अब
अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। पहले ‘परिवर्तन’
नामक संस्था के प्रमुख थे। उनका यह सफर रोचक है। उनकी संस्थाओं के पीछे
खड़ी विदेशी शक्तियों को लेकर भी कई सवाल हवा में तैर रहे हैं।
एक
‘बियॉन्ड हेडलाइन्स’ नामक वेबसाइट ने ‘सूचना के अधिकार कानून’ के जरिए
‘कबीर’ को विदेशी धन मिलने की जानकारी मांगी। इस जानकारी के अनुसार ‘कबीर’
को 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड फाउंडेशन से 86,61,742 रुपए मिले हैं। कबीर
को धन देने वालों की सूची में एक ऐसा भी नाम है, जिसे पढ़कर हर कोई चौंक
जाएगा। यह नाम डच दूतावास का है।
पहला सवाल तो यही है कि फोर्ड
फाउंडेशन और अरविंद केजरीवाल के बीच क्या संबंध हैं? दूसरा सवाल है कि क्या
हिवोस भी उनकी संस्थाओं को मदद देता है? तीसरा सवाल, क्या डच दूतावास के
संपर्क में अरविंद केजरीवाल या फिर मनीष सिसोदिया रहते हैं?
इन
सवालों का जवाब केजरीवाल को इसलिए भी देना चाहिए, क्योंकि इन सभी संस्थाओं
से एक चर्चित अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसी के संबंध होने की बात अब सामने आ
चुकी है। वहीं अरविंद केजरीवाल एक जनप्रतिनिधि हैं।
पहले बाद
करते हैं फोर्ड फाउंडेशन और अरविंद केजरीवाल के संबंधों पर। जनवरी 2000 में
अरविंद छुट्टी पर गए। फिर ‘परिवर्तन’ नाम से एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ)
का गठन किया। केजरीवाल ने साल 2006 के फरवरी महीने से ‘परिवर्तन’ में पूरा
समय देने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी। इसी साल उन्हें उभरते नेतृत्व के
लिए मैगसेसे का पुरस्कार मिला।
यह पुरस्कार फोर्ड फाउंडेशन की मदद
से ही सन् 2000 में शुरू किया गया था। केजरीवाल के प्रत्येक कदम में फोर्ड
फाउंडेशन की भूमिका रही है। पहले उन्हें 38 साल की उम्र में 50,000 डॉलर
का यह पुरस्कार मिला, लेकिन उनकी एक भी उपलब्धि का विवरण इस पुरस्कार के
साथ नहीं था। हां, इतना जरूर कहा गया कि वे परिवर्तन के बैनर तले केजरीवाल
और उनकी टीम ने बिजली बिलों संबंधी 2,500 शिकायतों का निपटारा किया।
विभिन्न श्रेणियों में मैगसेसे पुरस्कार रोकफेलर ब्रदर्स फाउंडेशन ने
स्थापित किया था। इस पुरस्कार के साथ मिलने वाली नगद राशि का बड़ा हिस्सा
फोर्ड फाउंडेशन ही देता है। आश्चर्यजनक रूप से केजरीवाल जब सरकारी सेवा में
थे, तब भी फोर्ड उनकी संस्था को आर्थिक मदद पहुंचा रहा था। केजरीवाल ने
मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर 1999 में ‘कबीर’ नामक एक संस्था का गठन किया
था। हैरानी की बात है कि जिस फोर्ड फाउंडेशन ने आर्थिक दान दिया, वही
संस्था उसे सम्मानित भी कर रही थी। ऐसा लगता है कि यह सब एक सोची समझी
रणनीति का हिस्सा थी।
फोर्ड ने अपने इस कदम से भारत के जनमानस में
अपना एक आदमी गढ़ दिया। केजरीवाल फोर्ड फाउंडेशन द्वारा निर्मित एक
महत्वपूर्ण आदमी बन गए। हैरानी की बात यह भी है कि ‘कबीर’ पारदर्शी होने का
दावा करती है, लेकिन इस संस्था ने साल 2008-9 में मिलने वाले विदेशी धन का
व्योरा अपनी वेबसाइट पर नहीं दिया है, जबकि फोर्ड फाउंडेशन से मिली
जानकारी बताती है कि उन्होंने ‘कबीर’को 2008 में 1.97 लाख डॉलर दिए। इससे
साफ होता है कि फोर्ड फाउंडेशन ने 2005 में अपना एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए
अरविंद केजरीवाल को चुना। उसकी सारी गतिविधियों का खर्च वहन किया। इतना ही
नहीं, बल्कि मैगससे पुरस्कार दिलवाकर चर्चा में भी लाया।
एक
‘बियॉन्ड हेडलाइन्स’ नामक वेबसाइट ने ‘सूचना के अधिकार कानून’ के जरिए
‘कबीर’ को विदेशी धन मिलने की जानकारी मांगी। इस जानकारी के अनुसार ‘कबीर’
को 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड फाउंडेशन से 86,61,742 रुपए मिले हैं। कबीर
को धन देने वालों की सूची में एक ऐसा भी नाम है, जिसे पढ़कर हर कोई चौंक
जाएगा। यह नाम डच दूतावास का है।
यहां सवाल उठता है कि आखिर डच
दूतावास से अरविंद केजरीवाल का क्या संबंध है? क्योंकि डच दूतावास हमेशा ही
भारत में संदेह के घेरे में रहा है। 16 अक्टूबर, 2012 को अदालत ने तहलका
मामले में आरोप तय किए हैं। इस पूरे मामले में जिस लेख को आधार बनाया गया
है, उसमें डच की भारत में गतिविधियों को संदिग्ध बताया गया है।
इसके अलावा सवाल यह भी उठता है कि किसी देश का दूतावास किसी दूसरे देश की
अनाम संस्था को सीधे धन कैसे दे सकता है? आखिर डच दूतावास का अरविंद
केजरीवाल और मनीष सिसोदिया से क्या रिश्ता है? यह रहस्य है। न तो स्वयं
अरविंद और न ही टीम अरविंद ने इस बाबत कोई जानकारी दी है।
इतना ही
नहीं, बल्कि 1985 में पीएसओ नाम की एक संस्था बनाई गई थी। इस संस्था का
काम विकास में सहयोग के नाम पर विशेषज्ञों को दूसरे देशों में तैनात करना
था। पीएसओ को डच विदेश मंत्रालय सीधे धन देता है। पीएसओ हिओस समेत 60 डच
विकास संगठनों का समूह है। नीदरलैंड सरकार इसे हर साल 27 मिलियन यूरो देती
है। पीएसओ ‘प्रिया’ संस्था का आर्थिक सहयोगी है। प्रिया का संबंध फोर्ड
फाउंडेशन से है। यही ‘प्रिया’ केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की संस्था ‘कबीर’
की सहयोगी है।
इन सब बातों से साफ है कि डच एनजीओ, फोर्ड
फाउंडेशन,डच सरकार और केजरीवाल के बीच परस्पर संबंध है। इतना ही नहीं, कई
देशों से शिकायत मिलने के बाद पीएसओ को बंद किया जा रहा है। ये शिकायतें
दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से संबंधित हैं। 2011 में
पीएसओ की आम सभा ने इसे 1 जनवरी, 2013 को बंद करने का निर्णय लिया है। यह
निर्णय दूसरे देशों की उन्हीं शिकायतों का असर माना जा रहा है।
हाल ही में पायनियर नामक अंग्रेजी दैनिक अखबार ने कहा कि हिवोस ने गुजरात
के विभिन्न गैर सरकारी संगठन को अप्रैल 2008 और अगस्त 2012 के बीच 13 लाख
यूरो यानी सवा नौ करोड़ रुपए दिए। हिवोस पर फोर्ड फाउंडेशन की सबसे ज्यादा
कृपा रहती है। डच एनजीओ हिवोस इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस द हेग
(एरासमस युनिवर्सिटी रोटरडम) से पिछले पांच सालों से सहयोग ले रही है।
हिवोस ने “परिवर्तन” को भी धन मुहैया कराया है।
इस संस्था की
खासियत यह है कि विभिन्न देशों में सत्ता के खिलाफ जनउभार पैदा करने की इसे
विशेषज्ञता हासिल है। डच सरकार के इस पूरे कार्यक्रम का समन्वय आईएसएस के
डॉ.क्रीस बिकार्ट के हवाले है। इसके साथ-साथ मीडिया को साधने के लिए एक
संस्था खड़ी की गई है। इस संस्था के दक्षिणी एशिया में सात कार्यालय हैं।
जहां से इनकी गतिविधियां संचालित होती हैं। इस संस्था का नाम ‘पनोस’ है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जो हो रहा है वह प्रायोजित है?
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