब्द थे चार धाम की यात्रा कर लौटे इलाहाबाद अतरसुइया के गुड्डू तिवारी के।
संगम एक्सप्रेस से जैसे ही इलाहाबाद जंक्शन के प्लेटफार्म पर उन्होंने पैर रखा, उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े। उत्ताराखंड में प्रतापगढ़ के 700 श्रद्धालु फंसे हुए हैं। विवेक नगर के शिक्षक अनिल मिश्रा, शिवपुरी के शिव प्रसाद त्रिपाठी सहित दर्जनों लोग सड़क बह जाने से अभी तक घर नहीं लौट सके। भगवान की कृपा है कि मैं उत्ताराखंड की आफत से बचकर लौट आया। वहां मैं आगे-आगे चल रहा था और पीछे-पीछे आफत। ये आपबीती है हास्य कलाकार राजीव निगम की। मूलत: यशोदा नगर निवासी राजीव मुंबई में रह रहे हैं।
गाजीपुर के तीन यात्री प्राकृतिक आपदा में जान गवां बैठे हैं जिसमें। बिरनो गोपालपुर निवासी जनार्दन पांडेय, बाबूरायपुर मानपुर के गोपाल जी मिश्र तथा सुहवल क्षेत्र के नवली इंटर कालेज के शिक्षक विजयनारायण पांडेय की मृत्यु हो गई। सोनभद्र जनपद के 40 यात्रियों का जत्था बद्रीनाथ धाम के रास्ते में फंसा है।

केदारनाथ में साक्षात मौत

केदारनाथ में साक्षात मौत की शक्ल में आई भीषण तबाही से जो लोग भी बच गए हैं वे खुद को भाग्य का धनी मान रहे हैं, लेकिन अपनी आंखों के सामने अपनों को खोने वाले कुछ लोग ऐसे हैं जो खुद को अभागा कह रहे हैं। ओमप्रकाश वर्मा भी ऐसे ही शख्स हैं, जो खुद अभागा मान रहे हैं। समझें भी क्यों न। उनकी आंखों के सामने उनकी पत्नी, तीन बच्चे और अन्य परिजन मौत की आगोश में समा गए और वह कुछ भी नहीं कर सके। इनमें से एक बच्चे ने तो उनकी बांहों में दम तोड़ा और नियति ने उन्हें इतना असहाय बना दिया कि उन्हें उसके सीने पर ही पत्थर रखकर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा और वह भी उन केदार बाबा के सामने जहां लोग अपनों के कुशल-मंगल के लिए शीश नवाते हैं।
अलीगढ़ के ओमप्रकाश वर्मा पत्नी रश्मि सहित अपने जिगर के तीन टुकड़ों-तीन वर्षीय कृष्णा, सात वर्षीय मेघा और दस वर्षीय अमन को खोकर किसी तरह घायल अवस्था में ऋषिकेश आए हैं। इन सभी ने ओमप्रकाश की आंखों के सामने ही दम तोड़ा। आंसुओं का सैलाब पोंछते हुए और नियति की क्रूरता को याद करते हुए ओमप्रकाश ने बताया कि उनका 11 सदस्यीय परिवार 15 जून को केदारनाथ मंदिर के समीप आगरावाली धर्मशाला में ठहरा था। रात भर बारिश होती रही, जिससे 16 जून की सुबह आसपास पानी भरने लगा था। मैं और मेरे परिचित शुभम वर्मा सबसे ऊपर वाली छत पर चले गए। हमने परिवार के अन्य लोगों को भी ऊपर आने को कहा, मगर जब तक वे लोग ऊपर आते, धर्मशाला के बेसमेंट में सैलाब आया और सबको बहाकर ले गया। धर्मशाला ढह गई। हम सबसे ऊपर थे इसलिए बच गए। परिवार के बाकी सदस्यों को मैंने मलबे में फंसकर अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते देखा। मेरा बेटा अमन जिंदा था। उसके मुंह में मिट्टी भर गई थी और उसकी एक अंगुली कट गई थी। मैंने खुद को संभालते हुए उसे गोद में उठाया और सुरक्षित स्थान पर लाकर उसे साफ किया। उसकी सांसें टूट रही थीं तो अपने मुंह से सांस दी। तीन घंटे तक वह मेरी गोद में ही मौत से लड़ता रहा और फिर वह भी साथ छोड़ गया।
ओमप्रकाश वर्मा वह खौफनाक मंजर याद करते हुए कहते हैं कि चारों ओर लाशें बिछी थी, इक्का-दुक्का जिंदा बचे लोगों की कराह थी। अपनों की ढूंढती आंखें थीं और बदहवास दौड़ते भागते लोग। शुभम भी घायल हो गए थे, जबकि शेष नौ लोग दम तोड़ चुके थे। अमन की मृत देह गोद में थी। मैं भी बुरी तरह घायल था। लोग वहां से हटने को कह रहे थे। लिहाजा मैंने अपने जिगर के टुकड़े को बाबा केदारनाथ के अहाते में लाकर रख दिया। फिर यह सोचकर लौटा, कहीं पानी का थपेड़ा उसके शव को बहाकर न ले जाए। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? फिर एक पत्थर उसके सीने के ऊपर रख आया। ऋषिकेश हॉस्पिटल में भर्ती परिवार के नौ सदस्यों को गंवाने वाले ओमप्रकाश और शुभम वर्मा की कहानी जिसने भी सुनी स्तब्ध रह गया।

Tuesday, May 28, 2013

कुरान मजीद का आयतों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस, २३५ए, …१ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) में मुकदमा

 इन्द्रसेन (तत्कालीन उपप्रधान हिन्दू महासभा दिल्ली) और राजकुमार ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छापा जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस, २३५ए, …१ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) में मुकदमा चलाया गया।
1- ”फिर, जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको’ को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घातकी जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे ‘तौबा’ कर लें ‘नमाज’ कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।” (पा० १०, सूरा. ९, आयत ५,२ख पृ. ३६८)
2- ”हे ‘ईमान’ लाने वालो! ‘मुश्रिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।” (१०.९.२८ पृ. ३७१)
3- ”निःसंदेह ‘काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।” (५.४.१०१. पृ. २३९)
4- ”हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।” (११.९.१२३ पृ. ३९१)
5- ”जिन लोगों ने हमारी ”आयतों” का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं” (५.४.५६ पृ. २३१)
5- ”हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा ‘कुफ्र’ को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे” (१०.९.२३ पृ. ३७०)
7- ”अल्लाह ‘काफिर’ लोगों को मार्ग नहीं दिखाता” (१०.९.३७ पृ. ३७४)
8- ”हे ‘ईमान’ लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को अपना मित्र बनाओ। अल्ला से डरते रहो यदि तुम ‘ईमान’ वाले हो।” (६.५.५७ पृ. २६८)
9- ”फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।” (२२.३३.६१ पृ. ७५९)
10- ”(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम’ का ईधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।”
11- ‘और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब’ की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।” (२१.३२.२२ पृ. ७३६)
12- ‘अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ‘गनीमतों’ का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,” (२६.४८.२० पृ. ९४३)
13- ”तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ” (१०.८.६९. पृ. ३५९)
14- ”हे नबी! ‘काफिरों’ और ‘मुनाफिकों’ के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम’ है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे” (२८.६६.९. पृ. १०५५)
15- ‘तो अवश्य हम ‘कुफ्र’ करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।” (२४.४१.२७ पृ. ८६५)
16- ”यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (‘जहन्नम’ की) आग। इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी ‘आयतों’ का इन्कार करते थे।” (२४.४१.२८ पृ. ८६५)
17- ”निःसंदेह अल्लाह ने ‘ईमानवालों’ (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए ‘जन्नत’ हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।” (११.९.१११ पृ. ३८८)
18- ”अल्लाह ने इन ‘मुनाफिक’ (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से ‘जहन्नम’ की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हें बस है। अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है।” (१०.९.६८ पृ. ३७९)
19- ”हे नबी! ‘ईमान वालों’ (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते।” (१०.८.६५ पृ. ३५८)
20- ”हे ‘ईमान’ लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा। निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।” (६.५.५१ पृ. २६७)
21- ”किताब वाले” जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना ‘दीन’ बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से ‘जिजया’ देने लगे।” (१०.९.२९. पृ. ३७२)
22- २२ ”…….फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (६.५.१४ पृ. २६०)
23- ”वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी ‘काफिर’ हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।” (५.४.८९ पृ. २३७)
24- ”उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और ‘ईमान’ वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा” (१०.९.१४. पृ. ३६९)
उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।
उपरोक्त आयतों में स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर-मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।
मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ”मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।”
तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- ”कुरान मजीद” की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।” (ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६)

Friday, March 29, 2013

रॉबर्ट वाड्रा का 'जमीनी खेल'

राजस्थान में रॉबर्ट वाड्रा का 'जमीनी खेल'
हरियाणा के बाद अब राजस्थान में जमीन का खेल सामने आया है. रॉबर्ट वाड्रा पर आरोप है कि राजस्थान के बीकानेर जिले में जमीन खरीदने के लिए उन्होंने कानून तोड़ा. रॉबर्ट वाड्रा की जमीन खरीद का मसला इसलिए गंभीर सवाल उठाता है कि राजस्थान सरकार ने भूमि कानून तक बदल दिया. क्या औने-पौने दाम पर खरीदी जमीन से मोटा मुनाफा कमा लेना वाड्रा की अच्छी किस्मत है या फिर सरकार से मिली जानकारी ने उनकी किस्मत चमका दी.
राजस्थान के बीकानेर जिले में बंजर जमीन से रॉबर्ट वाड्रा को फायदा पहुंचा. भले ही रॉबर्ट वाड्रा ने लैंड सीलिंग एक्टर में संशोधन से ठीक पहले सैकड़ों एकड़ जमीन खरीदी हो, लेकिन आज तक ने उन चार लेन-देन के मामले को उजागर किया है, जिसमें 321.78 एकड़ जमीन ली गयी, जबकि इजाजत तो सिर्फ 175 एकड़ जमीन रखने की ही है.

सितंबर 2010 से पहले 321.8 एकड़ जमीन खरीदी गयी. राजस्थान लैंड सीलिंग एक्ट के तहत सितंबर 2010 से पहले 175 एकड़ अधिकतम जमीन रखने की इजाजत थी. बीकानेर जिले के कोयालत इलाके के बस्ती चौनन गांव में वाड्रा के फ्रंटमैन महेश नागर ने 2009 में 218 एकड़ जमीन खरीदी. नागर ने ही बीकानेर के कोलायत इलाके में रॉबर्ट वाड्रा के लिए सारे डील किये. 9 अप्रैल, 2009 को रीयल अर्थ इस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से महेश नागर ने 218 एकड़ जमीन खरीदी. नागर का वाड्रा का रिश्ता यह था कि वह रीयल अर्थ प्राइवेट लिमिटेड का डायरेक्टर था. विक्रेता अविजीत एग्रो प्राइवेट लिमिटेड के विनीत असोपा रहे. जमीन का खसरा नंबर 58, 63 है.

4 जून 2009 को वाड्रा ने गजनेर गांव में 36 एकड़ से ज्यादा जमीन खरीदी. लैंड डील दस्तावेजों से यहां पता चलता है कि महेश नागर ने ब्लू ब्रीज़ प्राइवेट ट्रेडिंग लिमिटेड की तरफ से ये जमीन खरीदी थी. इस कंपनी में वाड्रा का नाम बतौर डायरेक्टर है. इसमें ब्लू ब्रीज़ प्राइवेट ट्रेडिंग लिमिटेड की तरफ से महेश नागर ने 36.87 एकड़ जमीन खरीदी. यहां वाड्रा से नागर का रिश्ता था कि वह ब्लू ब्रीज़ प्राइवेट ट्रेडिंग लिमिटेड का डायरेक्टर था. जमीन का खसरा नंबर 657/445 था.

12 जून 2009 को वाड्रा ने गजनेर गांव में ही और 39 एकड़ जमीन ले ली. महेश नागर ने ब्लू ब्रीज़ ट्रेडिंग की तरफ से ये जमीन खरीदी. खसरा नंबर 660/445 है. लेकिन नागर तो सिर्फ दस्तखत करने के लिए अधिकृत था, ना कि वो जमीन का मालिक. लैंड डील में रीयल अर्थ और ब्लू ब्रीज नाम की जिन दो कंपनियों की वो नुमाइंदगी कर रहा था, उसमें बड़ा स्टेकहोल्डर रॉबर्ट वाड्रा हैं.

मसलन, रीयल अर्थ में वाड्रा के पास 99 फीसदी इक्विटी है, जबकि बाकी एक फीसदी इक्विटी उनकी मां मौरीन के पास है. कॉर्पोरेट अफेयर्स मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड में सिर्फ दो शेयरहोल्डर्स हैं- रॉबर्ट और उनकी मां मौरीन. कंपनी के असली मालिक वाड्रा हैं. रीयल अर्थ में बड़ा हिस्सा रॉबर्ट वाड्रा (99%) के नाम है. उनकी मां मौरीन वाड्रा के पास 1% है.

आजतक के पास एमएस रीयल अर्थ इस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जारी चेक की कॉपी है, जिसपर रॉबर्ट वाड्रा के दस्तखत हैं. जमीन खरीदने के लिए दिए गये ये चेक साबित करते हैं कि अपने फ्रंटमैन महेश नागर के जरिए सारा काम वाड्रा करा रहे थे.

9 अप्रैल 2009 को अविजीत एग्रो (मालिक विनीत असोपा) को 91,50,000 रुपये की रकम चुकायी गयी. चेक नंबर था 759382 और इस पर रॉबर्ट वाड्रा के साइन थे. 9 अप्रैल 2009 को ही सरिता बोथरा (विनीत असोपा के पास वाले प्लॉट की मालकिन) को चेक नंबर 759384 के जरिए 8,50,000 रकम दी गई. इस पर भी वाड्रा के ही साइन थे.

आजतक ने फरीदाबाद तक रॉबर्ट वाड्रा के फ्रंटमैन महेश नागर की तलाश की. पहले तो उन्होंने आजतक से बातचीत करने का वादा किया, लेकिन बाद में मुकर गए.

ये लेनदेन राजस्थान इंपोजीशन ऑफ सीलिंग ऑन एग्रिकल्चरल होल्डिंग्स एक्ट, 1973 का साफ-साफ उल्लंघन है. क्योंकि वाड्रा ने अप्रैल 2009 में 175 एकड़ जमीन रखने की अधिकतम सीमा को पार किया.

वाड्रा ने अप्रैल 2009 और अगस्त 2010 के बीच 321 एकड़ से ज्यादा जमीन खरीदी. ये राजस्थान इंपोजीशन ऑफ सीलिंग ऑन एग्रिकल्चरल होल्डिंग्स एक्ट, 1973 का उल्लंघन था. रेगिस्तानी और अर्ध रेगिस्तानी इलाकों में वाड्रा के लिए लैंड सीलिंग को अधिकतम सीमा तक खींचा गया. कानून के मुताबिक, रेगिस्तानी और अर्ध रेगिस्तानी इलाकों में 125 से 175 एकड़ जमीन रखने की इजाजत है.

अशोक गहलोत सरकार दो मायने में गुनहगार नजर आती है. पहले जब 2009 में वाड्रा राजस्थान में जमीन खरीद रहे थे, तब उसे नजरअंदाज कर दिया. और अब जमीन खरीद ली, तब जमीन एक्ट में संशोधन करके उसे कानूनी तौर पर वैधता दे दी.

वाड्रा के लिए बदला कानून?
सितंबर 2010 में राज्य सरकार ने तीन दशक से भी ज्यादा पुराने कानून में संशोधन किया. साथ ही जमीन पर सीलिंग भी खत्म कर दी. संशोधन में सभी पुराने अधिग्रहण को सही ठहराने के लिए जरूरी नियम जोड़ दिये गये, ताकि उस इलाके में वाड्रा ज्यादा से ज्यादा जमीन खरीद सकें.

जहां वाड्रा के उल्लंघन को कानूनी जामा पहनाने के लिए कांग्रेस शासित राज्य सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट में बदलाव कर दिया, वही करीब तीन साल तक वो सोलर पॉलिसी पर भी बैठी रही। ये वो दौर था, जब वाड्रा ने इस इलाके में बड़ा लैंड बैंक तैयार कर लिया.

यू लगा बंजर जमीन पर जैकपॉट
अप्रैल 2009- वाड्रा ने कोलायत इलाके में जमीन खरीदनी शुरू की.
नवंबर 2009- केंद्र का जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन शुरू.
2009- सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट्स के लिए केंद्र का राज्यों को लैंड बैंक बनाने का निर्देश.
2009 से 2011 के बीच वाड्रा ने सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद ली.
अप्रैल 2011- राजस्थान सरकार की सोलर पॉलिसी शुरू.
जहां सोलर प्रोजेक्ट्स का प्रस्ताव आया, वहां की बंजर जमीन भी महंगी हो गयी.

और यहीं से वो कहानी शुरु होती है कि कैसे बीकानेर में वाड्रा ने मोटा मुनाफा कमाया. उन्होंने बीकानेर के कोलायत इलाके में 81.35 एकड़ जमीन खरीदकर बाद में छह गुने दाम पर सोलर पॉवर प्रोजेक्ट शुरू करने वाली इंडो-फ्रेंच कंपनी फोनरॉक सारस (Fonroche Saaras) को बेच दी. सिर्फ इसी एक ट्रांजैक्शन से वाड्रा ने 612 फीसदी लाभ कमाया. दो साल के भीतर जमीन की कीमत छह गुना बढ़ गयी.

ब्यौरा-
तारीख- 24-03-2010
खसरा नंबर- 452, 450, 461, 462
गांव- गजनेर
क्षेत्र- 81.3 एकड़
कीमत- रुपये 28 लाख
खरीदार- प्रफुल्ल दहिया की तरफ से महेश नागर
कंपनी- स्काइलाइट रियल्टी
बेचा गया- फोनरॉक सारस के प्रमोद राजू
तारीख-23-05-2012
जमीन की कीमत- 1.99 करोड़
फायदा- 1.7 करोड़

4 जून 2009 को गजनेर में वाड्रा के फ्रंटमैन महेश नागर ने 37.29 एकड़ जमीन खरीदी. फिर उसे तीन साल में ही ग्यारह गुना से भी ज्यादा दाम पर इंडो-फ्रेंच कंपनी फोनरॉक सारस एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को बेच दिया.

ब्यौरा-
तारीख- 4 जून, 2009
खसरा नंबर-657/445
गांव- गजनेर
क्षेत्र- 37.3 एकड़
कीमत- 8.7 लाख रुपये
खरीदार- महेश नागर
कंपनी- ब्लू ब्रीज़ ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड
बेचा गया- फोनरॉक सारस एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड
तारीख- 23 मई, 2012
बेचने की कीमत- 1,01,62,599 रुपये
लाभ- 92.9 लाख रुपये (खरीद दाम से 11गुना ज्यादा)

4 जून 2009 को वाड्रा के फ्रंटमैन ने एक बार फिर गजनेर गांव में ही 27.5 एकड़ जमीन खरीदी और उसे छह गुने दाम पर बेच दिया. उन्होंने 13 लाख से कुछ ज्यादा दाम पर जमीन खरीदकर 75 लाख से ज्यादा कीमतपर पर फोनरॉक राजहंस को बेच दिया.

ब्यौरा-
तारीख- 4 जून, 2009
खसरा नंबर-658/445
गांव- गजनेर
क्षेत्र- 27.5 एकड़
कीमत- 13.2 लाख रुपये
खरीदार- महेश नागर
कंपनी- ब्लू ब्रीज़ ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड
बेचा गया- फोनरॉक राजहंस प्राइवेट लिमिटेड
तारीख- 23 मई, 2012
बेचने की कीमत- 75 लाख रुपये
लाभ- 62लाख रुपये (खरीद दाम से 6गुना ज्यादा)

2009 से 2011 के बीच लैंड बैंक बनाने के केंद्र के निर्देश पर राज्य सरकार बैठी रही.

-राज्य सरकार की काहिली ने वाड्रा को सोलर केंद्रों के आस-पास लैंड बैंक बनाने में मदद की.
-बीकानेर क्षेत्र में सोलर केंद्रों की जानकारी सिर्फ राज्य सरकार और केंद्र को थी.
-राज्य के सोलर पॉलिसी में रियायती दर पर जमीन मुहैया कराने का प्रावधान था.
-राज्य सरकार ने रियायती दर पर जमीन बेचने का प्रस्ताव रखा, मगर राज्य सरकार की अधिग्रहित जमीन को खरीदने कोई नहीं आया.
-इसकी वजह सरकार की अधिग्रहित जमीन का ट्रांसमिशन हब्स से दूरी थी.

इसलिए कुछ बड़े सवाल खड़े होते हैं-

-क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीकानेर में जमीन खरीदने के लिए वाड्रा से साठ-गांठ की.
-क्या राज्य सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट में बदलाव इसलिए किया ताकि तय सीमा से ज्यादा जमीन खरीदने वाले वा़ड्रा का सौदा कानूनन जायज हो सके.
-क्या जमीन खरीदने से पहले ही वाड्रा को उस इलाके में सोलर पॉवर प्रोजेक्ट्स आने की जानकारी मिल गयी थी.
-तीन साल में सरकार लैंड बैंक बनाने में क्यों नाकाम रही.

वाड्रा के मुद्दे पर आज बीजेपी ने संसद में हंगामा किया. आरोप लगाया जा रहा है कि कांग्रेस सरकारों ने जानबूझकर गड़बड़ी की. वहीं कांग्रेस किसी भी अनियमितता से इनकार कर रही है.

Monday, February 4, 2013

शर्म करो धर्मनिरपेक्षी हिंदुओं !!!


मैं उस दोगले विचार वाले हिंदू से पूछना चाहता हूँ कि जब अपने भाई से बँटवारे के बाद अपने सगे भाई के किसी जरूरत को पूरा करने का दायित्व निभाना नहीं चाहते हो तो आखिर एक मुस्लिम के लिए अपने जुबान से भाईचारा की बात क्यों करते हो!
मुस्लिम जो खुद का सगा नहीं है वो तुम्हारा क्या होगा..
कुबुद्धिजीवी लोग क्यों हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते हैं, क्यों हिंदू-मुस्लिम भाई भाई और गंगा जमनी तहजीब की बात करते हैं........जबकियह दूर दूर तक संभव ही नहीं है.!
जब भाई भाई थे तो पाकिस्तान क्यों बना ?
जब भाई भाई थे तो कश्मीरी पंडितों का पलायन और नरसंहार क्यों हुआ?
क्या कभी सूरज और चाँद एक हो सकते हैं ?
क्या कभी गाय को माता मानने वाले और दूसरी तरफ गाय का क़त्ल करने वालों में एकता हो सकती है ?
इस्लाम के अतिरिक्त हर धर्म के उपासक को काफिर मानने वालों से एकता हो सकती है ?
भारत माता के लिए सिर कटाने वाले और भारत माता को डायन कहने वाले के बीच एकता हो सकती है ?
हिंदू भाइयों मान लो इस बात को जो संभव ही नहीं है.
शर्म करो धर्मनिरपेक्षी हिंदुओं !!!

साध्वी प्रज्ञा के साथ अन्याय कब तक ??


साध्वी प्रज्ञा के साथ अन्याय कब तक ??
कब तक ऐसा चलेगा ? कब तक साध्वी को जुल्म सहना पड़ेगा ? क्यों जुल्म सहना पड़ेगा ?
हिन्दू है इसलिए ? हिन्दू होने की सजा कब तक मिलेगी ?
आज आप खुद देखे एक तरह किसी को बिरयानी और कबाब मिल रहा है तो किसी को मानवीय यातनाये दी जा रही है !
साध्वी प्रज्ञा के बारे में सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा की एक “धर्मनिरपेक्ष” देश में तुम इसी सलूक के लायक हो, क्योंकि हमारा देश एक “सेकुलर राष्ट्र” कहलाता है। साध्वी प्रज्ञा, तुम पर मालेगाँव बम विस्फ़ोट का आरोप है…। ब्रेन मैपिंग, नार्को टेस्ट सहित कई तरीके आजमाने के बावजूद, बम विस्फ़ोट में उनकी मोटरसाइकिल का उपयोग होने के अलावा अभी तक पुलिस को कोई बड़ा सबूत हाथ नहीं लगा है, इसके बावजूद तुम पर “मकोका” लगाकर जेल में ठूंस रखा है और एक महिला होने पर भी आप जिस तरह खून के आँसू रो रही हैं… यह तो होना ही था।
हिन्दू मर चुके है ....एकता नहीं है....शांत हो चुके है ....
सेकुलर देश में साध्वी के साथ अमानवीय व्यवहार कर के पुरे विश्व को सन्देश दिया जा रहा है सेकुलिरिज्म का !