Monday, December 12, 2011

Attack on parliament.............


काला अध्याय था संसद पर हमला
* तत्कालीन सहायक निदेशक (सुरक्षा) के अनुसार हमले के दौरान कई सांसद व अफसर गए थे सहम

आज से ठीक दस साल पहले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर पर हुआ हमला आजाद भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय है। यह कहना है 13 दिसंबर 2001 को लोकसभा में सहायक निदेशक (सुरक्षा) रण सिंह देसवाल का। आज समाज से खास बातचीत में देसवाल ने बताया कि आतंकी हमले के दौरान संसद भवन में मौजूद अनेक सांसद, मंत्री व उच्चाधिकारी सहमे हुए थे, मगर बावजूद इसके किसी ने हिम्मत नहीं हारी।
यहां बता दें कि देसवाल मूल रूप से बहादुरगढ़ के गांव खेड़ी जसोर के रहने वाले हैं और फिलहाल बहादुरगढ़ के सेक्टर-6 में निवास कर रहे हैं। देसवाल को देशभक्ति का जज्बा विरासत में मिला है। उनके पिता चौ. देवी सिंह व दादा चौ. रिसाल सिंह स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देश की सेवा कर चुके हैं। आसोदा से प्राथमिक शिक्षा लेने के बाद सोनीपत व रोहतक से उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने के बाद देसवाल 12 नवंबर 1978 तक आर्मी मेडिकल कौर में रहे। 27 अगस्त 1979 को उन्होंने लोकसभा में सुरक्षा सहायक के तौर पर नियुक्ति प्राप्त की और 18 अक्तूबर 1998 को उप निदेशक सुरक्षा के पद पर पदोन्नत हुए। 13 नवंबर 2001 को सुबह साढ़े 11 बजे के वाक्या को याद करते हुए देसवाल ने बताया कि उस समय वह सदन के भीतरी क्षेत्र के सुरक्षा प्रभारी थे। उन्हें प्रधानमंत्री को राज्यसभा तक ले जाना था, मगर हो-हल्ला होने के बाद लोकसभा व राज्यसभा की कार्रवाई स्थगित कर दी गई थी। इसी लिए जब हमला हुआ तो उस समय वह केंद्रीय कक्ष में सांसदों के साथ मौजूद थे। जब पहली बार गोली की आवाज आई तो उन्होंने सोचा कि किसी गाड़ी का टायर फटा होगा मगर जब दोबारा गोलीबारी सुनाई दी तो उन्हें आशंका हुई कि मामला गड़बड़ है। उन्होंने गेट पर संपर्क साधा और आतंकी हमले की सूचना मिलते ही संसद के सभी भीतरी दरवाजे बंद करवा दिए। इस बीच उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी व संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन से वाकीटाकी पर संपर्क स्थापित किया और तमाम अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को विशेष सुरक्षा घेरे में सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया। पूरे घटनाक्रम को याद करते हुए देसवाल ने बताया कि आतंकियों का सबसे पहले विरोध तत्कालीन उप राष्टÑपति कृष्णकांत के सुरक्षाकर्मियों ने किया। सुबह 11 बजकर 40 मिनट पर हुए इस हमले से उभरते हुए मात्र बीस मिनट में सुरक्षाकर्मियों ने पांचों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। वारदात के तुरंत बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस व पेट्रोलियम मंत्री रामनाइक ने देसवाल को साथ लेकर शवों का निरीक्षण किया।
नहीं तो होती ज्यादा क्षति
देसवाल ने बताया कि गेट नंबर 8 पर तैनात सीआरपीएफ के सिख जवान के सामने से एक आतंकवादी शरीर पर विस्पोटक पदार्थ बांधे संसद में भीतर घुसने का प्रयास कर रहा था तो उस जवान ने अपनी जान की बाजी लगाते हुए आतंकी पर हमला बोल दिया, जिसमें उसे गोली भी लगी। मगर बुलटप्रूफ जाकेट के चलते जवान बच गया और उसने आत्मघाती आतंकी को वहीं ढेर कर दिया।
हमले में शहीद होने वाले
सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव निवासी नीम का थाना राजस्थान, मतबार नेगी निवासी नई दिल्ली, कमलेश कुमारी सिपाही सीआरपीएफ निवासी कन्नोज यूपी, एएसआई नानकचंद निवासी सोनीपत हरियाणा, रामफल निवासी फरीदाबाद हरियाणा, हवलदार घनश्याम निवासी मथुरा, ओमप्रकाश निवासी नरेला, बिजेंद्र निवासी बदरपुर व माली देसराज निवासी गाजियाबाद इस हमले में शहीद हुए थे।
हमले में घायल होने वाले
इस हमले में एसआई पुरुषोत्तम, एएसआई जीतराम, हवलदार सुमेर सिंह, कमल सिंह, सिपाही रजत वशिष्ट, अस्सिटेंट कमाडेंट आनंद झा, सिपाही राकेश, महिपाल, हंसराज, एआईजी एनएमएस नायर, सीआरपीएफ का हवलदार वाईबी थापा, सिपाही सुखविंदर, एआर चियारी के अलावा आम नागरिक संजीव, पुरुषोत्तम पांडे व विक्रम भी इस हमले में घायल हुए थे।
प्रशस्ति पत्र मिला, पैसा नहीं
लोकसभा में उपनिदेशक (सुरक्षा) रण सिंह देसवाल को 26 अगस्त 2002 को तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। वहीं 12 फरवरी 2002 को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा देसवाल को आतंकी हमले के दौरान बहादुरी के लिए 50 हजार रुपए का आर्थिक सम्मान देने की घोषणा की गई थी, मगर आज तक उन्हें यह राशि नहीं मिली।

1 comment:

  1. इसका फल मायावती को मिल रहा है ।

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