Monday, June 24, 2013

विचित्र किन्तु सत्य

मोबाइल से जुडी कई ऐसी बातें जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं होती लेकिन मुसीबत के बक्त यह मददगार साबित होती है ।

इमरजेंसी नंबर -दुनिया भर में मोबाइल का इमरजेंसी नंबर 112 है । अगर आप मोबाइल की कवरेज एरिया से बाहर हैं तो 112 नंबर द्वारा आप उस क्षेत्र के नेटवर्क को सर्च कर लें . ख़ास बात यह हैकि यह नंबर तब भी काम करता है जब आपका की पैड लौक हो !

जान अभी बाकी है-

मोबाइल जब बैटरी लो दिखाए और उस दौरान जरूरी कॉल करनी हो , ऐसे में
आप *3370# डायल करें , आपका मोबाइल फिर से चालू हो जायेगा और आपका सेलफोन बैटरी में 50 प्रतिशत का इजाफा दिखायेगा ! मोबाइल का यह रिजर्व दोबारा चार्ज हो जायेगा जब आप अगली बार मोबाइल को हमेशा की तरह चार्ज करेंगे !

मोबाइल चोरी होने पर-

मोबाइल फोन चोरी होने की स्थिति में सबसे पहले जरूरत होती है , फोन
को निष्क्रिय करने की ताकि चोर उसका दुरुपयोग न कर सके । अपने फोन के
सीरियल नंबर को चेक करने के लिए *#06# दबाएँ . इसे दबाते हीं आपकी स्क्रीन पर 15 डिजिट का कोड नंबर आयेगा . इसे नोटकर लें और किसी सुरक्षित स्थान पर रखें . जब आपका फोन खो जाए उस दौरान अपने सर्विस
प्रोवाइडर को ये कोड देंगे तो वह आपके हैण्ड सेट को ब्लोक कर देगा !

कार की चाभी खोने पर -

अगर आपकी कार की रिमोट केलेस इंट्री है और गलती से आपकी चाभी कार में बंद रह गयी है और दूसरी चाभी घर पर है तो आपका मोबाइल काम आ सकता है ! घर में किसी व्यक्ति के मोबाइल फोन पर कॉल करें ! घर में बैठे व्यक्ति से कहें कि वह अपने मोबाइल को होल्ड रखकर कार की चाभी के पास ले जाएँ और चाभी केअनलॉक बटन को दबाये साथ ही आप अपने मोबाइल फोन को कार के दरवाजे केपास रखें , दरवाजा खुल जायेगा ! है न विचित्र किन्तु सत्य ?

Sunday, June 23, 2013

भूख-प्यास-ठंड से सांसें छोड़ रही साथ

कुदरत के कहर में पत्नी को खो चुके राजस्थान निवासी कल्याण सिंह केदारनाथ के उस खौफनाक मंजर को याद करके कांप जाते हैं। वह बताते हैं कि केदारनाथ में सब-कुछ तबाह हो गया है। हर जगह मौत का सन्नाटा पसरा हुआ है। भूख-प्यास व ठंड से लोगों की सांसें भी साथ छोड़ रही हैं।
मूल रूप से गांव महौली जिला करौली [राजस्थान] के रहने वाले कल्याण सिंह ने बताया कि 30 यात्रियों के दल में वह पत्नी मालती देवी के साथ केदारनाथ के दर्शन को आए थे। मगर, केदारनाथ में प्रकृति के कहर से उनकी पत्नी उस जल प्रलय में समा गई। वह मेरी जिंदगी थी लेकिन अब सिवाय यादों के कुछ नहीं बचा। उन्होंने बताया कि शनिवार को वह केदारनाथ के समीप भरतपुर हाउस धर्मशाला में पानी से बचने के लिए ऊपरी मंजिल पर चढ़ रहे थे। उनके पीछे पत्नी मालती और दो अन्य लोग भी तेजी से सीढि़यां चढ़ रहे थे। तभी पानी का सैलाब दूसरी मंजिल तक पहुंच गया। उफान ने मालती और दो अन्य लोगों को अपनी चपेट में ले लिया और देखते ही देखते मालती व दो अन्य लोग पानी में समा गए। मदद को आगे बढ़ने का समय भी कुदरत ने नहीं दिया। उन्होंने किसी तरह ऊपरी मंजिल में जाकर जान बचाई।
कल्याण सिंह बुधवार को हेलीकॉप्टर की मदद से जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचे हैं। तबाही को बयां करते कल्याण सिंह ने बताया कि उनके सामने भूख, प्यास व ठंड से एक यात्री ने दम तोड़ दिया, मगर वह असहाय थे। केदारनाथ में हर तरफ मौत का मंजर है। शवों की गिनती करना मुश्किल है।

सेना को पूरे दिन ईधन का इंतजार करना पड़ा।

जब कुदरत के कहर की मार झेल रहे हजारों लोगों की जान आफत में है तब राहत व बचाव के लिए भेजी गई सेना को पूरे दिन ईधन का इंतजार करना पड़ा। इसके चलते शुक्रवार को महज छह अमेरिकी पर्यटकों को मिलम से लाया जा सका। 14 भारतीय पर्यटकों का अब तक कोई पता नहीं लग सका है।
कीड़ा जड़ी दोहन को धारचूला मुनस्यारी गए सैकड़ों लोगों की भी प्रशासन ने अभी तक कोई खोज खबर नहीं ली है। इसके अलावा जंगल में फंसे दस हजार से ज्यादा पीड़ित सरकार की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं।
चार दिन पूर्व आई आपदा ने धारचूला-मुनस्यारी क्षेत्र में भी कहर ढाया है। यहां हजारों की संख्या में भूखे-प्यासे लोग फंसे हैं। बृहस्पतिवार को आसमान में सेना के हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट सुनने के बाद उन्हें राहत की उम्मीद जगी थी, मगर शुक्रवार को नतीजा सिफर ही रहा। ईधन के अभाव में सेना के हेलीकॉप्टर केवल छह अमेरिकी पर्यटकों को निकाल सके। ये लोग गोरी नदी का पुल बह जाने से बुगडियार और मिलम में फंस गए थे।
मुनस्यारी तहसील के मवानी-दवानी क्षेत्र के दो गांवों के लोग आपदा के पांच दिन बाद भी अलग-थलग पड़े हैं। गोरी नदी में लगी गरारी बहने से आवागमन का कोई साधन नहीं बचा है। राशन न होने से यहां 33 परिवार भूखे प्यासे तड़प रहे हैं। डीडीहाट विकास खंड में काली नदी किनारे स्थित अगंलतड़ गांव के लोग भी राहत का इंतजार कर रहे हैं। पिछले छह दिनों से इस गांव का संपर्क भंग है। पहाड़ की तरफ से चट्टान खिसकने और नीचे की तरफ काली नदी द्वारा किए गए कटाव से गांव तक पहुंचना मुश्किल है। मुनस्यारी के रालम ग्लेशियर परिक्षेत्र में 3 हजार मीटर की ऊंचाई पर कई गांवों के 150 ग्रामीण फंसे हुए हैं। इनमें दो दर्जन से अधिक स्कूली बच्चे भी शामिल हैं।
दारमा घाटी के नागलिंग में 65 लोग फंसे हैं। इनमें छह लोग बीमार हैं। बागेश्वर के पिंडर घाटी में फंसे परिवारों को सेना के हेलीकॉप्टर से राहत सामग्री पहुंचाई गई है। जिला प्रशासन ने 121 गांवों के प्रभावित होने, 137 भवन ध्वस्त होने और 45 सड़कें क्षतिग्रस्त होना तो माना है, लेकिन उसके हिसाब से 12 लोगों की मौत हुई है और 19 लापता हैं।

तमाम बुजुर्ग उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं

जान पर खेलकर दूसरों की जान बचाने वाले इंसान कुछ अलग होते है। ऐसे ही हजारों इंसान उत्तराखंड में इन दिनों सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस [आइटीबीपी] की वर्दी पहने मानवता के सिरमौर बने हुए हैं। कंधे पर पीड़ितों को उठाकर, मां-बहनों-बुजुर्गो को गोद में लाकर ये जवान हेलीकॉप्टरों पर चढ़ा रहे हैं और उन्हें सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचा रहे हैं। तमाम बुजुर्ग उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं और तमाम लोग आंसू भरी आंखों से उन्हें शुक्रिया अदा कर रहे हैं। ..शायद यही उनके काम का पारितोषिक है।
जिंदगी में दूसरों के लिए कुछ खास कर पाने का संतोष लेकर ये जवान फिर से अगले मुकाम के लिए रवाना हो जाते हैं और मौसम ठीक रहने व सांझ ढलने तक ज्यादा से ज्यादा आपदाग्रस्त लोगों को बचाने का प्रयास करते हैं। जिन लोगों की ये जान बचाते हैं-कष्ट से निकालते हैं, उनके लिए तो ये देवदूत सरीखे हैं। वे इन देवदूतों को ताजिंदगी नहीं भुला पाएंगे।
 उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदा के बाद राहत एवं बचाव कार्यो के लिए मौसम से मिली मोहलत ज्यादा लंबी नहीं है। मौसम विभाग के मुताबिक अगले सप्ताह की शुरुआत से दोनों ही राज्यों में मानसून की सक्रियता और बढ़ने का अनुमान है। उत्तर भारत के कई सूबों में अगले दो दिनों के भीतर ही मौसम करवट ले सकता है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार 25 जून से उत्तराखंड और हिमाचल में मानसूनी बादलों की सक्रियता में इजाफे के संकेत हैं। हेमकुंड साहब के लिए जारी विशेष पूर्वानुमान में अगले दो दिनों में वर्षा गतिविधि बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। केदारनाथ क्षेत्र में भी 23 जून के बाद से बारिश की सक्रियता बढ़ेगी।
गत दिनों हुई भारी बारिश के बाद उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के अलावा हरियाणा और उत्तर प्रदेश के भी कई इलाकों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है। उत्तराखंड व हिमाचल में इसके कारण जान-माल का काफी नुकसान हुआ है। फौज की मदद से केंद्र व राज्य सरकारें बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत एवं बचाव कार्य चला रही हैं जहां अब भी कई लोग फंसे हैं।
मौसम ने गुरुवार को कुछ राहत दी जिसके कारण राहत अभियान की रफ्तार बढ़ाने में सरकारी एजेंसियों को मदद मिली। लेकिन, यदि मौसम फिर खराब हुआ तो बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित उत्तराखंड में सड़क संपर्क बहाल करने में मुश्किलें आ सकती हैं। उल्लेखनीय है कि इस साल मानूसन में आई अप्रत्याशित तेजी के कारण अचानक उत्तर भारत के कई इलाकों में 15-16 जून को भारी बारिश हुई। वक्त से 15 दिन पहले पहुंचे और जमकर बरसे मानसूनी बादलों ने उत्तराखंड में खूब तबाही मचाई।

ऐसी त्रासदी कभी न देखी

उत्ताराखंड में आई भीषण आपदा ने पूरे उत्तर प्रदेश को हिलाकर रख दिया। बाढ़ में फंसे कई लोग तो पूरे परिवार समेत लापता हैं। जबकि कुछ के रिश्तेदारों का कुछ भी पता नहीं चल पा रहा। किसी को खाना नहीं मिल रहा तो कोई पानी को तरस रहा है। जो सही सलामत घर पहुंच रहे हैं वह अपनी धरती पर पहुंचते ही रो पड़ रहे हैं।
महोबा में तैनात आबकारी इंस्पेक्टर सरोज कुमार त्रिपाठी अपनी पत्नी, तीन लड़कियों व दो लड़कों के साथ इनोवा से केदारनाथ गए थे। कहां हैं कोई पता नहीं चल रहा है। फर्रुखाबाद के लगभग एक दर्जन लोग आपदा के बाद से लापता हैं। नर्सिग होम मालिक प्रयाग नरायन गुप्ता का बृहस्पतिवार को भी पता नहीं चला। फतेहगढ़ के दिनेश कुमार दुबे और उनके पूरे परिवार का अब तक कोई पता नहीं चल सका है। कानपुर देहात के भुगनियापुर गांव के रूपराम मिश्रा, पत्‍‌नी करुणा, बेटी सलोनी और बेटा ओमजी का पता नहीं है।
कानपुर नगर राधाकृष्ण शुक्ल और उनकी पत्नी सरोजनी का भी कोई जानकारी नहीं है। हरदोई की राम चहेती, बहन प्रमोदिनी व मीनाक्षी, भाई रमारमन अपने रामाधार, उमा मिश्रा, रामनवल पांडेय, मालती देवी, रूमा पांडेय और शुभा पांडेय, राम नरायन शर्मा, आशा, अन्नू, संजय, सूरज व उनकी पत्नी और तीन बच्चे लखनऊ चार धाम यात्रा पर आठ जून को गए थे। सभी का कोई पता नहीं चल सका है। हमीरपुर से 20 लोगों का एक जत्था वहां पर आई भीषण बाढ़ में लापता हो गया है। कुरारा के सती प्रसाद मिश्र का भी पता नहीं है। सब तरफ पानी ही पानी। ऊपर आसमान पर काले बादल। देखकर ही डर लगने लगा था। ऐसी त्रासदी कभी न देखी। ये शब्द थे चार धाम की यात्रा कर लौटे इलाहाबाद अतरसुइया के गुड्डू तिवारी के।
संगम एक्सप्रेस से जैसे ही इलाहाबाद जंक्शन के प्लेटफार्म पर उन्होंने पैर रखा, उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े। उत्ताराखंड में प्रतापगढ़ के 700 श्रद्धालु फंसे हुए हैं। विवेक नगर के शिक्षक अनिल मिश्रा, शिवपुरी के शिव प्रसाद त्रिपाठी सहित दर्जनों लोग सड़क बह जाने से अभी तक घर नहीं लौट सके। भगवान की कृपा है कि मैं उत्ताराखंड की आफत से बचकर लौट आया। वहां मैं आगे-आगे चल रहा था और पीछे-पीछे आफत। ये आपबीती है हास्य कलाकार राजीव निगम की। मूलत: यशोदा नगर निवासी राजीव मुंबई में रह रहे हैं।
गाजीपुर के तीन यात्री प्राकृतिक आपदा में जान गवां बैठे हैं जिसमें। बिरनो गोपालपुर निवासी जनार्दन पांडेय, बाबूरायपुर मानपुर के गोपाल जी मिश्र तथा सुहवल क्षेत्र के नवली इंटर कालेज के शिक्षक विजयनारायण पांडेय की मृत्यु हो गई। सोनभद्र जनपद के 40 यात्रियों का जत्था बद्रीनाथ धाम के रास्ते में फंसा है।

केदारनाथ में साक्षात मौत

केदारनाथ में साक्षात मौत की शक्ल में आई भीषण तबाही से जो लोग भी बच गए हैं वे खुद को भाग्य का धनी मान रहे हैं, लेकिन अपनी आंखों के सामने अपनों को खोने वाले कुछ लोग ऐसे हैं जो खुद को अभागा कह रहे हैं। ओमप्रकाश वर्मा भी ऐसे ही शख्स हैं, जो खुद अभागा मान रहे हैं। समझें भी क्यों न। उनकी आंखों के सामने उनकी पत्नी, तीन बच्चे और अन्य परिजन मौत की आगोश में समा गए और वह कुछ भी नहीं कर सके। इनमें से एक बच्चे ने तो उनकी बांहों में दम तोड़ा और नियति ने उन्हें इतना असहाय बना दिया कि उन्हें उसके सीने पर ही पत्थर रखकर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा और वह भी उन केदार बाबा के सामने जहां लोग अपनों के कुशल-मंगल के लिए शीश नवाते हैं।
अलीगढ़ के ओमप्रकाश वर्मा पत्नी रश्मि सहित अपने जिगर के तीन टुकड़ों-तीन वर्षीय कृष्णा, सात वर्षीय मेघा और दस वर्षीय अमन को खोकर किसी तरह घायल अवस्था में ऋषिकेश आए हैं। इन सभी ने ओमप्रकाश की आंखों के सामने ही दम तोड़ा। आंसुओं का सैलाब पोंछते हुए और नियति की क्रूरता को याद करते हुए ओमप्रकाश ने बताया कि उनका 11 सदस्यीय परिवार 15 जून को केदारनाथ मंदिर के समीप आगरावाली धर्मशाला में ठहरा था। रात भर बारिश होती रही, जिससे 16 जून की सुबह आसपास पानी भरने लगा था। मैं और मेरे परिचित शुभम वर्मा सबसे ऊपर वाली छत पर चले गए। हमने परिवार के अन्य लोगों को भी ऊपर आने को कहा, मगर जब तक वे लोग ऊपर आते, धर्मशाला के बेसमेंट में सैलाब आया और सबको बहाकर ले गया। धर्मशाला ढह गई। हम सबसे ऊपर थे इसलिए बच गए। परिवार के बाकी सदस्यों को मैंने मलबे में फंसकर अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते देखा। मेरा बेटा अमन जिंदा था। उसके मुंह में मिट्टी भर गई थी और उसकी एक अंगुली कट गई थी। मैंने खुद को संभालते हुए उसे गोद में उठाया और सुरक्षित स्थान पर लाकर उसे साफ किया। उसकी सांसें टूट रही थीं तो अपने मुंह से सांस दी। तीन घंटे तक वह मेरी गोद में ही मौत से लड़ता रहा और फिर वह भी साथ छोड़ गया।
ओमप्रकाश वर्मा वह खौफनाक मंजर याद करते हुए कहते हैं कि चारों ओर लाशें बिछी थी, इक्का-दुक्का जिंदा बचे लोगों की कराह थी। अपनों की ढूंढती आंखें थीं और बदहवास दौड़ते भागते लोग। शुभम भी घायल हो गए थे, जबकि शेष नौ लोग दम तोड़ चुके थे। अमन की मृत देह गोद में थी। मैं भी बुरी तरह घायल था। लोग वहां से हटने को कह रहे थे। लिहाजा मैंने अपने जिगर के टुकड़े को बाबा केदारनाथ के अहाते में लाकर रख दिया। फिर यह सोचकर लौटा, कहीं पानी का थपेड़ा उसके शव को बहाकर न ले जाए। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? फिर एक पत्थर उसके सीने के ऊपर रख आया। ऋषिकेश हॉस्पिटल में भर्ती परिवार के नौ सदस्यों को गंवाने वाले ओमप्रकाश और शुभम वर्मा की कहानी जिसने भी सुनी स्तब्ध रह गया।