Sunday, June 23, 2013

केदारनाथ में साक्षात मौत

केदारनाथ में साक्षात मौत की शक्ल में आई भीषण तबाही से जो लोग भी बच गए हैं वे खुद को भाग्य का धनी मान रहे हैं, लेकिन अपनी आंखों के सामने अपनों को खोने वाले कुछ लोग ऐसे हैं जो खुद को अभागा कह रहे हैं। ओमप्रकाश वर्मा भी ऐसे ही शख्स हैं, जो खुद अभागा मान रहे हैं। समझें भी क्यों न। उनकी आंखों के सामने उनकी पत्नी, तीन बच्चे और अन्य परिजन मौत की आगोश में समा गए और वह कुछ भी नहीं कर सके। इनमें से एक बच्चे ने तो उनकी बांहों में दम तोड़ा और नियति ने उन्हें इतना असहाय बना दिया कि उन्हें उसके सीने पर ही पत्थर रखकर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा और वह भी उन केदार बाबा के सामने जहां लोग अपनों के कुशल-मंगल के लिए शीश नवाते हैं।
अलीगढ़ के ओमप्रकाश वर्मा पत्नी रश्मि सहित अपने जिगर के तीन टुकड़ों-तीन वर्षीय कृष्णा, सात वर्षीय मेघा और दस वर्षीय अमन को खोकर किसी तरह घायल अवस्था में ऋषिकेश आए हैं। इन सभी ने ओमप्रकाश की आंखों के सामने ही दम तोड़ा। आंसुओं का सैलाब पोंछते हुए और नियति की क्रूरता को याद करते हुए ओमप्रकाश ने बताया कि उनका 11 सदस्यीय परिवार 15 जून को केदारनाथ मंदिर के समीप आगरावाली धर्मशाला में ठहरा था। रात भर बारिश होती रही, जिससे 16 जून की सुबह आसपास पानी भरने लगा था। मैं और मेरे परिचित शुभम वर्मा सबसे ऊपर वाली छत पर चले गए। हमने परिवार के अन्य लोगों को भी ऊपर आने को कहा, मगर जब तक वे लोग ऊपर आते, धर्मशाला के बेसमेंट में सैलाब आया और सबको बहाकर ले गया। धर्मशाला ढह गई। हम सबसे ऊपर थे इसलिए बच गए। परिवार के बाकी सदस्यों को मैंने मलबे में फंसकर अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते देखा। मेरा बेटा अमन जिंदा था। उसके मुंह में मिट्टी भर गई थी और उसकी एक अंगुली कट गई थी। मैंने खुद को संभालते हुए उसे गोद में उठाया और सुरक्षित स्थान पर लाकर उसे साफ किया। उसकी सांसें टूट रही थीं तो अपने मुंह से सांस दी। तीन घंटे तक वह मेरी गोद में ही मौत से लड़ता रहा और फिर वह भी साथ छोड़ गया।
ओमप्रकाश वर्मा वह खौफनाक मंजर याद करते हुए कहते हैं कि चारों ओर लाशें बिछी थी, इक्का-दुक्का जिंदा बचे लोगों की कराह थी। अपनों की ढूंढती आंखें थीं और बदहवास दौड़ते भागते लोग। शुभम भी घायल हो गए थे, जबकि शेष नौ लोग दम तोड़ चुके थे। अमन की मृत देह गोद में थी। मैं भी बुरी तरह घायल था। लोग वहां से हटने को कह रहे थे। लिहाजा मैंने अपने जिगर के टुकड़े को बाबा केदारनाथ के अहाते में लाकर रख दिया। फिर यह सोचकर लौटा, कहीं पानी का थपेड़ा उसके शव को बहाकर न ले जाए। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? फिर एक पत्थर उसके सीने के ऊपर रख आया। ऋषिकेश हॉस्पिटल में भर्ती परिवार के नौ सदस्यों को गंवाने वाले ओमप्रकाश और शुभम वर्मा की कहानी जिसने भी सुनी स्तब्ध रह गया।

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